बुधवार, 31 दिसंबर 2014

हंसते खेलते नन्हे पिल्ले को उठाना भी निर्दयता

आज व्हाट्सएप पर एक मित्र ने यह तस्वीर भेजी तो एकायक यही लगा कि यार, ये कोमल जीव क्या कर रहें हैं, कहीं ये झुलस न जाएं। डर सा लगा कि कहीं आग इन के पैरों को न छू ले।

अचानक दो दिन पहले का किस्सा याद आ गया....मैंने देखा कि कुछ छोटे छोटे पिल्ले एक गली में मस्ती कर रहे थे.. देख कर अच्छा लगा... मैंने देखा कि एक कबाड़ी ने उन में से एक पिल्ले को अपनी रेहड़ी के अागे टंगी टोकरी में रख लिया... मैं अचानक रूक गया....और इतना ही कहा कि क्यों कर रहे हो ऐसा! 

मेरे कहने के बाद पास ही धूप सेंक रही महिलाएं भी उसे कहने लगीं कि इसे मत ले कर जाओ। 

अचानक यह सब देख कर वह कबाड़ी थोड़ा सकपका सा गया....उसने तुरंत अपनी टोकरी से उसे निकाल कर नीचे रख दिया और खिसिया कर कहने लगा......"मैंने तो इसे पालने के लिए ले जा रहा था।"

ऐसा दृश्य मैंने पहली बार नहीं देखा और न ही आखिरी बार.....मुझे पता है कि उस दिन तो वह उसे नहीं ले गया, लेकिन फिर किसी दिन मौका मिले तो उठा कर ले जायेगा। 

मैंने कईं बार कुछ युवकों को भी इस तरह का अपहरण करते देखा है...जी हां, यह अपहरण ही है, क्या बात है अगर ये जीव बोल नहीं पाते!! मैं जब भी इस तरह की "वारदात"होते देखते हूं तो एक बार तो ज़रूर कूद पड़ता हूं। 

लेिकन जो भी इस तरह का काम करते हैं मुझे उन की क्रूरता पर बहुत गुस्सा आता है। 

हां, जब उस कबाड़ी ने मुझे कहा कि वह तो उस पिल्ले को पालने के लिए ही उठा रहा था तो एक बार तो मेरा भी मन तो किया कि उसे कहूं कि यह जो तुम्हारा बेटा (आठ-दस वर्ष का) है, उसे मैं भी अपने साथ लखनऊ ले जाऊं.......पालने के लिए.......तो तुम्हारे दिल पर क्या बीतेगी?

अगर अपने बेटे के बाहर जाने के नाम मात्र ले ही तुम्हें टीस होने लगी तो भाई, उस पिल्ले की मां और उस के दूसरे भाई-बहनों का भी अपने एक साथी को अचानक अपने बीच न पाकर उन के दिल पर क्या बीतती होगी, इस की कल्पना तुम कर ही नहीं सकते!! मैंने उसे इतना तो कहा कि जो खुशी इस पिल्ले को इन सब के साथ रह कर, मस्ती करने में मिल रही है, वह तुम्हारे पास न मिलेगी!!

 ये जानवर तो शायद अपने बच्चों को हम इंसानों से कहीं ज़्यादा प्यार करते हैं.....एक बार मैंने देखा एक दो साल पहले की बात है....सर्दी का मौसम था...छःसात पिल्लों की मां एक दिन सुबह अपने तीन चार मरे हुए पिल्लों के पास भाग भाग कर बिल्कुल पगली सी देख रही थी ...उन्हें मुंह से पकड़ पकड़ कर देख रही थी....जब उन में कोई हिल-डुल न देखती तो बिल्कुल बदहवास ही..पगली सी हो कर इधर उधर भागने लगती.....यह बहुत दर्दनाक मंजर था। 

अरे भाई, अगर इंसान का बच्चा स्कूल से पांच मिनट लेट हो जाए तो मां-बाप परेशान हो उठते हैं , है कि नहीं?....तो फिर जानवर है तो क्या है, दिल तो बाबू एक जैसा ही धड़कता है। 

काश, हम लोग धार्मिक पाखंडबाजियों और बाबाओं के चक्कर में पड़ें नहीं, और बस ईश्वर से यही दुआ किया करें कि हमें संवेदनशील बनाए रखे, किसी दूसरे के दर्द को महसूस करने का जज्बा कायम रख पाएं............आमीन!.....बाकी सभी तरह के आडंबरों से कुछ हासिल नहीं!!

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