मंगलवार, 8 जनवरी 2008

खुद मोल खरीदा जाने वाला एक शैतान ...


कुछ समय पहले एक 17वर्षीय किशोर से मिलने का मौका मिला जो अपने पिता के साथ मेरे पास मुंह के छालों के इलाज के लिए आया था। उस के मुंह के अंदर एक नज़र मारने मात्र से पता चला कि उस के मुंह के अंदर एक गाल पर सफेद, झुर्रीदार दाग एवं एक ज़ख्म है। उसे इस के बारे में न तो कुछ पता ही था और न ही उसे इस की कोई तकलीफ ही थी। सीधी सी बात है कि जब उसे यह ही नहीं पता था कि गाल के ऊपर ऐसा-वैसा कुछ है तो कितने समय से यह है, यह पूछने का तो सवाल ही न उठता था। दोस्तो, इस अवस्था तो ओरल-ल्यूकोप्लेकिया (oral leukoplakia) कहा जाता है ----यह मुंह के कैंसर की कैंसर पूर्व-अवस्था (प्री-कैंसर) है। अगर किसी भी रूप में तंबाकू का उपभोग इस अवस्था में भी छोड़ दिया जाए तो स्थिति के आसानी से काबू आने के काफी चांस होते हैं। लेकिन सोचने वाली बात तो यही है दोस्तो कि तंबाकू छोड़ने के लिए इस अवस्था में पहुंचने तक आखिर इंतजार ही क्यों किया जाए ?--- इस अवस्था में पहुंचने पर भी अगर तंबाकू, गुटखे, पानमसाले एवं पान से मोह बना रहे तो यह प्री-कैंसर की अवस्था मुख कैंसर का रूप भी धारण कर सकती है।

हां, तो मैं उस 17वर्षीय लड़के की बात कर रहा था, लेकिन वह लड़का तो यह मानने को तैयार ही न था कि उसने कभी भी तंबाकू को किसी भी रूप में इस्तेमाल किया है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ल्यूकोप्लेकिया की यह अवस्था सामान्यतयः इन खतरनाक उत्पादों के सेवन के बिना तो हो ही नहीं सकती। बार-बार एक ही बात पूछने पर लड़के ने आखिर बता ही दिया कि वह पिछले पांच वर्षों से तंबाकू-चूने का सेवन कर रहा है। उसने झट से अपनी जेब से तंबाकू-चूने का पाउच भी निकाल कर बाहर मेरी टेबल पर रख दिया।

शायद यह पढ़ कर आप भी सकते में आ गये होंगे लेकिन चौंकाने वाला कड़वा सत्य यही है कि अब छोटी उम्र में भी इस तरह की समस्या एक विकराल रूप धारण किए जा रही है। किशोरावस्था में ही इन रोगों की प्रारंभिक अवस्थाएं दिखना चिकित्सकों के लिए दुःखद चुनौती तो है , इस के साथ ही साथ समाज के लिए भी यह खतरे की घंटी है।

पिछले लगभग दो दशकों से मुंह के कैंसर से ग्रस्त रोगियों को अकाल मृत्यु का ग्रास बनते देख रहा हूं। हमारे देश में मुंह के कैंसर के रोगियों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन में से अधिकांश के पीछे एक ही शैतान है---विलेन नं1---अर्थात् किसी भी रूप में तंबाकू का उपयोग। यह अकसर देखने में आया है कि लोग अकसर सिगरेट को ही ज्यादा बुरा समझते हैं जब कि वास्तविकता यह है कि स्मोकलैस तंबाकू( जिस के कश तो न खींचे जाएं, लेकिन जिसे चबाया जाए, गाल के अंदर रख कर चूसा जाए, गुटखा, ऩसवार, मसूड़ों के ऊपर लगाए जाने वाले तंबाकू वाले मंजन....लिस्ट काफी लंबी है) के भी सभी रूप बेहद घातक हैं।

आप इस विडंबना की तरफ भी गौर कीजिए - शरीर के अंदरूनी हिस्सों की तुलना में मसूड़े, गाल के अंदरूनी हिस्से, होंठ, जिह्वा, तालू ....ये सब शरीर के वे भाग हैं जिन में होने वाले किसी भी घाव अथवा बदलाव को बड़ी आसानी से प्रारंभिक अवस्था में ही देखा जा सकता है, फिर भी मुख-कैंसर के अधिकांश मरीज़ इस बीमारी के काफी उग्र रूप धारण कर लेने पर ही विशेषज्ञ के पास जाते हैं, लेकिन तब तक अकसर काफी देर हो चुकी होती है। जो मरीज मुंह में ल्यूकोप्लेकिया होने के बावजूद भी तंबाकू की गिरफ्त में हैं, दोस्तो, इसे हम धीरे-धीरे की जाने वाली आत्महत्या नहीं तो और क्या कहें ?--वैसे तो हमें नियमित रूप से स्वयं भी घर पर अपने मुख के अंदरूनी हिस्सों को शीशे में कभी-कभार जरूर देखते रहना चाहिए ताकि किसी तरह के बदलाव अथवा घाव को तुरंत पकड़ा जा सके।

दोस्तो, एक तो वैसे ही हमारे द्वारा किए जा रहे प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के फलस्वरूप जल,वायु एवं खाध्य पदार्थों के प्रदूषण के बारे में तो हम सब को पता ही है, ऊपर से तंबाकू एवं शराब जैसे मादक पदार्थों को जले पर नमक छिड़कने के लिए खरीद कर हम अपनी ज़िंदगी से आखिर क्यों खिलवाड़ करते हैं !!---तंबाकू के तो , दोस्तो, सभी रूप ही घातक हैं, इस के सभी उत्पाद केवल उत्पात ही मचाते हैं। यहां तक कि हुक्का पीना भी खतरे से खाली नहीं है। समझदारी इसी में ही है कि हम इन सब वस्तुओं से मीलों दूर रहें , सीधा-सादा संतुलित आहार लें जिस में हरी-पत्तेदार सब्जियां एवं मौसमी फल भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो।

हमारे देश में तो बहुत से लोग तंबाकू-चूने एवं गुटखे को होठों या गाल के अंदर दबा लेते हैं जहां से धीरे धीरे इस का रस चूसते रहते हैं। जिन लोगों को तंबाकू चबाने के इलावा शराब पीने की भी आदत है, उन में तो मुख-कैंसर होने की और भी ज्यादा संभावना रहती है। कुछ लोग तो इस तंबाकू-चूने के मिश्रण को रात में भी मुंह में दबा कर सो जाते हैं। बम्बई के टाटा हास्पीटल के एक पूर्व निर्देशक, डा.राव साहब, एक बार कह रहे थे कि अगर लोग रात को सोने से पहले अपने दांत साफ करने की आदत ही डाल लें तो भी मुंह के कैंसर के रोगियों की संख्या में भारी गिरावट आ जाएगी----इस का कारण यह है कि एक बार रात में सोने से पहले अपना मुंह साफ कर लेने के पश्चात तंबाकू-चूने अथवा गुटखे को मुंह में दबाने की भला किसे इच्छा होगी !! कितनी सही बात है !!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. पता नहीं ये बात लोगों के कब समझ में आयेगी कि वो खुद ही केंसर को खरीद रहे हैं व फ़िर उसका न मिलने वाला ईलाज खरीदेंगे । भगवान अक्ल दे नौजवानों को जो ये नशा करके स्टाईल मारते हैं ।

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  2. आपके ब्लाग को पढकर बडा अच्छा लगता है अब तो आपकी पोस्ट का इन्तजार सा रहता है । इस अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद ।

    तम्बाकू तो हम खाते नहीं, लेकिन जानना चाहेंगे कि सुरापान का हमारे शरीर पर तात्कालिक और दीर्घकालिक क्या प्रभाव पडता है ?

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  3. प्रवीण जी,

    आप को एक निजी पत्र लिखा था, जवाब न मिलने पर आपके चिट्ठे पर यह सूचना दे रहे हैं।

    चजइ पुरस्कार पाने की बधाई।

    http://chittha.chitthajagat.in/2007/12/blog-post_31.html

    कृपया निम्न जानकारी प्रदान करें -

    १. आपके बैंक के खाते का नंबर
    २. बैंक का नाम
    ३. बैंक का पता
    ४. खाता जिस नाम से है, वह नाम

    यदि आपका ऍच डी ऍफ़ सी बैंक में खाता है, तो वह बताएँ, इससे स्थानान्तरण
    में धन की बचत होगी।

    पुरस्कार पाने की पुनः बधाई।

    सविनय,
    चिट्ठाजगत सेवा दल

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