जिस व्यक्ति के मुंह की तस्वीर आप इस दोनों फोटो में देख रहे हैं, इन की उम्र 50 साल की है और ये पिछले 20-25 सालों से धूम्रपान कर रहे हैं। यह मधुमेह की तकलीफ़ से भी परेशान हैं। जब इन्होंने धूम्रपान शुरू किया तो पहला कश यारों-दोस्तों के साथ बैठे बैठे यूं ही मज़ाक में खींचा था ---और इन्होंने भविष्य में दोबारा कश न खींचने की बात कही थी क्योंकि धुऐं से इन को चक्कर सा आने लगा था।
लेकिन उन्हीं यारों दोस्तों के साथ उठते बैठते कब यह मज़ाक एक बदसूरत हकीकत में बदल गया इन्हें भी इस का पता ही नहीं चला। वैसे तो मेरे पास यह दांत की तकलीफ़ के लिये आये थे ----आप देख ही रहे हैं कि तंबाकू के इस्तेमाल ने इन के मुंह में क्या तबाही कर रखी है !!
ऐसे मरीज़ों की दांत की तकलीफ़ को तो मैं बाद में देखता हूं ---पहले उन्हें तंबाकू की विनाश लीला से रू-ब-रू होने का पूरा मौका देता हूं। यह जो आप पहली तस्वीर में देख रहे हैं यह इन के बायें तरफ़ की गाल का अंदरूनी हिस्सा है ---- यह भी ओरल-ल्यूकोप्लेकिया ही है ---अर्थात् मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था । आप दूसरी तस्वीर में दाईं तरफ़ की गाल का भी अंदरूनी हिस्सा देख रहे हैं कि उस तरफ़ भी गड़बड़ शुरू हो चुकी है।
अब यह कौन बताये कि कौन सा ल्यूकोप्लेकिया मुंह के कैंसर में तबदील हो जायेगा और इसे ऐसा करने में कितने साल लगेंगे ------ लेकिन फिर भी इस तरह का जोखिम आखिर कौन लेना चाहेगा ? – जब सरेआम पता है कि मुंह में एक शैतान पल रहा है तो फिर भी क्यों इस को नज़रअंदाज़ किया जाये। ऐसी अवस्था को नज़रअंदाज़ करना एक अच्छा-खासा जोखिम से भरा काम है। इसलिये इस का तुरंत इलाज करवाना ज़रूरी है।
लेकिन इस का इलाज कैसे हो ? ---सब से पहली बात है कि जब भी पता चले कि यह तकलीफ़ है तो उसी क्षण से सिगरेट-बीड़ी के पैकेट पर गालीयों की जबरदस्त बौछार कर के ( जैसे जब-व्ही -मेट --jab we met की नायिका ने अपने पुराने ब्वॉय-फ्रैंड पर की थी !! , अगर हो सके तो उस से भी ज़्यादा ....!! ) बाहर नाली में फैंक दिया जाये। मेरे मरीज़ों को मेरी यह बात समझ में बहुत अच्छी तरह से आ जाती है जब मैं उन्हें यह कहता हूं कि देखो, भई, बहुत पी ली बीड़ीयां अब तक ---- अब इसे कभी तो छोड़ोगे, और अब खासकर जब आप को पता लग चुका है इस तंबाकू ने अपना रंग आप के मुंह में दिखा दिया है -----ऐसे में अगर अब भी इस कैंसर की डंडी ( सिगरेट- बीड़ी / कैंसर स्टिक) का मोह नहीं छूटा तो समझो कि धीरे धीरे आत्महत्या की जा रही है।
सिगरेट बीड़ी छोड़ कर इस ओरल-ल्यूकोप्लेकिया के इलाज की तरफ़ ध्यान दिया जाये – अगर तो आप किसी ऐसे शहर में रहते हैं जहां पर कैंसर हास्पीटल है तो वहां पर कैंसर की रोकथाम वाले विभाग में जाकर इस की ठीक से जांच करवायें, ज़रूरत होगी तो उस जगह से थोड़ा टुकड़ा लेकर बायोप्सी भी की जायेगी और फिर समुचित इलाज भी किया जायेगा। यह बहुत ही ज़रूरी है ----लेकिन इलाज से पहले , प्लीज़, कृपया, मेहरबानी कर के धूम्रपान की आदत को लात मार दें तो ही बात बनेगी।
मैं तंबाकू के विरोध में जगह जगह इतना बोलता हूं कि कईं बार ऊब सा जाता हूं –यहां तक कि इस किस्म के लेख लिख कर भी थकने लगता हूं लेकिन फिर वही ध्यान आता है कि अगर हम लोग ही थक कर, हौंसला हार कर बैठ गये तो यह तंबाकू नामक गुंडे का हौंसला तो और भी बुलंद हो जायेगा।
सोचने की बात यह है कि मुंह में तो यह तंबाकू के विभिन्न उत्पाद जो ऊधम मचा रहे हैं वह तो डाक्टर ने मरीज़ का मुंह खुलवाया और देख लिया लेकिन शरीर के अंदरूनी हिस्सों में जो यह तबायी लगातार मचाये जा रहा है, वह तो अकसर बिना किसी चेतावनी के उग्र रूप में ही प्रकट होती है जैसे कि दिल का कोई भयंकर रोग, श्वास-प्रणाली के रोग, फेफड़े का कैंसर, मूत्राशय का कैंसर -----------आखिर ऐसा कौन सा अंग है जो इस के विनाश से बचा रह पाता है ?
इसलिये केवल और केवल एक ही आशा की किरण है कि हम लोग सभी तरह के तंबाकू उत्पादों से दूर रहें -----यह भी एक खौफ़नाक आतंकवादी ही है जो गोली से नहीं मारता, बल्कि यह धीमा ज़हर है, धीरे धीरे मौत के मुंह में धकेलता है। सोचने की बात यह भी है कि आखिर यह सब जानते हुये भी किस फरिश्ते की इंतज़ार कर रहे हैं जो आकर हमें इस शैतान से निजात दिलायेगा।
तंबाकू या स्वास्थ्य -----------------आप केवल एक को ही चुन सकते हैं !!
लेकिन उन्हीं यारों दोस्तों के साथ उठते बैठते कब यह मज़ाक एक बदसूरत हकीकत में बदल गया इन्हें भी इस का पता ही नहीं चला। वैसे तो मेरे पास यह दांत की तकलीफ़ के लिये आये थे ----आप देख ही रहे हैं कि तंबाकू के इस्तेमाल ने इन के मुंह में क्या तबाही कर रखी है !!
ऐसे मरीज़ों की दांत की तकलीफ़ को तो मैं बाद में देखता हूं ---पहले उन्हें तंबाकू की विनाश लीला से रू-ब-रू होने का पूरा मौका देता हूं। यह जो आप पहली तस्वीर में देख रहे हैं यह इन के बायें तरफ़ की गाल का अंदरूनी हिस्सा है ---- यह भी ओरल-ल्यूकोप्लेकिया ही है ---अर्थात् मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था । आप दूसरी तस्वीर में दाईं तरफ़ की गाल का भी अंदरूनी हिस्सा देख रहे हैं कि उस तरफ़ भी गड़बड़ शुरू हो चुकी है।
अब यह कौन बताये कि कौन सा ल्यूकोप्लेकिया मुंह के कैंसर में तबदील हो जायेगा और इसे ऐसा करने में कितने साल लगेंगे ------ लेकिन फिर भी इस तरह का जोखिम आखिर कौन लेना चाहेगा ? – जब सरेआम पता है कि मुंह में एक शैतान पल रहा है तो फिर भी क्यों इस को नज़रअंदाज़ किया जाये। ऐसी अवस्था को नज़रअंदाज़ करना एक अच्छा-खासा जोखिम से भरा काम है। इसलिये इस का तुरंत इलाज करवाना ज़रूरी है।
लेकिन इस का इलाज कैसे हो ? ---सब से पहली बात है कि जब भी पता चले कि यह तकलीफ़ है तो उसी क्षण से सिगरेट-बीड़ी के पैकेट पर गालीयों की जबरदस्त बौछार कर के ( जैसे जब-व्ही -मेट --jab we met की नायिका ने अपने पुराने ब्वॉय-फ्रैंड पर की थी !! , अगर हो सके तो उस से भी ज़्यादा ....!! ) बाहर नाली में फैंक दिया जाये। मेरे मरीज़ों को मेरी यह बात समझ में बहुत अच्छी तरह से आ जाती है जब मैं उन्हें यह कहता हूं कि देखो, भई, बहुत पी ली बीड़ीयां अब तक ---- अब इसे कभी तो छोड़ोगे, और अब खासकर जब आप को पता लग चुका है इस तंबाकू ने अपना रंग आप के मुंह में दिखा दिया है -----ऐसे में अगर अब भी इस कैंसर की डंडी ( सिगरेट- बीड़ी / कैंसर स्टिक) का मोह नहीं छूटा तो समझो कि धीरे धीरे आत्महत्या की जा रही है।
सिगरेट बीड़ी छोड़ कर इस ओरल-ल्यूकोप्लेकिया के इलाज की तरफ़ ध्यान दिया जाये – अगर तो आप किसी ऐसे शहर में रहते हैं जहां पर कैंसर हास्पीटल है तो वहां पर कैंसर की रोकथाम वाले विभाग में जाकर इस की ठीक से जांच करवायें, ज़रूरत होगी तो उस जगह से थोड़ा टुकड़ा लेकर बायोप्सी भी की जायेगी और फिर समुचित इलाज भी किया जायेगा। यह बहुत ही ज़रूरी है ----लेकिन इलाज से पहले , प्लीज़, कृपया, मेहरबानी कर के धूम्रपान की आदत को लात मार दें तो ही बात बनेगी।
मैं तंबाकू के विरोध में जगह जगह इतना बोलता हूं कि कईं बार ऊब सा जाता हूं –यहां तक कि इस किस्म के लेख लिख कर भी थकने लगता हूं लेकिन फिर वही ध्यान आता है कि अगर हम लोग ही थक कर, हौंसला हार कर बैठ गये तो यह तंबाकू नामक गुंडे का हौंसला तो और भी बुलंद हो जायेगा।
सोचने की बात यह है कि मुंह में तो यह तंबाकू के विभिन्न उत्पाद जो ऊधम मचा रहे हैं वह तो डाक्टर ने मरीज़ का मुंह खुलवाया और देख लिया लेकिन शरीर के अंदरूनी हिस्सों में जो यह तबायी लगातार मचाये जा रहा है, वह तो अकसर बिना किसी चेतावनी के उग्र रूप में ही प्रकट होती है जैसे कि दिल का कोई भयंकर रोग, श्वास-प्रणाली के रोग, फेफड़े का कैंसर, मूत्राशय का कैंसर -----------आखिर ऐसा कौन सा अंग है जो इस के विनाश से बचा रह पाता है ?
इसलिये केवल और केवल एक ही आशा की किरण है कि हम लोग सभी तरह के तंबाकू उत्पादों से दूर रहें -----यह भी एक खौफ़नाक आतंकवादी ही है जो गोली से नहीं मारता, बल्कि यह धीमा ज़हर है, धीरे धीरे मौत के मुंह में धकेलता है। सोचने की बात यह भी है कि आखिर यह सब जानते हुये भी किस फरिश्ते की इंतज़ार कर रहे हैं जो आकर हमें इस शैतान से निजात दिलायेगा।
तंबाकू या स्वास्थ्य -----------------आप केवल एक को ही चुन सकते हैं !!
हमारा चुनाव...स्वास्थ्य...
जवाब देंहटाएंनीरज
अजीब संयोग है. मेरा और आपका पोस्ट एक ही समय में आया.
जवाब देंहटाएंआप सही कहते हैं, वो कहते हैं न कि "सिगरेट एक ऐसी चीज है जिसके एक तरफ आग होती है और दूसरी तरफ बेवकूफ". फिर जब तक खुद न जागें कौन जगाये.
फरिश्ते नहीं, बीमारी नाम के शैतान का। उसमें से छूड़ाने की शक्ति है। चाहे तब तक देर हो चुकी हो।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
फरिश्ते नहीं, बीमारी नाम के शैतान का। उसमें इसे* छुड़वाने* की शक्ति है। चाहे तब तक देर हो चुकी हो।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आपने अच्छा आलेख प्रस्तुत किया । तंबाकू नहीं स्वास्थ्य ही चुनता हूँ , ये जीवन बहुत प्यारा है।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख..मगर खुद ग्रसित हैं तो क्या कहें.
जवाब देंहटाएंएक अच्छी जानकारी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद