आज सुबह जब मैं हिन्दुस्तान अखबार पढ़ रहा था तो इसी नाम का शीर्षक देख कर ध्यान उस तरफ़ खिंचा। जब खबर पूरी पढ़ी तो लगा कि यार एक एक बात सोलह आने सच तो लिखी है.
यह बात कल मुख्य न्यायाधीश डा धनंजय चन्द्रचूड़ ने केजीएमयू के मेडीकोज को प्रमाणपत्र देते हुए कही। एक बात तो है कि ये जो न्यायाधीश स्तर के लोग होते हैं ये बहुत ज़हीन होते हैं, ये हर शब्द तोल के निकालते हैं...मुझे इसे पढ़ कर यही लगा कि उन्होंने जो कुछ भी कहा सच में चिकित्सकों को उस तरफ़ विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
मैंने इस रपट का ऑन-लाइन लिंक ढूंढने की कोशिश तो की, लेकिन मिला नहीं, इसलिए इसी के कुछ अंश यहां लिख कर आप तक पहुंचा रहा हूं।
महूसस करें मरीज का दर्द
- डॉक्टर मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के बारे में सोचें। उपलब्ध संसाधनों में मरीज का मर्ज ठीक करने की दिशा में उन्हें हर संभव कोशिश करनी चाहिए।
- अनाप-शनाप जांच कराने से बचना चाहिए। क्योंकि मेडिकल साइंस का दायरा सीमित है। जांच पर अत्याधिक निर्भरता मरीजों की सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकती है।
- उन्होंने कहा कि डॉक्टर और मरीजों का रिश्ता संवेदनाओं का है। भरोसे का है। लिहाजा डॉक्टर मरीजों के हितों के बारे में सोचें।
- उन्होंने कहा कि डॉक्टर मरीज़ों को जांच की लंबी-चौड़ी लिस्ट न थमाएं। जो जरूरी हो वही जांच कराएं।
सब कुछ कितना सही कहा......चंद लफ्जों में जैसे गागर में सागर भर दिया। काश!
- मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मरीज केवल इलाज के लिए अस्पताल नहीं आते हैं। बल्कि मानसिक सुकून के लिए भी आते हैं। डॉक्टर से सेहत के बारे में पूछते हैं। सही राय मरीजों के दर्द को कम करती है। डॉक्टर मरीजों की पीड़ा को महसूस करें। अपने पेशे से भटके नहीं।