डा आनंद राय एक व्हिसल-ब्लोअर हैं जो मानते हैं कि मध्यप्रदेश में जो पीएमटी व्यापम् कांड हुआ है उस में लखनऊ की केजीएमसी मैडीकल कालेज के डाक्टरों का बहुत बड़ा हाथ है।
ऐसा कहा गया है कि यू पी के डाक्टर जो गोरखधंधे में शामिल हैं, वे दो तरह की ईंजन-बोगी स्कीमों में लिप्त पाए गये हैं। यूपी के ये मेडीकल छात्र जो दूसरे प्रांतों में जाकर दूसरे छात्रों की जगह पर परीक्षा दे कर आते हैं इन्हें ईंजन कहा जाता है और पीएमटी से तीन महीने पहले से ही इन के वहां रहने-खाने पीने की पूरी व्यवस्था और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवा दी जाती हैं।
पहली स्कीम यह होती है....जो ईंजन हैं वे ओरिजनल छात्रों की जगह पर पीएमटी परीक्षा देते हैं...परीक्षा देने के लिए जो एडमिट कार्ड जारी होता है उस में भी इसी ईंजन की फोटू लगी होती है, लेकिन पीएमटी परीक्षा होने के बाद बाबू लोगों की सांठगांठ से इस फोटो की जगह बोगी (जिस के मेडीकल दाखिले के लिए ईंजन ने पेपर दिया है) की फोटू चिपका दी जाती है।
दूसरी स्कीम के बारे में सुनिए -- ईंजन और बोगी पीएमटी टेस्ट के लिए अपने अपने फार्म भरते हैं...लेकिन ये एक साथ ही इन्हें जमा करते हैं ताकि इन के रोल नंबर इस तरह से जारी हों कि पेपर में इन्हें एक साथ आगे पीछे बैठने का अवसर मिल जाए। फिर ईंजन का काम यह है कि या तो वे बोगी की परीक्षा हाल में मदद करे, नहीं तो ये आपस में उत्तर पुस्तिका बदल कर यह काम और भी आसान कर लेते हैं।
केजीएमयू के पेपर सॉल्वरों की धांसू डिमांड है। वैसे तो केजीएमसी भी कईं बरसों तक इस समस्या से जूझता रहा है िक किसी छात्र की जगह पर कोई दूसरा छात्र पेपर दे कर चला गया।
माफिया कमजोर छात्रों को डाक्टरी सीट दिलाने के लिए हर छात्र से ५ लाख से १५ लाख रूपये की वसूली करते हैं।
इस गैंग की जड़ें इतनी मजबूत होती हैं कि ये कंप्यूटर सिस्टम से छेड़खानी कर के परीक्षा परिणाम भी बदल देते हैं....अब इस की भी जांच चल रही है।
२०१३ में इंदौर के एक नेत्ररोग विशेषज्ञ डा आनंद राय ने इस प्रीमैडीकल टैस्ट रैकेट का भंडा फोड़ा और यह आरोप लगाया कि २००४ से २०१३ के बीच मध्यप्रदेश के हज़ारों छात्रों ने इसी तरह के गलत ढंग अपना कर मेडीकल में प्रवेश लिया है।
अब तो आप मेरे साथ मिल कर यही प्रार्थना करें कि भगवान मरीज़ों पर कृपा करें...वैसे सरासर बेवकूफी है मां-बाप की भी.... क्या कर लोगो यार ऐसे लोंडों को डाक्टर बना कर....जिन की नींव ही फर्जीवाड़े पर रखी गई है। लेकिन एक बार घुस जाएंगे ऐसे मुन्नाभाई तो फिर तो डाक्टर का ठप्पा लगवा कर के ही निकलते हैं कालेज से......अगर वहां तक पहुंचने में इतनी महंगी मगजमारी कर सकते हैं तो फिर मेडीकल कालेज के अंदर गोटियां फिट करना क्या इन शातिरों के लिए कोई मुश्किल काम है!!
अफसोस यह कि पढ़ने वाले योग्य छात्र इस जालसाजी के चक्कर में सीट पाने से महरूम रह जाते हैं....indeed very sad state of affairs! Shameful!
मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म देख कर तालियां बजाने तक तो ठीक है लेकिन इस तरह के जाली डाक्टरों से रियल लाइफ में रू-ब-रू होने से ही मरीज़ के तो होश ही फाख्ता हो जाएं.
Source: Times of India, Lucknow Ed. page 3 (Dec11' 2014)
'Engines' clear way for 'Bogies' to secure medical berth
ऐसा कहा गया है कि यू पी के डाक्टर जो गोरखधंधे में शामिल हैं, वे दो तरह की ईंजन-बोगी स्कीमों में लिप्त पाए गये हैं। यूपी के ये मेडीकल छात्र जो दूसरे प्रांतों में जाकर दूसरे छात्रों की जगह पर परीक्षा दे कर आते हैं इन्हें ईंजन कहा जाता है और पीएमटी से तीन महीने पहले से ही इन के वहां रहने-खाने पीने की पूरी व्यवस्था और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवा दी जाती हैं।
पहली स्कीम यह होती है....जो ईंजन हैं वे ओरिजनल छात्रों की जगह पर पीएमटी परीक्षा देते हैं...परीक्षा देने के लिए जो एडमिट कार्ड जारी होता है उस में भी इसी ईंजन की फोटू लगी होती है, लेकिन पीएमटी परीक्षा होने के बाद बाबू लोगों की सांठगांठ से इस फोटो की जगह बोगी (जिस के मेडीकल दाखिले के लिए ईंजन ने पेपर दिया है) की फोटू चिपका दी जाती है।
दूसरी स्कीम के बारे में सुनिए -- ईंजन और बोगी पीएमटी टेस्ट के लिए अपने अपने फार्म भरते हैं...लेकिन ये एक साथ ही इन्हें जमा करते हैं ताकि इन के रोल नंबर इस तरह से जारी हों कि पेपर में इन्हें एक साथ आगे पीछे बैठने का अवसर मिल जाए। फिर ईंजन का काम यह है कि या तो वे बोगी की परीक्षा हाल में मदद करे, नहीं तो ये आपस में उत्तर पुस्तिका बदल कर यह काम और भी आसान कर लेते हैं।
केजीएमयू के पेपर सॉल्वरों की धांसू डिमांड है। वैसे तो केजीएमसी भी कईं बरसों तक इस समस्या से जूझता रहा है िक किसी छात्र की जगह पर कोई दूसरा छात्र पेपर दे कर चला गया।
माफिया कमजोर छात्रों को डाक्टरी सीट दिलाने के लिए हर छात्र से ५ लाख से १५ लाख रूपये की वसूली करते हैं।
इस गैंग की जड़ें इतनी मजबूत होती हैं कि ये कंप्यूटर सिस्टम से छेड़खानी कर के परीक्षा परिणाम भी बदल देते हैं....अब इस की भी जांच चल रही है।
२०१३ में इंदौर के एक नेत्ररोग विशेषज्ञ डा आनंद राय ने इस प्रीमैडीकल टैस्ट रैकेट का भंडा फोड़ा और यह आरोप लगाया कि २००४ से २०१३ के बीच मध्यप्रदेश के हज़ारों छात्रों ने इसी तरह के गलत ढंग अपना कर मेडीकल में प्रवेश लिया है।
अब तो आप मेरे साथ मिल कर यही प्रार्थना करें कि भगवान मरीज़ों पर कृपा करें...वैसे सरासर बेवकूफी है मां-बाप की भी.... क्या कर लोगो यार ऐसे लोंडों को डाक्टर बना कर....जिन की नींव ही फर्जीवाड़े पर रखी गई है। लेकिन एक बार घुस जाएंगे ऐसे मुन्नाभाई तो फिर तो डाक्टर का ठप्पा लगवा कर के ही निकलते हैं कालेज से......अगर वहां तक पहुंचने में इतनी महंगी मगजमारी कर सकते हैं तो फिर मेडीकल कालेज के अंदर गोटियां फिट करना क्या इन शातिरों के लिए कोई मुश्किल काम है!!
अफसोस यह कि पढ़ने वाले योग्य छात्र इस जालसाजी के चक्कर में सीट पाने से महरूम रह जाते हैं....indeed very sad state of affairs! Shameful!
मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म देख कर तालियां बजाने तक तो ठीक है लेकिन इस तरह के जाली डाक्टरों से रियल लाइफ में रू-ब-रू होने से ही मरीज़ के तो होश ही फाख्ता हो जाएं.
Source: Times of India, Lucknow Ed. page 3 (Dec11' 2014)
'Engines' clear way for 'Bogies' to secure medical berth
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