यह प्रश्न मेरे दिमाग में पिछले दो तीन दिनों से लगातार कौंध रहा है..कानून की नालेज तो नगण्य है, लेकिन इतना तो लगता है कि ज़रूर कोई भारी-भरकम दफा तो लगाई ही जाती होगी इस तरह के दस्तावेज़ के लिए।
लेकिन तुरंत फिर से लगने लगता है कि क्या कोई भी दफा इतनी भारी भरकम हो सकती है कि बंदे का वह हाल कर दे जो दिल्ली के कानून मंत्री सिंह का हो रहा है....गिरफ्तारी, रिमांड, दिल्ली से लखनऊ लाया जाना, वहां से फैज़ाबाद, वापिस दिल्ली, फिर अगले ही दिन आनन-फानन में वापिस लखनऊ, वहां से फैज़ाबाद, फिर वहां से पटना.....ज़मानत मिली नहीं!
मानते हैं कि फर्जीवाड़ा ज़ुर्म होता है और देर सवेर सच निकल के आ ही जाएगा.....समुचित कार्यवाही भी हो जाएगी...और एक बात कि उस बंदे ने अपना त्याग-पत्र तो दे ही दिया है, अब इतनी जल्दीबाजी, अफरातफरी मेरी समझ में नहीं आ रही।
हम लोग आए दिन अखबारों में फर्जीवाड़े के किस्से पढ़ते देखते रहते हैं....लोग अपनी जाति के गलत प्रमाण पत्र पेश कर के डिग्रीयां ले लेते हैं, नौकरीयां पा लेते हैं......ठीक है, जब कहीं पता चलता है तो सख्त कार्यवाही होती ही है। लेकिन सोचने की बात यह भी है कि कितने केस ऐसे ही हमेशा दफन ही रहते होंगे।
मुझे अकसर याद आ रही है बात......अकसर अब लोग समझने लगे हैं उस बात का मतलब......"तुम मुझे आदमी बताओ, मैं तुम्हें नियम बताऊंगा"...
वैसे तो सरकार ने विभिन्न सर्टिफिकेटों को किसी आवेदन के साथ जमा करने का काम आसान कर दिया है....अब किसी राजपत्रित अधिकारी के द्वारा इसे सत्यापित करवाने की ज़रूरत नहीं है, लेिकन फिर भी लोग यदा-कदा आ ही जाते हैं अटेसटेशन के लिए। लेकिन अब उसे भी ध्यान से सोचना होगा.....इतना फर्जीवाड़ा जब चल रहा हो तो किसी ऐसे वैसे दस्तावेज की अटेसटेशन भी किसी को परेशान कर सकती है...क्या पता कोई ऐसे ही फुलझड़ी छोड़ दे कि यह साला भी इस फर्जीवाड़े में संलिप्त होगा।
ऐसा भी नहीं है कि हम कह सकें कि इस तरह के फर्जी सर्टिफिकेटों के लिए जो कार्यवाही हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए....कानून ने अपना काम तो करना ही है, लेकिन बार बार मन यही सोचने पर मजबूर हो रहा है कि क्या हर फर्जीवाड़े में ऐसा ही एक्शन होता है! .......जवाब इस का आप मेरे से बेहतर जानते हैं!!
इस केस का घटनाक्रम देखते हुए मुझे लगता है कहीं इस की जांच के लिए सीबीआई जांच ही न बैठा दी जाए!!
इस केस का घटनाक्रम देखते हुए मुझे लगता है कहीं इस की जांच के लिए सीबीआई जांच ही न बैठा दी जाए!!
एक बात और भी है कि अगर एक मंत्री इस तरह की डिग्रीयां रख रहा है, अगर वे फर्जी हैं , तो पता नहीं ऐसी ही कितनी लाखों-हज़ारों लोगों की डिग्रीयां फ़र्ज़ी हों........मेरा सरकार को सुझाव है कि सभी सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों की डिग्रीयों की भी वेरीफिकेशन होनी चाहिए....और यह एक रूटीन होना चाहिए कि नौकरी पर लगने से पहले डाक्यूमेंट्स की वेरीफिकेशन ..मूल दस्तावेज से ही नहीं, बल्कि जिस यूनिवर्सिटी द्वारा उसे जारी किया गया है, उस से भी उस का वेरीफिकेशन करवाया जाना चाहिए....जाति प्रमाण पत्रों की भी वेरीफिकेशन इसी तरह से होनी चाहिए...
बस, बाकी हाल चाल तो ठीक ठाक ही है ......