शुक्रवार, 30 मई 2008

आज तो ठंडी आइसक्रीम हो ही जाये !


आज के लेख के इस शीर्षक का राज़ यह है कि अगर हम ठंडी आइसक्रीम की बात छेड़ते हैं तो बहुत से बंधु अपने दांतों में इस आइसक्रीम की वजह से उठी सिहरन का दुःखडा लेकर बैठ जायेंगे और मेरे को दांतों में ठंडे-गर्म वाले टॉपिक को छेड़ने का बहाना मिल जायेगा।

कल मैंने दांतों के स्वास्थ्य के बारे में एक पोस्ट लिखी थी जिस पर मुझे तो तीन-चार ऐसी टिप्पणी प्राप्त हुईं हैं, जिन पर मैं अलग से एक-एक पोस्ट लिखूंगा। एक टिप्पणी में यह चिंता जताई गई है कि क्वालीफाईड डैंटिस्ट भी असकर ग्लवज़ नहीं पहनते, मास्क नहीं लगाते इत्यादि.......इस के बारे में मैं जो पोस्ट लिखूंगा वह मेरी अपनी ही आपबीती पर आधारित होगी और रोंगटे खड़े करने वाली होगी.....शास्त्री जी से मेरा अनुरोध है कि जहां कहीं भी क्वालीफाईड डैंटिस्ट को बिना ग्लवज़ के देखें तो उन्हें मेरी उस पोस्ट की एक कापी थमा दें, वे ग्लवज़ पहनना शुरू कर देंगे। दूसरी टिप्पणी थी कि टुथपेस्ट कौन सी करें..कौन सी ना करें...बड़ी दुविधा सी रहती है, सो मैं इस का भी समाधान एक पोस्ट में करूंगा। एक टिप्पणी में यह चिंता जताई गई है कि यह जो सिल्वर दांतों में भरी जाती है उस से पारा निकलता रहता है जो हमारे शरीर के लिये क्या खतरनाक है....यह विषय भी इतना अहम् है कि इस पर एक पोस्ट लिखने के बगैर बात बनेगी नहीं।

आज तो मैंने दांतो पर ठंडा-गर्म लगने के बारे में बात करने का विचार किया है। शायद मैंने पहले भी बताया था कि एनसीईआरटी के पास मेरी एक किताब की पांडुलिपि पड़ी हुई है.....सो, पहले तो ध्यान आया कि उस में से ही दांतों के ठंडे-गर्म वाला अध्याय यहां इस पोस्ट में चेप देता हूं....लेकिन मन माना नहीं। यही सोचा कि यार वो पांडुलिपि को तो लिखे दो साल से भी ज़्यादा का समय हो गया है...और वैसे भी इधर ब्लागिंग पर तो बेहद खुलेपन से लिखना होता , लिखना क्या.....अपने बंधुओं से बातें ही करनी होती हैं, तो यहां तो सब कुछ ताज़ा तरीन ही चलता है।

तो चलिये दांतों में लगने वाले ठंडे-गर्म की बात करते हैं। यकीन मानियेगा कि यह दांतों की एक इतनी आम समस्या है कि इस की वजह से दवाईयों से युक्त टुथपेस्टों के कईं विक्रेताओं की जीविका जुड़ी हुई है।

वैसे मुझे याद आ रहा है कि बचपन में जब हम लोग इमली खाते थे ( जी हां, नमक के साथ!)…तो दांत बहुत किटकिटाने से लग जाते थे। और हां, स्कूल में जो कागज़ के टुकड़े पर पांच-दस पैसे का बेहद खट्टा चूर्ण बिकता था, उसे खाने के बाद भी तो दांतों का कुछ ऐसा ही हाल हुया करता था। लेकिन तब हमें इन सब बातों की परवाह कहां थी.....दोपहर तक घर आते आते दांत तो ठीक लगने लगते थे लेकिन गला बैठने लगता था ......लेकिन गले बैठने का भी इतना दुःख नहीं होता था जितना इस बात का डर लगता था कि एक बार फिर पापा ने हमारे चूर्ण खाने वाली चोरी पकड़ लेनी है....क्योंकि अगली सुबह तक गला बंद हो जाया करता था , बुखार हो जाया करता था और थूक निगलने में बेहद तकलीफ। पता नहीं उस चूर्ण में क्या डाला गया होता था।

लेकिन वापिस अपने टॉपिक पर ही आते हैं.....तो क्या आप को भी कईं बार आइसक्रीम खाते खाते अचानक दांतों पर बहुत ठंड़ी सी लगी है........क्या कहा....हां..............कोई बात नहीं, इस में कोई बड़ी बात नहीं है, यह तकलीफ़ अकसर सभी को कभी-कभार होती ही है ।

मुझे लग रहा है कि सब से पहले मुझे इस ठंडा-गर्म लगने के कारण की तरफ बात को लेकर जाना होगा। तो, सुनिये होता यह है कि दांतों के क्राउन ( दांत का वह भाग जो हमें मुंह में नज़र आता है ) की तीन परतें होती हैं.....( वैसे होती तो दांत की जड़ की भी तीन परते ही हैं...लेकिन यहां हम खास बात दांत के ऊपरी हिस्से की ही कर रहे हैं ).....हां, तो क्राउन का बाहर वाला हिस्सा होता है इनेमल....उस के अंदर का भाग जो संवेदनशील होता है उसे डैंटीन कहते हैं और उस के अंदर दांत की नस व रक्त की नाड़ियां होती हैं.....तो होता यूं है कि अगर किसी भी कारण वश क्राउन की बाहरी परत इनैमल क्षतिग्रस्त हो जाती है ...घिस जाती है (उसके क्या कारण हो सकते हैं, इन्हें हम अभी देखते हैं).....तो जो कुछ हम खाते हैं....ठंडा, मीठा, खट्टा आदि ......ये पदार्थ दांत की दूसरी परत के संपर्क में आने की वजह से एक सिहरन सी पैदा करते हैं....यह तो हुई बेसिक सी बात।

अब देखते हैं कि वे कारण कौन से हैं जिस की वजह से दांतों के बाहर की इतनी मजबूत परत इनैमल घिस जाती है.....कट जाती है....क्षतिग्रस्त हो जाती है.......

दांतों को ब्रुश करने में और बूट-पालिश करने में कुछ तो अंतर होगा !..........

दांतों की बाहरी परत इनैमल के क्षतिग्रस्त होने का सब से महत्वपूर्ण कारण यही है कि अकसर लोग ब्रुश एवं दातुन को गलत ढंग से दांतों पर रगड़ते हैं जिस की वजह से यह इनैमल की परत नष्ट हो जाती है और एक बार यह कट जाये और ऊपर से टुथ-ब्रशिंग की शू-शाईन वाली गलत टैक्नीक लगातार चलती रहे ..तो फिर यह इनैमल का कटाव चलता ही रहता है जब तक कि यह कटाव इतना ही न हो जाये कि अंदर से दांत की नस ही एक्सपोज़ हो जाये.....यह बहुत दर्दनाक स्थिति होती है।

तो, इस तरह की स्थिति का इलाज यही है कि अगर दांतों में ठंडा गर्म लग रहा है तो तुरंत दंत-चिकित्सक को मिलिये.......ताकि आप को सही ढँग से ब्रुश करने की बातें भी पता चलें और जो दांतों पर इनैमल का कटाव हो चुका है उस का भी उचित फिलिंग के द्वारा इलाज किया जा सके।

यहां यह बात समझनी बहुत ज़रूरी है कि केवल फिलिंग ही इस का समाधान नहीं है क्योंकि अगर ब्रुश इस्तेमाल करने का अपना ढंग न ठीक किया गया तो यह कटाव वापिस हो जाता है...फिलिंग कोई इनैमल से ज़्यादा मजबूत थोड़े ही होती है।

खुरदरे मंजन भी इनैमल को घिसा देते हैं.........

बहुत से मंजन लोग बाज़ार से लेकर दांतों पर घिसने चालू कर देते हैं जिस की वजह से इनैमल घिस जाता है क्योंकि इस में खुरदरे तत्व मिले रहते हैं और कईं पावडरों में तो गेरू-मिट्टी मिली रहती है जिस की वजह से दांतों का घिसना तय ही है।

तो अगर दांतों में ठंडा-गर्म इस खुरदरे मंजन की वजह से है तो मरीज को तुरंत उस मंजन का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है और साथ में यह भी ज़रूर याद दिलाया जाता है कि आप ने तो उस मंजन को इस्तेमाल करना नहीं , घर के किसी परिवार को भी इस से दांत घिसने से रोकें...............इस से पहले की मेरे मरीज़ अपनी अकल के घोड़े दौड़ाने लगें कि खुद करना नहीं...घर के दूसरे सदस्यों को छूने देना नहीं....तो फिर परसों ही बस-अड्ड़े के बाहर बैठे बाबा भूतनाथ से जो पच्चीस रूपये की 250ग्राम की डिब्बी खरीद कर लाये हैं...उस का क्या करें.............मैं उन्हें तुरंत कह देता हूं कि उसे आप उस के ठीक ठिकाने पर पहुंचा दें........कहां ?.............नाली में, और कहां !!

पायरिया रोग में भी यह ठंडा-गर्म तंग करता है ......

जिन लोगों को पायरिया की वजह से यह दांतों में ठंडा-गर्म लगने की शिकायत होती है, ये लोग अकसर किसी डैंटिस्ट के पास जाने की बजाये बाज़ार से महंगी महंगी पेस्टें खरीद कर दांतों पर लगानी शुरू कर देते हैं.....लेकिन उस का रिजल्ट ज़ीरो ही निकलता है......ज़ीरो से भी आगे माइनस में ही निकलता है क्योंकि ये पेस्टें इन के इन लक्षणों को बहुत टैंपरेरी तौर पर दबा देती हैं ....और नीचे ही नीचे पायरिया की बीमारी बढ़ती ही जाती है । लेकिन अगर कोई डैंटिस्ट आप को इस तरह की दवाई-युक्त पेस्ट कुछ समय के लिये इस्तेमाल करने की सलाह देता है तो उसे आप अवश्य इस्तेमाल करें।

तो, पायरिया के रोग के लिये तो डैंटिस्ट से मिल कर इस का समाधान ढूंढना ही होगा, वरना इन महंगी ठंडे-गर्म वाली पेस्टों के चक्कर में पड़ कर अपना टाईम खराब करने वाली बात तो है ही....साथ में रोग को बढ़ावा भी मिलता है।

इस लेख में बातें तो बहुत ही विस्तार में की जा सकती हैं लेकिन इस की भी अपनी लिमिटेशन्ज़ हैं.....तो सारांश में इतना ही कहता हूं कि दांतों में ठंडे-गर्म को लगने को कभी भी इतना लाइटली न लें क्योंकि इस के परिणाम गंभीर हो सकते हैं जैसा कि हम ने अभी अभी देखा है। क्योंकि इस के बीसियों कारण हैं...जब कोई क्वालीफाईड डैंटिस्ट आप की हिस्ट्री ले रहा होता है तो वह ये सब बातें नोट करता रहता है कि यह समस्या किसी एक विशेष दांत में है या मुंह के एक तरफ ही है या मुंह के दोनों तरफ ही है या सभी दांतों में एक साथ ही होती है................और फिर वह दांतों का क्लीनिकल परीक्षण कर के और कभी कभी एक्स-रे करने के बाद ही सही डायग्नोसिस कर पाता है और उस के अनुसार ही समाधान बताता है। तो, इस तरह की समस्या अगर हो तो, अपने आप महंगी पेस्टें जो ठंडा-गर्म ठीक करने का दावा करती नहीं थकतीं.....इस्तेमाल मत करिये ....इस से कुछ नहीं होगा......केवल आप को एक सुरक्षा का गल्त सा अहसास होने के कारण आप का दुःख बढ़ जायेगा.....आप तो बस केवल डैंटिस्ट से तुरंत मिल लीजिये। वैसे उस से भी पहले अगर आप मेरे को ई-मेल करके अपनी किसी भी शंका का समाधान करना चाहें तो आप का स्वागत है।

एक बात और भी कहनी बहुत ज़रूरी है कि अकसर लोग अपने दांतों की स्केलिंग इसी डर की वजह से नहीं करवाते कि इस के बाद उन्हें दांतों पर ठंडा-गर्म लगना शुरू हो जायेगा....लेकिन यह एक गलत धारणा है ....हो सकता है कि कुछ दिनों तक बिलकुल टैंपरेरी तौर पर आप को थोड़ी असुविधा हो, लेकिन उस का भी समाधान डैंटिस्ट आप को बता ही देते हैं।

मुझे लगता है कि मैंने इतनी लंबी पोस्ट लिख कर भी इस ठंडे-गर्म की समस्या के मुख्य बिंदुओं को ही छुया है , लेकिन अगर आप किसी बिंदु पर विस्तृत बातें सुनना चाहें तो मुझे टिप्पणी में ज़रूर कहिये।

जाते जाते सोच रहा हूं कि अपनी पोस्टों में मुझे क्लीनिकल फोटो भी डालनी चाहिये....सो, फिलहाल इस का कारण यही है कि मैं फोटोग्राफी में टैक्नीकली इतना साउंड नहीं हूं......आज सुबह भी हास्पीटल में अपना डिजीटल कैमरा साथ ही ले गया ....एक मरीज़ को बिलकुल क्षतिग्रस्त दांत उखाड़ने से पहले फोटो लेने की कोशिश की ...क्लिक भी किया....लेकिन स्क्रीन पर आ गया....मैमरी फुल.....सो, चुपचाप कैमरे को कवर में यह सोच कर डाल लिया कि अब इस के बारे में जानकारी बेटे से हासिल करनी ही होगी.............लेकिन कब?..................जब उसे इस IPL के मैचों से फुर्सत मिलेगी, तब !!

4 टिप्‍पणियां:

  1. चले, IPL अब खात्मे की ओर है, यही सुकुन है, :)_

    अच्छी जानकारी, आभार.

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  2. चोपड़ा जी, अब तो आइसक्रीम खाने में हमें भी ठण्डी टीस लगने लगी है।

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  3. aapki post ka adress maine apne dentist dosto ko pakda diya hai...ab aap apne jan maal ki hani ke jimmedar svanya honge.....muft me gyan bant rahe hai....dekhiye ....yamunanagar ke dentist bura man jayege..

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इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...