इस लेख की शुरूआत तो यहीं से करना चाहूंगा कि अगर आप अपने और अपनों के दांतों की सलामती चाहते हैं ना तो कृपया आप कभी भी ये नीम-हकीम टाइप के दंत-चिकित्सकों के ज़ाल में भूल कर भी न पड़ियेगा। नीम-हकीम टाइप के दंत-चिकित्सकों का नाम सुन कर आप नाक-भौंह इसलिये तो नहीं सिकोड़ रहे कि अब हमें यह भी किसी से सीखना होगा कि नीम-हकीम टाइप के दंत-चिकित्सकों के पास नहीं जाना है....इन झोला-छाप दंत-चिकित्सकों का क्या है, इन का तो बहुत दूर से ही पता चल जाता है....क्योंकि ये अकसर बस-अड्डों एवं पुलों आदि पर ज़मीन पर अपनी दुकान लगाये हुये मिल जाते हैं या तो अजीब से खोखे से अपने हुनर की करामात दिखाते रहते हैं।
हमारे देश में समस्या यही है कि इतने सारे कानून होने के बावजूद भी बहुत से जैसे नीम-हकीम डाक्टर फल-फूल रहे हैं। नहीं, नहीं, मुझे कोई ईर्ष्या वगैरह इन से नहीं है.....और इस का कोई कारण भी तो नहीं है। अकसर आप में से कईं लोग ऐसे होंगे जो दंत-चिकित्सक की डिग्री की तरफ़ ज़्यादा गौर नहीं फरमाते.....बस, बोर्ड पर दंत-चिकित्सक लिखा होना ही काफी समझ लेते हैं। और हां, बस अपने परिवार के किसी बड़े-बुजुर्ग द्वारा की गई उस दंत-चिकित्सक की तारीफ़ उन के लिये काफी है- इन डिग्रीयों-विग्रियों की बिल्कुल भी परवाह न करने के लिये।
शायद आप में से भी कईं लोग अभी भी ऐसे होंगे जो ये सोच रहे होंगे कि देखो, डाक्टर, हम ज़्यादा बातें तो जानते नहीं ....हमें तो देख भाई इतना पता है कि अपने वाला खानदानी दंत-चिकित्सक दांत इतना बढ़िया निकालता है कि क्या कहें.....ऊपर से जुबान का इतना मीठा है कि हम तो भई उस को छोड़ कर किसी दूसरे के पास जाने की सोच भी नहीं सकते। और इस के साथ साथ महंगी महंगा दवाईयां बाज़ार से भी खरीदने का कोई झंझट ही नहीं, सब कुछ अपने पास से ही दे देता है......और इतना सब कुछ करने का लेता भी कितना है......डाक्टर चोपड़ा, तुम सुनोगे तो हंसोगे..... केवल तीस रूपये !!
आप की इतनी बात सुन कर भी मेरे को बस इतना ही कहना है कि जो भी हो, आप किसी भी डाक्टर के पास जायें तो यह ज़रूर ध्यान रखा करें कि वह क्वालीफाइड हो....उस की डिग्री-विग्री की तरफ़ ध्यान अवश्य दे दिया करें....और यह भी ज़रा उस के पैड इत्यादि पर देख लिया करें कि क्या वह भारतीय दंत परिषद के साथ अथवा किसी राज्य की दंत-परिषद के साथ रजिस्टर्ड भी है अथवा नहीं।
मेरा इतन लंबी रामायण पढ़ने के पीछे एक ही मकसद है कि मैं रोज़ाना बहुत से मरीज़ देखता हूं जिन के दांतों की दुर्गति के लिये ये नीम-हकीम दंत-चिकित्सक ही जिम्मेदार होते हैं। पता नहीं पिछले दो-तीन से इच्छा हो रही थी कि आप से इस के बारे में थोड़ी चर्चा करूं कि आखिर ये नीम-हकीम दंत-चिकित्सक कैसे आप की सेहत के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं......
साफ़-सफाई को तो भूल ही जायें...........
इन के यहां किसी भी तरह की औज़ारों इत्यादि की सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता। मुझे पता नहीं यह सब इतने सालों से कैसे चला आ रहा है। कम से कम आज की तारीख में तो एचआईव्ही एवं हैपेटाइटिस बी जैसी खतरनाक बीमारियों की वजह से तो इन के पास जा कर दांतों का इलाज करवाना अपने पैर पर कुल्हाडी ही नहीं, कईं कईं कुल्हाडे इक्ट्ठे मारने के समान है। पहले लोगों में इतनी अवेयरनैस थी नहीं ....बीमारियों तो तब भी इन के पास जाने से इन के दूषित औज़ारों से फैलती ही होंगी....लेकिन लोग समझते नहीं थे कि इन बीमारियों का स्रोत इन नीम-हकीम डाक्टरों की दुकाने( दुकानें ही करते हैं ये !)….ही हैं।
पता नहीं किस तरह की सूईंयों का, टीकों का , दवाईयों का इस्तेमाल ये भलेमानुष करते हैं ...कोई पता नहीं।
लिखते लिखते मुझे यह बात याद आ रही है कि कहीं आप यह तो नहीं समझ रहे कि ये झोला-छाप दंत-चिकित्सकों की समस्या कहीं और की ही होगी.....अपने शहर में तो ऐसी कोई बात नहीं है। यकीन मानिये , यह आप की खुशफहमी हो सकती है......देखिये मुझे भी यह बात हज़म सी नहीं हुई ....खट्टी डकारें आने लगी हैं।
मुझे याद है जब हम लोग अपने ननिहाल जाया करते थे तो अकसर मेरी नानी जी ऐसे ही नीम-हकीम डाक्टर बनारसी की बहुत तारीफ़ किया करती थी.....बनारसी आरएमपी भी था और दांत-वांत भी उखाड़ दिया करता था। नानी सुनाया करती थीं कि पता नहीं दांत पर क्या छिड़कता है कि दांत अपने आप तुरंत बाहर आने को हो जाता है। बाद में जब हम लोग नीम-हकीमों के इन पैंतरों को जान रहे थे तो यह जाना कि यह पावडर आरसैनिक जैसा हुया करता होगा.....जिस के परिणाम-स्वरूप मुंह में कैंसर के भी बहुत केस होते थे।
दांत को गलत तरीके से भरना---
एक करामात ये झोला-छाप डैंटिस्ट यह भी करते हैं कि जिन दांतों को नहीं भी भरना होता, उन को भी ये भर देते हैं.....इन्हें केवल अपने पचास-साठ रूपये से मतलब होता है....भाड़ में जाये मरीज़ और भाड़ में जायें उन के दांत...। वैसे इस के लिये मरीज़ स्वयं जिम्मेदार है...क्योंकि जब कोई क्वालीफाइड दंत-चिकित्सक इन को पूरी ट्रीटमैंट-प्लानिंग समझाता है तो ये कईं कारणों की वजह से दोबारा उस के क्लीनिक का मुंह नहीं करते ( वैसे इन कारणों के बारे में भी कईं पोस्टों लिखी जा सकती हैं। ).....और फंस जाते हैं इन नीम-हकीम के चक्करों में।
और दूसरी बात यह भी देखिये कि ये नीम-हकीम लांग-टर्म इलाज के बारे में तो सोचते नहीं हैं.....वैसे मरीज़ों की भी तो यादाश्त कुछ ज़्यादा बढ़िया होती नहीं....अगर इस तरह के गलत तरीके से भरे हुये दांत दो-तीन महीने भी चल जायें...तो अकसर मैंने लोगों को कहते सुना है कि क्या फर्क पड़ता है...पचास रूपये में तीन महीने निकल गये.....डाक्टर ने तो भई पूरी कोशिश की...इस के आगे वह करे भी तो क्या........। इस तरह की सोच रखने वाले मरीज़ों के लिये मेरे पास कहने को कुछ नहीं है। लेकिन इतना ज़रूर कहना चाहूंगा कि दो-तीन महीने तो निकल गये...लेकिन इस गलत फिलिंग ने आस-पास के स्वस्थ दांतों की सेहत पर क्या कहर बरपाया...........यह मरीज़ों को कभी पता लग ही नहीं सकता ।
मेरी मानें तो किसी झोला-छाप दंत-चिकित्सक के पास जाने से तो यही बेहतर होगा कि कोई बंदा अपना इलाज करवाये ही न....यह मैं बहुत सोच समझ कर लिख रहा हूं...क्योंकि देश में बहुत से लोग हैं जो ये कहते हैं कि इन के पास ना जायें तो करें क्या, क्वालीफाईड डाक्टरों के क्लीनिकों पर चढ़ने की हम लोगों में तो भई हिम्मत है नहीं...कहां से लायें ढेरों पैसे.............बात है तो सोचने वाली ....लेकिन फिर भी अगर क्वालीफाइड के पास जाने में किसी भी तरह से असमर्थ हैं तो कम से कम इन नीम-हकीम दांत के डाक्टरों के चक्कर में तो मत फंसिये।
ये कैसे फिक्स दांत हैं भाई...................
अकसर नीम हकीमों के लगाये हुये फिक्स दांत देखता रहता हूं.....बस, बेचारे मरीज़ों की किस्मत ही अच्छी होती होगी......कि मुंह के कैंसर से बाल-बाल बच जाते हैं । कईं बार तो मैं भी जब इन अजीबो-गरीब फिक्स दांतों को मरीज के हित में निकालता हूं तो मुझे भी नहीं पता होता कि यह आस-पास का मास इतना अजीब सा क्यों बढ़ा हुया है......इसलिये मैं इन मरीजों को एक-दो सप्ताह बाद वापिस चैक अप करवाने के लिये ज़रूर बुलाता हूं।
होता यूं है कि ये नीम-हकीम जब कोई नकली दांत फिक्स करते हैं तो इन नकली दांतों की तारों को असली दांतों से बांध कर कुछ अजीब सा मसाला इस तार के ऊपर इस तरह से लगा देते हैं कि मरीज को लगता है कि इस ने तो 200रूपये में मेरे आगे के तीन दांत फिक्स ही लगा दिये ....कहां वह दूसरा डाक्टर 1500 रूपये का खर्च बता रहा था। लेकिन जो वह क्वालीफाईड डाक्टर फिक्स दांत लगाता है और जो यह नीम-हकीम फिक्स दांत लगाता है.....इन दोनों फिक्स दांतों में कम से कम ज़मीन आसमान का तो फर्क होता ही है, इतना फर्क तो कम से कम है....इस से ज्यादा ही होता होगा। ऐसा इसलिये होता है कि क्वालीफाईड डाक्टर ने पूरे पांच साल जो ट्रेनिंग की तपस्या की होती है..उस के ज्यादातर हिस्से में उसे मरीज़ के टिशूज़ की इज़्जत करनी ही सिखाई जाती है.......उसे सिखाया जाता है कि कैसे अपने पास आये हुये मरीज़ को कोई बीमारी साथ में बिना वजह पार्सल कर के नहीं देनी है, उसे उस की सीमायों से रू-ब-रू करवाया जाता है कि इन सीमायों को लांघने पर कौन सी खतरे की घंटियां बजती हैं........वगैरह..वगैरह...वगैरह।
नीम-हकीमों के द्वारा लगाये गये फिक्स दांतो के बारे में तो इतना ही कहूंगा कि ये तो आस पास के असली स्वच्छ दांतों को भी हिला कर ही दम लेते हैं। और तरह तरह के घाव जो मुंह में उत्पन्न करते हैं , वह अलग।
लिखने को तो इतना कुछ है कि क्या कहूं...।लेकिन अब यहीं पर विराम लेता हूं.........मुंह एवं दांतों की बीमारियों के बारे में कुछ 101प्रतिशत सच सुनना चाहते हों....तो मुझे लिखिये............चाहे टिप्पणी में अथवा ई-मेल करें।
वाह डाक्टर साहब,
जवाब देंहटाएंइस लेख को तो सभी हिन्दी समाचार पत्रों में छपवाना चाहिये जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ सकें ।
इस प्रकार के लेख लिखते रहें, बहुत सी नयीं जानकारी मिलती है ।
बहुत आवश्यक और उम्दा जानकारी. ऐसे विषयों पर इसी तरह के जागरुक आलेखों की जरुरत है. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंदो दातोँ (मेरे नहीं)में इन्फेक्शन को साफ कर फिलिंग कर कैप लगाने के साढ़े चार हजार दिए हैं इसी मार्च में। चिकित्सक मेरे एक मित्र का भतीजा है एक वर्ष पहले ही क्लिनिक खोली है। मेरे एक लॉयन सम्बन्धी ने इसे अधिक बताया। पर उस ने मेहनत बहुत की एक सप्ताह तक रोज सिटिंग लेता था करीब आधे घंटे की। पर मैं अभी तक संतुष्ट हूँ।
जवाब देंहटाएंआप का आलेख अच्छा है। लोगों को अच्छी जानकारी देता है।
मुझे एक ऐसे डेंटिस्ट के बारे में पता है जो किसी क्वालिफाइड डेंटिस्ट के यहाँ कुछ वर्ष कंपाउंडर था, फ़िर नौकरी छोड़कर ख़ुद ही बीच शहर में बाकायदा --डॉ फलाना, बी डी एस-- क्लिनिक खोल कर बैठ गया (वह भी सर्जिकल ड्रिल काउच सहित). जब कुछ सालों बाद पकड़ में आया तो, दंडात्मक कार्यवाही से बचने के लिए सरकारी अस्पताल में भरती हो गया. और तो और सरकारी डॉक्टरस ने उसे मेडीकली अनफिट भी घोषित भी कर दिया. क्योंकि उसके डॉक्टरों से अच्छे कॉन्टेक्ट थे. (मेरा चेकअप करने के बाद उसने तीन दाढ़ का रूट केनाल ट्रीटमेंट बताया था, जो की वो हर मरीज को बताता था, हे भगवान!)
जवाब देंहटाएंमैंने कुछ साइट्स पर सिल्वर-मर्करी फिलिंग की खतरनाक विषाक्तता के बारे में पढ़ा है, और एक डेंटिस्ट ने पूछने पर इस बात को सही बताया, क्या यह सही में इतना ही बड़ा ज़हरीला हौवा है?
mujhe badi shikayat nahin hai apne daton main magr jab bhi tv par ek advertisement dekhta hoon ki
जवाब देंहटाएंDUNIYA UNKI DEEVANI HAI HO HAMESHA .......|
main bhi vahi pest use karta hoon magar koi khas fark nahi pada hai
is par dactar sahab ka kya khna hai
kuchh ummid hai ya kuchh nahi ho sakta
Dr sahab
scam24inhindi.blosgpot.com
इस लेख द्वारा आपने लोगों जो चेताया है उसके लिये आभार. समस्या यह है कि आज भी हिन्दुस्तान में डाक्टर भगवान होगा है एवं मरीज की एक नहीं चलती
जवाब देंहटाएंअब हमारे शहर का ही उदाहरण ले लीजिये. एक से एक "क्वालिफाईड" डेंटिस्ट हैं, लेकिन ऐसा डेंटिस्ट पाना काफी मुश्किल है जो ग्लव्ज पहन कर काम करे, जो मास्क लगाये, एवं जो मरीज के दर्द का ख्याल रखे.
लेकिन हां, इन सब के बावजूद ये नीम हकीमों की तुलना में हजार गुणा बेहतर हैं!!!
लिखते रहें!!
हम कुछ नही कहेंगे ....बस आपकी चेयर भरी रहे यही दुआ है.....
जवाब देंहटाएंsir aapki baten sunkar to dar lagne laga hai
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