हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने सुबह सवेरे की खूबसूरती का कभी न कभी आनंद न लूटा हो.. है कि नहीं, कभी बचपन में गर्मी की छुट्टियों में हम लोग सुबह उठ कर जब भ्रमण के लिए निकल जाया करते थे। फिर जब बड़े हुए तो हमारी कुछ अलग यादें बन गईं......मैं बंबई में जब रहा तो कुछ बार सुबह समुद्र के किनारे मैरीन ड्राइव पर टहलने चले जाना, बहुत बार महालक्ष्मी रेस-कोर्स की तरफ़ सुबह चल पड़ना...शाहर से बाहर गये हैं तो मद्रास का मैरीना समुद्री तट........कहने का मतलब केवल यही कि ये सब यादें ही हमें कितना सुख दे देती हैं।
और एक बात यह भी है कि अब भी हम सब लोग सुबह सवेरे उठ कर टहलना, बाग की हरियाली को निहारते हुए वक्त बिताना, योगाभ्यास, प्राणायाम, प्रार्थना ...सब कुछ करना चाहते हैं, उस में नैसर्गिक आनंद है, लेकिन पता नहीं मेरे जैसे लोग सब कुछ जानते हुए क्यों इतना आलस करते रहते हैं......वैसे भी सुबह सवेरे नेट पर दोस्तों के दस स्टेट्स पढ़ने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपने आप को समय देना शुरू करें।
मैंने कुछ दिन पहले निहाल सिंह के बारे में बात की थी कि वे किस तरह से मिलने वाले लोगों को योगाभ्यास के लिए प्रेरित करते रहते हैं। आज सुबह मैं अपने एक मित्र को लेकर उसी पार्क में पहुंच गया जहां उन का ग्रुप योगाभ्यास करता है।
योगाभ्यास तो कितना हुआ या नहीं हुआ, किस से नीचे बैठा गया और किस से नहंीं, कौन प्राणायाम की बारीकी समझ पाया, कौन नहीं........यह तो बिल्कुल भी मुद्दा है ही नहीं.......अहम् बात तो यह है कि सुबह सवेरे घर से बाहर निकल कर खुली फ़िज़ाओं में रहना एक अजीब सी तरोताज़गी देता है। मैं अपने मित्र से कह रहा था कि योगाभ्यास तो हम ने पांच-छः मिनट ही किया होगा, लेकिन उस से भी हम कितना हल्का महसूस कर रहे हैं। उन का भी यही मानना था कि केवल से बिस्तर से उठना ही मुश्किल होता है, बाकी तो फिर बस एक आदत बनने की बात होती है।
हम लोग अकसर यही सोचते हैं ना कि हम से न हो पायेगा यह योग वोग..हम नहीं कर पाएंगे प्राणायाम् ....कोई बात नहीं, सुबह सवेरे बिस्तर से उठ कर बैठ गये, इस से ही लाभ मिलने शुरू हो गये.......और घर से टहलते हुए पास के किसी पार्क में पहुंच गये, लाभ बढ़ गया.........वहां जाकर थोड़ा बहुत भ्रमण किया, हरियाली देख, फूल-पत्ते देख कर मन हर्षित हुआ......(एक आदमी को सुबह सुबह फूल तोड़ते देख कर मन थोड़ा दुःखी हुआ).... और उस के बाद जितना भई हो सका, योगाभ्यास किया, प्राणायाम् किया......ध्यान किया............ये सब लाभ जुड़ते जुड़ते आप अनुमान लगाईए कि लाभ की गठड़ी कितनी भारी भरकम हो जाएगी।
आज उस योगाभ्यास की पाठशाला में भी यही बात कह रहे थे कि बस, योग का आनंद लो, सहजता लाओ, अपने आप पर दबाव डाल कर कुछ करने की कोशिश न करो...... सब कुछ अपने आप होने लगा, कुछ लोग पालथी मार नहीं बैठ पाते थे वे अब पद्मासन करने लगे हैं, जिन के घुटनों में तकलीफ़ थी और घुटने बदलवाने की कगार पर थे, वे अब पांच किलोमीटर तक सैर करते दिखते हैं........लोग कुछ न कुछ अनुभव बांट रहे थे।
आदमी जैसी संगति में रहता है, उन की कुछ न कुछ बातें ग्रहण भी करने लगता है.......आज उन्होंने ने हमें आंखों की सफ़ाई करने वाले कप दिए------और कहा कि रात को सोते वक्त उन में पानी भर कर आंखों पर लगाकर आईलिड्स को हिलाएं कुछ समय ...फिर पानी को फैंक दें। अच्छा लगा जब अभी अभी घर आकर यह किया।
संगति की बात हो रही थी तो कल की ही बात याद आ गई......कुछ दिन पहले मेरे पास एक लगभग १८-२० वर्ष का लड़का आया अपनी मां के साथ....गुटखे पान मसाले का व्यसन लग चुका था, मुंह में छोटे मोटे घाव........ऐसे युवाओं को इस गुटखे रूपी कोढ़ से मुक्ति दिलाना मैं अपनी सब से अहम् ड्यूटी समझता हूं.....उस दिन मैंने उस के साथ १०-१५ मिनट बिताए....उसे अच्छे से समझाया....डरा भी दिया कि नहीं छोड़ोगे तो क्या हो जाएगा।
आज जब आया तो बताने लगा कि उस दिन के बाद मैंने गुटखा पान मसाला छुआ तक नहीं......उस की सच्चाई का उस के मुंह ही से पता चल रहा था। मैंने कहा कि जो यार दोस्त थोड़ा बहुत देने की कोशिश करते हैं, उन का क्या करते हो। तो उसने बताया कि अब उस ने उन दोस्तों को ही इग्नोर करना शुरू कर दिया है। मैंने पूछा कि छोड़ने में दिक्कत तो नहीं हुई, कहने लगा कि दो-तीन दिन थोड़ा सिर भारी रहा, लेकिन आप के बताए अनुसार मैं कोई दर्दनिवारक टिकिया ले लिया करता था --बस दो तीन दिन....... और फिर तो पता ही नहीं चला कि कब तलब ही लगनी बंद हो गई।
और खुशी की बात तो यह कि ३-४ दोस्तों ने भी उस के कहने पर यह गुटखा-वुटखा खाना-चबाना छोड़ दिया है। मैंने जब खुश हो कर उस की पीठ थपथपाई तो मुझे यही लगा कि जैसे मैंने अपने बेटे को इस ज़हर से बचा लिया हो।
अच्छा लगता है जब आप की वजह से कोई सीधे रास्ते पर आ जाए........ यह प्रयास बार बार करने योग्य है।
बचपन से ही अपनी मां के मुंह को यह गीत गुनगुनाते पाया है, इसलिए इस समय याद आ गया....