मैं अकसर इस बात पर ध्यान करता हूं कि प्रतिदिन अस्पताल में काम करते हुए हमारा कितना समय तो यह तंबाकू ही खा लेता है।
सरकारी अस्पताल में काम करता हूं और प्रतिदिन कुछ मरीज़ –कुछ तो बहुत ही छोटी उम्र के– ऐसे आ ही जाते हैं जिन के मुंह में तंबाकू, गुटखा, पानमसाला, बीड़ी, सिगरेट आदि से होने वाले कैंसर की पूर्वावस्था दिख जाती है। ऐसे में कैसे मैं अपने आप को इन लोगों के साथ १०-१५ मिनट बिताने से रोक पाऊं। और बिना इतना समय बिताए बात बनती दिखती नहीं।
पहले तो मैं इन लोगों के मुंह के उस हिस्से का फोटो लेता हूं ..फिर उसे उन्हें दिखा कर यह समझाने की कोशिश करता हूं कि तंबाकू ने किस तरह से मुंह के अंदर की चमड़ी को खराब कर दिया है और किस तरह से आगे इसे बदतर होने से बचाया जा सकता है।
उस समय वे लोग बड़े रिसैप्टिव जान पड़ते हैं –हर बात ध्यान से सुनते हैं और लगता है कि आज के बाद ये लोग इन सब पदार्थों का सेवन बंद कर देंगे। हमें बातचीत करते अहसास तो हो ही जाता है कि कौन हमारी बात पर अमल करेगा और कौन यूं ही बस सुन रहा है क्योंकि कोई कह रहा है!
मुझे बहुत बार लगता है कि किसी बंदे की लाइफ़ से तंबाकू को दूर करना अपने आप में एक बड़ा काम है। और सरकारी अस्पतालों के डाक्टर तो इस में विशेष भूमिका निभा सकते हैं।
सरकारी और प्राईव्हेट डाक्टरों में मैंने यहां इसलिए डिफरैंशिएट किया क्योंकि भारत में कम से कम प्रिवेंटिव सलाह का कोई खरीददार तो है नहीं….अर्थात् किसी को इस तरह की बातें बेचना कि आप लोग तंबाकू को छोड़ कर किस तरह से अनेकों बीमारियों से बच सकते हैं, यह सब किसी की कहना… सुनने वाला सोचता होगा कि इस में नया क्या है, घर में सभी तो मेरे को यही बातें कह रहे हैं तंबाकू छोड़ने के लिए और मैं भी कोशिश तो कर ही रहा हूं इतने वर्षों से छोड़ने के लिए!
प्राईव्हेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर से यह उम्मीद करना कि वह किसी मरीज़ को समझाने-बुझाने में १५-२० मिनट लगाए और उसे इस के लिए कम से कम ४००-५०० रूपये की फीस मिले …मुझे तो यह नहीं लगता। कौन देगा इस तरह की सलाह की फीस, बेशक इस तरह का परामर्श बेशकीमती तो है ही, लेकिन फिर भी कोई फोकट में यह सब बांट रहा हो तो मज़बूरी है लेकिन अगर इस सलाह के लिए पैसे-वैसे देने पड़ें तो ना..बाबा ना…हमें नहीं चाहिए यह नसीहत की घुट्टी। अपने आप छोड़ लेंगे, यह लत छोड़ने की कोशिश तो कर ही रहे हैं, कोई बात नहीं…कम ही पीते हैं।
इसलिए यह आशा नहीं करनी चाहिए कि प्राईव्हेट में कोई डाक्टर मुफ़्त में इतना इतना समय हर तंबाकू इस्तेमाल करने वाले के साथ बिताएगा… और वह इस के लिए अपने अन्य मरीज़ों का समय इस्तेमाल करेगा, ऐसा कैसे हो सकता है। अब एक डैंटिस्ट की ही बात कीजिए, अगर वह इस काम में लगा रहेगा, तो उस के अन्य मरीज़ –फिलिंग, आरसीटी, औक क्रॉउन लगवाने वाले मरीज़ों का क्या होगा, भाई उस ने भी अपने परिवार का भरन-पोषण करना है।
सारा दिन तंबाकू एवं अन्य ऐसे उत्पादों के बुरे प्रभावों के प्रति सचेत करते इतना समय निकल जाता है कि कईं बार तो झल्लाहट होने लगती है…..यार सारा कुछ तो इन वस्तुओं की पैकिंग पर लिखा रहता है कि इस के खाने से जान जा सकती है, कैंसर हो सकता है और अब तो इतनी भयानक तस्वीरें भी इन के ऊपर छपने लगी हैं, और सब से ज़्यादा दुःख तब होता है कि जब किसी मरीज़ से पूछो कि तुम्हें पता है कि इसे खाने से क्या होता है…तो वह तुरंत कह देता है ..हां, हां, वह सब तो पैकेट के ऊपर लिखा तो रहता ही है।
पता नहीं कितने लोग हमारी बात सुन कर उसे मानते भी होंगे …. अपने घर में तो हम लोग बदलाव ला नहीं पाए, मैं पिछले २५-३० वर्षों से अपने बड़े भाई को धूम्रपान के लिए मना कर रहा हूं लेकिन उन्होंने भी नहीं छोड़ो…हां, हां, मैंने बहुत कम कर दिए हैं, अब सिर्फ़ चार-पांच सिगरेट ही लेता हूं…..लेकिन ज़हर तो ज़हर है ही!
एक श्रेणी और भी दिखती है जिन्हें तंबाकू आिद के सेवन से कोई भयंकर रोग हो जाता है…बहुत भयंकर, आप समझ सकते हैं मैं क्या कहना चाह रहा हूं …और बड़े गर्व से कहते हैं कि पंद्रह दिन से तंबाकू भी बिल्कुल छोड़ दिया है। लेकिन जब चिड़िया खेत पहले ही चुग कर जा चुकी है तो बाद में पछताने से तो लकीर को पीटने वाली बात ही लगती है। इसलिए शाबाशी तो दूर, उन की इस बात पर कोई मूक प्रतिक्रिया तक देने की इच्छा नहीं होती।
सब से बढ़िया है कि हर प्रकार के तंबाकू प्रोडक्ट से कोसों दूर रहा जाए, यह आग का खतरनाक खेल है, छोटी छोटी उम्र में लोगों को इस से तिल तिल मरते देखा है।
कितनी जगहों पर तो प्रतिबंध लगा है इन सब वस्तुओं की बिक्री पर लेकिन हर जगह धड़ल्ले से बिक रहा है, खुले आम लोग खरीद खरीद कर बीमार–बहुत बीमार हुए जा रहे हैं।