उस दिन दिल्ली बंबई की फ्लाईट के बोर्डिग गेट के बाहर लॉबी में बैठा मैं सिडने शेल्डन की यह किताब पढ़ने में इस कद्र डूबा हुआ था ...और वैसे भी बोर्डिंग के लिए कतार में खड़े होने में मुझे बड़ी चिढ़ है ....सब को लेकर ही तो उड़ेगा ....और खड़ा भी कम नहीं रहना पड़ता, कईं बार 10-15 मिनट भी .....खैर, जब वह कतार ख़त्म हो गई तो मैं भी उठा....और मैंने एयरक्रॉफ्ट में अंदर जाते वक्त देखा कि पहली कतार में देश का एक महान् फिल्म-मेकर , स्टोरी-टेलर बैठा हुआ था....जिसने हमें बहुत बड़ी नामचीन फिल्में दी हैं....और निरंतर अपने काम में अपनी धुन में लगा ही हुआ है....जाते वक्त देखा कि वह हाथ में एक पेन लिए एक शेयरो-शायरी की किताब पढ़ने में व्यस्त है ....अच्छा लगा जैेेसे वह साथ साथ उस किताब को अपनी कलम से काला कर रहे थे .....किताब के एक तरफ़ कंटैंट रोमन में लिखा हुआ था और दूसरी तरफ़ देवनागरी में ...वह देवनागरी में लिखी इबारत पढ़ रहे थे और अपनी कलम से उसे टिक-मार्क किए जा रहे थे....
मैं भी थोड़ी दूरी पर बैठ गया....सिडने शेल्डन की जो किताब मैं पढ़ रहा था वह मैंने लगभग पूरी पढ़ ली थी, अभी बस 20-25 पन्ने ही रहते थे ....मैं भी किसी किताब को पढ़ते वक्त हाथ में एक पेन ज़रूरत रखता हूं और उसे खुल कर उन पन्नों पर चलाता हूं, यह अक्ल मुझे कुछ वक्त पहले ही आई है .....अगर अपनी खरीदी हुई किताब से ही बंदा खेल न पाया तो और कहां खेलेगा.....बाद में कौन पढ़ेगा, कब पढ़ेगा, कब पढ़ेगा, ये सभी बेकार की बातें हैं, बाद में रद्दी ही में जाएंगी.....चिंता मत करिए। इसलिए दिल खोल कर अपने दिल में आने वाली बातें उन पन्नों पर लिखते रहिए, रंग डालिए उस किताब को ....तभी लगता है कि हमने उसे पढ़ा है, कुछ कुछ बातें तो हाइटलाइट करने वाली होती हैं....
यह किताब ...सिडनी शेल्डन ...मैंने कुछ सोच समझ कर नहीं खरीदी. ....असल बात तो यह है कि जब मैंने यह किताब खरीदी तो मुझे यह भी न पता था कि यह शख्स है कौन.....बस, इतनी धुंधली सी बात पता थी कि यह शख्स कोई बड़ा लेखक है ....नावलिस्ट है .....बस, इतना ही पता था ...
इस किताब को खरीदने का किस्सा भी बड़ा रोचक है....
मैं जुलाई 2023 में एक बुक-स्टोर में किताबें देख रहा था...अचानक मेरी नज़र इस किताब पर पड़ी....इस का कवर तो आकर्षक तो था ही ....उस के बैक-कवर पर एक बात लिखी हुई थी इँगलिश में .....ज़िंदगी एक नावल की तरह है। यह कौतुहल से से भरी हुई है ....जब तक इस नावल का अगला पन्ना नहीं खुलता, कुछ पता ही नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है ....।
बस, मैं इस बात से खुश हो गया और साथ में उसी बैक-कवर पर लेखक के बारे में लिखा हुआ था कि उसका रचना संसार कितना विशाल था ...मैं पहली बार यह पढ़ रहा था ....बस, उस किताब को खरीद लिया....
दो साल दो महीने लग गए इसे पढ़़ने में ....
कईं बार किताब खरीदने के बाद मैं उस के ऊपर वह तारीख के साथ साथ कहां से खरीदी वह भी लिख देता हूं...अब एक आदत सी हो गई है ....इस वक्त यह किताब मेरे सामने है ...जिस से मुझे पता चला कि मैंने इसे 19 जुलाई 2023 को पढना शुरू किया ...चार दिन तक ...दो बरस पहले 23 जुलाई तक मैंने इसे पढ़ा, किताब बहुत रोचक लगी ....डेढ़ सौ पन्ने जैसे मैं पी गया ....इतनी रोचक किताब ...होनी ही थी जब इतना महान लेखक अपनी ज़िंदगी की कहानी लिख रहा है तो क्यों न होगी वह उस की तमाम किताबों से कहीं ज़्यादा रोचक ....
खैर, इस के 368 पन्ने हैं....मैंने तब तक 150 पन्ने पढ़ लिए थे ...मैं किताबें खरीद लेता हूं लेकिन बहुत ही कम किताबें होंगी जिन को मैंने पूरा पढ़ा है ....जिस किताब में रोचकता होगी, रवानगी होगी ...ज़्यादा ज्ञान नहीं दिया होगा, मुझे वे किताबें ही बढ़िया लगती हैं, मैं उन को ही पढ़ता हूं....कितना भी बढ़िया लेखक हो, अगर वह मुश्किल इंगलिश या हिंदी लिखता है और मैं अगर बीच बीच में कुछ लफ़्जों पर अटक जाता हूं तो मैं ऐसी किताब को नहीं पढ़ जाता ...उसे सज़ा देने के लिए बुक शेल्फ पर टांग देता हूं....
अच्छा, एक बात और मैंने की इस किताब को पढ़़ते वक्त ...कि जिस तारीख को भी इसे पढ़ा उस नए पन्ने पर वह तारीख लिख दी....इसी से मुझे पता चला कि खरीदने के चार पांच दिनों के बाद तक मैंने इसे पढ़ा, उस के बाद एक महीने का बाद यानि कि अगस्त 2023 में भी इस किताब के भाग्य खुले ....जब मैंने इस के दो चार पन्ने पढ़े।
और फिर किताब गुम हो गई ....मेरी नज़रों से भी और ज़ेहन से भी.....
जी हां, फिर पूरे दो साल तक यह किताब मेरे स्टडी-रुम के कबाड़खाने में कहीं दब के रह गई....उन दो बरसों में कभी दो चार इस किताब की रोचकता का ख्याल भी आया....लेकिन सवाल यह था कि अब इसे कहां तलाश करूं ...रुई के डेर में सूईं तलाश करने से भी मुश्किल काम था ....
ऐसे ही दो बरस बाद इस साल 19 जुलाई 2025 को यह किताब मिल गई ...फिर से पढ़ना शुरू किया....
और हां, इस किताब को मैंने ट्रेन यात्रा, हवाई यात्रा, मुंबई की लोकल ट्रेन और दिल्ली की मेट्रो ट्रेन में ही अधिकतर पढ़ा ....क्योंकि यात्रा के दौरान कोई रोचक किताब हाथ में हो तो वक्त अच्छा पास हो जाता है ....हम लोगों को सफर के दौरान बिल्कुल बात न करने की आदत है ....अजनबियों से तो क्या, हम लोग परिवार वाले भी सफर में बहुत कम बात करते हैं...बस, एक दूसरे की बात का जवाब देने तक ही वास्ता रखते हैं....सफर में बातें करने से भी हमारा सर भारी हो जाता है ....यह बात तो अजीब है ..लेकिन अब जो है सो है .....पहले पहले तो हम लोग राजधानी ट्रेन में जैसे बंबई से दिल्ली जा रहे हैं, तो बिल्कुल कम वार्तालाप, हम लोग बाद में हंसते थे कि दूसरे लोग सोचते होंगे कि ये लड़ाई करने के बाद गाड़ी में चढ़ें हैं, या इन की आपस में बातचीत ही नहीं है....
खैर, यह किताब मैंने पूरी पढ़ ली है ...और मैंने इस तरह की इतनी ईमानदारी से लिखी किताब शायद कम ही पढ़ी हैं ...यह बात भी है कि ईमानदारी के साथ साथ इस की रोचकता भी बरकरार रह पाई....यह बहुत बड़ी बात है ..शेल्डन कोई सीख नहीं दे रहा, अपने जिंदगी के तजुर्बे साझा कर रहा है .... कोई उन में क्या चुनना चाहे, चुन ले।
आज कल हर इंसान ...हर फील्ड में हथेली पर सरसों उगाना चाहता है ....रातों रात अमीर बन जाता है, शोहरत, रुतबा.....हर कुछ हर कीमत पर फ़ौरन हासिल करना चाहता है....ज़ाहिर सी बात है इस तरह की किताब को पढ़ना सब के लिए बहुत ज़रूरी है .....यह समझने के लिए कि ये लोग जिस मुकाम तक पहुंचे इस के पीछे कितनी मेहनत, लगन, मुफलिसी, कितनी सहनशीलता, कर्मठता, नेटवर्किंग, नाकामीयां, डगमगाने, गिरने की कहानी और फिर से उठ कर खड़ा होने की चाहत .....ये तो मैं 10 फीसदी भी नहीं लिख पा रहा हूं कि आखिर इन 350 पन्नों में दर्ज क्या है .....कर भी कैसे सकता हूं ...क्योंकि शेल्डन सारी ज़िदगी सृजन कार्य में डूबा रहा ....इतनी फिल्में लिख दीं, इतने नाटक, इतने नावल ....और भी इतना कुछ ...फेहरिस्त लंबी है ....बहुत......
शेल्डन का जन्म 1917 में हुआ और 2007 तक जिए....88 साल की आयु में उन्होंने 2005 में यह अपनी आखिरी किताब लिखी ....आत्मकथा की शैली में....मुझे नहीं पता था यह सब जब मैंने इस किताब को खरीदा या जब मैं इसे पढ़ रहा था ...इसे पढ़ते पढ़ते जिज्ञासा हुई तो विकीपीडिया से यह सब जाना....
जैसे हिंदी फिल्मी गीतों के बारे में हम कहते हैं ...विशेषकर 60-70-80 से सुनहरे दौर के बारे में कि उन में जिंदगी के सभी रंग दिख जाते हैं ..हम उन को अनुभव करते हैं ...ये गीत हम में हर तरह के भाव पैदा करते हैं ...ठीक उसी तरह शेल्डन की यह आत्मकथा भी पाठक के मन में जिंदगी के सभी भाव पैदा करती है....कुछ बातें भावुक करती हैं, कुछ गुस्सा दिलाती हैं, कुछ करुणा भाव पैदा करती हैं, कुछ हंसाती हैं, कुछ आंखें नम भी करती हैं....और यह तभी मुमकिन हो पाता है जब कलम चलाने वाले ने दिल खोल कर अपनी जिंदगी के पन्ने पाठकों के सामने खोल दिए हों .....अपनी लेखनी के ज़रिए.....
पिछळी बार मैंने कौन सी किताब पूरी पढ़ी थी ...
जैसा कि मैंने बताया कि मैं किताबों से बहुत जल्दी ऊब जाता हूं....कारण मैंने लिख दिए हैं....यहां तक कि मैंने तो अपने स्कूल-कालेज के दिनों में किताबें उतनी ही पढ़ीं जितनी बहुत ज़रुरी हुआ करती थीं...पहली बात तो यह कि उन में लिखा बहुत कुछ बोर कर देता था, कुछ ज़्यादा समझ वमझ भी नहीं आती थी, क्लास में टीचरों की बातें ही पल्ले पड़ती थीं.....इसलिए टैक्सट-बुक्स से इतना रिश्ता कभी जु़ड़ न पाया...सब कुछ अनुमान पर ही चलता रहा ....सिलेक्टिव रीडिंग ...पहले गैस पेपर आते थे ..उन को भी देख लिया करते थे ....पेपरों के कुछ दिनों पहले गैस पेपरों का अध्ययन इतनी बारीकी से किया जाता था जितना अध्ययन आज कल शेयर-ब्रोकर भी न करते होंगे....
2019 की बात है ....सुरेंद्र मोहन पाठक की आत्मकथा आई थी ....पाठक जी नावल लिखते हैं और अब तक 300 नावल लिख चुके हैं ...और इतने नावल लिखने के बाद ही उन्होंने अपनी जीवनी लिखी है ....मुझे याद है उस के भी लगभग चार सौ पन्ने थे ....और उन के लिखने का स्टाईल इतना रोचक था कि मैंने तीन चार दिनों में वह किताब पढ़ ली थी ...मैं उन दिनों छुट्टी पर था ...यही नहीं, उस के बाद उन की आत्मकथा के दो हिस्से और भी आए जिन को मैंने उसी शिद्दत से पढ़ा, और हर किताब को पढ़ कर उन को एक ख़त लिखा जिन को उन्होंने तुरंत जवाब भी दिया....कुछ साल पहले दिल्ली में एक साहित्य सम्मेलन के दौरान उन से मुलाकात भी हुई थी ....
किताबें हज़ारों हम लोगों के इधर उधर बिखरी होती हैं....मुफ्त में मिली हुई किताबें अकसर पढ़ी नहीं जातीं.....एक बात मज़ाक में कही जाती है ....हिंदोस्तान में शादी ब्याह में रिश्तेदारों को भी कपड़े मिलते हैं अकसर .....अब तो पता नहीं ..मिलते ही होंगे और कपड़े भी बिना सिले हुए और इन कपड़ों के बारे में यह बात मशहूर है कि इन के मुकद्दर में दर्जी के पास जाना लिखा ही नहीं होता, वे आगे से आगे रिश्तेदारों में दिए-लिए ही जाते रहते हैं.....मुझे भी एक ऐसी कमीज़-पैंट मिली थी , कहीं से कालेज के दिनों में, मैंने गल्ती से उसे सिलवा लिया था ...कमबख्त कपड़ा ऐसा था कि पहनते ही मुझे घमौरियां हो जाती थीं और मैं परेशान हो जाता था ....कईं बार फैंक देने की इच्छा भी हुई लेकिन.....वही हाल किताबों का है, जो किताबें हमें गिफ्ट में मिलती हैं, वे अकसर हम लोग पढ़ते नहीं, हमें उन की कद्र नहीं होती, जो किताबें हम लोग ढूंढ कर अपनी रुचि के मुताबिक खरीदते हैं, हम उन के ही दो चार पन्ने पढ़ कर परे रख देते हैं ....ऐसे में किसी किताब को पूरा पढ़ लेना, उस किताब की महानता ही दर्शाता है ...हम लोगों का अटैंशन-स्पैन ही कितना कम है अब तो ...
ऐसा क्या है इस किताब में .....
शेल्डन की किताब में ऐसा क्या है जो मैं यह सिफारिश कर रहा हूं कि इसे हर किसी को पढ़ना चाहिए...विशेषकर युवाओं को जो रातों रात रईस बनना चाहते हैं, रातों रात नाम, दौलत, शोहरत हासिल कर लेना चाहते हैं....इस का हर पन्ना आप के लिए कुछ मैसेज लिए हुए है.....इस के बारे में तो मैं पहले ऊपर लिख ही चुका हूं.....बार बार एक ही बात क्या लिखूं....
और हां, एक बात यह भी लिखनी है कि किताब इतनी रोचक है....फिर भी जब मैंने इस का बाकी का हिस्सा दो साल बाद पढ़ने के लिए उठाया तो मुझे कुछ याद नहीं था कि पहले 150 पन्नों में मैंने क्या पढ़ा था ...कुछ भी याद न था....और आज जब इसे पूरा पढ़ लिया है तो भी इस के बारे में कुछ ज़्यादा याद नहीं है, जितना याद था मैंने ऊपर लिख दिया है ....लेकिन इस तरह की किताब को फिर से पढ़ने के लिए किसी को कौन रोक रहा है.....मैं भी यही सोच रहा हूं कि अपनी यात्राओं के दौरान इसे तो फिर से पढ़ना ही होगा.....आसान होगा शायद अब इसे पढ़ना क्योंकि मैंने इसे खूब काला-पीला किया हुआ है ...... जिससे लगता है कि यह किताब अपनी है, इसी वजह से अपनेपन का अहसास होता है इस को देखने भर से...छूने भर से .... 😃
किस दूसरी भाषा में उपलब्ध है यह किताब ....
जितना मैंने नेट पर चेक किया यह किताब मराठी भाषा में भी अनुवाद की हुई उपलब्ध है...वैसे मैं तो सोच रहा था कि इस तरह की किताबें देश की सभी भाषाओं में अनुवादित होनी चाहिए...ताकि ये हर युवा तक पहुंचे और उनमे ं एक ठहराव पैदा करें ....कबीर की बात हम सब के पल्ले पड़े....धीरे धीरे रे मना...धीरे सब कुछ होय....
वैसे मुझे कभी कोई अनुवाद की हुई किताब पढ़ने में मज़ा आया हो, याद नहीं.....अकसर अनुवाद करने वाला उस की रुह गायब कर देता है ...उसका भी कसूर नहीं है.....वह मूल लेखक के दिल में कैसे घुस सकता है .....बहुत सी बातें, भाव, हाव-भाव, सामाजिक, सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य जिन का अनुवाद नामुमकिन है........शायद यही कारण है कि मुझे ये डब की हुई फिल्में भी बिल्कुल पसंद नहीं हैं......कल्पना कीजिए, तमिल, कन्नड फिल्म को पंजाबी में डब करना या पंजाबी फिल्म कैरी-ऑन-जट्टा को अगर तमिल में डब कर के दर्शकों तक पहुंचाया जाए ......इन फिल्मों का क्या हश्र होगा.....कल्पना कर के देखिए....
और उस दिन फ्लाईट के दौरान पूरी पढ़ ली यह किताब ....
उस दिन फ्लाईट में जब मैं अंदर आ रहा था तो मैंने उस महान फिल्म मेकर को जो किताब पढ़ते देखा उस का नाम मैं अपनी सीट तक जाते जाते भूल चुका था ....मैंने सोचा कि अगर यह बंदा मुझे लगेज-बेल्ट के पास मिलेगा तो उससे किताब का नाम तो पूछ ही लूंगा....वापिस लौटते वक्त वह बंदा मुझे वहीं लगेज-बेल्ट के पास इंतज़ार करते दिख गया ...मेरा तो कुछ सामान नहीं था ...लेकिन मैंने उन के पास जा कर अपनी इंट्रोडक्शन दी और बताया कि लखऩऊ और बंबई में होने वाले उन के लगभग सभी प्रोग्रामों में मैं शिरकत कर चुका हूं.....बात कर के अच्छा लगा ...जो लोग विनम्र होते हैं ....उन से मिल कर किसे अच्छा नहीं लगता.....मेरे से कब रहा जाता....मैंने पूछ ही लिया कि सर, आप जो किताब पढ़ रहे थे उस का नाम बता दीजिए.....उन्होंने हंसते हंसते मुझे उस किताब का नाम लिखवा दिया.....और इतने में उन का सामान उन को दिख गया और अपना हाथ उस शख्स ने मेरे साथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा दिया.......मेरा दिन बन गया.....देखा तो इन को बहुत से कार्यक्रमों में था लेकिन कभी बात नहीं हुई थी .....
पोस्ट खत्म हो गई....उस महान शख्स का नाम नहीं बताया मैंने, इसलिए मुझे ही अजीब सा लग रहा है ......वह महान फिल्म पर्सेनिलिटी थी ....मुज़फ्फर अली साहब।
आज पोस्ट के नीचे गाना एम्बेड नहीं हो रहा ...इसलिए लिंक यह रहा उस गीत का ...ज़िंदगी क्या है इक लतीफा है......
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