दो दिन पहले दोपहर में मैंने जब एक खबरिया चैनल को लगाया (जिसे आम तौर पर मैं नहीं सुनता) तो बाबा रामदेव की प्रेस कांफ्रेंस चल रही थी ..कुछ पतंजलि के घी का लफड़ा था...बाबा बता रहे थे कि बड़ी कंपनियां साज़िश कर रही हैं, भरवा रही हैं, बदनाम कर रही हैं पतंजलि के उत्पादों को, मैंने फलां फलां पर एफआईआर कर दी है, फलां पर केस कर दिया है....अब ऐसी साज़िश वाज़िश वाली बातें मुझे ज़्यादा समझ में आती नहीं, कौन क्या कर रहा है, यह सब सिरदर्दी की बातें हैं ...
बाबा लिस्ट बताए जा रहे थे कि फलां फलां पर केस कर दिया है ...और मेरे दिल की धड़कनें बड़ी जा रही थीं ..इस का एक कारण यह भी था कि मैंने भी दो दिन पहले बाबा की पेस्ट के बारे में किसी की लिखी एक फेसबुक पोस्ट पर लिखी पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में अपनी एक पोस्ट का लिंक दिया था.. जिस में मैंने पतंजलि की पेस्ट-मंजन के बारे में अपनी जानकारी व्यक्त की थी...मैंने सब से पहले तो उस टिप्पणी को डिलीट किया ... यही सोच कर कि बाबा ने मुझे भी अंदर करवा दिया तो मुझे तो बड़ी दिक्कत हो जायेगी, मेरी तो कोई ज़मानत भी नहीं करवाया, यह सोच कर कि रोज़ सुबह-शाम ब्लॉग पर इस की बक-बक चालू रहती है, चलिए इसी बहाने थोड़ी राहत तो मिलेगी!
वैसे मैंने उस लिंक को ही हटाया है, मेरा वह लेख इस ब्लॉग पर बिल्कुल मौजूद है ...२००७ से लिखे अपने किसी भी लेख को मैंने कभी डिलीट तो क्या किसी से छेड़खानी भी नहीं की...जो लिखा है सच ही लिखने की कोशिश की है...मेरा अपना सच..लेिकन उस दिन मैंने महसूस किया कि बाबा साहेब अंबेडकर जो कहते थे कि शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित बनो....यह बहुत अहम् बात है ...बिना किसी संगठन के तो आप अपनी सच बात भी कहीं रखते हुए भी डरते हैं...और यह जो हम जैसा छोटा मोटा बुद्धिजीवी वर्ग है यह तो कुछ ज़्यादा ही खौफ़ज़दा है .. हम लोग तो किसी को शिकायत तो क्या, किसी को चिट्ठी लिखते हुए भी डरते हैं ...
उस दिन जो मुझे लगा मैंने सच सच लिख दिया... लेकिन बाबा रामदेव का नाम आते ही बहुत सी यादें एक साथ आ जाती हैं...आज से लगभग १७-१८ साल पहले टीवी पर बाबा के प्रोग्राम आने शुरू होना, सारे हिंदोस्तान को सुबह शाम अपने नाखुनों को रगड़ते देखना ..बाल काले रखने के लिए, फिर बाबा का और पापलुर हो जाना, लोगों को योग-प्राणायाम् की आदत लग जाना, बाबा का लोगों को सेहतमंद खाने के बारे में प्रेरित किया जाना...पतंजलि की दुकानें खुल जाना..और मेरे जैसे लोगों का नियमित उन पर जाकर शक्कर, मुरब्बा, आंवला कैंडी और तरह तरह के चूर्ण लाना... मैं बहुत साल पहले आंवला कैंडी जैसे उत्पादों के बारे में लिख कर इस प्रयास की सराहना की भी थी।
हां, एक याद और भी तो आ रही है कि लगभग हर कार्यक्रम में बाबा के तैयार किये हुए काले धन के आंकड़ें सुबह सुबह चाय की प्याली से ज़्यादा रोमांचित किया करते थे...बिल्कुल सांसे रोक कर जैसे हम सब लोग आंकड़ें सुन सुन कर आनंदित हुए जाते थे जैसे कि स्विस बैंकों से पैसा सीधा हमारे खातों में ही आने वाला है....बाबा का अपनी बात कहने का अंदाज़ भी इतना मनमोहक था...लेिकन पता नहीं अब इन आंकड़ों की कभी बात ही नहीं दिखती ...
मैं बहुत बार मानता हूं कि जब बाबा की मीटिंग थी उन दो तीन उस समय के केंद्रीय मंत्रियों से और वे भी मंजे हुए खिलाड़ी वकालत के ... अब उस में जो हुआ ...वह आप सब जानते ही हैं, दोहराने की ज़रूरत नहीं, लेकिन वे खिलाड़ी थे पक्के ...उस के बाद रामलीला मैदान वाला किस्सा जिस से बाबा अचानक अपनी जान बचा कर भाग निकले..
मैं यह समझता हूं कि बाबा ने देश की जनता को योग का एक बहुत अनमोल तोहफ़ा दिया......लोगों ने अपने सेहत के बारे में सोचना शुरू किया..अपने खाने-पीने के बारे में सजग हुए..देश का बच्चा बच्चा काले धन के आंकड़ों को रटने लगा...और यह एक अच्छा राष्ट्रीय टाईम-पास बन गया...सच में बड़ा ही मज़ा आता था यह सब सुन कर ... सभी की सुस्ती ऐसे काफ़ूर हो जाया करती थी कि क्या बताऊं!..शरीर में गर्मी आ जाया करती थी वे सब बातें सुन कर!...खास कर बड़े नोटो को बंद करने की बातें सुन कर जब यह कल्पना किया करता था देश कि अब रिश्वत की राशि ट्रकों में एक एक रूपये के नोटों में भेजनी पड़ेगी...
बाबा अच्छा काम तो कर ही रहे हैं, योग को पापुलर कर रहे हैं और सेहतमंद विक्लप प्रस्तुत कर रहे हैं...लेिकन परसों शाम को जब हम लोग पतंजलि के एक स्टोर में गये तो वहां पर सोन पापड़ी भी दिख गई.. एक मांगने पर, दुकान में काम करने वाले लड़के ने सोन पापड़ी की सात तरह की वैरायटी सामने रख दी..एक ली, लेकिन उसे खा कर अपराधबोध हो रहा है कि यही कुछ नहीं खाना है, इसीलिए तो पतंजलि जैसी जगहों पर जाते हैं...मुझे लगता है कि बाबा को सोन पापड़ी जैसी चीज़ें बेचनी बंद कर देनी चाहिए...वैसे भी ये पतंजलि के द्वारा तैयार तो की नहीं गईं, केवल मार्केटिंग ही तो इस की है।
मैंने ऊपर लिखा पतंजलि स्टोर... जान बूझ कर लिखा ...क्योंकि अब यहां पर किरयाने वाली लगभग सभी चीज़ें बिकने लगी हैं...अच्छी बात है, उस दिन मैंने देखा कि ३५४ वस्तुओं की लिस्ट डिस्पले कर रखी थीं...सब से आखिरी चीज़ के बारे में मेरे विचार अलग हैं.. मैंने दंत कांति पेस्ट मंजन के बारे में पहले भी लिखा है।
नमक, मिर्ची, मसाले...सब कुछ बिकता है अब पतंजलि के स्टोरों में .. और स्कीम और उपहार की स्कीमें भी हैं, इन्हें पढ़ना और समझना मेरे से कभी नहीं हो पाता...इसलिए फोटू लगा रहा हूं.. थैला तभी मिलता है लेकिन जब ५०० रूपये की खरीद हो और वैसे तो होम डिलीवरी की सेवा भी मुफ्त है, शर्तों के साथ...अगर आप ५०० से ज्यादा की वस्तुएं खरीद रहे हैं और आप पांच किलोमीटर के दायरे में रहते हों तभी।
बहुत पहले इसी चाय को पीते थे..अब फिर शुरू करेंगे |
मेरा फेवरेट दलिया...जौ दलिया |
हम लोग पिछले कईं वर्षों से पतंजलि से बहुत सी चीज़ें लाते रहे हैं.. आंवला कैंडी, मुरब्बा तो है ही, पहले तो हम आटा, शक्कर भी पतंजलि की ही इस्तेमाल किया करते थे...और पुष्टाहार दलिया भी ..बहुत समय तक हम लोग दिव्य पेय पीते रहे..फिर छोड़ दिया...अब फिर से मन को समझाने की कोशिश कर रहे हैं...(they rightly say ..Habits die hard!....वारिस शाह न आदतां जांदियां ने ...) ..पिछले कुछ अरसे से पतंजलि के स्टोरों में जौ का दलिया भी बिकने लगा है .......मुझे यह बहुत पसंद हैं...हम इसे अकसर खाते हैं....बाबा ने ऐसी ऐसी चीज़ें देश के सामने रख दी हैं जिन्हें हम ने इतने बरसों तक कभी देखा ही नहीं था... जौ का दलिया भी वैसे कहीं नहीं बिकना तो दूर दिखता नहीं ...यह नाश्ते के लिए एक बहुत अच्छा विकल्प है, ट्राई करिएगा।
म्यूसिली में ये सब कुछ है..wheat flakes, corn flakes, white oats, rice flakes, nuts etc. |
हां, एक बात लिखना भूल रहा हूं ..पतंजलि की दुकान में म्यूसली (muesli) पड़ी दिख गई उस दिन ...उसे भी खरीदा।कुछ दिन पहले आगरे के एक होटल में बुफे ब्रेकफॉस्ट करते हुए म्यूसली को पहली बार खाने का मौका मिला...अच्छा लगा.. लेकिन यह समझ में नहीं आई कि यह है क्या, क्या इस की अलग से पैदावार होती है ....यह पता नहीं चला था। कल जब पतंजलि की म्यूसली खरीदी तो पता चला कि बस नाम ही डराने वाला है, चीज़ें इस में वहीं हमारी जानी पहचानी, कार्न फ्लेक्स, व्हीट (गेहूं) फ्लेक्स, ओट्स आदि ...
बहुत सी चीज़ों के तो नाम ही से हम लोग डर जाते हैं...शायद!
म्यूसली जैसे उत्पाद अच्छे हैं, लेिकन महंगे हैं, शायद एक औरत भारतीय की पहुंच के थोड़े थोड़े अंदर, थोड़े थोड़े बाहर... वैसे भी पतंजलि के उत्पादों के बारे में लोगों में एक धारणा सी है कि ठीक है, गुणवत्ता है, लेिकन महंगे भी हैं..पब्लिक को पैसा खर्च करना ही है ..वह चाहे अंबानी के खीसे में जाए या बाबा रामदेव की गुल्लक में....लेकिन एक सुझाव है ..मैं चाहे अर्थशास्त्री नहीं हूं लेकिन इतना तो सुझाव दे ही सकता हूं कि पतंजलि के घरेलू उत्पाद थोड़े सस्ते में बिकने चाहिए... प्रॉफिट मार्जिन कम होना चाहिए, मुझे ऐसा लगता है... बाकी आंकड़ें तो बाबा के पास ही होंगे, ज़्यादा कुछ कह नहीं पाएंगे, डर लगता है, अंदर भिजवाए जाने के नाम ही से!
उस दिन बाबा की प्रेस कांफ्रेंस में एक बात कान में यह भी पड़ी कि विदेशी कंपनियों कईं कईं लाखों की रिश्वत बांट कर पतंजिल के प्रोड्कट्स के बारे में साजिश रच रही हैं... मुझे इस के बारे में ज़्यादा नहीं पता लेकिन कम से कम मैंने किसी से कुछ नहीं लिया...मैंने तो कईं बरस पहले ही टुथपेस्ट-मंजन का कोरा सच लिख दिया है......वह अलग बात है कि मैं इन्हें बाद में कभी पढ़ता नहीं हूं....क्योंकि मैं सच सच अपनी बात कह देता हूं ....
ये सब बड़े बड़े लोगों की बहुत बड़ी बड़ी बातें..साजिश करने वाले, साजिश का शिकार होने वाले, मेरे जैसे बिना वजह डरे-सिमटे रहने वाले...लेिकन इन सब से बेखबर एक सीधा-सादा हिंदोस्तानी बिल्कुल उस अंदाज़ में जिसको डांस नहीं करना, वो जा कर अपनी भैंस चराए...लखनऊ महोत्सव के बाहर खड़ा हुआ अंदर चल रहे मीत ब्रदर्ज़ या सोनू निगम की लाइव प्रफॉर्मैंस से बिल्कुल बेखबर रात के ११.३० बजे इतनी बढ़िया बढ़िया गर्मागर्म खताईयां ईमानदारी से तैयार कर बेचता हुआ कितनी सहजता से परसों रात अपने काम में रमा हुआ दिखा.....ऐसे लोग ही हैं भारत के सच्चे ब्रांड-अम्बेसेडर... दाल रोटी खा कर मस्त रहने वाले ...सच्चे हिंदोस्तानी...इन्हें दिल से सलाम करने की इच्छा होती है। मुझे ये खताईयां खा कर बहुत अच्छा लगा... बहुत अच्छा। हां, आप लखनऊ महोत्सव हो कर आए कि नहीं, जल्दी कीजिए... ७ तारीख को महोत्सव सम्पन्न हो रहा है।
आज लैपटाप खंगालते हुए मुझे अपनी एक ३० साल पुरानी फोटू दिख गई... जब मुझे १९८५ में नया नया डैंटल कालेज में मास्टरी करने का शौक चढ़ा था...वे दिन भी क्या दिन थे....बीती हुई यादो हमें इतना न सताओ!
आज यह फोटू दिखी तो लगा इसे ब्लॉग पर अभी सहेज लूं.. मास्टरी के दिनों की यादें |
कुर्सी पर दायें हाथ में पहले हमारे प्रिय मास्टर चोपड़ा जी ...ठीक .बाकी तो सब बदिया है ही आप की पोस्ट सदा की तरह बहुत कुछ सिखाती,दिखाती और समझाती....शुक्रिया जी .
जवाब देंहटाएंहा हा हा आप सही पकड़ ही लेते हैं। धन्यवाद आप के आशीर्वचनों के लिए।
हटाएंDhanyawaad....याद करने के लिए।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपंतजलि उत्पाद पौष्टिक हैं या औरों की तरह ही हैं ये तो नहीं पता ,बस इतना कहूँगी कम से कम स्वदेशी तो हैं , देश का पैसा बाहर तो नहीं जायेगा... विचारणीय पोस्ट आपकी..
जवाब देंहटाएंआप सही फरमा रही हैं...
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुपरस्टार कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग नहीं रहे - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंआपने यहां सही का
पातंजली औषधियों तक ही सही है
शेष तो दूसरे उद्योगों से
खरीदकर लेबल लगाते है
अन्य उद्योगपतियों की तरह
सादर
जी हां आप ने बिल्कुल सही फरमाया...मुझे भी यह सब बड़ा अखरता है...
हटाएंजी हां आप ने बिल्कुल सही फरमाया...मुझे भी यह सब बड़ा अखरता है...
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