अकसर मैं सोचता हूं कि यह कैसे संभव है कि डिप्रेशन के लिये ली जाने वाली गोली संजीवनी बूटी जैसा काम कर देगी और मूड को लिफ्ट करा देगी। वैसे तो मैं कहने को एलोपैथी से ही संबंधित हूं लेकिन पता नहीं क्यों कुछ तकलीफ़ों के लिये मुझे सीधा दवाईयों का रूख करना कभी भी मुनासिब नहीं लगता।
जिस तरह से मैंने एक बार प्रश्न उठाया था कि यह कैसे हो सकता है कि केवल ब्लड-प्रैशर की टेबलेट लेने मात्र से ही सब दुरूस्त हो जाए ----यार सीधी सी बात है कि अगर दवाईयों से ही सेहत मिलती होती तो बात ही क्या थी !!
कोई मनोरोग विज्ञानी इस लेख को पढ़ेगा तो इस से कोई दूसरा मतलब भी निकाल सकता है। लेकिन मुझे डिप्रेशन जैसे रोग के लिये लंबे लंबे समय तक दवाईयां लेने पर बहुत एतराज़ है। डिप्रेशन तो आप सब समझते ही हैं ---बस उदासी सी छाई रहना, कुछ भी काम में मन न लगना, हर समय सुस्ती सी, हर समय कुछ अनिष्ट होने के ख्याल....बस और भी इस तरह की बहुत से भाव। हर समय़ थका थका सा रहना और जीने की तमन्ना का ही खत्म सा हो जाना।
एक बात का ध्यान आ रहा है कि क्या आपने कभी सुना है कि आप के घर में जो बाई काम कर रही है, उसे डिप्रेशन हो गई है या कपड़े प्रैस करने वाला चार डिप्रेशन में आ गया है या कुछ मज़दूरों को अवसाद हो गया है। नहीं सुना ना ----शायद इन में भी होता तो होगा ही, लेकिन ये सब प्राणी अपनी दाल-रोटी के जुगाड़ में इतने घुसे रहते हैं कि इन की बला से यह अवसाद, वाद............शायद ये झट से हर परिस्थिति के साथ समझौता करने में कुछ ज़्यादा सक्षम होते हैं ---शायद मुझे ही कुछ ऐसा लगता हो।
लेकिन यह डिप्रेशन रोग तो लगता है पढ़े लिखे संभ्रांत लोगों के हिस्से में ही आया है। आदमी आदमी से दूर होता जा रहा है, किसी को बिना मतलब किसी से बात करने तक की फुर्सत है नहीं, ऊपर से उपभोक्तावाद का दबाव, पारिवारिेक मसले, कामकाज के दबाव, बच्चे के साथ जैनरेशन गैप का मुद्दा..............खाने पीने में बदपरहेजी, मिलावटी सामान, लेट-नाइट पार्टीयां......इन सब के प्रभाव से जब कोई डिप्रेशन में चला जाता है तो क्यों हम लोग समझ लेते हैं कि बस रोज़ाना एक टेबलेट लेने से ही सब कुछ फिट हो जायेगा।
मुझे याद है जब हम बंबई में था तो बेकार बेकार बातों की कुछ ज़्यादा ही फिक्र किया करता था ---और इसी चक्कर में मैंने दो-तीन दिन के लिये चिंता कम करने वाली दवाई ली थी -----भगवान जानता है कि उन दिनों मेरे साथ क्या बीती। और मैंने तौबा कर ली थी इन दवाईयों के चक्कर में नहीं पड़ना।
वैसे आज बैठे बैठे मुझे इस डिप्रेशन का ध्यान कैसे आया ? ---आदत से मजबूर जब मैडीकल खबरों की खबर ले रहा था तो इस खबर पर नज़र अटक गई ---Americans prefer drugs for depression : survey. इस में लिखा है कि अमेरिका में जिन लोगों को डिप्रेशन है उन में से अस्सी फीसदी तो इस के लिये कोई न कोई दवाई लेते हैं और वे इस के लिये किसी मनोवैज्ञानिक अथवा सोशल-वर्कर से बात करने से भी ज़्यादा कारगर इस टेबलेट को ही मानते हैं।वे लोग इस के लिये नईं नईं दवाईयों को आजमाना नहीं चाहते क्योंकि उन से साइड-इफैक्ट ज़्यादा होने की संभावना होती है। इस सर्वेक्षण में पाया गया है कि इन दवाईयों के साइड-इफैक्ट्स तो हैं ही लेकिन फिर भी इन्हें --विशेषकर इस तरह की दवाईयां लेने वालों में यौन-इच्छा एवं क्षमता का कम होना--- पिछले सर्वेक्षणों की तुलना में कम ही पाया गया है।
आप को भी शायद लगता होगा कि आज कल लोगों का support system खत्म सा हो गया है---- लोगों को ऐसा कोई कंधा नहीं दिखता जिस पर वे अपना सिर रख कर मन की बात खोल कर हल्का महसूस कर लें। और जितना जितना हम लोग दुनियावी बुलंदियों को छूने लगते हैं यह कमी और भी ज़्यादा खलने लगती है।
अच्छा, बहुत हो गई बातें ----आप मेरे से यही प्रश्न पूछना चाहते हैं ना कि अगर डिप्रेशन में मनोवैज्ञानिक या मनोरोग चिकित्सक के पास भी न जाएं तो फिर करें क्या ---इस में क्या है, सारा जग जिन बातों को जानता है उन पर पहले चलने की कोशिस करें ----लिस्ट दे दें ?
- सुबह सवेरे जल्दी उठने की आदत डालें---रोज़ाना टहलने का अभ्यास करें--थोड़ी बहुत शारीरिक कसरत, थोड़ा बहुत प्राणायाम् और योगाभ्यास करना सीखें। साईकिल चलाना क्यों छोड़ रखा है ? ....हौंसला बढ़ाने के लिये देखिये मैंने हरेक क्रिया के साथ थोड़ा जोड़ दिया है लेकिन जैसे ही मन टिकने लगे इन की अवधि बढ़ा दें --- और किसी योगाचार्य से अगर समाधि ध्यान (meditation) सीख कर उस का नियमित अभ्यास करें तो क्या कहने !!
- ऐसी वस्तुओं से हमेशा दूरी बना के रखें जिन की नैगेटिव प्राणिक ऊर्जा है जैसे कि सभी तरह के नशे---तंबाकू, शराब, बार बार चाय की आदत।
- अपने खाने में कच्चा खाना जैसे कि सलाद, अंकुरित दालें एवं अनाज की मात्रा बढ़ाते चले जाएं --- ये तो पॉवर-डायनैमो हैं, एक बार आजमा कर तो देख लें।
- रात के समय बिल्कुल कम खाना खाएं-- अगर तीन चपाती लेते हैं और आज से एक कर दें ---खूब सारा सलाद लें और फिर देखिये नींद कितनी सुखद होती है और सुबह आप कितना फ्रैश उठते हैं।
- वैसे तो यह देश हज़ारों सालों से जानता है कि जब लोग सत्संग आदि में जुड़ते हैं तो वे मस्त रहते हैं, खुशी खुशी बातें एक दूसरे के साथ साझी करते हैं, और क्या चाहिए ? ---क्या कहा मोक्ष --भई, वह तो मुझे पता नहीं, और न ही वह मेरा विषय है। मैं तो बात कर रहा था बाहर के देशों में होने वाली रिसर्च की जिन्होंने इस बात की प्रामाणिक तौर पर पुष्टि की है कि जो महिलायें सत्संग जैसे आयोजनों के साथ नियमित तौर पर जुड़ी रहती हैं वे अवसाद का बहुत ही कम शिकार होती हैं। और जहां तक मोक्ष की बात है, वह तो परलोक की बात है, चलिये पहले यह लोक तो सुहेला करें.......इस लिस्ट को देखते समय यह मन में मत रखिये कि जो ज्यादा महत्वपूर्ण बातें हैं वे ऊपर रखी हैं और कम महत्व की बातें नीचे हैं---------इसलिये इस सत्संग वाली बात को आप पहले नंबर से भी ऊपर जानिये।
- क्या लग रहा है कि यह डाक्टर भी अब इन सत्संगों की बातें करने लगा है? लगता है कि इस पर भी चैनलों का जादू चल गया है। ऐसा नहीं है, मैं बिल्कुल वैज्ञानिक सच्चाई ही ब्यां कर रहा हूं.। और किस सत्संग में जाएं ? ---जहां जाकर आप के मन को खुशी मिले,,आप कुछ हंसे, अपने दुःख-सुख बांटे, अपने हम उम्र लोगों का संग करें ------ बस यही सत्संग है जहां से कुछ भी ऐसा ग्रहण करने को मिले ----बाकी मोक्ष के पीछे अभी मत भागिये ---वह लक्ष्य तो अभी इंतज़ार भी कर सकता है।
अब आते हैं, एक अहम् बात पर कि अगर लिस्ट के मुताबिक ही जीवन चल रहा है लेकिन फिर भी अवसाद है, डिप्रेशन है तो भाई आप किसी मनोवैज्ञानिक अथवा मनोरोग विशेषज्ञ से ज़रूर मिलें जो फिर बातचीत (काउंसलिंग) के ज़रिये आप को समझा बुझा कर ...नहीं तो दवाईयां देकर आप के उदास मन को लिफ्ट करवाने की कोशिश करेगा।
दरअसल हमारी समस्या यही है कि हम लोग इस लिस्ट को तो देखते नहीं, सीधा पहुंच जाते हैं डाक्टर के पास जो पर्चे पर डिप्रेशन लिख कर दवा लिख कर छुट्टी करता है, लैब अनेकों टैस्ट करवा के छुटट्टी कर लेती है, कैमिस्ट दवा बेच के छुट्टी करता है, मरीज़ दवा खा के छुट्टी कर लेता है.........सब की छुट्टी हो जाती है सिवाय अवसाद के-----वह कमबख्त ढीठ बन कर वहीं का वहीं खड़ा रहता है।
लगता है मैं भी अपने दिमाग को विराम दूं ----कहीं यह भी अवसाद में सरक गया तो ......!!
बात आप की सोलह आने सही है।
जवाब देंहटाएंआप से सहमत है जी, वेसे मुझे लगता है कि जो ज्यादा आलसी, वह्मी , काम चोर, ज्यादा भगवान पर अपना सब कुछ छोडने वाला कि भगवान ही करेगे , ओर ज्यादा किस्मत मै विश्वास करने वाले लोग ही ज्यादा इस के शिकार होते है, क्योकि एक कर्म योगी के पास कर्म करने के सिवा सोचने का समय ही नही होता
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने . लेकिन मेरी समस्या यह है मुझे नीद बहुत आती है .
जवाब देंहटाएंबड़ी खतरनाक हैं ये दवाइयाँ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंaap ki jaakaari ka bhut bhut dhnybaad mai bp ki teb//t lagbhag 4 mahine se le raha hun uske saath dr ne avshaad ki bhi koi teb.. di hai kahir unhe mai band to nahi kar raha hun magar aap ki bataye huye pryog jaroor karunga aage agar fayda hota hai to kam se kam in davayise to chhutkara mil payega jo khud avshaad ki vajah banti jarahi hai
जवाब देंहटाएंsaadar
praveen pathik
9971969084
बहुत सही कहा , लिखा भी रोचक तरीके से है , वाकई कर्म ही वो कुंजी है जो अवसाद का ताला खोल सकती है और जो धीरे से किसी न किसी प्रेरणा से जोड़ कर जीवन को सार्थक बना सकती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लेख... एक एक बात सच है...कई लोगों को डिप्रेशन पर लगातार चर्चा करते देखा और दवाइयाँ लेते देखा लेकिन सालों सब बेअसर ... दवाई से ज़्यादा आत्मबल की ज़रूरत है...अपने आप से बातचीत करके मन को काबू किया जा सकता है जो अपने अनुभव से कह रहे हैं..
जवाब देंहटाएंI had gone for depression for last one year. I browsed internet and found branole x capsule and used it for 2 months. Now i am free from depression.
जवाब देंहटाएंGreat information on anti-depressants.
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