शनिवार, 15 नवंबर 2025

कल्याण जी- आनंद जी का म्यूज़िक शो बढ़िया रहा ....

मुंबई में म्यूज़िक शो तो होते ही रहते हैं...दूसरे शहरों में भी होते होंगे...लेकिन मुंबई चूंकि मायानगरी है ...यहां पर इस तरह के जो प्रोग्राम होते हैं उन में कुछ तो अलग ज़रूर रहता है ...

मैंने पिछले कुछ सालों में लखनऊ और यहां मुंबई में इतने म्यूज़िक शो देख लिए हैं कि अब मुझे इन का ज़्यादा क्रेज़ नहीं रहा ...लखनऊ में तो किशोर कुमार या मोहम्मद रफी की सालगिरह आदि पर इस तरह के कार्यक्रम होते थे ...मैंने सब से पहले वहीं पर यह सब देखा ...

लेकिन यहां मुंबई में तो बहुत से म्यूज़िक-शो देखने का मौका मिला ....यहां पर तो इतवार की अखबार में आने वाले हफ्ते में होने वाले शो के इश्तिहार भरे पड़े होते हैं....अब मेरे लिए यह चुनाव करना कि कहां जाना है, कहां नहीं.....बहुत आसान हो गया लगता है ....मैं जिस तरह के प्रोग्राम में एक बार हो आता हूं दोबारा उसमें नहीं जाता....कितना भी अच्छा एक्पिरिएंस रहा हो, मैं दोबारा नहीं जाता.....जैसे कि कुमार शानू, अभिजीत, उदित नारायण, आशा भोंसले, सुखविंदर ....आदि आदि ...एक बार इन के फ़न का जादू देख लिया ...तो फिर से इन के किसी प्रोग्राम में नहीं जाता...अभी मुझे लिखते लिखते यही लग रहा है कि जैसे मैं इन के फ़न को एक बार लाइव देखने जाता हूं ...टिकट-विकट का कोई चक्कर नहीं है, वैसे भी मैं एक हज़ार-बारह सौ रुपए तक की टिकट वाले शो में ही जाता हूं....चार पांच हज़ार रुपए के टिकट वाले शो में कभी नहीं गया....तो यह हुआ मेरा अपना निर्धारित किया हुआ एक्सक्लूज़न क्राईटिरया.....कैसा लगा....और हां, जो कलाकार इन प्रोग्रामों में आने वाले हैं, कईं बार उन के नामों पर भी मेरा वहां जाना या न जाना मयस्सर करता है ....

और एक बात ...यहां पर मो.रफी साहब या किशोर कुमार की सालगिरह के मौके पर तो इस तरह के प्रोग्राम होते ही हैं. ..वैसे भी विभिन्न फिल्मी गायकों के लाइव शो होते रहते हैं....इन प्रोग्रामों में मेरी जाने की इच्छा ज़्यादा होती है (अगर मैं पहले उस गायक के किसी प्रोग्राम में नही ंगया हूं...) ...गायकों के अलावा, कईं बार म्यूज़िक डायरेक्टर्स जैसे लक्ष्मी कांत-प्यारे लाल, कल्याण जी-आनंद जी, आर डी बर्मन, भप्पी लहरी 

....जैसे शो भी होते हैं.....और कईं बार गुलज़ार म्यूज़िक शो, मजरुह सुल्तानपुरी ...( इन दोनों शो में तो मैं शिरकत कर चुका हूं...)....मेरा कहने का आशय यह है कि म्यूज़िक शो बहुत से अलग अलग थीम पर होते रहते हैं.....


कुछ दिनों से मैं अखबार में कल्याणजी-आनंद जी के म्यूज़िक शो का इश्तिहार देख रहा था ...14 नवंबर को था...कल्याण जी तो परलोक सिधार गए हैं....मैं शो में इसलिए जाना चाहता था क्योंकि मुझे लाईव-शो के दौरान आनंद भाई के दर्शन भी करने थे ....ऐसे प्रोग्रामों के दौरान सदी के ऐसे महान कलाकारों की बातें सुनने लायक होती हैं....

कल प्रोग्राम बहुत बढ़िया रहा ....इस पोस्ट में मेरी कोशिश यही रहेगी कि आनंद जी भाई ने जो अपनी यादें साझा की, उन के बारे में जितना मुझे याद रह पाया, उन को लिखूं....लेकिन उस से भी पहले यही ख़याल आ रहा है कि आखिर कल्याण जी आनंद जी से मेरा लिंक क्या ....

मेरा कल्याण जी-आनंद जी से लिंक कुछ खास नहीं .....

मेरा या मेरी उम्र के लोगों का इन दिग्गजों के साथ खास लिंक नहीं, बस सिर्फ इतना ही ....

- जब से हमने होश संभाली, हम ने इन का नाम रेडियो पर बजने वाले फिल्मी गीतों के साथ सुना...कल्याण-जी, आनंद जी, लक्ष्मी कांत-प्यारे लाल, शंकर जै किशन ....याद नहीं दिन में ये नाम रेडियो पर कितनी बार सुन जाते थे...

- फिर स्कूल जाते वक्त रास्ते पर जो फिल्मी पोस्टर दिखते थे, जब हिंदी पढ़ना लिखना सीख रहे थे तो इन का नाम उन पोस्टरों पर ज़रूर पढ़ लेते थे.....कुछ पता नहीं था कि ये काम क्या करते हैं...इन का फिल्म में काम क्या होता है ...लेकिन  ये नाम जैसे दिलोदिमाग में बसे हुए हैं ...कब से ..........बचपन से ....(इसे लिखते लिखते मुझे बचपन में अमृतसर के हाथी गेट, हाल गेट आदि जगहों पर लगने वाले फिल्मी पोस्टर याद आ रहे हैं....जिन को मैं स्कूल कालेज जाते वक्त ज़रूर अच्छे से देख कर आगे बढ़ता था ...) पैदल होता तो कोई दिक्कत नहीं, साईकिल पर होता तो उसे रोक कर इश्तिहार ज़रूर पढ़ता....

-अखबार में जो फिल्मी विज्ञापन छपते थे उन मे ं भी इन का नाम लिखा होता था ....

-और जब खुशकिस्मती से किसी रोज़ कोई फिल्म देखने चले ही जाते तो थियेटर के बाहर लगे बहुत बड़े पोस्टर पर भी इन की नाम लिखा रहता था ..

-फिर आगे चलते हैं,...कैसेट चल पड़़ीं...फिल्मी गीतों की ...उन पर भी इन का नाम ....

-टीवी पर भी कभी कभी किसी विशेष प्रोग्राम में इन को अपनी टीम के साथ लाइव प्रोग्राम देते देखा...

-आगे सीडी आ गईं डीवीडी आ गईं .........हर जगह इन का नाम पढ़ते पढ़ते इन के नाम की आदत पड़ गई....

- फिर यू-ट्यूब ने तो कमाल कर दिया....मैं नवंबर 2007 से ब्लॉगिंग कर रहा हूं और अपनी पोस्ट को बंद करते वक्त जब किसी फिल्मी गीत को पोस्ट में एम्बेड करने के लिए  सलेक्शन करनी होती है तो दो चार गाने से सुनने ही पड़ते हैं और इस सिलसिले में भी इन दिग्गजों का नाम बार बार दिन में कईं बार अभी भी दिखता है और सुनता भी है क्योंकि मैं विविध भारती का नियमित श्रोता हूं ....रेडियो का मतलब मेरे लिए विविध भारती रहा है, और शायद हमेशा रहेगा...

1960 या 1970 के दशक में इन महान संगीतकारों के गीत सुन कर मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ज़िंदगी में कभी ऐसा भी मौका मिलेगा जब इन को यह सब लाइव कंडक्ट करते देख पाऊंगा ....हां तो मेरे लिए इन दिग्गजों के दर्शन ही कर लेना ऐसे सपने साकार होने जैसा है जो मैंने कभी सपने में भी नहीं देखे थे ....अब अगर मेरा या मेरी पीढ़ी का कल्याण जी आनन्दजी के साथ इतना लिंक भी खास ना लगे तो खास की परिभाषा आज ही बदल देनी चाहिए! 

हर फिल्मी गीत की एक नहीं अनेकों दास्तानें हैं ....

हर फिल्मी गीत से जुड़े हर शख्स की उस के बारे में अलग दास्तान है ...जिस की कलम से वे शाहकार कृतियां निकलीं, उन के अपने अनुभव हैं, जिन्होंने इन को लाजवाब म्यूज़िक दे कर अमर बना दिया, उन के किस्से उस गीत के बारे में अलग, जिसने उन गीतों को गाया, जिसने फिल्माया, जिन पर फिल्माया .....सब के अलग अलग किस्से एक गीत के बारे में ........और सब से बड़ा किस्सा तो उस गीत के दर्शक के पास, श्रोता के पास ...........यह कैसा किस्सा हुआ........हम सब की यादें जुड़ी होती हैं फिल्मी गीतों के साथ, ये रेफरेंस प्वाईंट होते हैं हमारी ज़िंदगी के ....जब अचानक किसी गीत को सुनते हैं तो हमें 50 साल पहले का कोई दिन याद आ जाता है, 40 साल पुराना कोई वाक्या याद आ जाता है, स्कूल-कालेज की क्लास याद आ जाती है जब बाहर से उस गीत के अकसर लाउड-स्पीकर पर बजने की आवाज़ आने लगती थी ....मां का, पिता जी का, भाई का पसंदीदा गीत और बहन का किसी गीत को अकसर गुनगुनाना ....बहुत कुछ याद आ जाता है...ये सब दास्तानें ही तो हैं....

32 फिल्मी गीत सुनाए गए - 

कल के प्रोग्राम में 32 फिल्मी गीत पेश किए गए...एक से बढ़ कर एक ...इतना काम करने के बाद भी आनंद जी भाई में बच्चों जैसा उत्साह और उन के खुशमिज़ाज स्वभाव से हाल में जैसे रौनक आ गई।






शुरुआत हुई लावारिस फिल्म के उस सुपर हिट गाने के म्यूज़िक से .....अपनी तो जैसे तैसे कट जाएगी.....

डॉन, लावारिस, कुर्बानी, हसीना मान जाएगी, मुकद्दर का सिकंदर, सफ़र, हाथ की सफाई, सच्चा-झूठा, धर्मात्मा, जानी मेरा नाम, कालीचरण, राज़ .....इन फिल्मों के अलावा भी बहुत से गीत पेश किए गए...मुझे उन की फिल्मों का नाम पता नहीं, लेकिन गीत कुछ जो पेश किए गए....

बड़ी दूर से आए हैं प्यार का तोहफ़ा लाए हैं...

चांद आहें भरेगा, फूल दिल थाम लेंगे ...

आ जा तुझ को पुकारें मेरे गीत रे ...

पल पल दिल के पास तुम रहती हो ...

किसी राह में किसी मोड़ पर ...कहीं चल न देना तू छोड़ कर ...

फुल तुम्हें भेजा सा खत में ...

सलामे इश्क मेरी जां ज़रा कुबूल कर ले लो ....

प्रोग्राम के दौरान आनंद जी भाई ने धर्मेंद के सेहतयाब होने की शुभकामना की और बताया कि धर्मेंद और राजेश खन्ना की पहली फिल्म के म्यूज़िक डायरेक्टर वही थे। 

कह रहे थे कि बस ईश्वर की कृपा से नाम हो गया...कह रहे थे मुझे म्यूज़िक के अलावा कुछ आता ही नहीं था, न गाना, न बजाना....कहने लगे कि फिर हमने म्यूज़िक डायरेक्टर बनने का फैसला कर लिया....दादी अकसर पूछती कि तुम स्टेज पर खडे़ होकर यह क्या हाथ हिलाते रहते हो ...तो आनंद भाई ने जवाब दिया ....कुछ नहीं, बस मक्खियां उड़ानी पड़ती हैं...। दादी ने कहा कि वहां ंपर मक्खियां तो होती नहीं हैं....।  

जो ्र्रआर्टिस्ट गीत गा रहे थे, उन सब को वह ईमानदारी से फीडबैक दे रहे थे ...एक बांसुरी वादक और एक आर्टिस्ट (गायक) को उन्होंने नगद ईनाम भी दिया....एक सिंगर ने जब यह गीत गाया ....अकेले हैं चले आओ...जहां हो ....तो उसे कहा कि इसे गाने के लिए अपनी आवाज़ में दर्द लेकर इसे गाओ....उस के बाद उसने फिर से उसे गाया और आनंद भाई न खूब तारीफ़ की ...

जेटसेन दोहना....सारे गा मा लिटिल चैम्प विनर ...

वहां पर जो आर्टिस्ट गीत गा रहे थे उन में से एक जेटसेन दोहना भी थी....यह सारेगामा की लिटिल चैम्प की तीन साल पहले की विजेता है...12साल की हैं...लेकिन इन की गायकी ..लाजवाब है ...मैं रिकार्ड तो नहीं कर पाया ..क्योंकि मैं कल दूसरी बालकनी पर था ..लेकिन अभी मैंने यू-ट्यूब पर देखा तो वही गीत मिल गया जो जेटसेन ने कल गाया था - प्यार ज़िंदगी है ..प्यार बंदगी है .....संयोगवश इस प्रोग्राम में भी आनंद जी भाई इस बच्ची को दाद दे रहे हैं....इस से पहले भी उस बच्ची ने जो गीत गाया ..उस को भी लोगों ने बहुत पसंद किया....इक तो कम ज़िंदगानी...उस से भी कम है जवानी....प्यार दो प्यार लो ....

जेटसेन दोहना कल के प्रोग्राम में परफार्म करते हुए....



सारे प्रोग्राम के दौरान आनंद भाई का उत्साह देखने लायक था ....बस उम्र जैसे साथ नहीं देती कईं बार बिंदास डांस करने के लिए ..वही बात थी ..लेकिन हर गीत के ऊपर उन का दिल झूम रहा था .....और उन्होंने एक बार कह भी दिया...मेरी उम्र पर मत जाओ, मेरे दिल को देखो....और उन्होंने फिर बताया कि एक एक गाने के पीछे पूरी कहानी होती है...

प्रोग्राम के दौरान यह भी बताया गया कि 1950 में ( जी हां, 75 साल पहले) देश में कल्याण जी आनंद जी के द्वारा ही लाईव आर्केस्ट्रा की शुरूआत की गई थी ....स्टेज पर लाइव शो करने की परंपरा भी उन के द्वारा ही शुरू की गई थी ...वाह, बहुत खूब। दर्शकों के बहुत अनुरोध करने पर उन्होंने दो मिनट के लिए गाने के लिए माईक हाथ में ले लिया....और यह गीत सुनाया...बड़ी दूर से आए हैं, प्यार का तोहफ़ा लाए हैं.....

खुशमिज़ाज हैं आनंद भाई..जैसे ही गीत गाना शुरु किया तो हंसते हंसते कहने लगे ....तालियां ..तालियां....और बाद में जब पानी पीने लगे तो कहने लगे ....देखिए, आनंद भाई को पानी पीते देखिए.....ऐसे ही खुश रहना, खुश रखना....और आसपास खुशियां फैलाने ऐसे महान फ़नकारों का स्वभाव होता है तभी तो ये ऐसा बेमिसाल काम कर गुज़रते हैं जिस को सदियों तक याद रखा जाता है ..बात बात पर हंसी, मज़ाक, मुस्कुराना .....दूसरों का मनोबल बढ़ाना, बढ़िया काम की तारीफ़ करना.......यही तो है ज़िंदगी....



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