जब देश के इस भाग में यह जुमला दो दोस्तों के बीच बोला जाए तो समझ लिया जाये कि शाम को लवली पैग की तैयारी हो रही है, चिकन फ्राई की बात हो रही है, टिक्के, फिश-फ्राई की तैयारी हो रही है , चिकन-सूप का प्रोग्राम बन रहा है वरना खरोड़ों के जूस ( बकरे की टांग) की चाह हो रही है।
लेकिन हम इस ठंड का इंतजाम करते हैं चलिये सीधी सादी मूंगफली से --- अभी अभी बाज़ार से लौटा तो घर के पास ही एक रेहड़ी पर एक दुकानदार मूंगफली भून रहा था –मैं भी वह खरीदने के लिये खड़ा हो गया और ये तस्वीरें सभी वही ही हैं।
हम लोग पंजाब में बचपन से देखते रहे हैं कि मूंगफली की रेहड़ी पर एक बहुत बड़ा ढेर लगा रहता है – उस के बीचों बीच एक छोटे से मिट्टी के बर्तन में उपले या छोटी छोटी लकड़ीयां जलाई जाती थीं। और हर ग्राहक को मूंगफली उस बर्तन को उठा कर गर्मागर्म देता था --- और अगर कोई दुकानदार थोड़ा आलस्य करता था और ढेर में से किसी दूसरी जगह से मूंगफली देने की कोशिश भी करता था तो उसे ग्राहक से हल्की सी झिड़की भी पड़ जाती थी कि गर्म दो भई गर्म।
फिर कुछ समय तक हम लोग मूंगफली के पैकेट खरीद कर ही काम चला लिया करते थे --- लेकिन उस में कभी इतना मज़ा आता नहीं है --- पता नहीं क्यों --- कितनी तो खराब मूंगफली ही उस में भरी होती है !!
पिछले लगभग तीन साल से मैं यमुनानगर – हरियाणा में हूं और यहां पर मूंगफली खाने का मज़ा ही अपना है । जैसा कि आप इस फोटो में देख रहे हैं इस शहर में जगह जगह रेहड़ीयों पर मूंगफली बिकती है --- बस, आप यह समझ लीजिये कि पहला जो भट्ठीयां नीचे ज़मीन पर हुआ करती थीं अब ये भट्ठीयां रेहड़ी के ऊपर इन दुकानदारों ने बना ली हैं।
आप को ये तस्वीरें देख कर ही कितना अच्छा लग रहा होगा --- ठंडी छू-मंतर हो रही है कि नहीं ? – इन दुकानदारों ने लकड़ीयों आदि का इस्तेमाल कर के भट्ठी जलाई होती है – जिस पर ये थोड़ी थोड़ी मूंगफली लेकर सेंकते रहते हैं और उसी समय ग्राहकों को देते रहते हैं – इन रेहड़ीयों के इर्द-गिर्द खड़ा होना ही कितना रोमांचक लगता है ---किसी कैंप-फॉयर से कतई कम नहीं --- और आप को यह बताना भी ज़रूरी है कि इस मूंगफली को नमक में भूना जा रहा है --- इस मूंगफली का टेस्ट बहुत बढ़िया होता है।
अभी मूंगफली की बात खत्म नहीं हुई तो ध्यान आ गया है रोहतक की शकरकंदी का ---जिसे दुकानदार रेत की धीमी आंच में सेंक कर इतना बढ़िया कर देते हैं कि क्या बतायें --- वैसे एक बात है इन मौसमी बहारों का मज़ा जो रेहड़ी के पास ही खड़े हो कर खाने में आता है ना उस का अपना अलग ही रोमांच है।
वैसे भी व्यक्तिगत तौर पर मेरा बहुत ही दृढ़ विश्वास में गुमनाम हो कर जीने का मज़ा ही अलग है --- जहां कोई किसी को ना पहचाने --- सब अपनी मस्त में मस्त --- तो लाइफ का मज़ा ही आ जाये --- जहां पर जीवन की छोटी छोटी खुशियों उसे इस बात के लिये न बलिदान करनी पड़ें कि यार, मैं यहां खड़ा हो जाऊंगा तो लोग क्या कहेंगे--- मैं यहां खड़ा होकर कुछ खा लूंगा तो लोग क्या कहेंगे ---- कहेंगे सो कहेंगे --- यह उन की समस्या प्राचीन काल से है --- उन्होंने तो कुछ तो कहना ही है !!
चल बुल्लिया चल उत्थे चलिये,
जित्थे सारे अन्ने,
ना कोई साडी जात पछाने,
ना कोई सानूं मन्ने।
मूंगफली की बात हो रही है और कहां हम लोग मूंगफली खाते खाते गपशप करते करते उस महान पंजाबी सूफी संत बाबा बुल्ले शाह की तरफ़ निकल गये।
हां, तो मैं उस रेहड़ी वाले की बात कर रहा था --- मैंने उस की रेहड़ी के पास खड़े खड़े ऐसे ही कह दिया --- पहलां तां हुंदियां सन भट्ठीयां, हुन एह कम हुंदै रेहड़ीयों पर –( पहले तो यह काम भट्ठीयों के द्वारा होता था लेकिन अब यही काम रेहड़ीयों पर होता है ) --- मेरे पास ही खड़े एक सरदार जी ने कहा --- हुन तां न ही भट्ठीयां ही रहीयां ते ना ही भट्ठीयां वालीयां ही रहीयां --- ( अब न तो भट्ठियां ही रहीं और न ही भट्ठी वालीयां ही रहीं !!) --- मुझे भी उस समय बचपन के दिन याद आ रहे थे जब हम लोग मक्का लेकर एक भट्ठी पर जाया करते थे और उस के पास एक बोरी के टाट पर बैठ जाया करते थे --- वह हमें पांच मिनट में फारिग कर दिया करती थी --- कहां वह नायाब मक्का और कहां ये पैकेट वाले अंग्रेज़ी कार्न-फ्लेक्स !!-- आज भी मुझे जब कोई पूछता है ना कि कार्न-फ्लेक्स खाने हैं तो मेरी आधी भूख तो इस इंगलिश के नाम से ही उड़ जाती है।
यह मैं जिस मूंगफली की रेहड़ी की बात कर रहा हूं --- इन के द्वारा बहुत ही बढ़िया किस्म की मूंगफली इस्तेमाल की जाती है – बिल्कुल साफ --- और इतनी बढ़िया महक।
लगभग छःसात साल पहले मैं जब एक नवलेखक शिविर में गया तो मुझे कुछ आइडिया नहीं था कि लेखन कैसे शुरू करना होता है --- और वहां से आने के बाद कईं साल तक मुझे लगता रहा कि यार ये लेखों के विषय तो बड़े ही सीमित से हैं --- जब मैं इन सब पर लेख लिख लूंगा तो फिर क्या करूंगा --- लेकिन पिछले दो-तीन साल से यह आभास होने लगा है कि केवल हमारा आलस्य ही हमारे आड़े आता है --- हम कलम उठाने में ही केवल सुस्ती कर जाते हैं---वरना लेखों का क्या है ---- लेखों के बीसियों विषय हमें रोज़ाना अपने इर्द-गिर्द दिखते हैं – बस इस के लिये केवल शर्त इतनी सी है कि बस केवल आंखें और कान खुले रखें और हमेशा ज़मीन से जुड़े रहें ।
अच्छा दोस्तो अब मूंगफली काफी खा ली है , थोड़ा थोड़ा खाना खा लिया जाये ----उस के बाद मूंगफली को गुड़ के साथ लेकर फिर बैठते हैं । बिल्कुल सच बताईयेगा कि इस पोस्ट के द्वारा इस सर्दी में भी आप को गर्मी का अहसास हुआ कि नहीं ---- क्या कहा…… नहीं ? ….फिर तो आप को इस मूंगफली के लिये यहां यमुनानगर ही आना होगा।
बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई साथ में आपको और आपके पुरे परिवार को नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसाल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा अगर पसंद आए ...
अर्श
चलो आप ने याद दिलाई। हम जा कर मूंगफली सेंकते हैं। रसोई में।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंनीरज
चोपडा साहब जी , आज आप ने मुगफ़ली की रेहडी दिखा कर, एक घटना याद दिला दी, मेरी शादी हुयी तो एक शाम को मे अपनी बीबी को लेकर युही घुमने निकल पडा,एक मुगफ़ली वाले से १०० ग्राम गर्मा गर्म मुगफ़ली तुलवाई ओर उसे ५० पेसे दिये, रेहडी वाला बोला बाबुजी चार रुपये, अब मुझे गुस्सा आया, क्योकि जब मै पहले मुगफ़ली लेता था तो १५ पेसे की ५० गराम आती थी मेने उसे से कहा भाई ५० पेसे मे देनी है तो दो, चार रुपये ??? क्य लुट मची है....
जवाब देंहटाएंमै बिना मुगफ़ली लिये घर आगया, घर आ कर भाई से पुछा, तो उस ने कहा की ४,५ रुपये की १०० गराम मुगफ़ली होगी, अब मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया, दुसरे दिन मै फ़िर उस की रेहडी पर गया, तो मुझे देख कर उस ने अजीब सा मुहं बना लिया,मेने उस से कहा भाई २०० गराम मुगफ़ली देना, तो भाई बोला बाबुजी आप ने लेनी तो है नही तुलवा कर १ रुपया पकडबा दो गे, जाइये जाईये, फ़िर मेने उसे पुरी बात बताई की मै आज करीब ९ साल के बाद मुगफ़ली खरीद रहा हुं, ओर मे तो ९ साल पुराना ही रेट समझ रहा हुं, यह सुन कर उस ने हमे मुगफ़ली तोल कर दी ओर कहा अगली बार जब भी आओ मेरे यहा से ही मुगफ़ली लेना, ओर वो हमारा पक्का मुंगफ़ली वाला बन गया.
मुझे तो बहुत स्वाद लगती है धन्यवाद
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं
First of all Wish u Very Happy New Year...
जवाब देंहटाएंBahut achchh laga aapka yah lekh...
Such me bas kalam utaiye aur apne vicharo ko sabdon me dhal jane digiye...
Regards..
chaliye aapne mugfali k sath mere ghar ki yad dila di. waha v isi prkar mungfliyan bika karti hai garm itni ki hath hi jal jaye par ye maje yahan kahan.
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