यह तो लगभग अब सारी जनता जानती है कि फलों को पकाने के लिये तरह तरह के हानिकारक मसालों का इस्तेमाल होता है....लेकिन हरेक यही सोच कर आम चूसने में लगा है कि क्या फर्क पड़ता है, सारी दुनिया के साथ ही है, जो सब का होगा, अपना भी हो जाएगा, कौन अब इन मसालों-वालों के पचड़े में पड़े।
कुछ समय तक मेरी भी सोच कुछ ऐसी ही हुआ करती थी ...पिछले आठ-दस वर्षों से ही सुनते आ रहे हैं कि फलों को जल्दी पकाने के लिये कैल्शीयम कार्बाइड (calcium carbide) नामक साल्ट इस्तेमाल किया जाता है। और कईं बार आप सब ने भी नोटिस तो किया ही होगा कि फलों पर राख जैसे पावडर के कुछ अंश दिखते हैं, यही यह कैल्शीयम कार्बाइड होता है।
कुछ साल पहले जब यह मसालों वालों का पता चला तो कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने फलों की धुलाई अच्छे से करनी शुरू कर दी ....तीन-चार साल हो गये हैं मेरे पास इस मौसम में कुछ मरीज़ ऐसे आने लगे जिन के मुंह में अजीब सी सूजन, छाले, घाव .....जिन का कारण ढूंढना मेरे लिये मुश्किल हो रहा था.... बिल्कुल कैमीकल से जलने जैसी स्थिति (chemical burn) ....और लगभग सभी केसों में आम चूसने की बात का पता चलता। मैं अपने मरीज़ों को तो आम के छिलके को मुंह लगाने से मना करता ही रहा हूं ....और मैंने भी दो-तीन साल से चम्मच से ही आम खाना शुरू कर दिया। लेकिन अब चार-पांच दिन से आम खाने की इच्छा नहीं हो रही --- कारण अभी बताऊंगा।
लगभग एक सप्ताह पहले की बात है ... इंगलिश की अखबार में --- The Hindu/ The Times of India में एक खबर दिखी की दिल्ली शासन ने आम को पकाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले कैल्शीयम कार्बाइड पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रिंट मीडिया अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है ---बार बार अहम् बातें दोहरा कर हमें चेता रहा है। वह खबर ही ऐसी थी कि पढ़ कर बहुत अजीब सा लगा कि अगर देश की राजधानी में बिक रहे फलों के साथ यह सब हो रहा है तो हमारे शहर में कौन सा रत्नागिरी से फार्म-फ्रैश आम बिक रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से फलों को नकली ढंग से पकाने के तरीकों के लिये गूगल-सर्च कर रहा था। फिर calcium carbide लिख कर गूगल किया --- आप भी करिये- ज़्यादातर परिणाम अपने देश के ही पाएंगे की फलां जगह पर इस पर बैन हो गया है, फलां पर इस से पकाये इतने टन फलों को नष्ट कर दिया गया है। वैसे तो मैंने भारत की सरकारी संस्थाओं Indian Council of Medical Research एवं Health and family welfare ministry की वेबसाइट पर इस विषय के बारे में जानकारी ढूंढनी चाही लेकिन कुछ नहीं मिला।
जो जानकारी मुझे नेट पर मिली, उस में जितनी इस समय मुझे याद है, वह मैं आप सब से सांझी करना चाहता हूं। हां, तो जिस कैमीकल—कैल्शीयम कार्बाइड से पकाये आम या अन्य फल हम इतनी बेफिक्री से इस्तेमाल किये जा रहे हैं--- वह एक भयंकर कैमीकल है जिसे वैल्डिंग के वक्त इस्तेमाल किया जाता है। और बहुत सी जगहों पर इस को फलों को पकाने के लिये इस्तेमाल किये जाने पर प्रतिबंध है।
अगर आपने कभी देखा हो तो फलों के विक्रेता इस कैमीकल की पुड़िया फलों के बक्सों में रख देते हैं। यह कैमीकल सस्ते में मिल जाता है –50-60रूपये किलो में आसानी से इसे हासिल किया जा सकता है और एक किलो 50-60 किलो आम पकाने के लिये काफी होता है, ऐसा भी मैंने नेट पर ही पिछले दिनों पढ़ा है।
कैल्शीयम कार्बाइड जब नमी (जो कि कच्चे फलों में तो होती ही है) के संपर्क में आता है तो इथीलीन गैस (Ethylene gas) निकलती है, जो फलों को पकाने का काम करती है। और इस क्रिया के दौरान आरसैनिक एवं फॉसफोरस जैसे कैमीकल भी निकलते हैं जो कि हमारे शरीर के प्रमुख अंगों पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं। यहां तक की गुरदे फेल, कैंसर, पेट के अल्सर, सिरदर्द, दस्त आदि तक के खतरे गिनाये गये हैं।
मुझे यही लगता है कि कोई मीटर तो लगा नहीं हुआ हमारे शरीर में यह दर्शाता रहे कि इस ने इतने आम खाये हैं और इतना आरसैनिक या फॉसफोरस इस के शरीर में प्रवेश कर चुका है ....या कोई ऐसा मीटर जो यह बता सके कि इस ने गलत विधि से तैयार किये गये इतने फल खाए इसलिये इस के गुर्दे बैठ गये हैं......डाक्टर लोग भी क्या सकें....उन को भी निश्चिता से कहां चल पाता है कि कैंसर का, गुर्दे फेल होने का या अन्य तरह तरह के भयंकर रोगों की किसी व्यक्ति में जड़ आखिर है कहां ?
बस इसी अज्ञानता की वजह से इस तरह का गोरख-धंधा करने वाले का काम चलता रहता है। किसी जगह पर शायद मैंने यह भी पढ़ा है कि Prevention of Food Adulteration Act (PFA Act) के अंतर्गत भी कैल्शीयम कार्बाइड के इस्तेमाल पर पाबंदी है लेकिन फिर भी हो क्या रहा है, हम चैनलों पर देखते हैं, प्रिंट मीडिया में पढ़ते रहते हैं। पता नहीं क्यों इस तरह का धंधा करने वालों को आम आदमी की सेहत के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ करने में ज़रा भी तरस नहीं आता !
मैं कहीं यह पढ़ रहा था कि प्राकृतिक ढंग से तैयार हुये आम तो जून के अंत से पहले मार्कीट में आ ही नहीं सकते ..लेकिन इतने बढ़िया कलर के रंगों वाले आम मई में इन कैमीकल्स की कृपा से ही आने लगते हैं। और एक जगह पढ़ा कि जो आम बिल्कुल एक जैसे पके, बढ़िया कलर के चमकते हुये दिखें वे तो शर्तिया तौर पर इस मसाले से ही पकाये होते हैं। अकसर आपने नोटिस किया होगा कि बाहर से कुछ आम इतने खूबसूरत और अंदर से सड़ा निकलता है या तो स्वाद बिलकुल बकबका सा मिलता है।नेट पर सर्च करने पर आप पाएंगे कि इस तरह से पके आमों की निशानियां भी बताई गई हैं।
स्वाद बकबका निकले या एक-दो आम खराब निकलें बात उस की भी नहीं है, असली मुद्दा है कि हम इन फलों के नाम पर किस तरह से हानिकारक तत्व अपने अंदर इक्ट्ठा किये जा रहे हैं..... और पपीता, केले आदि को भी इन्हीं ढंगों से पकाने की बातें पढ़ने को मिलीं। एक जगह यह भी पढ़ा कि कैल्शीयम कार्बाइड का घोल तैयार किया जाता है और किसी जगह पर यह दिखा कि फलों में इस का इंजैक्शन तक लगाया जाता है – लेकिन इस बात की कोई पुष्टि हुई नहीं .... न ही यह बात मुझे ही हजम हुई .... अब पता नहीं वास्तविकता क्या है, वैसे अगर इस तरह की कैमीकल की पुड़िया के जुगाड़ से ही फल-विक्रेताओं का काम चल रहा है तो वे क्यों इन टीकों-वीकों के चक्कर में पड़ते होंगे। लेकिन इन के गोदामों में क्या क्या चल रहा है, ये तो यही जानें या मीडिया वाले ही हम तक पहुंचा सकते हैं।
जो भी हो, इतना तो तय है कि इस कैमीकल के इस्तेमाल से आरसैनिक एवं फॉसफोरस जैसे हानिकारक पदार्ध निकलते हैं....अब कोई यह समझे की हमने फल धो लिये, छिलके को मुंह नहीं लगाया, काट के चम्मच से खाया .....इस से क्या फल के अंदर जो इन कैमीकल्स से प्रभाव हुआ वह खत्म हो जाएगा, आप को भी लगता है ना कि यह नहीं हो सकता, कुछ न कुछ तत्व तो अंदर धंसे रह ही जाते होंगे।
केला का ध्यान आ रहा है, आज से बीस-तीस साल पहले प्राकृतिक तौर पर पके हुये केले का स्वाद, उस की मिठास ही अलग हुआ करती थी ...और आज केला छील लेने पर जब उसे चखा जाता है तो लगता है कोई गलती कर दी, उसे फैंकने की इच्छा होती है लेकिन उस का रेट ध्यान में आते ही जैसे तैसे निगल लिया जाता है।
अभी अभी एक मित्र ने लिखा कि आखिर करें क्या, जो मिल रहा है बाज़ार में वही तो खाएंगे......मुझे लगता है कि अब हालात इतने खराब हो गये हैं कि या तो पब्लिक फल व्यापारियों पर दबाव बनाए, सरकार दबाव बनाए, पीएफए एक्ट (Prevention of Food Adulteration Act ) के अंतर्गत कड़ी कार्यवाही हो ताकि हम तक सही वस्तुएं पहुंचे।
लेकिन दिल्ली दूर ही लगती है अभी तो....इसलिये मैंने तो पिछले चार पांच दिनों से आम खाना बंद कर दिया है, फिलहाल तो मुझे यही करना आसान लगा , वैसे भी पता नहीं पहले से कितने कैमीकल खा चुके हैं.........पता नहीं कितने दिन आमों से दूर रह पाऊंगा लेकिन अभी तो बंद ही हैं, लेकिन आप मेरे लिखे ऊपर मत जाइये, स्वयं calcium carbide लिख कर गूगल करिये, फिर सोच विचार कर कोई निर्णय लीजिए।
कुछ समय तक मेरी भी सोच कुछ ऐसी ही हुआ करती थी ...पिछले आठ-दस वर्षों से ही सुनते आ रहे हैं कि फलों को जल्दी पकाने के लिये कैल्शीयम कार्बाइड (calcium carbide) नामक साल्ट इस्तेमाल किया जाता है। और कईं बार आप सब ने भी नोटिस तो किया ही होगा कि फलों पर राख जैसे पावडर के कुछ अंश दिखते हैं, यही यह कैल्शीयम कार्बाइड होता है।
कुछ साल पहले जब यह मसालों वालों का पता चला तो कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने फलों की धुलाई अच्छे से करनी शुरू कर दी ....तीन-चार साल हो गये हैं मेरे पास इस मौसम में कुछ मरीज़ ऐसे आने लगे जिन के मुंह में अजीब सी सूजन, छाले, घाव .....जिन का कारण ढूंढना मेरे लिये मुश्किल हो रहा था.... बिल्कुल कैमीकल से जलने जैसी स्थिति (chemical burn) ....और लगभग सभी केसों में आम चूसने की बात का पता चलता। मैं अपने मरीज़ों को तो आम के छिलके को मुंह लगाने से मना करता ही रहा हूं ....और मैंने भी दो-तीन साल से चम्मच से ही आम खाना शुरू कर दिया। लेकिन अब चार-पांच दिन से आम खाने की इच्छा नहीं हो रही --- कारण अभी बताऊंगा।
लगभग एक सप्ताह पहले की बात है ... इंगलिश की अखबार में --- The Hindu/ The Times of India में एक खबर दिखी की दिल्ली शासन ने आम को पकाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले कैल्शीयम कार्बाइड पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रिंट मीडिया अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है ---बार बार अहम् बातें दोहरा कर हमें चेता रहा है। वह खबर ही ऐसी थी कि पढ़ कर बहुत अजीब सा लगा कि अगर देश की राजधानी में बिक रहे फलों के साथ यह सब हो रहा है तो हमारे शहर में कौन सा रत्नागिरी से फार्म-फ्रैश आम बिक रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से फलों को नकली ढंग से पकाने के तरीकों के लिये गूगल-सर्च कर रहा था। फिर calcium carbide लिख कर गूगल किया --- आप भी करिये- ज़्यादातर परिणाम अपने देश के ही पाएंगे की फलां जगह पर इस पर बैन हो गया है, फलां पर इस से पकाये इतने टन फलों को नष्ट कर दिया गया है। वैसे तो मैंने भारत की सरकारी संस्थाओं Indian Council of Medical Research एवं Health and family welfare ministry की वेबसाइट पर इस विषय के बारे में जानकारी ढूंढनी चाही लेकिन कुछ नहीं मिला।
जो जानकारी मुझे नेट पर मिली, उस में जितनी इस समय मुझे याद है, वह मैं आप सब से सांझी करना चाहता हूं। हां, तो जिस कैमीकल—कैल्शीयम कार्बाइड से पकाये आम या अन्य फल हम इतनी बेफिक्री से इस्तेमाल किये जा रहे हैं--- वह एक भयंकर कैमीकल है जिसे वैल्डिंग के वक्त इस्तेमाल किया जाता है। और बहुत सी जगहों पर इस को फलों को पकाने के लिये इस्तेमाल किये जाने पर प्रतिबंध है।
अगर आपने कभी देखा हो तो फलों के विक्रेता इस कैमीकल की पुड़िया फलों के बक्सों में रख देते हैं। यह कैमीकल सस्ते में मिल जाता है –50-60रूपये किलो में आसानी से इसे हासिल किया जा सकता है और एक किलो 50-60 किलो आम पकाने के लिये काफी होता है, ऐसा भी मैंने नेट पर ही पिछले दिनों पढ़ा है।
कैल्शीयम कार्बाइड जब नमी (जो कि कच्चे फलों में तो होती ही है) के संपर्क में आता है तो इथीलीन गैस (Ethylene gas) निकलती है, जो फलों को पकाने का काम करती है। और इस क्रिया के दौरान आरसैनिक एवं फॉसफोरस जैसे कैमीकल भी निकलते हैं जो कि हमारे शरीर के प्रमुख अंगों पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं। यहां तक की गुरदे फेल, कैंसर, पेट के अल्सर, सिरदर्द, दस्त आदि तक के खतरे गिनाये गये हैं।
मुझे यही लगता है कि कोई मीटर तो लगा नहीं हुआ हमारे शरीर में यह दर्शाता रहे कि इस ने इतने आम खाये हैं और इतना आरसैनिक या फॉसफोरस इस के शरीर में प्रवेश कर चुका है ....या कोई ऐसा मीटर जो यह बता सके कि इस ने गलत विधि से तैयार किये गये इतने फल खाए इसलिये इस के गुर्दे बैठ गये हैं......डाक्टर लोग भी क्या सकें....उन को भी निश्चिता से कहां चल पाता है कि कैंसर का, गुर्दे फेल होने का या अन्य तरह तरह के भयंकर रोगों की किसी व्यक्ति में जड़ आखिर है कहां ?
बस इसी अज्ञानता की वजह से इस तरह का गोरख-धंधा करने वाले का काम चलता रहता है। किसी जगह पर शायद मैंने यह भी पढ़ा है कि Prevention of Food Adulteration Act (PFA Act) के अंतर्गत भी कैल्शीयम कार्बाइड के इस्तेमाल पर पाबंदी है लेकिन फिर भी हो क्या रहा है, हम चैनलों पर देखते हैं, प्रिंट मीडिया में पढ़ते रहते हैं। पता नहीं क्यों इस तरह का धंधा करने वालों को आम आदमी की सेहत के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ करने में ज़रा भी तरस नहीं आता !
मैं कहीं यह पढ़ रहा था कि प्राकृतिक ढंग से तैयार हुये आम तो जून के अंत से पहले मार्कीट में आ ही नहीं सकते ..लेकिन इतने बढ़िया कलर के रंगों वाले आम मई में इन कैमीकल्स की कृपा से ही आने लगते हैं। और एक जगह पढ़ा कि जो आम बिल्कुल एक जैसे पके, बढ़िया कलर के चमकते हुये दिखें वे तो शर्तिया तौर पर इस मसाले से ही पकाये होते हैं। अकसर आपने नोटिस किया होगा कि बाहर से कुछ आम इतने खूबसूरत और अंदर से सड़ा निकलता है या तो स्वाद बिलकुल बकबका सा मिलता है।नेट पर सर्च करने पर आप पाएंगे कि इस तरह से पके आमों की निशानियां भी बताई गई हैं।
स्वाद बकबका निकले या एक-दो आम खराब निकलें बात उस की भी नहीं है, असली मुद्दा है कि हम इन फलों के नाम पर किस तरह से हानिकारक तत्व अपने अंदर इक्ट्ठा किये जा रहे हैं..... और पपीता, केले आदि को भी इन्हीं ढंगों से पकाने की बातें पढ़ने को मिलीं। एक जगह यह भी पढ़ा कि कैल्शीयम कार्बाइड का घोल तैयार किया जाता है और किसी जगह पर यह दिखा कि फलों में इस का इंजैक्शन तक लगाया जाता है – लेकिन इस बात की कोई पुष्टि हुई नहीं .... न ही यह बात मुझे ही हजम हुई .... अब पता नहीं वास्तविकता क्या है, वैसे अगर इस तरह की कैमीकल की पुड़िया के जुगाड़ से ही फल-विक्रेताओं का काम चल रहा है तो वे क्यों इन टीकों-वीकों के चक्कर में पड़ते होंगे। लेकिन इन के गोदामों में क्या क्या चल रहा है, ये तो यही जानें या मीडिया वाले ही हम तक पहुंचा सकते हैं।
जो भी हो, इतना तो तय है कि इस कैमीकल के इस्तेमाल से आरसैनिक एवं फॉसफोरस जैसे हानिकारक पदार्ध निकलते हैं....अब कोई यह समझे की हमने फल धो लिये, छिलके को मुंह नहीं लगाया, काट के चम्मच से खाया .....इस से क्या फल के अंदर जो इन कैमीकल्स से प्रभाव हुआ वह खत्म हो जाएगा, आप को भी लगता है ना कि यह नहीं हो सकता, कुछ न कुछ तत्व तो अंदर धंसे रह ही जाते होंगे।
केला का ध्यान आ रहा है, आज से बीस-तीस साल पहले प्राकृतिक तौर पर पके हुये केले का स्वाद, उस की मिठास ही अलग हुआ करती थी ...और आज केला छील लेने पर जब उसे चखा जाता है तो लगता है कोई गलती कर दी, उसे फैंकने की इच्छा होती है लेकिन उस का रेट ध्यान में आते ही जैसे तैसे निगल लिया जाता है।
अभी अभी एक मित्र ने लिखा कि आखिर करें क्या, जो मिल रहा है बाज़ार में वही तो खाएंगे......मुझे लगता है कि अब हालात इतने खराब हो गये हैं कि या तो पब्लिक फल व्यापारियों पर दबाव बनाए, सरकार दबाव बनाए, पीएफए एक्ट (Prevention of Food Adulteration Act ) के अंतर्गत कड़ी कार्यवाही हो ताकि हम तक सही वस्तुएं पहुंचे।
लेकिन दिल्ली दूर ही लगती है अभी तो....इसलिये मैंने तो पिछले चार पांच दिनों से आम खाना बंद कर दिया है, फिलहाल तो मुझे यही करना आसान लगा , वैसे भी पता नहीं पहले से कितने कैमीकल खा चुके हैं.........पता नहीं कितने दिन आमों से दूर रह पाऊंगा लेकिन अभी तो बंद ही हैं, लेकिन आप मेरे लिखे ऊपर मत जाइये, स्वयं calcium carbide लिख कर गूगल करिये, फिर सोच विचार कर कोई निर्णय लीजिए।