पाला मानता है कि दारू का हैंग-अोवर तो उसे होता है जिसने अध्धा चढ़ाया हो...उसे ही सुबह उठ कर कुछ जुगाड़ करना होता है उस से बाहर निकलने के लिए ...और वह आसानी से उस से बाहर आ भी जाता है...
लेकिन पाला सोच रहा था कि यह अफसरी का कैसा हैंग-ओवर है जो रियाटर होने के बाद अफसर को कम और उस की बीवी बच्चों को बहुत परेशान करता है।
पाले को याद आ रहा था कि किस तरह से साहब के दफ्तर जाने के बाद मेम साहिब के सामने साहब के नीचे काम करने वाले लगभग १५ कर्मचारी हाथ बांधे खड़े हो जाते थे...और वह किस तरह से उन को काम बांटा करती ...अनुशासन इतना कि सिर्फ़ सूर्यमुखी के फूल पर ही अफसरी नहीं चलती थी, वरना हर पौधे की दशा-दिशा भी मेमसाहब की मर्जी से ही तय हुआ करती थी...भले ही उस के लिए पौधों के छोटे छोटे तने के साथ लकड़ी ही क्यों न बांधनी पड़े...
अच्छा, पाला सब समझता था कि वैसे तो उस की संस्था में इतनी यूनियनबाजी है...छींक मारते ही ज़िदाबाद मु्र्दाबाद करता हुआ मोर्चा आ जाता है..लेिकन ये अच्छे खासे स्वलंबी दिखने वाले लोग कैसे इस तरह से सारे खानदान के अंडरगारमेंट्स भी रिन घिस घिस कर धोने के लिए तैयार हो जाते होंगे...धीरे धीरे उसे माजरा समझ में आने लगा कि दफ्तर में काम करेंगे तो काम आठ घंटे करना पड़ेगा...डांट डपट भी कभी कभी खानी ही पड़ेगी.. लेकिन इस काम में तो मजे हैं..एक डेढ़ घंटे का काम...और फिर छुट्टी और साहब लोगों के पास रहने की वजह से साल में एक आध बार कहीं से ईनाम भी मिल जाने का जुगाड़...
पाला अकसर बड़े बड़े रिटायर अफसरों के यहां किसी न किसी काम से जाता रहता है ...पाले ने क्या जाना है, वे ही उसे बुला लेते हैं..
पाला उस दिन अपनी पारो को बता रहा था कि भाग्यवान, जितनी परेशानी मैंने इन अफसरों की रिटायरमैंटी के बाद देखी है उतनी तो मैंने किसी रिटायरमैंट वाले की नहीं देखी...
पाला पारो को कहने लगा िक उस का बापू उसे हंस हंस के बताया करता था कि पाले, जितनी ज़िंदगी अपने एरिया के थानेदारों (दारोगाओं) की रिटायरमैंटी के बाद खराब हो गई...तरस आता है ..पहले तो ये लोग बंदे को बंदा नहीं समझते थे, मां-बहन की गाली निकाले बिना, झापड़ लगाने के बाद तो कहीं जा कर बात शुरू हो पाती थी..जहां मन किया जूस पी लिया, जहां मन किया नाश्ता कर लिया...सारे एरिये का जैसे बाप हो...ऊपरी कमाई का भी कोई हिसाब किताब नहीं...लेकिन रिटायर होने के बाद काई सलाम ठोंकना तो दूर, देखता तक नहीं ...सभी ठाट-बाठ रातों रात ही गायब ...और फिर उन के घर में हर समय कलह-कलेश-मार-कुटापा, सियापा....बस यही कुछ....पारो, ज़्यादा चल नहीं पाते ये रिटायरमैंटी के बाद...
पारो.....लेकिन पाले तुम तो बड़े बड़े अफसरों की बातें कर रहे थे! वह बात तो तन्ने बीच में ही छोड़ दी!
पाला...क्या क्या बताएं पारो, इन बड़े लोगों के बारे में...बस, एक बात तू पल्ले बांध के रख ले कि जितना पैसा है, जितना जितना बड़ा रूतबा है, उतने ही अकसर ये लोग दिल के गरीब से दिखे मुझे...
पारो...पाले, तू कह रहा था कि अपनी लाडो को तो उस बड़े अफसर के घर में घरेलू काम के लिए भेजा करेगा! उस का क्या हुआ!
पाला...आगे से नाम ना लेना लाड़ो के इन अफसरों के घर जा कर काम करने का ...अपनी लाडो तो खूब पढ़ेगी, लिखेगी..उसे हम लोग बहुत बड़ी मास्टरनी बनाएंगे...
पारो...लेकिन पाले तुम ही तो कह रहे थे ..अब क्या हुआ!
पाला...भाग्यवान, तुम सुननी ही चाहती हो तो सुनो...दरअसल, पारो, ये जो बड़े बड़े अफसर हैं ना ये तो अपने कामों में खूब व्यस्त रहते हैं...इन्हें अफसरी भोगने का कुछ िवशेष मौका मिलता नहीं ...लेिकन इन में से कुछ की बेगमें असल में अफसरी के सारे ठाठ भोगती हैं....हर घर में दस-पंद्रह लोग आगे पीछे मेमसाब, मेमसाब करते ...पानी तक पीने की ज़हमत उठाने की ज़रूरत नहीं...लेिकन रिटायरमैंटी के बाद कौन किस की सुनता है तू तो जानती है ..बड़े साहब के यहां पिछले छः महीने में चार नौकरानियां काम छोड़ चुकी हैं... इतना दबदबा, इतना रुआब है मेम साब का लेिकन कौन सहता है, काम करने वाले आज कल वैसे ही नहीं मिलते हैं...
किसी का काम मेम साब को पसंद नहीं आता...उन्हें लगता है जिसे सर्विस के दौरान आगे पीछे १५ लोग घूमा करते थे, उसी तरह से ये एक दो नौकर भी घूमें...किचन में घुस कर राजी नहीं है, चाय तक बनाती नहीं, अगर एक दो दिन कुक छुट्टी पर चला जाए तो सारा दिन ब्रेड और मैगी ही खाते रहते हैं...और ...
पारो...हां हां और क्या, बता जल्दी से...लाडो आने वाली है स्कूल से, उस के लिए कुछ बनाना है मैंने।
पाला..तुम अपना काम करना ..इन बड़े लोगों की रामायण की कथा तो कभी खत्म होने वाली नहीं...हां, पारो, बिंदा भी उस साहब के पास रह चुका है ना ...रिटायरमैंट के बाद...वह बता रहा था कि आदतें इतनी खराब हो जाती हैं कुछ मेमसाहबों की कि कईं बार बाज़ार से छोटा मोटा सामान मंगवाती है तो पैसे भी नहीं देती...ऐसे नाटक करती है जैसे भूल गई हो ..लेकिन बिंदा भी याद दिला कर ही दम लेता है.....बिंदा भी तंग आ गया था वहां से...कह रहा था हर समय कहती है कि साहब जब सर्विस में थे तो पंद्रह बीस लोग थर-थर कांपते बंगले में तैनात रहते थे ..और अब धोबी को प्रेस में दिये गये कपड़ों की गिनती, अखबार वाले का हिसाब, और किरयान वाले की दुकान पर फोन भी उसे ही करना पड़ता है ...
पारो...हाय, ओ रब्बा, यह भी कोई काम हैं।
पाला...हैं पारो, तुम बहुत सिध्धड़ हो, इन लोगों को सारा दिन फोन से ही फुर्सत नहीं मिलती ... सारा दिन, वही बातें फोन पर भी मेरा वह रिश्तेदार इतना बड़ा अफसर, मेरा बाप फलाना, मेरा फूफा ढिमका, भाई सेर, भाभी सवा-सेर...मेरी बहन यह, मेरा बहनोई वहां, देवर उस मंत्री का संतरी, ननद उस जगह की मािलक....बिंदे के तो सुन सुन कर कन पक जाते थे...हां, एक और भयंकर बीमारी है इन मेमसाबों को!
पारो... इस के अलावा भी !
पाला...हां, जो अफसर इन की जगह पर आता है ...या उससे से भी बड़ा आफीसर जो भी तैनात होता है, यह हर एक को उस की बहुत धौंस देती हैं... कि मैं तो उसे कह कर यह करवा दूंगंगी ...वो करवा दूंगी...वह तो इन के पति के सामने का भर्ती है और इतना जूनियर था कि उस के पति के आगे पीछे ही घूमता रहता था...
पारो...अब तुम छोड़ो, इन बड़े लोगों की बातें...मेरा तो सिर घूम गया है ...कहां है टीवी का रिमोट?
पारो टीवी का रिमोट दबाती है तो पहली हैडलाइन ही यही दिखती है कि अच्छी सरकार के दो सालों में कोई भी भ्रष्टाचार का केस सामने नहीं आया....पारो को कहां ये सब समझ में आता है ..उसने रिमोट दबाया और पहुंच गई उस नाटक पर ...यह रिश्ता क्या कहलाता है!
पाला भी लेट गया और सोचता रहा कि क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है कि १२-१५ सरकारी मुलाजिम तनख्वाह तो लें सरकार से, चाकरी करें मेम साहब की ...हाज़िरी लगाने कभी गये नहीं ..कुछ की नौकरी तो शहर से बाहर है...हाज़री इन लोगों की अपने आप लग जाती है .....
पता नहीं यह सोचता सोचता पाला कब ऊंघने लगा...
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जनाब कहानी खत्म हो चुकी है, आप भी उठ जाइए...मुझे पता है बड़ी बोरिंग थी...लेकिन पाला है ही ऐसा क्या करें! .. पता नहीं कहां कहां से निकाल के लाता है ऐसी पकी हुई कहानियां जो सुनने में ही बिल्कुल झूठी लगती हैं...😊
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