अब पता नहीं यह प्री-मौनसून है या क्या है, लेकिन सच यह है कि लखनऊ के मौसम ने आज शाम करवट ली है ....मौसम खुशगवार सा लग रहा है ..
अभी मैं चारबाग से आलमबाग की तरफ़ आ रहा था तो देखा कि मैट्रो का काम भी जोरों-शोरों से चल रहा है ...
मैट्रो रेलवे के अनुशासन को देख कर बहुत ही अच्छा लगता है ..सब कुछ कायदे से हो रहा है...उस महान् पुरूष श्रीधर जी को शत्-शत् नमन...कुछ पुरूष अपने आप में एक संस्था होते हैं...१९९० के दशक से उन के बारे में पढ़ते रहते हैं जब से कोंकण रेलवे को बिछाया जा रहा था...फिर दिल्ली ...और फिर बीच में कितने ही शहर...अब लखनऊ में ...
आप देखिए इन तस्वीरों में कि सड़क जैसी पहले थी उस से बेहतर ही हुई होगी...क्यों कि मैट्रो के तो केवल खंभे ही हैं ज़मीन पर ..बाकी तो सब वैसा का वैसा ही है...जगह जगह से जो लोगों को कट मारने की लत है, वह भी गई समझो...मैट्रो रेलवे के द्वारा बढ़िया सी रेलिंग लगाई जा रही है..
अभी मैंने श्रीधर जी को याद किया तो मुझे आज सुबह की बात याद आ गई..मैं ड्यूटी पर जा रहा था तो मैंने देखा कि मेरे सामने वाली कार की नंबर प्लेट पर नंबर के ऊपर बड़े बड़े से अक्षरों में लिखा हुआ था महात्मा....मुझे ज़्यादा हैरानगी वैसे हुई नहीं ..क्योंकि यहां लखनऊ में हर दूसरे वाहन के ऊपर उ.प्र.शासन..पुलिस, अधिवक्ता, हाई कोर्ट, सचिवालय, अध्यक्ष, सचिव, जिला प्रधान.....पढ़ते पढ़ते मैं ऊब चुका हूं...इसलिए आज यह अजीब सा नया लेबल देख कर बस कुछ अलग सा लगा... इत्तिफाकन मुझे भी खास की बजाए आम बंदे से ही मिल कर ज़्यादा खुशी होती है जिस को लटकाने के लिए कभी कोई बिल्ला मिला ही नहीं...वे मेरे से और मैं उनसे दिल खोल के बतिया लेता हूं....क्या करें, मुझे हमेशा से अच्छा लगता है...
सोचने वाली बात है कि क्या महात्मा लोग लेबल चिपका कर घूमते हैं ..तख्ती लटकाते हैं कि मैं महात्मा हूं....नहीं ना, मैं भी यही समझता हूं...इसलिए उस में बैठा आदमी कुछ भी होगा, लेकिन महात्मा नहीं हो सकता...महात्मा लोग तो वैसे ही इतने सभ्य, निर्मल, विनम्र होते हैं कि क्या कहें!..
मैं भी लैपटाप खोल कर लिखने तो लग गया.....पता कुछ नहीं कि लिखना क्या है ...बस, ऐसे ही मौसम का हाल चाल अच्छा देखा, उमस से राहत महसूस हुई तो उंगलियां चल पड़ीं...
वैसे भी मैं सोच रहा हूं कि अपनी पोस्टों की लंबाई थोड़ी कम ही कर दूं...इतना लंबा लंबा कौन पढ़ सकता है ....करता हूं कुछ इस के बारे में आज से ही ..अपनी बात कम शब्दों में भी रखने का सलीका सीखना होगा...
अच्छा अभी एक काम करते हैं ...बारिश के लिए मिल कर प्रार्थना करते हैं....आप भी शामिल हो जाइए इस में ....
अभी मैं चारबाग से आलमबाग की तरफ़ आ रहा था तो देखा कि मैट्रो का काम भी जोरों-शोरों से चल रहा है ...
मैट्रो रेलवे के अनुशासन को देख कर बहुत ही अच्छा लगता है ..सब कुछ कायदे से हो रहा है...उस महान् पुरूष श्रीधर जी को शत्-शत् नमन...कुछ पुरूष अपने आप में एक संस्था होते हैं...१९९० के दशक से उन के बारे में पढ़ते रहते हैं जब से कोंकण रेलवे को बिछाया जा रहा था...फिर दिल्ली ...और फिर बीच में कितने ही शहर...अब लखनऊ में ...
आप देखिए इन तस्वीरों में कि सड़क जैसी पहले थी उस से बेहतर ही हुई होगी...क्यों कि मैट्रो के तो केवल खंभे ही हैं ज़मीन पर ..बाकी तो सब वैसा का वैसा ही है...जगह जगह से जो लोगों को कट मारने की लत है, वह भी गई समझो...मैट्रो रेलवे के द्वारा बढ़िया सी रेलिंग लगाई जा रही है..
अभी मैंने श्रीधर जी को याद किया तो मुझे आज सुबह की बात याद आ गई..मैं ड्यूटी पर जा रहा था तो मैंने देखा कि मेरे सामने वाली कार की नंबर प्लेट पर नंबर के ऊपर बड़े बड़े से अक्षरों में लिखा हुआ था महात्मा....मुझे ज़्यादा हैरानगी वैसे हुई नहीं ..क्योंकि यहां लखनऊ में हर दूसरे वाहन के ऊपर उ.प्र.शासन..पुलिस, अधिवक्ता, हाई कोर्ट, सचिवालय, अध्यक्ष, सचिव, जिला प्रधान.....पढ़ते पढ़ते मैं ऊब चुका हूं...इसलिए आज यह अजीब सा नया लेबल देख कर बस कुछ अलग सा लगा... इत्तिफाकन मुझे भी खास की बजाए आम बंदे से ही मिल कर ज़्यादा खुशी होती है जिस को लटकाने के लिए कभी कोई बिल्ला मिला ही नहीं...वे मेरे से और मैं उनसे दिल खोल के बतिया लेता हूं....क्या करें, मुझे हमेशा से अच्छा लगता है...
सोचने वाली बात है कि क्या महात्मा लोग लेबल चिपका कर घूमते हैं ..तख्ती लटकाते हैं कि मैं महात्मा हूं....नहीं ना, मैं भी यही समझता हूं...इसलिए उस में बैठा आदमी कुछ भी होगा, लेकिन महात्मा नहीं हो सकता...महात्मा लोग तो वैसे ही इतने सभ्य, निर्मल, विनम्र होते हैं कि क्या कहें!..
मैं भी लैपटाप खोल कर लिखने तो लग गया.....पता कुछ नहीं कि लिखना क्या है ...बस, ऐसे ही मौसम का हाल चाल अच्छा देखा, उमस से राहत महसूस हुई तो उंगलियां चल पड़ीं...
वैसे भी मैं सोच रहा हूं कि अपनी पोस्टों की लंबाई थोड़ी कम ही कर दूं...इतना लंबा लंबा कौन पढ़ सकता है ....करता हूं कुछ इस के बारे में आज से ही ..अपनी बात कम शब्दों में भी रखने का सलीका सीखना होगा...
अच्छा अभी एक काम करते हैं ...बारिश के लिए मिल कर प्रार्थना करते हैं....आप भी शामिल हो जाइए इस में ....
बहुत बढ़िया लिखा। आम आदमी ही हमारे लिए भी ख़ास है।
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल।
हटाएंजी बिलकुल।
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