शनिवार, 19 सितंबर 2009

ताकत की दवाईयों की लिस्ट

इस तरह की दवाईयों की लिस्ट यहां देने से पहले यह कहना उचित होगा कि ऐसी कोई भी so-called ताकत की दवा है ही नहीं जो कि एक संतुलित आहार से हम प्राप्त न कर सकते हों, वो बात अलग है कि आज संतुलित आहार लेना भी विभिन्न कारणों की वजह से बहुत से लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है।

जो लोग संतुलित आहार ले सकते हैं, वे महंगे कचरे ( जंक-फूड – पिज़ा, बर्गर,  ट्रांसफैट्स से लैस सभी तरह का डीप-फ्राईड़ खाना आदि) के दीवाने हो रहे हैं, फूल कर कुप्पा हुये जा रहे हैं  और फिर तरह तरह की मल्टी-विटामिन की गोलियों में शक्ति ढूंढ रहे हैं। दूसरी तरफ़  जो लोग सीधे, सादे हिंदोस्तानी संतुलित एवं पौष्टिक आहार को खरीद नहीं पाते हैं , वे डाक्टरों से सूखे हुये बच्चे के लिये टॉनिक की कोई शीशी लिखने का गुज़ारिश करते देखे जाते हैं।

मैं जब कभी किसी कमज़ोर बच्चे को, महिला को देखता हूं और उसे अपना खान-पान लाइन पर लाने की मशवरा देता हूं तो मुझे बहुत अकसर इस तरह के जवाब मिलते हैं ----

क्या करें किसी चीज़ की कमी नहीं है, लेकिन इसे दाल-सब्जी से नफ़रत है, आप कुछ टॉनिक लिख दें, तो ठीक रहेगा।

( कुछ भी ठीक नहीं रहेगा, जो काम रोटी-सब्जी-दाल ने करना है वे दुनिया के सभी महंगे से महंगे टॉनिक मिल कर नहीं कर सकते)

--इसे अनार का जूस भी पिलाना शूरू किय है, लेकिन खून ही नहीं बनता ..

(कैसे बनेगा खून जब तक दाल-सब्जी-रोटी ही नहीं खाई जायेगी, यह कमबख्त अनार का जूस भर-पेट खाना खाने के बिना कुछ भी तो नहीं कर पायेगा)

विटामिन-बी कंपैल्कस विटामिन

--- जितना इस ने लोगों को चक्कर में डाला हुआ है शायद ही किसी ताकत की दवाई ने डाला हो। किसी दूसरी पो्स्ट में देखेंगे कि आखिर इस का ज़रूरत किन किन हालात में पड़ती है। इस में मौजूद शायद ही कोई ऐसा विटामिन हो जो कि संतुलित आहार से प्राप्त नहीं किया जा सकता। अपने आप ही कैमिस्ट से बढ़िया सी पैकिंग में उपलब्ध ये विटामिन आदि लेना बिल्कुल बेकार की बात है।

किसी दूसरे लेख में यह देखेंगे कि आखिर इस विटामिन की गोलियां किसे चाहिये होती हैं ?

डाक्टर, बस पांच लाल टीके लगवा दो !!

एक तो डाक्टर लोग इन लाल रंग के टीकों से बहुत परेशान हैं। क्या हैं ये टीके----इन टीकों में विटामिन बी-1, बी –6 एवं बी –12 होता है और कुछ परिस्थितियां हैं जिन में डाक्टर इन्हें लेने की सलाह देते हैं। लेकिन पता नहीं कहां से यह टीके ताकत के भंडार माने जाने लगे हैं, यह बिल्कुल गलता धारणा है।

अकसर मरीज़ यह कहते पाये जाते हैं कि मैं तो हर साल बस ये पांच टीके लगवा के छुट्टी करता हूं। बस फिर मैं फिट ------- आखिर क्यों मरीज़ों को ऐसा लगता है, यह भी चर्चा का विषय है।

मैं खूब घूम चुका हूं और अकसर बहुत कुछ आब्ज़र्व करता रहता हूं ----इस तरह की ताकत की दवाईयों की लोकप्रियता के पीछे मरीज़ कसूरवर इस लिये हैं कि जब उन्होंने कसम ही खा रखी है कि डाक्टर की नहीं सुननी तो नहीं सुननी। अगर डाक्टर मना भी करेगा तो क्या, वे कैमिस्ट से खरीद कर खुद लगवा लेंगे। और दूसरी बात यह भी है कि शायद कुछ चिकित्सकों में भी इतनी पेशेंस नहीं है, टाइम नहीं है कि वे सभी ताकत के सभी खरीददारों से खुल कर इतनी सारी बातें कर पाये। इमानदारी से लिखूं तो यह कर पाना लगभग असंभव सा काम है -----वैसे भी लोग आजकल नसीहत की घुट्टी पीने में कम रूचि रखते हैं, उन्हें भी बस कोई ऐसा चाहिये जो बस तली पर तिल उगा दे-----वो भी तुरंत, फटाफट !!

जिम में मिलने वाले पावडर

---- कुछ युवक जिम में जाते हैं और वहां से उन्हें कुछ पावडर मिलते हैं ( जिन में कईं बार स्टीरायड् मिले रहते हैं) जिन्हें खा कर वे मेरे को और आप को डराने के लिये बॉडी-वॉडी तो बना लेते हैं लेकिन इस के क्या भयानक परिणाम हो सकते हैं और होते हैं ,इन्हें वे सुनना ही नहीं चाहते। अगर इन के बारे में जानना हो तो कृपया आप Harmful effects of anabolic steroids लिख कर गूगल-सर्च करिये।

अगर कोई किसी तरह के सप्लीमैंट्स लेने की सलाह देता भी है तो पहले किसी क्वालीफाईड एवं अनुभवी डाक्टर से ज़रूर सलाह कर लेनी चाहिये।

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मूंगफली खाने पर प्रतिबंध

पिस्ते की गिरि

पौरूषता बढ़ाने वाले सप्लीमैंट्स 

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

ताकत की दवाईयां --कितनी ताकतवर ?

अगर ताकत की दवाईयों में ज़रा सी भी ताकत होती तो चिकित्सक सब से ज़्यादा ताकतवर होते -- लेकिन ऐसा नहीं लगता। जब दिन में कितने ही मरीज़ किसी डाक्टर से यह पूछें कि डाक्टर साहब, ताकत के लिये भी कुछ लिख दीजिये, तो खीज की बजाए दया आती है इस तरह के प्रश्न करने वाले पर।
क्योंकि सच्चाई तो यही है कि इन ताकत की दवाईयों में ताकत होती ही नहीं हैं ---- पहले तो हम लोग यह ही नहीं जानते कि आम आदमी की ताकत की परिभाषा क्या है और यह ताकत वाली दवाई आखिर किस बला का नाम है।

जहां तक मुझे याद है इस ताकत की दवाई का इश्तिहार हम लोग पांचवी-छठी कक्षा में दीवारों पर लिखा देखा करता थे --- क्या ? ताकत के लिये मिलें ---फलां फलां हकीम से।

यह कौन सी ताकत की बात होती होगी यह आप जानते ही हैं --वैसे भी हिंदी के कुछ अखबारों में आजकल इस तरह के विज्ञापन बिछे रहते हैं।

लेकिन यहां पर हम ताकत के इस मसले की बात नहीं कर रहे हैं क्योंकि ये सब बातें पहले काफी हो चुकी हैं। तो फिर आज एक दो कुछ और बातें करते हैं।

इतनी सारी महिलायें कमज़ोरी की शिकायत करती हैं और दूसरी दवाई के साथ कुछ ताकत के लिये भी लिखने के लिये कहती हैं। लेकिन लिखने वाला ज़्यादातर केसों में जानता है कि ये सब ताकत के कैप्सूल, गोलियां दिखावा ही है ---इन से कुछ नही ं होने वाला। हां, अगर महिला में खून की कमी (अनीमिया ) है और उस की तरफ़ ध्यान दिया जाये, उस के शरीर में कैल्शीयम की कमी को पूरा करने की बात हो तो ठीक है, वरना ये तथाकथित ताकत के कैप्सलू, टीके, टैबलेट क्या कर लेंगी ---- केवल मन को दिलासा देने के लिये बस ये सब ठीक हैं।

कुछ मातायें बच्चों के लिये टॉनिक की फरमाईश करती हैं ---- और आप को देखने पर लगता है कि बच्चा तो ठीक ढंग से खाना भी न खाता होगा। ऐसे में क्या करेंगे टॉनिक ?

लेकिन समस्या कुछ हद तक अब यह है कि ये ताकत की दवाईयां अब लोगों के दिलो-दिमाग पर इस कद्र छा चुकी हैं कि इन के बारे में ज़्यादा सच्चाई भी इन्हें नहीं पचती। अगर उन्हें इतनी लंबी चौड़ी नसीहत पिलाने की कोशिश भी की जाती है तो डाक्टर के चैंबर के बाहर जाकर वे उस नसीहत को थूक देते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो लोगों में इन ताकत की शीशियों, इंजैक्शनों एवं कैप्सूलों के बारे में ऐसी राय न देखने को मिलती जैसी कि आज दिख रही है।

अगली पोस्ट में देखेंगे कि आखर ताकत की दवाईयों से भला ताकत ही क्यों गायब है और इस के साथ साथ यह भी जानना होगा कि आखिर ये ताकत की दवाईयां किस बला का नाम है !!

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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

इंटरनेट पर दवाई खरीदने का पंगा

इंटरनेट पर किस किस तरह की दवाईयां खरीदी जा रही हैं और इन के कितने बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं, इसे देखने के लिये बीबीसी न्यूज़ की इस स्टोरी पर क्लिक करें।
ऐसा कहा गया है कि ब्रिटेन में लगभग दो करोड़ लोग इंटरनेट पर दवाईयां खरीदते हैं और फिर इन के दुष्परिणामों से बचने के लिये डाक्टरों के चक्कर काटते रहते हैं।
बिना अपने डाक्टर से बात किये किसी भी दवाई को स्वयं ही ले लेना अच्छा खासा डेयरिंग का काम हैं। मैं अकसर सोचा करता था कि शायद हम लोग ही इतनी डेयरिंगबाज हैं लेकिन यहां तो ….।
एक बात यह भी है कि जो दवाईयां इंटरनेट से खरीदी जाती हैं वे जैन्यून होते हुये भी नुकसान कर सकती हैं कि क्योंकि आम व्यक्ति को न तो उस की खुराक का, न ही अन्य ड्रग-इंटरएक्शनज़ का पता रहता है इसलिये इस काम में बहुत लफड़ा है।
इन दवाईयों में सब तरह की दवाईयां शामिल हैं जैसे कि सैक्स से संबंधित तकलीफ़ों के लिये , वज़न कम करने हेतु और कुछ युवक तो इंटरनेट पर स्टीरॉयड्स जैसी दवाईयां खरीद कर खा रहे हैं और तरह तरह की बीमारियों को बुलावा दे रहे हैं।
जैसे जैसे आज की पीड़ीं नेट पर आश्रित सी हो रही है इस से लगता है कि आने वाले समय में यह ट्रैंड बड़ जायेगा---समय रहते ही समझ जाने में समझदारी है।

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खुली बिकने वाली दवाईयां
आप भी कहीं नईं दवाईयों से जल्द ही इंप्रैस तो नहीं होते

बुधवार, 9 सितंबर 2009

तीस तरह के स्वाईन-फ्लू के वैक्सीन

चीन में सब से पहले स्वाईन-फ्लू का वैक्सीन तैयार हो चुका है और इसी हफ्ते से वहां पर लोगों को यह लगाना शूरू कर दिया जायेगा। वहां पर स्वाईन-फ्लू की स्थिति काफ़ी चिंताजनक है।
चीन में 1 अक्टूबर को उन का नैशनल डे ( National Day) है जिस में लाखों लोग शिरकत करते हैं और उस समारोह में बड़ी बड़ी हस्तियां भी मौजूद रहेंगी –इसलिये किसी तरह का रिस्क नहीं लिया जा सकता।
कल हम लोग वैक्सीन के इस्तेमाल के लिये विभिन्न देशों की अपनी अपनी प्राथमिकताओं की बात कर रहे थे --- चीन ने भी यह निर्णय़ लिया है कि इसी हफ्ते से उन दो लाख के करीब लोगों की वैक्सीन लगा दिया जाये जिन्हें चीनी नेशनल डे समारोह के कार्यक्रम में भाग लेना है।
ये वैक्सीन बनते कैसे हैं ?
मुख्यतः इस तरह का वैक्सीन तैयार करने के लिये वायरस को मुर्गी के अंडे में डाला जाता है और कुछ दिनों पश्चात उस के अंदर से तरल पदार्थ निकाल कर उसे शूद्ध कर लिया जाता है।
The main method is by injecting seed virus into embryonic chicken eggs and harvesting the fluid after several days and purifying it.
वैसे तो वैक्सीन बनाने की दो विधियां हैं--- 90प्रतिशत से भी ज़्यादा इंफ्लूऐंजा वैक्सीन इनऐक्टिवेटिड वैक्सीन ( “inactivated vaccines”) होते हैं –इस का मतलब यह है कि इस तरह का वैक्सीन मृत वायरस से तैयार होता है।
दूसरे तरह के वैक्सीन होते हैं लाइव-एटैनूएटेड ( “live attenuated vaccines) जिन्हें ऐसी एनफ्लुएंजा वॉयरस से बनाया जाता है जो कमज़ोर पड़ी होती है लेकिन मृत नहीं होती।
स्वाईन-फ्लू के तीस तरह के वैक्सीन
लगभग तीस तरह के वैक्सीन तैयार हो रहे हैं। जैसा कि पहले ही कहा गया है कि अधिकतर तो इनऐक्टिवेटिड वैक्सीन ही होंगे। यह जो तरह तरह के वैक्सीन तैयार हो रहे हैं इन को शुद्ध करने की प्रक्रिया अलग अलग है और कुछ में एक एडिटिव ( जिसे एडजुवेंट भी कहा जाता है) भी डाला जाता है ।
इस एडजुवेंट के रहने से वैक्सीन के द्वारा शरीर में ऐंटीबाडीज़ तैयार करने की शक्ति बढ़ जाती है और इसे किल्ड-वैक्सीन ( killed vaccines) में डाला जाता है।
वैक्सीन का दाम
इस वैक्सीन को बनाने वाली कंपनियां विभिन्न देशों के लिये अलग अलग दाम तय करेंगी। अमीर मुल्कों को इस की एक खुराक के लिये 10 से 20 यूएस डालर खर्च करने होंगे जब कि मध्यम वर्गीय देशों को इस का आधा दाम ही भरना होगा। और गरीब मुल्कों को तो उस से भी आधी कीमत में ये वैक्सीन उपलब्ध हो जायेंगे।

इस में तो कोई शक ही नहीं कि किसी देश के भी सभी लोगों को यह वैक्सीन लग नहीं पायेगा। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जनता इस वैक्सीन से हिप्नोटाईज़ ही हो जाये।
वैक्सीन के अलावा भी बहुत सी ऐसी सावधानियां भी तो हैं जिन के द्वारा इस बीमारी से बचा जा सकता है ---जैसे कि लोगों द्वारा आपस में मिलते समय उपर्युक्त दूरी बनाये ( किस को मिस करने का मशवरा !) रखना, किसी एरिया में जब यह ज़्यादा फैल रहा हो तो वहां के स्कूल बंद कर देना, ज़्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से गुरेज करना, ऐंटीबॉयोटिक दवाईयां और अपनी साफ़-सफ़ाई का पूरा पूरा ध्यान रखना।
किसी भी देश की सारी जनता को यह वैक्सीन दो बार लगाया जा सके, यह अभी तो बिल्कुल असंभव सी बात है।
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मंगलवार, 8 सितंबर 2009

स्वाईन-फ्लू से बचाव का टीका


स्वाईन-फ्लू से बचाव का टीका इसी महीने में आ जाने की संभावना है। वल्र्ड हैल्थ आर्गेनाइज़ेशन के अनुसार अब तक तो इस महामारी का प्रकोप मद्दम सा ही रहा है लेकिन आगे जैसे सर्दी का मौसम दस्तक दे रहा है इस महामारी के वॉयरस के अपना रूप बदलने के आसार है ( mutation of the virus) जिस से यह बीमारी उग्र रूप धारण कर सकती है। लेकिन इस में घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि ये सब अनुमान ही है।
क्या यह टीका बाज़ार से खरीदा जा सकेगा ?
शुक्र है कि यह टीका किसी व्यक्ति द्वारा बाज़ार से खरीदा नहीं जा सकेगा, वरना जिस की पहुंच होती वह तो इसे लगवा लेता और जिन लोगों को यह टीका लगना बहुत ही ज़रूरी होता वे इस से वंचित ही रह जाते।
इस टीके के बारे में विभिन्न देशों की सरकारें यह तय करेंगी कि यह उस देश में किन किन लोगों को सब से पहले लगना है।
सभी देशों की सब से पहले प्राथमिकता तो होगी वहां के स्वास्थ्य वर्कर ताकि जिन लोगों ने इस बीमारी से ग्रस्त लोगों की देखभाल करनी है वे स्वयं तो तंदरूस्त रहें।
वैसे कुछ देश यह निर्णय ले सकते हैं कि यह टीका उपलब्ध होते ही छोटे छोटे स्कूल के बच्चों को एवं उन बच्चों को जो अभी प्री-स्कूल में हैं यह टीका लगा दिया जाये क्योंकि ये बच्चे आपस में ज़्यादा सटे रहते हैं।
कुछ देश वहां की गर्भवती महिलायों को सब से पहले सुरक्षा प्रदान करने का निर्णय ले सकते हैं।
जो भी हो, यह सब कुछ टीकों की उपलब्धता पर निर्भर करता है ---समृद्ध देशों ने तो अपने सारे लोगों को टीका लगाने की स्कीम तैयार की हुई है जब कि मध्यम वर्गीय देशों ने 1% से 15-20% लोगों के लिये ही टीके की स्कीम बनाई है।
ऐसा भी नहीं है कि जिन अमीर मुल्कों ने अपनी सारी जनसंख्या को इस से बचा लेने का मनसूबा बनाया हुया है, उन्हें शुरू में ही ऐसा करने का अवसर नहीं मिल पायेगा।
इन टीकों की भी पूरी वैरायिटि है
शायद आप को यह जानकर हैरानगी हो कि तीस तरह के टीके स्वाईन-फ्लू से बचाव के तैयार हो रहे हैं। अब यह सब कैसे हो रहा है, कैसे होते हैं ये तैयार और इन का दाम सरकार को कितना पड़ेगा, इस के बारे मे अगली पोस्ट में बात करेंगे। और यह भी चर्चा करेंगे कि अगर विकासशील देशों को इस की उपर्युक्त खराकें न मिल पाईं तो क्या होगा ?
इसे भी ज़रूर देखें ...
महामारी अब, वैक्सीन सितंबर में

सोमवार, 7 सितंबर 2009

दूषित सिरिंज से हमला करने वालों की पागलपंथी

निःसंदेह यह एक पागलपंथी नहीं तो और क्या है कि दूषित सिरिंज से आम जनता पर हमला किया जाये। आज की दा हिंदु में यह खबर देख कर बहुत ही दुख हुआ कि किस तरह से एच-आई.व्ही संक्रमित सिरिंजों से लोगों पर हमला कर के चीन में 500 से भी ज़्यादा लोगों को आतंकित किया गया है। जी हां, यह एक आतंक ही है, और इस की सख्त से सख्त सज़ा होनी चाहिये। पता नहीं कैसी कैसी पागलपंथी, जूनून लोग पाल लेते हैं।
खबर में आप ने भी पढ़ा ही होगा कि जितने लोग भी इस तरह के हमलों से जृख्मी हुये हैं उन में से किसी को किसी को इंफैक्शन तो नहीं है लेकिन उन के ज़ख्मों का इलाज कर दिया गया है।
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं ---क्योंकि मैं इस बात को भली-भांति जानता हूं कि जब किसी व्यक्ति पर इस्तेमाल की गई नीडल किसी को चुभती है तो फिर क्या बीतती है ---मैं तो हैल्थ संस्थानों में इस तरह के हादसों की बात कर रहा हूं लेकिन चीन में तो एक तरह से आतंकी गतिविधि के रूप में किसी सीधे-सादे बंदे के शरीर में दूषित सूईं घोंपी जा रही है।

इस तरह की वारदातों के कुछ ही दिनों के भीतर यह कह देना कि किसी को इन से इंफैक्शन नहीं हुई ---यह उचित नही ंहै। क्योंकि एच-आई-व्ही एवं हैपेटाइटिस बी, सी जैसे इंफैक्शन हैं जिन के बारे में कम से कम इस तरह की चोट लगने के कुछ हफ़्तों बाद ही पता चलता है। इसलिये इस तरह की पागलपंथी को जितना जल्दी हो सके रोका जाना चाहिये।

मैं जानता हूं एक डाक्टर को जिसे किसी मरीज़ को इंजैक्शन लगाते वक्त सूँई चुभ गई थी ---लेकिन जब उस मरीज़ के रक्त की जांच करवाई गई तो उस साथी के पैरों तले से ज़मीन निकल गई थी ----वह मरीज़ एचआईव्ही संक्रमित था। इसलिये तुरंत उस डाक्टर की कुछ हफ़्तों के लिये दवाईयां देनी शुरू की गईं ताकि अगर शरीर में कोई वॉयरस का कण चला भी गया है तो भी उस को जड़ से खत्म कर दिया जाये ----छः महीने तक टैस्ट होते रहे तब जा कर कही ंपता चला कि सब कुछ ठीक ठाक है और इन छः महीनों के दौरान उस डाक्टर की मनोस्थिति मैं ब्यां नहीं कर सकता ।
बार बार ऐसा लिखने का अभिप्रायः केवल इतना ही है कि यह दूषित सिरिंज से हमला करने वाली आतंकी वाले भी खूंखार आतंकी ही हैं ----- और जिस तरह से उस डाक्टर को दवाईयां शूरू की गईं और उस के टैस्ट छः महीने तक चलते रहे, ऐसा इस तरह के आतंकी हमले के हर शिकार के साथ कैसे हो पाता होगा। सब से पहले तो किसी को यह ही नहीं पता होगा कि जिस दूषित सिरिंज से यह वार किया गया था वह किन किन बीमारियों के विषाणुओं से लैस थी ------इसलिये आओ सब मिल कर प्रार्थना करें कि यह इश्वर इन सिरफिरों के दिल में थोड़ी करूणा पैदा करे।
वैसे इन चीनी आतंकियों की बात तो हम ने कर ली, लेकिन सोचने की बात यह भी है कि हमारे ही देश में जो लोग इस डिस्पोज़ेबल सिरिंजों एवं सूईंयों की री-साईक्लिंग करते हैं ---- क्या वे आतंकी नहीं है ? ...क्यों नहीं, ये भी सब के सब आतंकी हैं। चीनियों ने कह दिया की 530 केस हुये है ंपिछले दिनों लेकिन इन री-साईक्लिंग करने वाले दरिंदों के कितने लाखों-करोड़ों लोग शिकार हो चुके होंगे या रोज़ाना होते होंगे, ये आंकड़े किसी भी सरकारी फाइल
में नहीं मिलेंगे ------- इस मुद्दे पर कोई भी सूचना का अधिकार कानून काम ही नहीं करेगा !!

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शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

भारत ने किया हैजा-रिवार्ड घोषित

अभी अभी मैं बीबीसी न्यूज़ की साइट देख रहा था --जब मैंने इस तरह की खबर का शीर्षक देखा तो मुझे भी जानने की बहुत उत्सुकता हुई कि यह कैसा रिवार्ड। लिंक पर क्लिक करने पर पता चला कि उड़ीसा के कालाहांडी़ जिले में हैजे के तीन केस मिलने के बाद उड़ीसा के स्वास्थ्य-मंत्री द्वारा यह रिवार्ड घोषित किया गया है।
अब हैजे के किसी मरीज की जानकारी देने वाले को 200 रूपये का इनाम मिलेगा और जो हैजे का मरीज ठीक हो कर अस्पताल से घर जायेगा उसे लौटते हुये कुछ कपड़े एवं 200 रूपये दिये जायेंगे।
इस समाचार को स्वयं पढ़ने के लिये यहां क्लिक करिये।

इस नगद इनाम को देने का कारण यह बताया जा रहा है कि दूर-दराज में रहने वाले लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हुये भी यह समझते रहते हैं कि उन्हें भगवान द्वारा किसी कर्म की सज़ा दी जा रही है और इन सब धारणाओं के रहते वे अस्पताल नहीं आते।