रविवार, 18 जनवरी 2009

यह खतरनाक स्प्रे बिकता है धड़ल्ले से !!

कल अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की एक चेतावनी पढ़ने का मौका मिला--- चेतावनी थी कि चमड़ी सुन्न करने वाली क्रीम, जैल एवं ओंएटमैंट से क्यों बच कर रहा जाये। अभी मैंने पूरी रिपोर्ट पढ़नी शुरू ही नहीं की थी तो मेरा माथा ठनका कि क्या सैक्स-मैराथन के लिये वहां भी लोग इस का इस्तेमाल कर रहे हैं , लेकिन मैं गलत साबित हुआ।

मैं सोच रहा था कि उस में बात उस स्प्रे के इस्तेमाल की भी होगी जिस को कईं लोग विज्ञापनों के चक्कर में पड़ कर सैक्स-मैराथन में भाग लेने से पहले इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के गुमराह करने वाले विज्ञापन अकसल कईं जगह दिख जाते हैं --- जो एक तरह से पाठकों को एक बार इसे इस्तेमाल करने का निमंत्रण दे रहे होते हैं। और बहुत से काल्पनिक शीघ्र पतन की शिकायत से जूझ रहे अपने ही भाई-बंधु इन के चक्कर में पड़ जाते हैं----शायद उन्हें भी लगता है कि चलो यही ठीक है किसी डाक्टर से अपना दुःखड़ा रोने की ज़हमत ही नहीं उठानी पड़ेगी। स्प्रे मार लेने से ही काम चल जायेगा।

अपने देश में रोना इस बात का भी है कि इस तरह के विज्ञापन अच्छी खासी जगहों पर नज़र आते रहते हैं ---- कुछ तो कईं मैगज़ीनों में और कुछ हिंदी की अखबारों में भी देख चुका हूं। कुछ साल पहले मैं इस तरह के बेबुनियाद विज्ञापनों के विरूद्ध एक शीर्ष संस्था को बहुत लिखा करता था लेकिन कुछ भी जब मुझे होता दिखा नहीं तो मैंने चुप होने में ही बेहतरी समझी। वहां पर इस तरह की शिकायत करने की इतनी औपचारिकतायें हैं कि कुछ महीनों में ही मेरा खौलता हुया खून ठंडा पड़ गया। और फिर धीरे धीरे समझ आ गई कि अगर इस तरह की गल्त भ्रांतियों का गला काटना है तो कलम से ज़्यादा ताकतवर कोई तलवार नहीं है ----बाकी सब धकौंसले बाजियां हैं, दिखावे हैं ---- असलियत कुछ नहीं । बस कलम चलाओ और आम आदमी के साथ सीधे जुड़ जायो-----यही काम पिछले आठ सालों से कर रहा हूं, और कुछ कर पाने के लिये कोई बैकिंग भी तो नहीं है। बस, सब के लिये खूब प्रार्थना ज़रूर कर लिया करता हूं कि सभी लोगों की किसी न किसी तरह से , किसी न किसी रूप में, किसी न किसी के द्वारा रक्षा होती रहे । इस समय आशीष महर्षि के ब्लाग पर लिखी कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं ----
मेरे सीने में ना सही, तेरे सीने में ही सही,
आग जहां भी हो, जलनी चाहिये।

एक आम इंसान की त्रासदी देखिये कि उसे जब यह विज्ञापन दिखा, साथ में एक कामुक सा विज्ञापन दिखा --- उस बेचारे को क्या पता वह क्या खरीद रहा है, वह झट से एक शीशी खरीद लेता है --- उस लाचार को तो बस इतनी आस है, इतनी उम्मीद है कि इस से वह थोड़ा लंबा खिंच जायेगा --- अगर ऐसा वह सोचता है तो उस में उस का कोई दोष नहीं है ----दोष है उन सब का जो इस तरह के विज्ञापन देते हैं एवं उन से भी बड़ा दोष उन का है जो इन विज्ञापनों को देख कर भी देखा-अनदेखा कर देते हैं। अच्छा आम आदमी की बेचारे की मानसिकता यही है कि चलो, क्या फर्क पड़ता है –स्प्रे ही तो मारना है, हम कौन सा कोई गोली, कैप्सूल खा रहे हैं। लेकिन उस की त्रासदी देखिये कि उसे इस तरह के स्प्रे से जब कोई भी नुकसान हो जाता है तो अव्वल तो उसे पता ही नहीं चलता कि यह स्प्रे की वजह से है और अगर पता लग भी जाये तो वह कंपनी का क्या उखाड़ लेगा ---- चुप्पी साधे रखता है, किसी डाक्टर के पास जाने से भी कतराता है क्योंकि इस तरह के स्प्रे वगैरह कोई क्वालीफाइड डाक्टर लोग तो लिखते नहीं हैं और अगर इसे लेने की सलाह किसी नीम-हकीम ने दी थी तो वे ठहरे मंजे हुये खिलाड़ी ---स्प्रे की जगह कोई लोशन थमा देंगे ---- उन के पास किस चीज़ की कमी थोड़े है !!

यह मैराथन वाली बात भी ऐसी ध्यान में आई कि मैं तो भाई अपनी मूल बात से ही भटक गया कि अमेरिका की एफडीए ने चेतावनी दी है कि अगर चमड़ी को सुन्न करने वाली वस्तुओं का गल्त इस्तेमाल किया जाये तो इस से दिल की धड़कन में गड़बड़ हो सकती है, दौरे पड़ सकते हैं , सांस लेने में तकलीफ़ हो सकती है, आदमी कोमा में जा सकता है और मौत भी हो सकती है।

These skin-numbing products in cremes, ointments or gels contain anesthetic drugs such as lidocaine, tetracaine, benzocaine, and prilocaine that are used to desensitize nerve endings near the skin's surface. If used improperly, the FDA said in an agency news release, the drugs can be absorbed into the bloodstream and cause reactions such as irregular heartbeat, seizures, breathing difficulties, coma or even death.

बार बार फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इस के गल्त इस्तेमाल से सचेत रहने की बात की है और मैं उस चेतावनी में यही ढूंढ रहा था कि ज़रूर कहीं ना कहीं इस तरह के स्प्रे की इस तरह के गलत (मैराथन के लिये !)इस्तेमाल की भी बात की गई होगी , लेकिन शायद वहां पर लोग इतने जागरूक हैं कि यह सब इस काम के लिये इस्तेमाल नहीं करते होंगे। लेकिन सहवास से पहले इस स्प्रे का इस्तेमाल किया जाना शायद इस के गलत इस्तेमाल की सब से बड़ी उदाहरण है।

वैसे अमेरिका में तो उन्हें इस तरह की कुछ शिकायतें प्राप्त हुईँ कि जब महिलाओं ने अपनी मैमोग्राफी करवाने से पहले इसे अपने वक्ष-स्थल पर लगाया तो इस से कुछ कुप्रभाव उन में हुये और वहां पर महिलाओं ने जब लेज़र से अपने बाल उतरवाने से पहले भी इस तरह की चमड़ी सुन्न करने वाली क्रीमों आदि को इस्तेमाल किया तो भी कुछ बुरे प्रभाव देखने में आये जिस की वजह से वहां पर यह चेतावनी दी गई कि अपने फ़िज़िशियन की सलाह के बिना आप को किसी भी ऐसे प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने के लिये मना किया जाता है।

इन क्रीमों, जैलों, ओएंटमैंटों में जिन चमड़ी सुन्न करने वाली दवाईयों की बात का उल्लेख था वे हैं --- लिडोकेन, टैट्राकेन, प्राइलोकेन, और बेनज़ोकेन – ( lidocaine, tetracaine,prilocaine and benzocaine) .

ये सब दवाईयां इस्तेमाल शरीर के किसी हिस्से को सुन्न करने के लिये इस्तेमाल की जाती हैं --- इन की अपनी अपनी अलग इंडीकेशन्ज़ हैं, ये विभिन्न ताकत में मिलती हैं( different strengths 2%, 3% आदि)--- जो दवा आंख में डाली जाती है उस की स्ट्रैंथ अलग है, मुंह में लगाई जाने वाली सुन्न करने वाली दवाई की स्ट्रैंथ अलग है । इस लिये इन के गल्त इस्तेमाल से बहुत बड़ा पंगा हो सकता है ।

मैं पिछले पच्चीस सालों से मुंह में कोई भी सर्जरी करने के लिये लिडोकेन 2% के इंजैक्शन का ही इस्तेमाल कर रहा हूं ---- ऊपर लिखी सब दवाईयां हैं तो सुन्न करने के लिये ही ना, लेकिन कभी भी लक्षमण-रेखा क्रॉस कर के किसी दूसरे साल्ट को इस्तेमाल करने का विचार भी नहीं आया ----लेकिन जो ले-मैन इन के स्प्रे के इस्तेमाल के चक्कर में पड़ जाता है उस बेचारे को ना तो किसी साल्ट की परवाह ही होती है और ना ही इस की स्ट्रैंथ की ---- कैमिस्ट चुपचाप मांगी गई वस्तु थमाने के अलावा ज़्यादा मगज़मारी करते नहीं हैं !!

अकसर मैं मुंह में इंजैक्शन लगाने से पहले एक स्प्रे का इस्तेमाल करता हूं जिस में इस सुन्न करने वाली दवा की स्ट्रैंथ 15 फीसदी ( 15% lidocaine) तक रहती है --- इस का फायदा यह होता है कि मरीज़ को जब उस के बाद हम इंजैक्शन लगाते हैं तो उसे सुईं की चुभन तक का बिल्कुल पता नहीं चलता और अपना काम आसान हो जाता है । और कईं बार बच्चों के हिलते-डुलते दांतों को एक ऐसी ही दवा वाली जैल ( लगा कर ही निकाल दिया जाता है। कहने का भाव है कि जिस का काम उसी को साजे----- डाक्टर लोग अपनी सारी सारी उम्र इन दवाईयों के साथ बिता देते हैं ---- इसलिये कोई भी काम उन की सलाह से ही किया जाये तो ठीक है, वरना आप ने तो देख ही लिया कि जब इस तरह के स्प्रे का लोग गल्त इस्तेमाल करते हैं तो आफ़त ही मोल लेते हैं। मैराथन तो गई भाड़ में, जान बची सो लाखों पाये।

मुझे ध्यान आ रहा है बंबई में एक मरीज़ था जो दो-तीन बार आया --- इलाज करवाने के बाद कहने लगता था कि इस तरह का स्प्रे हमें भी दिला दो --- मैंने पूछा क्यों, कहने तो लगा कि बस यूं ही मुंह में जब छाले वाले हों तो काम आ सकता है। अब पता नहीं उसे किस काम के लिये यह चाहिये था ---खुदा ही जाने, लेकिन मैंने उसे इतना ज़रूर समझा दिया था कि यह एक बहुत ही स्ट्रांग सी दवा है जिसे केवल डाक्टर की देख रेख में ही इस्तेमाल किया जा सकता है ।

जाते जाते बस एक छोटा सा नारा मारने की इच्छा सी हो रही है --- इस कमबख्त स्प्रे की ऐसी की तैसी !!--- बस, इतना कह कर ही लगता है काम चला लूं ---क्योंकि जो इस तरह के स्प्रे बेचने वालों के लिये मन में विचार, श्लोक आ रहे हैं वे तो लिखने के बिल्कुल भी काबिल नहीं हैं ---- जब कभी चिट्ठाजगत समारोह वगैरह में मिलेंगे तो वह भी चाय-नाश्ते के समय साझे कर ही दूंगा लेकिन यहां ---- बिल्कुल नहीं !!!

इतनी सीरियस सी पोस्ट के बाद चलिये फिक्र-नॉट की टेबलेट के रूप में एक गाना सुनते हैं।

डाक्टर-मरीज के बीच बढ़ती दूरी से चांदी कूट रहा है कौन ?

पहले हकीम, वैध जी भी कितने ग्रेट हुआ करते थे --नाड़ी देखी, जुबान देखी और बीमारी ढूंढ ली और मरीज भी जगह जगह जा कर टैस्ट करवाने के झंझट से बचा रहता था ---डाक्टर हूं, फिर भी कह रहा हूं कि आज कल तो किसी को कोई तकलीफ़ हो जाती है तो उस की आफत ही हो जाती है ---हर विशेषज्ञ अपने अपने टैस्ट तो कहता ही है , लेकिन किसी बीमारी के विभिन्न विशेषज्ञों को भी अकसर सभी टैस्ट दोबारा ही चाहिये। मरीज़ की हालत देखने लायक होती है --- मुझे ऐसे लगता है कि वह या उस के परिवार वाले शायद बीमारी से ज़्यादा इस पर खर्च होने वाले पैसे की जुगाड़ में लगे रहते होंगे।

अकसर आप सब भी सुनते ही हैं कि जैसे जैसे ये खर्चीले टैस्ट बाज़ार मे आ गये हैं , लाखों-करोड़ों की मशीनें बड़े बड़े कारपोरेट हास्पीटलों में सज गई हैं तो अब इन पर धूल तो जमने से रही --- ये मरीज़ों के टैस्ट करेंगी तो ही इन का हास्पीटल को फायदा है, वरना ये किस काम की !! वो बात अलग है कि इन मशीनों की वजह से बहुत सी बीमारियां जो पहले पकड़ में ही नहीं आती थीं उन का पता चल जाता है और कुछ बीमारियों का तो बहुत जल्द पता भी चल जाता है --- लेकिन फिर भी यह कौन देख रहा है या यह कौन कंट्रोल कर रहा है कि कहीं इन महंगे टैस्टों का प्रयोग कईं जगह पर बिना वजह भी तो नहीं हो रहा। मैं ही नहीं कहता, आम पब्लिक में भी दिलो-दिमाग में यह बात घर कर चुकी है।

आज की जनता यह भी सोच रही है कि जितने जितने ये बड़े बड़े महंगे टैस्ट आ गये हैं ----डाक्टरों और मरीज़ों के बीच की बढ़ती दूरी का एक कारण यह भी है । अब डाक्टर लोग झट से ये टैस्ट करवाने के लिये लिख देते हैं---एक बात और भी है कि एक सामान्य डाक्टर जिसे किसी बीमारी विशेष का इलाज करने के लिेये कोई अनुभव नहीं है , वह भी ये टैस्ट करवाने के लिये लिख तो देते हैं, लेकिन रिपोर्ट आने पर जब किसी स्पैशिलस्ट के पास भेजते हैं तो वह डाक्टर अकसर उन्हीं टैस्टों को दोबारा करवाने की सलाह दे देते हैं -----------मरीज़ की आफ़त हो गई कि नहीं ?

एक तो यह जब से कंज़्यूमर प्रोटैक्शन बिल आया है इस से भी मुझे तो लगता है कि मरीज़ों की परेशानियां बढ़ी ही हैं ---- हर डाक्टर अपने आप को सुरक्षित रखना चाहता है --ऐसे में महंगे टैस्ट करवाने से पहले शायद कईं बार इतना सोचा भी नहीं जाता । यहां ही क्यों, बहुत से विकसित देशों में भी तो करोड़ों अरबों रूपये इसी बात पर बर्बाद हो रहे हैं कि डाक्टर मुकद्दमेबाजी के चक्कर से बचने के लिये अनाप-शनाप टैस्ट लिखे जा रहे हैं -----इस के बारे में एक विस्तृत्त रिपोर्ट मैं दो दिन पहले ही पढ़ रहा था।

कल मैं 17-18 साल के एक लड़के के मुंह का निरीक्षण कर रहा था --- मेरी नज़र उस की जुबान पर गई तो मुझे अपनी मैडीकल की किताब में दी गई तस्वीर का ध्यान आ गया। जब मैं एमडीएस कर रहा था तो एक बहुत बड़ी किताब पढ़ी थी ----Tongue : In health and disease जुबान - सेहत में और बीमारी में !! उस लड़के के जुबान उस की परफैक्ट सेहत ब्यां कर रही थी ---मैंने पास ही खड़े आपने अटैंडैंट को कहा कि किशन, यह देखो एक स्वस्थ जुबान इस तरह की होती है !

ऐसा क्या था उस की जुबान में --- उस का रंग बिल्कुल नार्मल था , और उस का खुरदरापन उस की सेहत को ब्यां कर रहा था ---यह खुरदरापन जुबान की सतह पर मौज़ूद पैपीली (filiform papillae) की वजह से होता है और यह जुबान की अच्छी सेहत की निशानी हैं ----कुछ बीमारियां है जैसे कि कुछ तरह के अनीमिया ( खून की कमी ) जिन में यह पैपीली खत्म हो जाते हैं और जुबान बिल्कुल सपाट सी दिखने लगती है ।

यह तो एक बात हुई ---- जुबान पर जमी काई( tongue coating), जुबान का रंग, मुंह से आने वाली गंध, मुंह के अंदरूनी हिस्सों का रंग, मसूड़ों का रंग, उन की बनावट, मुंह के अंदर वाली चमड़ी कैसी दिखती है -----ये सब उन बीसियों तरह की चीज़ें हैं जिन को देखने पर मरीज़ की सेहत के बारे में काफ़ी कुछ पता चलता है । कुछ समय से यह चर्चा बहुत गर्म है कि मसूड़ों के रोग ( पायरिया ) आदि से हृदय के रोग होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है , और यह भी तो देखा है कि जिस किसी मरीज़ को बहुत ज़्यादा पायरिया है, दांत हिल रहे हैं तो कईं बार जब उस के रक्त की जांच की जाती है तो पहली बार उसे भी तभी पता चलता है कि उसे मधुमेह है।

धीरे धीरे समझ आने लगती है कि पुराने हकीम लोग, धुरंधर वैध अपने मरीज़ों में झांक कर क्या टटोला करते थे ---- वे जो टटोला करते थे उन्हें मिल भी जाता था --वे मिनट दो नहीं लगाते थे और मरीज़ की सेहत का सारा चिट्ठा खोल कर सामने रख देते थे लेकिन शायद आज कल की तेज़-तर्रार ज़िंदगी में इतना सब कुछ करने की फुर्सत ही किसे है------ अपने आप पता लग जायेगा जो भी है टैस्टों में , क्यों पड़े इन झंझटों में ---- कहीं कहीं ऐसी सोच भी बनती जा रही है।

जो काम आप बार बार करते है उस में हमें महारत भी हासिल होनी शुरू हो जाती है ---- किसी असामान्य मुंह से सामान्य मुंह का भेद करना हम जानना शुरू कर देते हैं ----ध्यान आ रहा अपने एक बहुत ही प्रिय प्रोफैसर का --- डा कपिला साहब----- क्या गजब पढ़ाते थे , बार बार कहा करते थे कि खूब पढ़ा करो --- अपना ज्ञान बढ़ाओ क्योंकि जब आप किसी मरीज़ का चैक अप कर रहे हो तो आप वहीं चीज़े देख पाते हो जिन के बारे में आप को ज्ञान है ----- You see what you know, you dont see what you dont know !! कितनी सही बात है ....वे बार बार यह बात दोहराते थे।

जब हम मुंह की ही बात करें तो हमें मुंह के अंदर झांकने मात्र से ही बहुत प्रकार की बीमारियों का पता चल जाता है और दूसरी बात यह भी है कि बहुत सी मुंह की तकलीफ़ें ऐसी भी हैं जो हमारे सामान्य स्वास्थ्य को भी काफी हद तक प्रभावित करती हैं।

यह जो फिल्मी गीत है ना मुझे बहुत अच्छा लगता था ----लगता था क्या , आज भी लगता है, इस के बोल बहुत कुछ बता रहे हैं --दो दिन पहले टीवी पर भी आ रहा था, इसलिये सोचा कि आप के साथ बैठ कर सुनता हूं -- और भी अच्छा लगेगा।

शनिवार, 17 जनवरी 2009

आखिर कैसे आ सकता है हमारा सारा सिस्टम लाइन पर

बहुत हो गई ये बातें ---- गर्भाशय के कैंसर के लिये यह टीका, प्रोस्ट्रेट के कैंसर से बचाव के लिये ये वस्तुयें लाभदायक हैं, विटामिन-डी की रोज़ाना खुराक से दिल के दौरे से होता है बचाव, इस विटामिन से एलज़िमर्ज़ की रोकथाम, उस विटामिन से यह लाभ, उस मिनरल से यह होता है, उस से फलां बीमारी का बचाव होता है--- बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं, इस तरह की इतनी सारी बातें तो जानने मात्र से ही थक जायेंगे ---उन्हें अमल में कैसे लाया जायेगा ! पहले तो इन्हें कहीं नोट करने के लिये अच्छी खासी डायरी चाहिये।

चलिये मुख्य बातें तो कोई मान भी ले----लेकिन अधिकर बातें और इस प्रकार की अधिकतर सिफारिशें माननी बहुत ही मुश्किल हैं ----वैसे तो विभिन्न कारणों की वजह से यह सब कुछ मानना नामुमकिन सा ही जान पड़ता है।
और दूसरी तरफ़ यह भी सोच रहा हूं कि कितने समय तक हम लोग तरह तरह की बीमारियों के लिये प्रदूषण, कीटनाशकों के अंधाधुध उपयोग, मिलावटी खानपान को दोष मड़ते रहेंगे ---- चलिये, यह भी सच है कि इन सब में तो गड़बड़ है ही , लेकिन ज़रा हम लोग अपनी जीवनशैली की तरफ़ नज़र दौड़ायें।

इसी गड़बड़ जीवनशैली की वजह से ही इतनी सारी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं----उच्च-रक्तचाप, मधुमेह आदि की तो बात अब क्या करें—इन्होंने तो अब एक महामारी का रूप धारण कर लिया है, चिंता की बात यह भी है कि दिन में कितने ही मरीज़ ऐसे मिल जाते हैं जिन में कोई थायरायड़ के लिये दवाईयां खा रहे होते हैं , और कितने ऐसे मिलते हैं जो अपने बड़े हुये यूरिक एसिड के लिये दवाईयां लिये जा रहे हैं......बात ठीक भी है कि अब किसी को तकलीफ़ होगी तो दवाई तो लेनी ही पड़ेगी क्योंकि अगर दवाई नियमित तौर पर नहीं ली जायेगी तो ये थायराइड की तकलीफ़ एवं यूरिक एसिड की प्राब्लम बहुत गड़बड़ कर देती है।

लेकिन मेरा विचार है कि ठीक है कि दवाई डाक्टरी सलाह के मुताबिक ले ली जाये, लेकिन इस के साथ साथ उस के लिये यह भी शायद बहतु ही ज़रूरी है कि क्या हम लोग खाने पीने में क्या कोई संयम भी बरत रहे हैं, क्या ऐसा कुछ कर रहे हैं जिस से कि शरीर का सारा सिस्टम ही लाइन पर आ जाये। मुमकिन है कि जब सारा सिस्टम ही लाइन पर आ जाये तो डाक्टर लोग इन तकलीफ़ों के लिये दी जाने वाली दवाईयां भी लेने के लिये हमें मना कर दें।

तो फिर सिस्टम लाइन पर आये तो आये कैसे !!---जो मैंने आज तक सीखा वह यही है कि इस सिस्टम को अंग्रेज़ी डाक्टरी के द्वारा तो लाइन पर लाना बहुत मुश्किल है --- इस के लिये केवल और केवल एक ही रास्ता है ---- कि सदियों पुरानी योग विद्या की शरण लेनी पड़ेगी ----- रोज़ाना शारीरिक परिश्रम करना होगा, योग क्रियायें करनी होंगी ---कम से कम प्राणायाम् नित्य करना होगा और सब से महत्वपूर्ण नित्य ध्यान (मैडीटेशन) करना होगी ---- और इस से साथ साथ सभी तरह के व्यसनों से बचना होगा, शुद्ध सात्विक आहार लेना होगा और मांसाहार से बचना होगा ---- ( मांसाहार से बचना मेरा नुस्खा नहीं है ---- लेकिन मैं अपनी इच्छा से इस का बिल्कुल भी सेवन नहीं करता हूं)।

सचमुच प्रवचन दे देना भी बहुत आसान है ---ये सब बातें जानता हूं लेकिन फिर भी सुबह सवेरे उठ कर सैर ना करने के नित्य प्रतिदिन नये नये बहाने ढूंढता हूं ----शायद पिछले एक-डेढ़ महीने से सैर नहीं की -----पिछले लगभग डेढ़ दो साल से प्राणायाम् करने का आलस्य करता रहता हूं ---- और ध्यान भी परसों कितने ही महीनों बाद किया है --- मैंने यह सब अच्छे से गुरू-शिष्य परंपरा के नियमों में रह कर सीखा हुआ है लेकिन पता नहीं क्यों टालता रहता हूं ----टालता ही रहता हूं ----जब सुबह नेट पर बैठ कर ब्लागवाणी या चिट्ठाजगत की सैर करता रहता हूं तो बार बार यह अपराधबोध होता रहता है कि यार, यह समय यह काम करने का नहीं है , 30-40 मिनट बाहर भ्रमण कर लिया जाये...........लेकिन मैं भी पक्का ढीठ हूं -----क्या करूं ?---- मेरी समस्या ही यही है कि मैं अपने आप से इस तरह के वायदे रोज़ाना करता हूं कि कल से यह सब शुरू करूंगा लेकिन पता नहीं मैं कब लाइन पर आ पाऊंगा ----वैसे इस समय आप बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं कि –पर उपदेश कुशल बहुतेरे !!

सोच रहा हूं कि इस वक्त इस पोस्ट को ठेल कर आधे घंटे के लिये बाहर घूम ही आता हूं ---वैसे तो एक सुपरहिट बहाना पिछले कुछ अरसे से सैर न कर पाने का यही रहा है कि बाहर ठंडी बहुत होती है ----लेकिन मुझे शत-प्रतिशत पता है कि यह मेरी कोरी बहानेबाजी है ----और भी क्या कोई काम इस मौसम में करने से रह जाता है ? नहीं ना , तो जो बातें हमें लाइन पर चलाये रखती हैं उन पर ही अमल करने में हम इतने कमज़ोर क्यों पड़ जाते हैं , पता नहीं, यह सब मेरे साथ ही होता है -----लेकिन मेरे साथ होना तो और भी ठीक नहीं है क्योंकि समाज हम डाक्टर लोगों की जीवनशैली को एक आदर्श मान कर उस का अनुसरण करना ही करना चाहते हैं ।

वैसे लाइफ को लाइन पर लाने के मैंने अभी तक के अपने सारे तजुर्बे को मैंने ऊपर दो-तीन हाइलाइटिड पंक्तियों में सहेज दिया है ---आप ने भी नोट किया होगा कि इन मे विटामिन की गोलियों की कहीं बात नहीं हो रही, किसी टानिक को पीने के लिये नहीं कहा गया है, कोई हाई-फाई बातें भी नहीं की गई हैं -------- मन तो कर रहा है कि इन पंक्तियों को फ्रेम करवा कर हमेशा अपने सामने रखा करूं --- लेकिन जब तक इन पर मैं पूरी तरह से अमल नहीं करता तब तक इस ज्ञान से क्या हासिल ---- जब ज्ञान व्यवहार में ढले तो जीवन का श्रृंगार बने !

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

आखिर बीड़ी के पैकेट पर किसी खौफ़नाक सी तस्वीर की इंतज़ार हो क्यों रही है ?

मेरी विचार में तो वह आदमी सब से ज़्यादा बदकिस्मत है जो तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करता है अथवा शराब का आदि हो चुका है । जो लोग इन दोनों का सेवन नहीं करते हैं वे भी मरते हैं ---लेकिन मरने मरने में भी अंतर है। यह तो एक किस्म की आत्महत्या है।

आज शाम को उस समय मूड बहुत खराब हुआ जब एक परिचित से मुलाकात हुई जिस से पता चला कि उस के भाई को जो 58 वर्ष का है फेफड़े का कैंसर हो गया है जो कि आखिरी स्टेज में बताया गया है --- सभी डाक्टरों ने जवाब दे दिया है , कह रहे हैं जितनी सेवा-सुश्रुषा कर सकते हो कर लो। उस का भाई बता रहा था कि तीन महीने पहले तक इसे कुछ भी न था, बस कुछ दिन छाती में दर्द हुआ----डाक्टर के पास गया, सारी जांच हुई तो पता चला कि फेफड़े का कैंसर है। वह यह भी बता रहा था कि उस के भाई को कभी बुखार भी नहीं हुआ था -----बस, यह सिगरेट की आदत ही इसे ले डूबी। मुझे भी सुन कर बहुत बुरा लगा --- आज कल 58 साल की उम्र ही क्या होती है। और इन तीन महीनों में वह हड्डियों का ढांचा बन कर रह गया है।

और मैं रोज़ाना लगभग एक-दो मरीज़ ऐसे देख लेता हूं जिन के मुंह में मुझे तंबाकू के द्वारा किये गये विनाश की गाथा देखने को मिलती है । और अधिकांश तौर पर यह मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था ही होती है। मैं हर ऐसे मरीज़ के साथ दस मिनट ज़रूर बिताता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि किसी तरह से अगर यह अभी भी तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन छोड़ दे तो बचाव हो सकता है। और मुझे पता है कि इन में से अधिकांश मरीज़ उस दिन के बाद मेरे पास आना ही छोड़ देते हैं- मुझे यह लिखते हुये बहुत अजीब सा लग रहा है। शायद उन को लगता होगा कि डाक्टर कुछ ज़्यादा ही बकवास कर रहा है !!

कुछ दिन पहले भी मेरे पास जो 17-18 साल का एक लड़का आया था , मैंने उस को भी बहुत ही समझाया था कि इस गुटखे को अभी भी त्याग दे, वरना कुछ भी हो सकता है । लेकिन मैंने उसे बार बार यह भी तो कहा था कि अभी भी बात बिगड़ी नहीं है , सब कुछ नियंत्रण में ही है । लेकिन वह लड़का भी मेरे पास वापिस लौट कर नहीं आया। अब ऐसा कोई व्यवस्था तो है नहीं कि जबरदस्ती किसी मरीज़ का मैं गुटखा छुड़वा सकूं ----कभी भी जब ऐसा मरीज़ आज कल दिखता है तो यह तो मैं समझ ही जाता हूं कि यह तो शायद ही लौट कर आयेगा, इसीलिये मैं उसी दिन उस के साथ 10-20मिनट बिताने बहुत ज़रूरी समझता हूं। मैं तो भई अपनी पूरी जी-जान लगा देता हूं कि किसी तरह से आज के बाद यह तंबाकू के सभी रूपों से दूर ही रहे , आगे उस की किस्मत, इस से ज़्यादा और क्या करें क्योंकि तब तक इस तरह का कोई दूसरा रोगी ओपीडी के कपड़े के बाहर खड़ा दस्तक दे रहा होता है !!

इस लड़के की मैंने बात विशेष रूप से इस लिये की क्योंकि इस के मुंह की जो अवस्था मैंने देखी थी ---- कैंसर की पूर्व-अवस्था जिसे मैडीकल भाषा में ओरल-ल्यूकोप्लेकिया भी कहा जाता है ----- यह मैंने इस से पहले शायद ही कभी इस 17-18 साल की उम्र में किसी के मुंह में देखी थी --- अकसर ऐसे केस 35-40 वर्ष या उस के बाद की अवस्था में ही मेरे द्वारा देखे गये थे। यह केस देख कर तो मैं भी भौचक्का रह गया था -- उम्र 18 साल और बीमारी पचास साल वाली !!

वैसे देखा जाये तो डाक्टर लोग भी क्या कर लेंगे ----अच्छी तरह से समझा-बुझा दिया और क्या करें !! लेकिन एक बात तो तय है कि जितना विनाश इस संसार में यह तंबाकू एवं शराब द्वारा किया जा रहा है शायद ही अन्य किसी दूसरे पदार्थ से इतना कोहराम मच रहा हो।

तंबाकू के मुंह के अंदर होने वाले प्रभाव की तो बात कर ली ---मरीज़ ने भी देख लिया, शायद समझ लिया लेकिन उस विनाश का क्या जो शरीर के अंदरूनी भागों में हो रहा है ---उस का तो ज्वालामुखी बस कभी भी फूट सकता है जैसे मेरे उस परिचित के भाई के साथ हुआ। गले का कैंसर, खाने की नली का कैंसर, पेट का कैंसर, आंतड़ी का कैंसर, मूत्राशय का कैंसर, दिल की बीमारी, दिमाग में रक्त-स्राव, नपुंसकता ---------आखिर कोई तकलीफ़ ऐसी भी है जो इस तंबाकू रूपी शैतान छोड़ देता होगा।

और यह भी हम लोग रोज़ देखते ही हैं कि अगर कोई खुशकिस्मत बंदा कैंसर जैसे रोग से बच भी गया तो तंबाकू एवं शराब से होन वाली तरह तरह की अन्य बीमारियों की गिरफ्त में आ जाता है। फेफड़े खराब हो जाते हैं, सांस फूलने लगती है , पेट में अल्सर हो सकता है ------बस , संक्षेप में तो यही कह दें कि ऐसी कौन सी भयानक बीमारी है जो तंबाकू और शराब के सेवन से नहीं होती !! और ऊपर से हम लोगों की कोई इतनी बढ़िया स्क्रीनिंग तो होती नहीं, जब धमाका होती है बस तभी पता चलता है ।

बात सोचने की यह भी है कि अगर तंबाकू इतना ही बड़ा विलेन है तो फिर क्या हम इसे छोड़ने के लिये क्यों बीड़ी,सिगरेट और गुटखे के बंडलों पर इस के विनाश की खौफ़नाक तस्वीरें देखने के बाद ही इसे छोड़ने का मन बनाने की सोच रहे हैं । आज ही सेहत चिट्ठाजगत के एक लेख पर पढ़ रहा था कि उस कानून को लागू करने में अभी अड़चने हैं -----चलिये, उन अड़चनों की बात छोड़े, वे तो रहेंगी ही ---------लेकिन हम स्वयं सोचें कि क्या इन विनाशकारी वस्तुओं को लात मारने के लिये हमें किसी कानून की ज़रूरत है ..................भई, यह हमारी अपनी सेहत का सवाल है, तो फैसला भी हमें ही करना है।

जो मैं इतने सारी बात कर लेता हूं तो अकसर मेरे मरीज़ यह कहते हैं कि यह कैसे हो पायेगा, यह लत आखिर छूटेगी कैसे ----तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि होगा, ज़रूर होगा लेकिन इस के लिये बस केवल आप को 8-10 दिन धैर्य रखना होगा----- थोड़ा बहुत बदन-दर्द हो, सिर दर्द हो तो कोई दर्द निवारक टीकिया से काम चला लो, हो सके तो पांच-छः दिन की छुट्टी ले कर घर बैठ जाओ, टीवी देखो---कुछ भी करो, क्योंकि इन दिनों जब आप इस व्यसन को छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं तो आप के पुराने संगी-साथी आप को जितना नहीं मिलेंगे ,उतना ही बेहतर है।

मुझे बहुत दिक्कत होती है जब मैं इस तंबाकू और शराब से होने वाले कोहराम को अपने इर्द-गिर्द रोज़ाना देखता हूं -----हमें उस एटम-बंब की बजाये इस तरह के अंदरूनी बंबों से डरना चाहिये ---- वह एटम-बंब तो मारेगा तो पता भी नहीं चलेगा---एक ही झटके में सब का सफाया हो जायेगा , लेकिन ये छोटे बंब हमें न ही जीने देते हैं और न ही मरने देते हैं---- मेरे ताऊ जी ने लगभग 60-65 साल की उम्र में सिगरेट पीने छोड़े लेकिन इस के बाद भी जो 18-20 साल वो जिये -----सारी सारी रात खांसते ही जिये और उन के अंत समय तक उन के पलंग के नीचे रेत से भरा हुआ एक तसला पड़ा रहता था जिसमें वो बलगम गिराते रहते थे ----- उन की खांसी की आवाज़ सुन कर डर लगता है , रोज़ ऐसे ही लगता था कि कुछ भी हो सकता है !!

आप ने सुना है कि आज कल तो सैकेंड-हैंड स्मोक के साथ साथ थर्ड-हैंड स्मोक की बातें होने लगी हैं -----अर्थात् यह तो हम सब जानते ही हैं कि धूम्रपान करने वाले आदमी के साथ बैठे व्यक्ति को भी तंबाकू के धुएं से कुछ न कुछ प्रसाद तो मिलता ही था ( सैकेंड-हैंड स्मोक) लेकिन अब तो चटाई, पर्दों , चद्दरों, सोफ़ों पर जो तंबाकू का धुआं टिका रह जाता है उस के दुष्परिणामों की चर्चा होने लगी है( जिसे थर्ड-हैंड स्मोक कहा जाने लगा है ) --- तो ऐसे में कैसे भी हो इस तंबाकू आदि से जितना बचा जा सके बच लिया जाये -----नहीं, नहीं , जितना बचा जा सके नहीं ------------------किसी भी कीमत पर बिलकुल ही बचा जाये। इस के अलावा कोई रास्ता नहीं है ।

जीवन में वैसे ही इतना प्रदूषण है ---- जीवन में वैसे ही इतनी अनिश्चिता है तो फिर ऊपर से ये तंबाकू और शराब जैसे शैतान हम क्यों पाल लेते हैं--------------------------------यह हमारी, हमारी परिवार की, हमारे समाज की और इन सब से ऊपर छोटे छोटे मासूम बच्चों की बदकिस्मती नहीं है तो और क्या है !!

बीड़ी केवल पीने की ही तो चीज़ नहीं है , इसे सुन कर भी तो काम चलाया ही जा सकता है ना ।

सोमवार, 12 जनवरी 2009

आज की चर्चा का विषय है --- मैमोग्राफी

स्वास्थ्य से संबंधित अधिकांश शीर्ष संस्थानों की इस बारे में सहमति है कि 40 साल की उम्र के बाद महिलाओं को हर साल मैमोग्राम अवश्य निकलवाना चाहिये और इस के बारे में तो सर्व-सम्मति है कि 50 वर्ष की उम्र के बाद तो महिलाओं को यह हर वर्ष करवाना ही चाहिये।

मैमोग्राफी तकनीक द्वारा लिया गया मैमोग्राम छाती (स्तनों) का एक एक्स-रे है जिस के द्वारा या तो महिलाओं में छाती( स्तन) के ऐसे कैंसर पकड़े जाते हैं जो कि अभी इतनी प्रारंभिक अवस्था में हैं कि इन का छूने से पता नहीं पाता अथवा यह देखने के लिये भी मैमोग्राम किया जाता है कि कहीं महिला की छाती में जो गांठ है वह कैंसर के कारण है अथवा किसी अन्य कारण से है।

मैमोग्राफी से 85-90 प्रतिशत छाती के कैंसर पकड़ में आ जाते हैं – यहां तक कि एक चौथाई इंच वाले कैंसर का भी इस मैमोग्राम से पता चल जाता है जब कि आम तौर पर कोई भी ऐसी वैसी गांठ का तब तक पता ही नहीं चलता जब तक कि यह बढ़ कर साइज़ में इससे दोगुनी ही नहीं हो जाती ।
जिस दिन किसी महिला ने मैमोग्राफी करवानी हो उस दिन वह अपनी बगलों में अथवा छाती पर किसी डिओडोरैंट अथवा पावडर आदि का इस्तेमाल न करें क्योंकि उस से एक्स-रे को पढ़ने में दिक्कत आती है – Avoid using deodorant or powder on your underarms or breasts on the day of mammogram because they can make the x-ray picture hard to interpret.

शायद पाठकों में यह जानने की भी उत्सुकता होगी कि इस टैस्ट के दौरान होता क्या है ----- मैमोग्राम का काम अकसर एक्स-रे विभाग में ही किया जाता है। सामान्यतयः प्रत्येक वक्ष की दो तस्वीरें ( एक्स-रे) --- एक साइड से और दूसरी ऊपर के कोण से --- ली जाती हैं। प्रत्येक एक्स-रे लेते समय प्रत्येक वक्ष( स्तन) को दो समतल प्लेटों के बीच मात्र 10 सैकेंड के लिये प्रैस किया जाता है । छाती के सभी क्षेत्रों को सफ़ाई से देखने के लिये यह आवश्यक है।

मात्र 10 से 20 मिनट के बाद आप के आप के टैस्ट की रिपोर्ट बता दी जाती है लेकिन फाइनल रिपोर्ट अकसर एक-दो दिन के बाद ही दी जाती है। इस टैस्ट को करवाने से कोई रिस्क नहीं है, इस में बहुत ही कम स्तर की एक्स-रे किरणों का इस्तेमाल होता है।

और यह टैस्ट कुछ खास महंगा भी नहीं है --- पांच या छः सौ रूपये में हो जाता है। अगर आप महिला हैं और चालीस की उम्र पार चुकी हैं तो अपना एक मैमोग्राम तो जल्दी से करवा कर निश्चिंत हो ही जाइये। वैसे, अच्छे हास्पीटलों के महिलाओं के लिये वार्षिक हैल्थ-चैकअप प्लान में यह मैमोग्राम, पैप-स्मीयर टैस्ट आदि सम्मिलित ही होते हैं।

रविवार, 11 जनवरी 2009

महिलाओं के लिये किसी वरदान से कम नहीं --- पैप स्मियर टैस्ट !!

शायद ही आपने सुना हो कि महिलाओं को नियमित तौर पर यह पैप स्मियर टैस्ट -Pap Smear Test- करवाना अत्यंत आवश्यक है --- लेकिन मैंने आज तक कम ही देखा है कि महिलाएँ स्वयं किसी महिला-रोग विशेषज्ञ के पास इस टैस्ट के लिये गई हों--- और हमारे देश में तो महिलाओं के लिये यह टैस्ट करवाना और भी ज़रूरी है --- क्योंकि यहां पर गर्भाशय के कैंसर के बहुत केस पाये जाते हैं।

पैप स्मियर टैस्ट में होता क्या है ?- गर्भाशय के मुख ( cervix – the entrance to the uterus, located at the innere end of vagina) –से कुछ कोशिकायें ( cells) ले कर उन का निरीक्षण किया जाता है कि कहीं ये गर्भाशय के कैंसर से ग्रस्त तो नहीं हैं।

गर्भाशय का कैंसर जिस वॉयरस के कारण होता है उसे ह्यूमन पैपीलोमा वायरस ( human papillomavirus or HPV) कहा जाता है।

पैप स्मियर टैस्ट में इन कोशिकाओं को सूक्ष्मदर्शी उपकरण से देख कर यह पता लगाया जाता है कि कहीं ये कोशिकायें कैंसर से ग्रसित तो नहीं हैं, कहीं ये कैंसर की पूर्व-अवस्था में तो नहीं हैं !! आज कल तो पैप-स्मियर टैस्ट के अलावा HPV test के द्वारा यह भी ढूंढ निकालते हैं कि एचपीवी ( ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस) संक्रमण है या नहीं !!

वैसे तो जो महिलायें एचपीव्ही ( HPV) से बाधित है उन में से बहुत कम महिलाओं में गर्भाशय का कैंसर उत्पन्न होता है लेकिन एक बात तो निश्चित है कि ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस के संक्रमण की वजह से यह जोखिम बढ़ जाता है।

सभी महिलाओं को यह टैस्ट करवाना ज़रूरी है जिन की आयु 21 वर्ष या उस से ज़्यादा है --- इस से कम उम्र की उन महिलाओं को भी यह टैस्ट करवाना ज़रूरी है जो कि सैक्सुयली एक्टिव हैं।

और यह पैप स्मियर टैस्ट महिलाओं को एक से लेकर तीन साल के भीतर ( जैसी भी आप की स्त्री-रोग विशेषज्ञ सलाह दे) रिपीट करवाना चाहिये --- अगर कोशिकाओं में किसी तरह के बदलाव पाये जाते हैं तो यह टैस्ट इस से पहले भी रिपीट करवाना पड़ सकता है।


महिलाओं का यह टैस्ट तभी किया जाता है जब वे मासिक-धर्म के पीरियड में न हों, इस टैस्ट को करवाने के 24 घंटे पहले संभोग नहीं किया जाना चाहिये। और टैस्ट से पहले योनि में किसी तरह की क्रीम( vaginal creams) का इस्तेमाल वर्जित है।

इस टैस्ट में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती --- इसे समझने के लिये एक बात सुनिये – अगर मुझे मुंह के कैंसर की जांच के लिये इस तरह का ही स्मियर टैस्ट( ओरल स्मियर) करना होता है तो मैं एक स्पैचुला ( आप यह समझ लें कि एक तरह का ऐसा औज़ार जिस से जुबान को थोड़ा नीचे दबा कर गले का निरीक्षण किया जाता है – tongue depressor की तरह से दिखने वाला एक औज़ार ) --- इस्तेमाल करता हूं --- मुंह के अंदर गाल पर इसे थोड़ा घिसने के बाद जो कोशिकाएं प्राप्त होती हैं उन्हें सूक्ष्मदर्शी उपकरण ( microscope) की सहायता से चैक किया जाता है) --- बिल्कुल उसी तरह से जो स्त्री-रोग विशेषज्ञ यह टैस्ट कर रही हैं वह एक गोलाकार स्पैचुला ( rounded spatula) को आहिस्ता से गर्भाशय की बाहरी सतह पर आहिस्ता से घिसने के बाद एकत्रित हुई कोशिकाओं को लैब में माइक्रोस्कोप के द्वारा चैक किये जाने के लिये भेज देती हैं।

माइक्रोस्कोप के द्वारा चैक-अप द्वारा यह देखा जाता है कि कहीं इन कोशिकाओं में कोई असामान्य ( abnormal) कोशिका तो नहीं है , और अगर है तो फिर स्त्री-रोग विशेषज्ञ समुचित उपचार की सलाह दे देती हैं।

एक अंग्रेज़ी कहावत है ---- a stitch in time saves nine !!---अगर समय रहते किसी फटे कपड़े को एक टांका लगा दिया जाये तो भविष्य में लगने वाले नौ टांकों से बचा जा सकता है --- और यहां भी पैप-स्मियर टैस्ट के लिये भी यह बात बिलकुल उसी तरह से लागू होती है ।

वैसे तो अच्छे प्राइवेट हास्पीटल में महिलाओं के हैल्थ-चैक अप प्लान में यह टैस्ट सम्मिलित होता ही है ------लेकिन मुझे अच्छा तब लगेगा अगर आप महिलाओं में से किसी ने अभी तक इस टैस्ट के बारे में सुना नहीं है, करवाया नहीं है तो बिना किसी तरह की स्त्री-रोग संबंधी ( without any gynaecological problem) शिकायत के भी अपनी स्त्री-रोग विशेषज्ञ से नियमित तौर पर मिलें और इस टैस्ट को करवाने के बारे में चर्चा करें। यह बहुत ही ----बहुत ही ----बहुत ही ----- बहुत ही ----- ज़रूरी है ......ज़रूरी है ।

PS……..पुरूष पाठको, आप ने यह पोस्ट पढ़ी--- बहुत बहुत धन्यवाद। लेकिन अगर आप इसे अपनी श्रीमति जी को भी पढ़वायेंगे तो आभार होगा---- और अगर इस का एक प्रिंट-आउट लेकर उन्हें थमा देंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी --- और उन्हें यह भी संदेश दें कि इस के बारे में अपनी सखी-सहेलियों से भी चर्चा करें।

यकायक ध्यान उस विज्ञापन की तरफ़ जा रहा है ---- जो सचमुच बीवी से करते प्यार, हॉकिंग्ज़ से कैसे करें इंकार ---- तो सुविधा के लिये हॉकिंग्ज़ की जगह पैप-स्मियर लगा दें, तो कैसा रहेगा !!

शनिवार, 10 जनवरी 2009

सावधान -- वज़न कम करने वाले प्रोडक्ट्स खतरनाक !!

रिश्तेदारी में एक महिला थीं – आज से लगभग पच्चीस-तीस साल पहले की बात है – 35-40 साल की उम्र थी -- स्वास्थ्य की प्रतिमूर्ति दिखती थीं – लेकिन उन्हें किसी भी हालत में अपना वज़न कम करना था--- इसलिये वे कुछ पावडर टाइप की दवाईयां ले रही थीं --- मैं सत्तर-अस्सी के दशक की बात कर रहा हूं ---- एक-दो वर्षों के बाद ही पता चला कि उन्हें लिवर कैंसर हो गया है--- डाक्टरों ने ढूंढ निकाला कारण को –वही मोटापा कम करने वाले पावडरों का सेवन – कमज़ोर होते होते वह कुछ ही समय में चल बसीं।

कुछ दिन पहले जब अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने लोगों के नाम यह चेतावनी जारी की है कि अमेरिका में वज़न कम करने के ऐसे लगभग 12 उत्पाद हैं जिन से बच कर रहने की विशेष ज़रूरत है क्योंकि इनमें कुछ घटक ( ingredients) ऐसे भी होते हैं जिन के बारे में इन्हें बनाने वाली कंपनियां बताती ही नहीं हैं और जो स्वास्थ्य के लिये बेहद खतरनाक हो सकते हैं।

अमेरिका में ऐसे प्रोडक्ट्स कुछ रिटेल स्टोरों पर एवं इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध हैं जिन के बारे में यह बताया जाता है कि इन में प्राकृतिक अथवा हर्बल पदार्थ ही मौजूद हैं । लेकिन इन की पैकिंग के लेबलों पर जिन इनग्रिडिऐंट्स के बारे में कुछ भी बताया नहीं होता उन में मिर्गी के इलाज के लिये इस्तेमाल होने वाली दवाई से लेकर एक कैंसर पैदा कर सकने की क्षमता रखने वाला पदार्थ ( suspected carcinogen) भी हो सकता है, ऐसा अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा है।

अकसर मैं देखता हूं कि कैमिस्ट की दुकानों पर , हिंदी की अखबारों में अथवा स्कूटर के कवरों पर इस तरह के मोटापा कम करने वाले उत्पादों के विज्ञापन अकसर दिख जाते हैं—और मैं व्यक्तिगत रूप से तो अपने मरीज़ों को इन के बारे में आगाह करता ही रहता हूं लेकिन ऐसा सोचता हूं कि इन से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में लोगों को व्यापक स्तर पर सचेत करने की बहुत ही ज़्यादा ज़रूरत है। ध्यान यह भी आ रहा है कि अगर आज की तारीख में अमेरिका जैसे देश में इस तरह की उत्पादों के बारे में चेतावनियां जारी की जा रही हैं तो फिर हमारे देश में ऐसे ही उत्पादों-पावडरों एवं कैप्सूलों- के नाम पर क्या क्या बिक रहा होगा और ध्यान उस महिला की तरफ़ भी जा रहा है कि अगर आज ही हालात ऐसे हैं तो उस ने पच्चीस-तीस साल पहले जो खाया होगा वह भी किसी ज़हर से कम थोड़े ही होगा --- अब अगर मुझे कोई भी कहे कि नहीं, नहीं, यहां तो भई सब कुछ ठीक ठाक है तो वह कोई भी हो, उसे मैं केवल इतना ही कहूंगा --- Better you SHUT UP !!

समस्या यह भी है कि इस तरह के वज़न कम करने वाले उत्पादों में जो भी नुकसान देने वाली पावर-फुल ड्रग्स होती हैं जो कि आम लोगों के जीवन के लिये खतरा हैं --- उन के बारे में जानने का लोगों के पास तो बिल्कुल भी कोई साधन है ही नहीं। और इसीलिये अमेरिका में वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने यह चेतावनी जारी की है।

एफ डी ए ने खोज करने पर पाया है कि इन मोटापा कम करने वाले जिन घटकों के बारे में लोगों को बिल्कुल बताया नहीं जाता ( undeclared ingredients) उन में सिबूट्रामीन( sibutramine- a controlled substance), रिमोनाबैंट( rimonabant- a drug not approved for marketing in the United states), फैनीटॉयन ( Phenytoin – मिर्गी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाई), और फिनोलथ्लीन( Phenolphthalein – एक ऐसा पदार्थ जिसे हम लोग कैमिस्ट्री के एक्सपैरीमैंट्स में इस्तेमाल करते हैं और जो कैंसर रोग पैदा कर सकता है !!) शामिल हैं।

जैसा कि ऊपर भी बताया जा चुका है सिबूट्रामीन ( sibutramine - a controlled substance) जो कि ऐसे अधिकांश उत्पादों में पाई गई – इस से उच्च-रक्तचाप, दौरे ( fits), दिल की धड़कन बढ़ना ( palpitations), हार्ट-अटैक अथवा दिमाग में रक्त-स्राव ( stroke) भी हो सकता है। और अगर कोई व्यक्ति पहले से कोई दवाईयां ले रहा है तो इस सिबूट्रामीन के उन के साथ मिल कर खतरनाक दुष्परिणाम पैदा होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। गर्भवती महिलाओं में, ऐसी महिलाओं में जो शिशुओं को स्तन-पान करवाती हैं अथवा 16 साल से कम बच्चों में तो सिबूट्रामीन के सुरक्षात्मक पहलू का आकलन ही नहीं किया गया है।

रिमोनाबैंट एक ऐसी दवा है जिस का गहन परीक्षण तो अमेरिका में हुआ लेकिन इसे एफडीए द्वारा अमेरिका में मार्केटिंग की अनुमति नहीं मिली। यह ड्रग जो यूरोप में बिक रही है जो वहां पर अप्रूवड है... इस को अवसाद एवं आत्महत्या जैसे विचारों के साथ जोड़ा जा रहा है । और यूरोप में पिछले दो सालों में इसे लेने वाले 5 व्यक्तियों की मौत एवं 720 दुष्परिणाम( adverse reactions) के केस हो चुके हैं, यह फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा है।

जाते जाते मुझे ध्यान आ रहा है कि हम लोग अकसर बड़े हल्के-फुलके अंदाज़ मे कह ही देते हैं कि अमेरिका हम से 100 साल आगे है ---लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगर अमेरिका में आज की तारीख में इस तरह की दवाईयों की बिक्री हो रही है तो हमारे यहां क्या क्या नहीं बिक रहा होगा --- इस का जवाब मैं आप के ऊपर छोड़ता हूं, लेकिन कृपया इस बात का जितना भी प्रचार-प्रसार हो करियेगा।

और दूसरा एक तर्कसंगत विचार यह भी आ रहा है कि बहुत हो गया कि किसी दवा को एक जगह पर तो मंजूरी है लेकिन दूसरी जगह पर उसी दवा पर प्रतिबंध है --- कहीं ऐसा तो नहीं कि हम लोगों की चमड़ी कुछ ज्यादा ही मोटी है ( जो कि वास्तव में नहीं है !!) या वही बात सही है कि अगर किसी ने भगवान देखना है तो वह यहीं मौजूद है ----- लेकिन ये सब हमारे कमज़ोर मन की दलीले हैं, सच्चाई से मुंह छिपाने के बहाने हैं, हमारे ढोंग हैं---- इस मुल्क में भी एक जान की कीमत भी उतनी ही है जितनी किसी बहुत ही अमीर मुल्क में ---लेकिन अफ़सोस है तो केवल इसी बात का कि यहां तो मौत का कारण तक ढूंढ़ने की कोशिश ही कहां की जाती है ---- जो गया सो गया, उस की लिखी ही इतनी थी , यही कह कर उसे राइट-ऑफ कर दिया जाता है ---- बस, हो गई छुट्टी !!

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

बीस साल बाद दिल्ली में एक रविवार (2)






और जब मैं धौला कुआं से वापिस दिल्ली के अंतर्राजीय बस अड्डे की तरफ़ लौट रहा था तो दिल्ली का मिजाज बदला बदला सा लग रहा था --- कारण ?--- मुझे नहीं पता कि इस मिजाज को बदले कितना अरसा हो गया होगा क्योंकि मेरे ख्याल में मैं किसी रविवार के दिन इस दरियागंज वाली सड़क से 18-20 साल बाद ही गुज़र रहा था।
दरअसल मैं अक्टूबर एवं नवंबर 1988 में दो महीने के लिये बिना सर्विस के यूं ही सबर्बन पास बना कर दिल्ली की सड़कों की खाक छानने रोहतक से लगभग रोज़ निकल जाया करता था --- वास्तव में एक जगह से नियुक्ति-पत्र आने में ही देरी लग रही थी --- लेकिन फिर भी मैं दिल्ली में भी किसी नौकरी की तलाश में चला जाया करता था। इन दिनों मैं अपने खाली समय में नेशनल मैडीकल लाइब्रेरी में भी बहुत जाया करता था।

और हां, जो बात विशेष रहती थी कि रविवार के दिन जब कभी दरियागंज के रास्ते से निकलना होता था तो वहां फुटपाथ पर कहीं कहीं पर किताबों वाले ज़रूर दिख जाते थे --- इसलिये इन से कभी कभी किताब भी खरीद ली जाती थी --- कौन सी किताबें ?- अब यह तो मत पूछो ---अंग्रेज़ी की वही किताबें जिन की इस उम्र में हमारे समय में पढ़ने की चाहत हुआ करती थी। अब जब उन किताबों के बारे में सोचता हूं तो हंसी आती है। लेकिन वह भी दौर था --- इस को कैसे नकारा जा सकता है।

लेकिन इस बार रविवार को मैं इस दरियागंज वाली सड़क का बहुत ही अलग नज़ारा देख रहा था --- यहां पर फुटपाथ पर सैंकड़ों किताबों की दुकानें बिछी पड़ी थीं और किताबों के प्रेमी लोग इन को खरीदने में व्यस्त थे। यह नज़ारा देखते ही बन रहा था। ये सब तस्वीरें उसी दरियागंज एरिया की ही हैं--- अब सोचता हूं कि किसी दिन रविवार के दिन इस जगह ज़रूर जाऊंगा।

इस क्षेत्र में बहुत रौनक थी --- किताबों की दुकान के पास ही अंग्रेज़ों की पहनी हुई जैकेटें, स्वैटर भी मिल रहे थे --- यह सब कुछ भी हम लोग पिछले तीस सालों से देख रहे हैं लेकिन मैं इस बात की खोज करूंगा कि स्वास्थ्य के पहलू से ये वस्त्र कितने सुरक्षित हैं --- मैं इस के बारे में बहुत बार सोचता हूं। लेकिन इस तरह के कपड़े बेचने वालों के अड्डों पर भी बहुत भीड़ थी।

और भीड़ यहां पर इतनी थी कि लगता था जैसे कोई मेला लगा हो --- मुझे ध्यान आ रहा था कि इसी फुटपाथ से शायद बीस साल पहले कईं बेल्ट भी खरीदे थे --- शायद दो-चार टाईयां भी खरीदी थीं ----क्या है न इंटरव्यू के लिये ये सब करना ही पड़ता था । बस, याद आ रहा है कि जैसे ही यह नौकरी लग गई यह दिल्ली जा कर यूं ही लगभग बिना वजह जा कर घूमना बंद सा हो गया --- और फिर दो एक साल बाद जब यह नौकरी छोड़ कर यूपीएससी द्वारा नियुक्त कर लिया गया तो सीधा बंबई पहुंच गया।

उस दिन मुझे दरियांगज एरिया से जुड़ी सारी यादें एक चलचित्र की भांति याद आ रही थीं --- बिल्कुल उसी तरह जिस तरह लगभग रोज़ आज कल जब मैं शाम को हास्पीटल से ड्यूटी करने के बाद बाहर निकलता हूं तो मुझे अपने पिता जी अकसर याद आते हैं ---दरअसल यहां यमुनानगर में शाम को अंधेरा बहुत जल्दी हो जाता है और जब मैं ड्यूटी के बाद छः बजे बाहर आता हूं तो मुझे मेरे ख्यालों में अपने स्वर्गीय पिता जी का चिंतित चेहरा अकसर दिख जाता है ---बात 1974 की हैं –अमृतसर के डीएवी स्कूल में मैं पढ़ा करता था ---छठी कक्षा में ---हिसाब में थोड़ी मुश्किल होती थी इसलिये स्कूल में ट्यूशन रखी हुई थी जो साढ़े पांच बजे तक चलती थी और फिर स्कूल से पैदल आना होता थी ----चूंकि मुझे आते आते थोड़ा अंधेरा हो जाया करता था तो अकसर मेरे पिता जी मुझे अकसर रास्ते में ही देखने आ जाया करते थे ---- आज सोचता हूं कि मेरे में आत्मविश्वास बहुत था, बहुत निडर था लेकिन अपने पिता के लिये तो एक 11 साल का बालक ही था---- उन के चिंतित चेहरे को जो सुकून मुझे देखने के बाद मिलता था वह मैं ब्यां नहीं कर सकता --- शायद उन्हें यही लगता होगा कि उन्हें कुबेर का खजाना मिल गया ।

जो भी था उन दिनों मुझे यह अनुमान नहीं होता था कि अपने बच्चों की इंतज़ार में बिताये गये चंद मिनट क्यों सदियों जैसे लगते हैं --- क्योंकि अब अपने पिताजी वाला काम मैं अपने बच्चों के साथ करता हूं --- और जिंदगी का चक्र चल रहा है ---- The history repeats itself----इतिहास अपने आप को दोहराता है !!

बुधवार, 7 जनवरी 2009

कईं बार ऐसा भी होता है – आगे कुआं पीछे खाई !!

पी.एस.ए टैस्ट – इस का पूरा नाम है प्रोस्टेट स्पैसिफिक ऐंटीजन टैस्ट। दोस्तो, यह तो हम सब जानते ही हैं कि बढ़ती उम्र के साथ कईं बार पुरूषों को पेशाब में थोड़ी दिक्तत सी होने लगती है ---बार बार पेशाब आना, बिल्कुल थोड़ा थोड़ा पेशाब आना, पेशाब करने में दिक्तत होना अर्थात् ज़ोर लगना। इन सब के बारे में आपने अकसर सुना होगा और यह भी सुना होगा कि ये सब प्रोस्टेट के बढ़ने के हो सकते हैं--- भारत के इस हिस्से में तो आम तौर पर यही कहा जाता है कि उस की गदूद बढ़ गई है।

गदूद बढ़ने को कहते हैं --- प्रोस्टेट एनलार्जमैंट । इस के लिये सर्जन से संपर्क करना आवश्यक होता है जो कि अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद और चैक-अप करने के बाद यह निर्णय लेते हैं कि इस का आप्रेशन करना अभी बनता है कि नहीं, क्या अभी दवाईयों से चलेगा या नहीं। इस में ऐसे भी कईं मरीज़ देखे जाते हैं जिन्हें थोड़ी बहुत तकलीफ़ तो होती है लेकिन वे इस तरफ़ ध्यान नहीं देते लेकिन एक दिन अचानक पेशाब रूक जाने की वजह से इन्हें एमरजैंसी में पेशाब के लिये नली ( catheter) भी डलवानी पड़ सकती है --- यह नली स्थायी तौर पर ही नहीं लग जाती --- इस से मरीज़ के रूके हुये पेशाब को निकाल दिया जाता है और उस के बाद इस बढ़े हुये प्रोस्ट्रेट के इलाज के बारे में सोचा जाता है।

अब देखते हैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात --- पुरूष की प्रोस्टेट ग्रंथि एक प्रोटीन बनाती है जिसे कहते हैं प्रोटीन स्पैसिफिक ऐंटीजन जिस के स्तर को रक्त की जांच द्वारा मापा जा सकता है। कुछ बीमारियों में जिन में प्रोस्टेट का कैंसर शामिल है प्रोस्ट्रेट इस को ज्यादा मात्रा में बनाने लगता है इसलिये किसी पुरूष के रक्त की जांच कर के डाक्टरों को प्रोस्टेट कैंसर का बिल्कुल प्रारंभिक अवस्था में पता चल सकता है।

डाक्टर लोग अभी तक इस के बारे में एक राय नहीं बना पाये हैं कि क्या 50 वर्ष की उम्र पार कर लेने पर सभी पुरूषों का यह टैस्ट करवाना उचित है । इस का कारण यह है कि इस प्रोस्टेट टैस्ट के द्वारा जिन प्रोस्टेट कैंसर का पता चलता है उन में से बहुत से केस ऐसे भी होते हैं जिन में से यह कैंसर प्रोस्टेट के एक बिल्कुल ही छोटे से क्षेत्र तक ही महदूद रहता है और ये कभी भी आगे फैलता नहीं है जिस की वजह से कोई मैडीकल व्याधियां उत्पन्न ही नहीं होती।

अब ऐसा है न कि इस तरह के बिल्कुल छोटे से कैंसर का भी जब किसी को पता चलता है और वह उस का कोई उपचार नहीं करवाता तो भी उस की तो रातों की नींद उड़ी रहती है। और अगर वह इस तरह के बिल्कुल छोटे कैंसर का ( जिस ने भविष्य में कभी फैलना ही नहीं था) --- उपचार करवा लेता है तो उस को इस के इलाज के संभावित साइड-इफैक्ट्स जैसे कि यौन-सक्षमता का खो जाना और पेशाब की लीकेज की शिकायत हो जाना ( possible side effects such as loss of sexual function, or leakage of urine). वैसे देखा जाए तो बिल्कुल उस कहावत जैसी बात ही यहां भी लग रही है न --- आगे कुआं पीछे खाई --- बंदा जाए तो कहां जाए !!

दूसरी तरफ़ बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर प्रोस्ट्रेट के ऐसे किसी कैंसर को प्रारंभिक अवस्था में ही पकड़ लिया जाए और समुचित उपचार कर दिया जाए तो समझ लीजिये बंदे को जीवनदान मिल गया। इसीलिये डाक्टर आज कर इस बात को खोज निकालने में पूरे तन-मन से लगे हुये हैं कि आखिर किस तकनीक से उन्हें यह पता लगे कि कौन सा प्रोस्टेट कैंसर फैलेगा और किस केस में यह शेर सारी उम्र सोया रहेगा ------- ताकि सोये हुये शेर को बिना वजह क्यों जगाया जाए !!

इस टैस्ट के लिये कोई विशेष तैयारी की आवश्यकता होती नहीं है लेकिन इस की रिपोर्ट कृत्तिम तौर पर बहुत बढ़ी हुई न आए ( artificially high test level) इस के लिये अमुक व्यक्ति को टैस्ट से पूर्व एक दिन संभोग नहीं करना चाहिये। और अगर आप कोई दवाईयां ले रहे हैं तो इस की जानकारी अपने डाक्टर को दे दें – इस से आप के डाक्टर को आप के टैस्ट का परिणाम समझने में आसानी होगी।

अब यह पोस्ट पढ़ने के बाद किसी के भी मन में यह प्रश्न पैदा होना स्वाभाविक है कि अब तक अगर डाक्टर लोग ही बिल्कुल छोटे प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिये अपनी एक राय नहीं बना पाये हैं तो हम लोग कैसे निर्णय लें कि इलाज करवायें या नहीं ---- सर्जरी करवाये या नहीं ---- इस का जवाब तो दोस्तो यही है कि ये जो ये जो मंजे हुये सर्जन होते हैं इन को मरीज़ की जांच करने के बाद, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट से , पीएसए टैस्ट से काफ़ी हद तक अनुमान हो ही जाता है कि इस केस की सर्जरी की आवश्यकता है कि नहीं !! और ध्यान रहे कि इन धुरंधर विशेषज्ञों की राय के आगे नतमस्तक होने के इलावा कोई चारा भी तो नहीं है क्योंकि इन्हें अंदर की भी सारी खबर है।

आज कल तो प्रोस्टेट के इलाज के लिये बहुत ही बढ़िया तकनीकों का पसार हो चुका है । दूरबीन से भी बढ़े हुये प्रोस्टेट को निकाल दिया जाता है --- इसलिये कोई इतना घबराने की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन बात इस बात का ज़रा ध्यान रहे कि अगर आप की नज़र में आप का कोई मित्र या संबंधी बढ़े हुये प्रोस्टेट के लिये दवाईयां खाये चला जा रहा है तो उसे कहें कि अगली बार किसी सर्जन से जब परामर्श हेतु जाएं तो इस टैस्ट के बारे में थोड़ी चर्चा ज़रूर करें।

क्या मैं भी कभी कभी सुबह सुबह इतने गंभीर विषयों पर लिखना शुरू कर देता हूं ---- तो, ठीक है , दोस्तो, खुश रहिये और परमात्मा आप सब को सेहत की नेमत से नवाज़ता रहे ---- मुझे अभी ध्यान आ रहा है कि मैं भी आप सब हिंदी के प्रकांड विद्वानों में घुस कर हिंदी के शब्दों की धज्जियां उड़ाने में लगा रहता हूं --- और आप सब लोग इतने विशाल हृदय हो कि फिर भी मुझे स्वीकार कर लेते हो--- दरअसल मैं जिन शब्दों को जैसा सुनता हूं वैसा ही लिख देता हूं --- कल ही एक सज्जन की पोस्ट से पता चला ( कथाकार डॉट काम) कि सही शब्द है खतो-किताबत न कि खतो-खिताबत जैसा कि मैं सोचा करता था --- और दोस्तो मुझे यह तो ज़रूर ही बताने की कृपा करें कि सही शब्द सांझा है या साझा ---किसे से विचार सांझे किये जाते हैं या साझे ----मुझे इस में बहुत बार दुविधा होती है !!

अच्छा तो आज का दिन आप सब के लिये बहुत सी खुशियां ले कर आए ---- दो दिन पहले कनॉट-प्लेस की एक दीवार पर लिखी इस बात का ध्यान आ रहा है ------ When you look for the good in others, you discover the best in yourself !!----- जब आप किसी दूसरे की अच्छाईयां ढूंढने में लग जाते हो और आप को खुद की श्रेष्टताएं , विलक्षणता स्वयं ही दिखनी शुरू हो जाती हैं ---कहने वाले ने भी कितना बढ़िया बात कर दी है, दोस्तो !!

सोमवार, 5 जनवरी 2009

इंटरनेट पर स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी के लिये वेबसाइटें

इंटरनेट पर स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त करने के लिये कुछ बेहद महत्त्वपूर्ण वेबसाइटों ( हाइपरलिंक्स सहित) को कहीं नोट करियेगा।

Centre for Disease Control and Prevention – सैंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एवं प्रिवेंशन –
www.cdc.gov
अन्य विशेषताओं के साथ साथ इस वेबसाइट पर एक विभिन्न रोगों का एक ए टू ज़ेड ( A to Z Disease Index) है जिस के द्वारा आप किसी भी शारीरिक एवं मानसिक तकलीफ़ के बारे में विस्तृत्त जानकारी हासिल कर सकते हैं।

U.S. Department of Health & Human Services’s National Institutes of Health – यूनाइटेड स्टेटज़ के हैल्थ एवं ह्यूमन सर्विसिज़ विभाग की नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हैल्थ की यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण वेबसाइट है जिस में स्वास्थ्य के सभी विषयों की समुचित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
www.nih.gov

Labtestsonline --- लैबोरेट्री टैस्टों के लिये लैबटैस्ट ऑनलाइन – किसी भी लैबोरेट्री टैस्ट के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिये अथवा किस बीमारी के लिये कौन से टैस्ट आवश्यक हैं, इस के लिये आप लॉग-ऑन कर सकते हैं ---
www.labtestsonline.org.uk

World Health Organisation – विश्व स्वास्थ्य संगठन – इस वेबसाइट पर भी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी बहुत अच्छे ढंग से मुहैया करवाई जाती है।
www.who.int

US Food and Drug Administration – अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन – यह भी एक बहुत ही बढ़िया वेबसाइट है जिस में उपभोक्ताओं अर्थात् मरीज़ों के हितों को ध्यान में रख कर काफ़ी पठन सामग्री उपलब्ध है। अगर किसी दवा के कोई गल्त परिणाम सामने आ रहे हैं तो उसे भी इस वेबसाइट पर डाल दिया जाता है। इस साइट की इतनी विशेषताएं हैं कि आप इस की गली की तरफ भी कभी कभी ज़रूर निकल जाया करें – अगर अभी एक नमूना देखना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करिये ---
www.fda.gov

स्वास्थ्य से संबंधित कुछ अन्य वेबसाइटों के लिंक यहां दिये जा रहे हैं --- अगर कभी समय निकाल पाये तो ज़रूर देख लीजियेगा –
US Department of Health and Human Services – अमेरिकी हैल्थ एवं ह्यूमन सर्विसिज़ विभाग का लिंक यह है
www.hhs.gov

कुछ अन्य साइटों को भी देखिये ---
www.healthfinder.gov
www.informedmedicaldecisions.org
www.womenshealth.gov
www.health.gov

National Library of Medicine – नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मैडीसन भी एक बहुत बढ़िया वेबसाइट है जहां से सेहत से संबंधित बहुत बढ़िया जानकारी हासिल की जा सकती है ।
http://www.nlm.nih.gov

Medline Plus – आप की सेहत से संबंधित बहुत ही विश्वसनीय जानकारी यहां पर उपलब्ध है –
www.nlm.nih.gov/medlineplus

HealthDay – हैल्थ-डे --- स्वस्थ जीवन के कुछ गुर हम लोग यहां पर भी सीख सकते हैं –
www.healthday.com

Masachussets Medical Society – मैसाच्यूसैट्ज़ मैडीकल सोसायिटी का वेबलिंक यह है –
www.massmed.org

International News Agencies – कुछ अंतरर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसियों की वेबसाइट पर भी स्वास्थ्य संबंधी शीर्षक के अंतर्गत हैल्थ से संबंधित उम्दा जानकारी मिल जाती है
Reuters www.reuters.com

United Press International www.upi.com

Xinhua news agency www.xinhuanet.com/english

Harvard health ( हारवर्ड हैल्थ ) की भी दो साइटें बहुत बढ़िया हैं ---

www.health.harvard.edu

harvardhealth.gather.com

CNN : Health – Medical News for CNN – सी एन एन चैनल पर स्वास्थ्य संबंधित जानकारी इस लिंक पर मिल सकती है –
www.cnn.com/Health

मेरे विचार है कि आप इन वेबसाइटों की एक सूची बना कर रख लें। वैसे तो कुछ डॉट-काम वेबसाइटों पर भी बहुत उपयोगी जानकारी उपलब्ध हो जाती है लेकिन मैं सरकारी साइटों, यूनिवर्सिटी साइटों एवं ऐजुकेशनल संस्थानों की वेबसाइटों पर ही ज़्यादा निर्भर करता हूं ।

कभी कभी इन में से किसी भी वेबसाइट पर थोड़ा टहल लेना चाहिये --- एकदम ताज़ी जानकारी उपलब्ध हो जाती है।
परिवार के प्रत्येक वर्ग के लिये इन वेबसाइटों पर जानकारी उपलब्ध रहती है जैसे कि युवा वर्ग, किशोर बालाओं के लिये, गृहिणीयों के लिये , पुरूषों के लिये अलग सैक्शन रहते हैं। इन साइटों के उन सैक्शनों पर ही जाना ज़्यादा ठीक रहता है जहां पर लिखा रहता है For the Public ---- इस सैक्शन की भाषा बहुत सरल एवं सहज होती है क्योंकि इन्हें एक नॉन-मैडीकल पाठक को ध्यान में रख कर ही लिखा जाता है।

आप की सेहत की कामना के साथ ,
डा प्रवीण चोपड़ा

PS --- यह पोस्ट मैंने लगभग 20-25 दिन पहली ठेल तो दी थी --- हाथ से लिख कर – इंक-ब्लागिंग के ज़रिये – लेकिन मुझे लग रहा था कि ऐसी पोस्ट में हाइपर-लिंक्ज़ के बिना बात बन नहीं पाती है , सो आज टाइम निकाल कर यह काम पूरा कर दिया है । और दूसरी बात यह है कि इंक-ब्लॉगिंग में लिखे को गूगल-सर्च उठा नहीं पाती !!

रविवार, 4 जनवरी 2009

लगभग बीस साल बाद दिल्ली में एक रविवार .....भाग 1..

मुझे आज दिल्ली में एक राइटर्ज़-मीट( लेखन मिलन) के सिलसिले में जाना था --- प्रोग्राम तो था सुबह दस बजे से एक बजे तक – मैं यहां यमुनानगर से सुबह लगभग साढ़े चार बजे बस से चला और दिल्ली के अंतर्राजीय बसअड्डे पर लगभग साढ़े आठ बजे पहुंच गया था। वैसे तो मुझे कहीं भी आने-जाने का इतना आलस्य आता है किक्या बताऊं --- लेकिन जब किसी बहाने लेखकों से मिलने की बात होती है तो मेरे रास्ते में न तो दूरी और न हीसमय की कोई बाधा आती है। आप हिंदी चिट्ठाकारों का भी कोई समारोह हिंदोस्तान के किसी भी कोने में रख के देख लीजिये --- वहां पर भी पहुंच ही जाऊंगा। लेखकों के साथ कुछ समय बिताने के चक्कर में तो अन्य जगहों के इलावा असम के जोरहाट में भी 10 दिन लगा के आ चुका हूं।

हां, तो जैसे ही दिल्ली के बस अड्डे पर उतरा बस-अड्डे की दीवार पर इस दीवारी सूचना नेस्वागत किया --- ये एक-दो नहीं एक दीवार पर तो बीस बार ही लिखा हुआ था । इस सूचना को देख कर इतना ही सोचा कि या तो यह भी लगे हाथ कानून ही बन जाये कि किसी ने भी पेशाब करना ही नहीं है – वरना इन बीसियों नोटिसों की व्याकरण ही थोड़ी दुरूस्त कर दीजाये --- केवल वाक्य के शुरू में यहां लगाने भर की तो बात है , वरना यह तो बीड़ी-सिगरेट की मनाही याद दिलाने वाले किसी विज्ञापन की तरह ही लग रहा है !!



वैसे तो इन नोटिसों में छिपी बैठी
एक ग्रैफिटी यह भी तो थी !!























वहां से मुझे धौला कुआं जाना था – लगभग 45 मिनट का सफ़र था। रास्ते में जाते हुये पता चला कि 1 जनवरी 2009 को दिल्ली में नो-होंकिंग डे ( अर्थात् उस दिन हार्न बजेंगे ही नहीं !!)- मुझे नहीं पता कि वह दिन वास्तव में दिल्ली वालों ने कैसे मनाया होगा लेकिन इतना सोच ही रहा था कि कुछ ही दूरी पर एक अन्य बड़े से पोस्टर पर निगाह पड़ गयी ---जिस में एक हार्न के साथ एक कुत्ते की तस्वीर थी और ये पोस्टर उस कुत्ते की तरफ़ से ही लगे हुये थे जिस में वो बहुत गुस्सा से फरमा रहे थे ---
मैं बिना वजह भौंकता नहीं हूंआप भी बिना वजह हार्न बजायें।

प्रिय टॉमी, हम लोग तुम्हारे जितने समझदार होते तो बात ही क्या थी , यह नौबत ही न आती कि तुम से भी प्रवचन सुनने पड़ते !!

आगे थोड़ी दूरी पर देखा कि मैट्रो का काम चल रहा था – उस के इर्द-गिर्द लगे लोहे की शीटों पर एक बहुत ही बढ़िया संदेश हम सब के लिखा हुआ था --- हैल्मेट इज़ मोर इंपोर्टैंट दैन यूअर हेयर-स्टाईल ---
आप के हेयर-स्टाईल से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है आप का हेल्मेट पहनना!!

जहां पर दरियागंज लगभग खत्म होता है वहां पर एक बहुत बड़ा बोर्ड यह भी दिख गया --- अंग्रेज़ी में लिखा हुआ - दान देने के लिये उपर्युक्त कंबल खरीदने के लिये इस मोबाइल पर संपर्क करें – इन की कीमत 75 रूपये से शुरू होती है। बात सोचने वाली यही है कि क्या दान वाले कंबलों में प्यार की इतनी ज़्यादा हरारत होती है कि एक 75 रूपये वाला कंबल भी फुटपाथ पर पड़े हुये किसी बदकिस्मत को इस नामुराद ठिठुरन से बचा सकता है ---- एक बात और भी है न कि अब किसी का जीना-मरना तो दानकर्त्ता के हाथ में थोड़े ही है ---- सुबह वह फुटपाथी फटीचर उठे या उठे ---लेकिन ठंड की वजह से अकड़ चुके इस बंदे के पड़ोस में ही फुटपाथ पर पड़ी अखबार के स्थानीय पन्ने पर धन्ना सेठ की रंगीन फोटो के नीचे कितना साफ़ साफ़ लिखा भी तो होगा कि कल शाम धन्ना सेठ ने गरीबों में 100 कंबल बांटे ------ गिनती पूरी होनी थी , सो हो गई !! और इसी चक्कर में धन्ना सेठ ने अपना तो लोक-परलोक सुरक्षित कर लिया ---कोई घाटे का सौदा थोड़े ही है ?

दिल्ली की महत्वपूर्ण जगहों की दीवारों पर अकसर गुमशुदा लोगों की तस्वीर देख कर बहुत रहम आता है --- अरेभई, किसे पड़ी है इस चक्कर में अपने दो मिनट खराब करे ---- जो गुमशुदा हो गयें उन का तो पता है कि वेगुमशुदा हो गये हैं लेकिन ये जो लाखों लोग अपने आप से ही गुम हो चुके हैं, महानगर की भागम-भाग में इन का खुद जीवन भी तो कहीं गुम हो चुका है लेकिन इन का गुमशुदा नोटिस क्या कभी कोई छापेगा -----क्योंकि मेरे साथ साथ सब के सब डरते हैं ----सच्चाई डरावनी होती है।

वहां लेखकों के मिलन के दौरान प्रोफैसर जावेद हुसैन से ये पंक्तियां भी सुनीं ---
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रोज़ किया करते हो कोशिश जीने की ,
मरने की भी कुछ तैयारी किया करो।

अच्छा तो दिल्ली में बिताये गये इस रविवार की बकाया रिपोर्ट एवं उस लेखक-मिलन के बारे में अगली दो पोस्टों में लिखूंगा --- अभी नींद आ रही है ---आज सफर बहुत किया है ---अच्छा तो दोस्तो, शब्बा खैर !! शुभरात्रि !!