मेरी नईं नईं नौकरी लगी थी १९९१ में दिल्ली के ईएसआई अस्पताल में.....जहां किराये पर घर लिया उस के पास ही मदर डेयरी का बूथ था। शाम को जाओ, उस बूथ पर बैठे क्लर्क को पैसा दो, वह कुछ टोकन देगा, उन्हें मशीन में डालो और अपना बर्तन टोटी के नीचे रखो ...बस, दूध बाहर आ जायेगा। बड़ी हैरानगी सी हुई थी उस दिन जब पहली बार इस तरह के दूध लेकर आया था....क्योंकि जहां से हम दूध लेना देखते रहे थे, वहां पर लंबा समय इंतजार करो, इधर उधर की बक बक भी सुनो, मक्खियों-मच्छरों को सहो... फिर कहीं जा कर दूध मिलता था।
अब लगता है कि शायद उस समय के लोगों में पेशेंस कुछ ज़्यादा ही थी.......याद है बचपन में पहले साईकिल चला कर दूर डेयरी पर दूध का डोल टांग कर जाना, फिर वहां लाइन में उन की बिखरी चारपाईयों पर बैठो...फिर मशक्कत, फिर दूध......आधे-एक घंटे की तो स्कीम हो ही जाया करती थी। चलिए, वह भी समय अच्छा था, आज भी अच्छे दिन लगभग आ ही गये हैं, आहट नहीं भी सुनी तो कोई बात नहीं.
एटीएम से दूध का मिलना.....इस की खबर मुझे हिंदोस्तानी मीडिया से नहीं, बल्कि दो दिन पहले बीबीसी की न्यूज़ साइट पर मिली। पहले तो एक साधारण सी बात दिखी ...लेकिन जब इस खबर को ढंग से देखा और सुना तो लगा कि यह तो बड़े काम की चीज है।
पानी से एटीएम से दिल्ली में मिलता है शुद्ध पानी (इस लिंक पर क्लिक करने पर जो पेज खुलेगा, वहां पर लगी वीडियो भी ज़रूर देखिएगा)
दिल्ली के कईं इलाकों में पानी की एटीएम मशीनें लगी हुई हैं ...जहां पर लोग कुछ पैसा खर्च करके अपने पीने का पानी ले लेते हैं। बहुत अच्छी शुरूआत है। सारी खबर मैंने पढ़ सुन ली, लेकिन मुझे उत्सुकता थी कि आखिर कितने पैसे खर्च करने पड़ते होंगे लोगों को इस को पीने के लिए।
सर्वजल वालों की साइट पर भी रेट की कोई बात नहीं दिखी तो फिर वही किया जो हम लोग हार कर करते हैं, गूगल बाबा की शरण में चला गया। उस के सर्च रिज़ल्टस में एक पेज खुल गया जिस में हिमाचल प्रदेश में भी एक ऐसी ही पानी की एटीएम योजना शुरू की जा रही है, आज ही की खबर थी...रेट लिखा था ..पचास पैसे में एक लिटर शुद्ध पानी। बात नहीं भी हजम हो रही तो कैसे भी कर लें, लिखा तो है इस पेज पर सब कुछ साफ साफ।
अब मैं सोच रहा था कि अगर पचास पैसे में वहां हिमाचल में मिलेगा एक लिटर ऐसा शुद्ध जल तो दिल्ली में तो शायद सस्ता ही मिलना चाहिए... क्योंकि यह तो भू-जल ही है, हिमाचल के झरनों से भरा हुआ तो है नहीं, जिसे शुद्ध कर के दिल्ली की जनता तक पहुंचाया जा रहा है। बहरहाल, मुझे दिल्ली के रेट का कुछ पता नहीं है, अगर किसी पाठक को पता हो तो कमैंट में ज़रूर लिखिएगा।
पानी के बारे में यह कह देना कि कुछ लोगों को कैसा भी पानी पीने की आदत हो जाती है, बिल्कुल बेवकूफ़ों वाली बात है. जैसा पानी मेरे को चाहिए वैसा ही मेरे चपरासी को भी चाहिए, जैसे हमारे बच्चों को वैसा भी हमारे नौकर के बच्चों को भी चाहिए, कोई भी सुपर-ह्यूमन नहीं है कि किसी को तो दूषित पानी मार कर देता है किसी को नहीं करता। वो ठीक है कि कुछ समय तक वह मार दिखती न होगी, और एक ही साथ कईं बार धमाका हो जाता है।
बंबई में पिछले दिनों गया था, वहां पर पीने के पानी की २० लिटर की जो बोतल आती है वह लगभग ८०-८५ रूपये की होती है.....अब चार-पांच घर में लोग हैं तो पीने के ज़रूरतों के लिए तो सही है, और शायद उच्च-मध्यवर्गीय लोगों के लिए यह कोई विशेष बात भी न होगी कि एक-डेढ़ हज़ार पीने वाले पानी पर ही खर्च कर दिया जाए।
लेकिन यह बताने की बात नहीं है कि एक औसत भारतीय घर का बजट इतनी महंगी २० लिटर की बोतल में पटड़ी से नीचे उतर जायेगा। इसलिए जब इस तरह के सर्वजल के सस्ते, शुद्ध जल की बात सुनी तो मन खुश हुआ कि चलो, इस तरह का जल सब को मुहैया हो पाएगा।
मुझे इस तरह की स्कीम का कुछ ज़्यादा तो पता नहीं, लेकिन दुआ यही है कि दिल्ली क्या, देश के ज़्यादा से ज़्यादा इलाकों में इस तरह की स्कीमें पहुंचे......और इन के दाम लोगों की पहुंच में हों, ताकि सभी लोग पानी से होने वाली बीमारियों से बच पाएं.....गंगा मैया को साफ़ होने में समय लग सकता है, भाईयो, लेकिन इंसान के शरीर को तो हर समय साफ़-स्वच्छ जल चाहिए। काश, यह हर बाशिंदे को नसीब हो।
जो भी कंपनी ऐसे काम करती है , ज़ाहिर सी बात है, कुछ मुनाफ़े के लिए ही करती होगी, किसी भी तरह का मुनाफ़ा--- और कुछ नहीं तो सामाजिक सरोकार (या शोहरत ?) के लिए ही सही..... लेिकन फिर भी अच्छा है....बिल्कुल सुलभ-शौचालय जैसे अभियान की हल्की सी खुशबू आ रही है......क्या आप को आई?
अब बारी आती है ..पोस्ट के अंत में एक फिल्मी गीत फिट करने की......शायद जितने भी लेख मैंने पेय जल पर लिखे हैं... उन में से कुछ के अंत में यही सुपर-हिट गीत आप को टिका मिलेगा......क्या करें, बचपन के ८-१० वर्ष की अवस्था के दौरान हमारे ऐतिहासिक रेडियो पर यही बार बार बजता था, यही याद रह गया, आप भी सुनिएगा...........
अब लगता है कि शायद उस समय के लोगों में पेशेंस कुछ ज़्यादा ही थी.......याद है बचपन में पहले साईकिल चला कर दूर डेयरी पर दूध का डोल टांग कर जाना, फिर वहां लाइन में उन की बिखरी चारपाईयों पर बैठो...फिर मशक्कत, फिर दूध......आधे-एक घंटे की तो स्कीम हो ही जाया करती थी। चलिए, वह भी समय अच्छा था, आज भी अच्छे दिन लगभग आ ही गये हैं, आहट नहीं भी सुनी तो कोई बात नहीं.
एटीएम से दूध का मिलना.....इस की खबर मुझे हिंदोस्तानी मीडिया से नहीं, बल्कि दो दिन पहले बीबीसी की न्यूज़ साइट पर मिली। पहले तो एक साधारण सी बात दिखी ...लेकिन जब इस खबर को ढंग से देखा और सुना तो लगा कि यह तो बड़े काम की चीज है।
पानी से एटीएम से दिल्ली में मिलता है शुद्ध पानी (इस लिंक पर क्लिक करने पर जो पेज खुलेगा, वहां पर लगी वीडियो भी ज़रूर देखिएगा)
दिल्ली के कईं इलाकों में पानी की एटीएम मशीनें लगी हुई हैं ...जहां पर लोग कुछ पैसा खर्च करके अपने पीने का पानी ले लेते हैं। बहुत अच्छी शुरूआत है। सारी खबर मैंने पढ़ सुन ली, लेकिन मुझे उत्सुकता थी कि आखिर कितने पैसे खर्च करने पड़ते होंगे लोगों को इस को पीने के लिए।
सर्वजल वालों की साइट पर भी रेट की कोई बात नहीं दिखी तो फिर वही किया जो हम लोग हार कर करते हैं, गूगल बाबा की शरण में चला गया। उस के सर्च रिज़ल्टस में एक पेज खुल गया जिस में हिमाचल प्रदेश में भी एक ऐसी ही पानी की एटीएम योजना शुरू की जा रही है, आज ही की खबर थी...रेट लिखा था ..पचास पैसे में एक लिटर शुद्ध पानी। बात नहीं भी हजम हो रही तो कैसे भी कर लें, लिखा तो है इस पेज पर सब कुछ साफ साफ।
अब मैं सोच रहा था कि अगर पचास पैसे में वहां हिमाचल में मिलेगा एक लिटर ऐसा शुद्ध जल तो दिल्ली में तो शायद सस्ता ही मिलना चाहिए... क्योंकि यह तो भू-जल ही है, हिमाचल के झरनों से भरा हुआ तो है नहीं, जिसे शुद्ध कर के दिल्ली की जनता तक पहुंचाया जा रहा है। बहरहाल, मुझे दिल्ली के रेट का कुछ पता नहीं है, अगर किसी पाठक को पता हो तो कमैंट में ज़रूर लिखिएगा।
पानी के बारे में यह कह देना कि कुछ लोगों को कैसा भी पानी पीने की आदत हो जाती है, बिल्कुल बेवकूफ़ों वाली बात है. जैसा पानी मेरे को चाहिए वैसा ही मेरे चपरासी को भी चाहिए, जैसे हमारे बच्चों को वैसा भी हमारे नौकर के बच्चों को भी चाहिए, कोई भी सुपर-ह्यूमन नहीं है कि किसी को तो दूषित पानी मार कर देता है किसी को नहीं करता। वो ठीक है कि कुछ समय तक वह मार दिखती न होगी, और एक ही साथ कईं बार धमाका हो जाता है।
बंबई में पिछले दिनों गया था, वहां पर पीने के पानी की २० लिटर की जो बोतल आती है वह लगभग ८०-८५ रूपये की होती है.....अब चार-पांच घर में लोग हैं तो पीने के ज़रूरतों के लिए तो सही है, और शायद उच्च-मध्यवर्गीय लोगों के लिए यह कोई विशेष बात भी न होगी कि एक-डेढ़ हज़ार पीने वाले पानी पर ही खर्च कर दिया जाए।
लेकिन यह बताने की बात नहीं है कि एक औसत भारतीय घर का बजट इतनी महंगी २० लिटर की बोतल में पटड़ी से नीचे उतर जायेगा। इसलिए जब इस तरह के सर्वजल के सस्ते, शुद्ध जल की बात सुनी तो मन खुश हुआ कि चलो, इस तरह का जल सब को मुहैया हो पाएगा।
मुझे इस तरह की स्कीम का कुछ ज़्यादा तो पता नहीं, लेकिन दुआ यही है कि दिल्ली क्या, देश के ज़्यादा से ज़्यादा इलाकों में इस तरह की स्कीमें पहुंचे......और इन के दाम लोगों की पहुंच में हों, ताकि सभी लोग पानी से होने वाली बीमारियों से बच पाएं.....गंगा मैया को साफ़ होने में समय लग सकता है, भाईयो, लेकिन इंसान के शरीर को तो हर समय साफ़-स्वच्छ जल चाहिए। काश, यह हर बाशिंदे को नसीब हो।
जो भी कंपनी ऐसे काम करती है , ज़ाहिर सी बात है, कुछ मुनाफ़े के लिए ही करती होगी, किसी भी तरह का मुनाफ़ा--- और कुछ नहीं तो सामाजिक सरोकार (या शोहरत ?) के लिए ही सही..... लेिकन फिर भी अच्छा है....बिल्कुल सुलभ-शौचालय जैसे अभियान की हल्की सी खुशबू आ रही है......क्या आप को आई?
अब बारी आती है ..पोस्ट के अंत में एक फिल्मी गीत फिट करने की......शायद जितने भी लेख मैंने पेय जल पर लिखे हैं... उन में से कुछ के अंत में यही सुपर-हिट गीत आप को टिका मिलेगा......क्या करें, बचपन के ८-१० वर्ष की अवस्था के दौरान हमारे ऐतिहासिक रेडियो पर यही बार बार बजता था, यही याद रह गया, आप भी सुनिएगा...........