मैं अभी लखनऊ छावनी की उस सड़क से आ रहा था जो बेस अस्पताल के सामने से निकल कर आगे रायबरेली रोड़ पर मिल जाती है...काफ़ी लंबी सड़क है, और इस का कुछ हिस्सा अकसर सुनसान ही दिखता है।
आज भी मैंने देखा कि मेरे आगे एक बंदा जा रहा था साईकिल पर...लेकिन उस ने एक झंडा पकड़ा हुआ था...और अपनी मस्ती से साईकिल चलाता चला जा रहा था।
मुझे उत्सुकता हुई, मैंने एक फोटो तो खींच ही ली......लेकिन इतने में कहां मेरी खुजली शांत होने वाली थी...मुझे लगा कि यह बंदा किसी िमशन के तौर पर शायद साईकिल यात्रा पर निकला हुआ है...होता है ना, अकसर हम लोग देखते हैं लोग साईकिल पर भारत भ्रमण करते हुए किसी मुहिम को आगे बढ़ाते हैं।
मुझे वह मिशन जानने की तीव्र उत्सुकता तो थी ही। मैंने चलते चलते इन से वार्तालाप शुरू किया...बात मैंने शुरू कि आप कहां से आ रहे हैं...तब तक मैं देख चुका था कि उस बंदे के हाथ में एक राजनीतिक दल का झंडा था। उस ने बताया कि आज होली है, मुलायम सिंह के यहां से हो कर आ रहा हूं।
मुझे उत्सुकता हुई ...मैंने पूछा आप मुलायम सिंह के साथ होली खेल कर आ रहे हैं..तो उस ने हां में जवाब दिया...मैंने कहा ..कालिदास मार्ग पर?...हां, हां, जितने उत्साह से उसने कहा...मेरा भी उत्साह ऐसा बढ़ा कि मैंने कहा कि मैंने आप की तस्वीर खींचनी है।
वह बंदा तुरंत राजी हो गया...और उसने अपनी कमीज की ऊपरी जेब में रखी हुई लाल टोपी निकाल कर पहन ली...और फोटोशूट के लिए झट से तैयार हो गया। आप इसे भले-मानुस की तस्वीर यहां देख ही रहे हैं।
वह बताने लगे कि हर त्योहार पर वह नेता जी के यहां जाते हैं...(मुलायम सिंह यादव को नेता जी भी कहते हैं) ..दीवाली, होली ...और वहां से हम कुछ मांगते नहीं हैं लेकिन फिर भी सब कुछ मिलता है। साईकिल भी मिलता है। आगे उस ने दो तीन पंक्तियां राजनीतिक व्यक्तव्य के रूप में कहीं...मुझे ऐसे लगा जैसे यह कोई रटी-रटाई बात दोहरा रहे हैं।
खैर, दो मिनट मैं भी वहीं खड़ा हो गया... मैंने कहा कि यह झंडा साईकिल के साथ बांध ही क्यों नहीं लेते, तो कहने लगे कि नहीं, यह लंबा है, बंधेगा नहीं, ऐसा ही हाथ में ठीक है। यह मोहनलाल गंज के पास किसी गांव से आये हैं...अर्था्त् १५ किलोमीटर आना और जाना.....लेिकन उन्हें नेता जी से मिलने की बहुत खुशी थी।
मैंने पूछा कि क्या आप की नेता जी से आज कुछ बात हुई...कहने लगे कि आज कुछ बात तो नहीं हुई..लेकिन मुझे अखिलेश, राम गोपाल यादव, शिवपाल यादव सब पहचानते हैं।
मैंने कहा कि मैं आप की तस्वीर अपने सभी दोस्तों को दिखाऊंगा.......उन्हें शायद इस में कोई रुचि नहीं थी, पता नहीं उन्होंने मुझे कोई पत्रकार ही समझ लिया होगा....जो जाते जाते कह गये ....इसे नेता जी को ज़रूर दिखाईएगा।
तो एक तो थी यह मुलाकात...दो मिनट की .......दोस्तो, मैं अकसर यह बात लोगों से ज़रूर शेयर करता हूं कि हम जिन लोगों को ऐसे मिलते हैं ...आगे कि ज़िंदगी में कितनी संभावना है कि हम उसे फिर से मिलेंगे ...या देखेंगे.......ईश्वर करे वह भी शतायु हों और मैं भी ...लेकिन आप देखिए संभावना लगभग नगन्य है कि हम ऐसे फिर से एक दूसरे में टकराएंगे।आप को क्या लगता है?....अगर हम हर जगह मिलने वाले के बारे में ऐसे ही सोचने लगें कि यह हमारी आखिरी मुलाकात है तो हम कैसे किसी से ढंग से पेश नहीं आएंगे!!
एक मुलाकात और भी रही....एक नन्ही परी ..अपने मां बाप के साथ आई हुई थी ..मेरी ओपीडी के बाहर मुझे कानों में आवाज़ पड़ी उस की मां उसे खूब बुरा भला कह रही थी..बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही थी, मां कह रही थी कि तुम जहां भी जाती हो, मुझे परेशान ही करती हो, हमें अब इतना अनुभव हो गया है कि हमारी ओपीडी के बाहर चल क्या रहा है, हमें अकसर इस की पूरी खबर रहती है, आवाज़ों से फीडबैक मिलता रहता है।
मैंने अपने अटेंडेंट को कहा कि जिस औरत की यह छोटी बच्ची है उसे पहले बुला लो, अदंर आते ही चुप हो गई...मैं उस की मां का इलाज कर रहा था तो मैंने अचानक पीछे देखा कि वह चुपचाप अपनी मां के ब्रुश के साथ अपने दांत मांजने की कोशिश कर रही थी। तो यह तो थी इस नन्ही परी से छोटी सी मुलाकात..
और अब इस पोस्ट को लिखते लिखते राजेश खन्ना पर फिल्माए गये उस सुपर डुपर गीत का ध्यान आ गया ....ठीक है, राजेश खन्ना जिन अनजान लोगों से मिलने की बात कर रहे हैं वह अऩजान ग्रामीण भी हो सकता है और नन्ही परी ......हमारे हर तरफ़ उत्सव का वातावरण है, अगर हम इस महसूस करने की परवाह करें तो..
दोस्तो, यह गीत मैंने किसी ज़माने में बहुत सुना है...कहीं भी बज रहा हो, तो मैं सब काम छोड़छाड़ कर इसे सुनने बैठ जाता हूं...
आज भी मैंने देखा कि मेरे आगे एक बंदा जा रहा था साईकिल पर...लेकिन उस ने एक झंडा पकड़ा हुआ था...और अपनी मस्ती से साईकिल चलाता चला जा रहा था।
मुझे उत्सुकता हुई, मैंने एक फोटो तो खींच ही ली......लेकिन इतने में कहां मेरी खुजली शांत होने वाली थी...मुझे लगा कि यह बंदा किसी िमशन के तौर पर शायद साईकिल यात्रा पर निकला हुआ है...होता है ना, अकसर हम लोग देखते हैं लोग साईकिल पर भारत भ्रमण करते हुए किसी मुहिम को आगे बढ़ाते हैं।
मुझे वह मिशन जानने की तीव्र उत्सुकता तो थी ही। मैंने चलते चलते इन से वार्तालाप शुरू किया...बात मैंने शुरू कि आप कहां से आ रहे हैं...तब तक मैं देख चुका था कि उस बंदे के हाथ में एक राजनीतिक दल का झंडा था। उस ने बताया कि आज होली है, मुलायम सिंह के यहां से हो कर आ रहा हूं।
मुझे उत्सुकता हुई ...मैंने पूछा आप मुलायम सिंह के साथ होली खेल कर आ रहे हैं..तो उस ने हां में जवाब दिया...मैंने कहा ..कालिदास मार्ग पर?...हां, हां, जितने उत्साह से उसने कहा...मेरा भी उत्साह ऐसा बढ़ा कि मैंने कहा कि मैंने आप की तस्वीर खींचनी है।
वह बंदा तुरंत राजी हो गया...और उसने अपनी कमीज की ऊपरी जेब में रखी हुई लाल टोपी निकाल कर पहन ली...और फोटोशूट के लिए झट से तैयार हो गया। आप इसे भले-मानुस की तस्वीर यहां देख ही रहे हैं।
वह बताने लगे कि हर त्योहार पर वह नेता जी के यहां जाते हैं...(मुलायम सिंह यादव को नेता जी भी कहते हैं) ..दीवाली, होली ...और वहां से हम कुछ मांगते नहीं हैं लेकिन फिर भी सब कुछ मिलता है। साईकिल भी मिलता है। आगे उस ने दो तीन पंक्तियां राजनीतिक व्यक्तव्य के रूप में कहीं...मुझे ऐसे लगा जैसे यह कोई रटी-रटाई बात दोहरा रहे हैं।
खैर, दो मिनट मैं भी वहीं खड़ा हो गया... मैंने कहा कि यह झंडा साईकिल के साथ बांध ही क्यों नहीं लेते, तो कहने लगे कि नहीं, यह लंबा है, बंधेगा नहीं, ऐसा ही हाथ में ठीक है। यह मोहनलाल गंज के पास किसी गांव से आये हैं...अर्था्त् १५ किलोमीटर आना और जाना.....लेिकन उन्हें नेता जी से मिलने की बहुत खुशी थी।
मैंने पूछा कि क्या आप की नेता जी से आज कुछ बात हुई...कहने लगे कि आज कुछ बात तो नहीं हुई..लेकिन मुझे अखिलेश, राम गोपाल यादव, शिवपाल यादव सब पहचानते हैं।
मैंने कहा कि मैं आप की तस्वीर अपने सभी दोस्तों को दिखाऊंगा.......उन्हें शायद इस में कोई रुचि नहीं थी, पता नहीं उन्होंने मुझे कोई पत्रकार ही समझ लिया होगा....जो जाते जाते कह गये ....इसे नेता जी को ज़रूर दिखाईएगा।
तो एक तो थी यह मुलाकात...दो मिनट की .......दोस्तो, मैं अकसर यह बात लोगों से ज़रूर शेयर करता हूं कि हम जिन लोगों को ऐसे मिलते हैं ...आगे कि ज़िंदगी में कितनी संभावना है कि हम उसे फिर से मिलेंगे ...या देखेंगे.......ईश्वर करे वह भी शतायु हों और मैं भी ...लेकिन आप देखिए संभावना लगभग नगन्य है कि हम ऐसे फिर से एक दूसरे में टकराएंगे।आप को क्या लगता है?....अगर हम हर जगह मिलने वाले के बारे में ऐसे ही सोचने लगें कि यह हमारी आखिरी मुलाकात है तो हम कैसे किसी से ढंग से पेश नहीं आएंगे!!
एक मुलाकात और भी रही....एक नन्ही परी ..अपने मां बाप के साथ आई हुई थी ..मेरी ओपीडी के बाहर मुझे कानों में आवाज़ पड़ी उस की मां उसे खूब बुरा भला कह रही थी..बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही थी, मां कह रही थी कि तुम जहां भी जाती हो, मुझे परेशान ही करती हो, हमें अब इतना अनुभव हो गया है कि हमारी ओपीडी के बाहर चल क्या रहा है, हमें अकसर इस की पूरी खबर रहती है, आवाज़ों से फीडबैक मिलता रहता है।
मैंने अपने अटेंडेंट को कहा कि जिस औरत की यह छोटी बच्ची है उसे पहले बुला लो, अदंर आते ही चुप हो गई...मैं उस की मां का इलाज कर रहा था तो मैंने अचानक पीछे देखा कि वह चुपचाप अपनी मां के ब्रुश के साथ अपने दांत मांजने की कोशिश कर रही थी। तो यह तो थी इस नन्ही परी से छोटी सी मुलाकात..
और अब इस पोस्ट को लिखते लिखते राजेश खन्ना पर फिल्माए गये उस सुपर डुपर गीत का ध्यान आ गया ....ठीक है, राजेश खन्ना जिन अनजान लोगों से मिलने की बात कर रहे हैं वह अऩजान ग्रामीण भी हो सकता है और नन्ही परी ......हमारे हर तरफ़ उत्सव का वातावरण है, अगर हम इस महसूस करने की परवाह करें तो..
दोस्तो, यह गीत मैंने किसी ज़माने में बहुत सुना है...कहीं भी बज रहा हो, तो मैं सब काम छोड़छाड़ कर इसे सुनने बैठ जाता हूं...