आजकल मैं एनडीटीवी इंडिया खूब देखता हूं ---मेरे लड़के ने मुझे हिदायत दी हुई है कि हिंदी में खबरें सुननी हैं तो एनडीटीवी इंडिया देखा करो। कल रात एनडीटीवी पर एक बहुत बढ़िया कार्यक्रम देखने का अवसर मिला जिस में उन्होंने आज कल मिठाईयों के रूप में बिक रहे मीठे ज़हर की अच्छी तरह पोल खोली। कार्यक्रम की प्रस्तुति भी बहुत प्रभावपूर्ण थी।
अकसर ऐसे कार्यक्रम देख कर लगने लगता है कि ये जो हिंदी के न्यूज़-मीडिया चैनल हैं ये भी आम आदमी की आंखे और कान ही हैं। इन के संवाददाता इतनी मेहनत कर के, अपने आप को जोखिम में डाल के ऐसी ऐसी बातें जनता के सामने लाते हैं जिन के बारे में वैसे तो उसे कभी पता चल ही नहीं सकता।
लेकिन सोचने की बात यह भी है कि जागरूकता से भरपूर इतने बढ़िया बढ़िया कार्यक्रम देखने के बाद क्या पब्लिक सब तरह का कचरा खाने से गुरेज़ करनी लगती है--जिस तरह से बाज़ार में मिठाईयों आदि की दुकानों पर भीड़ टूट रही होती है उसे से मुझे तो ऐसा नहीं लगता। लेकिन लोगों के मन में आज के आधुनिक मीडिया द्वारा इस तरह की बातें डालना भी एक बहुत अच्छा प्रयास है ----ठीक है जब किसी को ज़रूरत महसूस होगी वह उस ज्ञान को इस्तेमाल कर ही लेगा (इतनी जल्दी भी क्या है यारो, जब जीना है बरसों !!!)..
असर होता है---डाक्टर हूं, सब देखता, पढ़ता-सुनता रहता हूं ----अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब टीवी पर पाव रोटी या पांव रोटी का कार्यक्रम आ रहा था ---- उस दिन के बाद डबलरोटी खाने की इच्छा ही नहीं हुई। और अब घर में जब कभी ब्रैड आती है तो केवल एक ही बढ़िया ब्रांड की ही आती है ---- लोकल ब्रांड तो बच्चे अपने डॉगी को भी नहीं डालते ----कहते हैं कि जो हम नहीं खाते इस छोटू को भी नहीं देंगे।
जिस तरह से कल एनडीटीवी ने दिखाया कि किस तरह से सिंथैटिक दूध बनता है ---जिस में दूध तो होती ही नहीं, केवल कैमीकलों की ही मिश्रण होता है जो कि बीसियों भयंकर बीमारियों की खान होते हैं। मिलावटी मावे में क्या क्या होता है इसे देख कर तो लगता नहीं कि कोई मावे के पास भी फटक जाए।
देसी घी की पोल भी अच्छी तरह से खोली गई कि उस में कितनी तरह के ज़हरीले पदार्थ डाले जाते हैं। कल का कार्यक्रम देख कर छोटे बच्चे भी कहने लगे कि लगता है अब तो केवल दाल-रोटी पर ही टिक के रहना चाहिये।
मिठाईयां किसे अच्छी नहीं लगतीं----मुझे भी बेसन के लड्डू, पतीसा और बर्फी बहुत अच्छी लगती है लेकिन महंगी से महंगी दुकान की भी खरीदी इन मिठाईयों पर मेरा तो भई बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहा। इसलिये मैं कभी गलती से एक आधा टुकड़ा खा लूं तो भी मैं अपराधबोध का शिकार ही हुआ रहता हूं कि सब कुछ पता होते हुये भी .....।
हां तो बताया यह भी जा रहा है कि अगर हम इस तरह की मिलावटों से बचना चाहते हैं तो किसी मशहूर दुकान से ही खरीदी मिठाई खाएं अथवा स्वयं मिलावट की जांच कर लें। लेकिन मैं इस से इत्तफाक नहीं रखता ----किसी दुकान में बढ़़िया कांच लगवा लेने से ,एक-दो स्पलिट एसी फिट करवा लेने से क्या क्वालिटी की भी गारंटी हो जाती है। और जहां तक मिलावट को खुद जांचने की बात है अभी तक तो चांद को मांगने जैसी बात लगती है। लेकिन भवि्ष्य में इस के बारे में कुछ हो तो बहुत बढ़िया रहेगा।
मैं कईं बार सोचता हूं लोग ठीक ही कहते हैं ---हमारे यहां शायद जानें बहुत सस्ती हैं। मिलावट के बारे में टीवी चैनल इतनी जागरूकता फैला रहे हैं लेकिन फिर भी यह गोरख-धंधा फल-फूल ही रहा है। दो दिन पहले कहीं पढ़ रहा था कि अमेरिका में एशियाई मुल्कों से आयात किये हुी सूखे आलूबुखारे बिक रहे थे ----जब वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने उन की जांच की तो उन में ---- Lead (शीशा) की मात्रा बहुत अधिक पाई गई । तुरंत वहां पर उस एजेंसी ने लोगों को हिदायत दे दी कि इन सूखे आलुबुखारों से बच के रहो और यहां तक कि वहां की सरकार ने इस तरह के प्रोडक्ट्स की फोटो कंपनियों के नाम के साथ वेबसाईट पर भी डाल दी।
और एक हम हैं कि दीवाली आ रही है और शुद्ध मिठाई के लिये तरसे जा रहे हैं। मैं आज सुबह ही किसी के साथ हंसी मज़ाक कर रहा था कि देखना, खन्ना साहब, वही दिन वापिस आ जायेंगे जब हम लोगों को चीनी के खिलौनों एवं कुरमुरे से ही दीवीली मनानी पड़ा करेगी।
जावेद अख्तर ने लिखा है कि पंछी नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके, सोचा तूमने और मैंने क्या पाया इंसा होके -------उसी तरह हम लोगों ने इतनी ज़्यादा तरक्की कर ली कि हम लोग मिठाई के लिये ही तरस गये ---- बचपन में अमृतसर में खाई बर्फी का स्वाद अभी में मुंह में वैसे का वैसा ही है-------तब हमारे जैसे ही सिरफिरे हलवाई हुआ करते थे जो घंटों एक कड़ाई में पक रही दूध की रबड़ी में घंटों कड़छे मार मार के थकते नहीं थे -------लेकिन अब कहीं भी न तो ऐसे सिरफिरे हलवाई ही दिखते है और न ही वैसी छोटी छोटी हलवाईयों की दुकानें जिन की खुशबू दूर से ही आ जाया करती थी और हम बच्चों का नाटक शूरू हो जाया करता था।
PS....Please let me know some good on-line tutorials for knowing the proper placement of pictures in a blog post. And also for putting some text-boxes, full-quotes etc. Thanks.
अकसर ऐसे कार्यक्रम देख कर लगने लगता है कि ये जो हिंदी के न्यूज़-मीडिया चैनल हैं ये भी आम आदमी की आंखे और कान ही हैं। इन के संवाददाता इतनी मेहनत कर के, अपने आप को जोखिम में डाल के ऐसी ऐसी बातें जनता के सामने लाते हैं जिन के बारे में वैसे तो उसे कभी पता चल ही नहीं सकता।
लेकिन सोचने की बात यह भी है कि जागरूकता से भरपूर इतने बढ़िया बढ़िया कार्यक्रम देखने के बाद क्या पब्लिक सब तरह का कचरा खाने से गुरेज़ करनी लगती है--जिस तरह से बाज़ार में मिठाईयों आदि की दुकानों पर भीड़ टूट रही होती है उसे से मुझे तो ऐसा नहीं लगता। लेकिन लोगों के मन में आज के आधुनिक मीडिया द्वारा इस तरह की बातें डालना भी एक बहुत अच्छा प्रयास है ----ठीक है जब किसी को ज़रूरत महसूस होगी वह उस ज्ञान को इस्तेमाल कर ही लेगा (इतनी जल्दी भी क्या है यारो, जब जीना है बरसों !!!)..
असर होता है---डाक्टर हूं, सब देखता, पढ़ता-सुनता रहता हूं ----अभी कुछ दिन पहले की ही बात है जब टीवी पर पाव रोटी या पांव रोटी का कार्यक्रम आ रहा था ---- उस दिन के बाद डबलरोटी खाने की इच्छा ही नहीं हुई। और अब घर में जब कभी ब्रैड आती है तो केवल एक ही बढ़िया ब्रांड की ही आती है ---- लोकल ब्रांड तो बच्चे अपने डॉगी को भी नहीं डालते ----कहते हैं कि जो हम नहीं खाते इस छोटू को भी नहीं देंगे।
जिस तरह से कल एनडीटीवी ने दिखाया कि किस तरह से सिंथैटिक दूध बनता है ---जिस में दूध तो होती ही नहीं, केवल कैमीकलों की ही मिश्रण होता है जो कि बीसियों भयंकर बीमारियों की खान होते हैं। मिलावटी मावे में क्या क्या होता है इसे देख कर तो लगता नहीं कि कोई मावे के पास भी फटक जाए।
देसी घी की पोल भी अच्छी तरह से खोली गई कि उस में कितनी तरह के ज़हरीले पदार्थ डाले जाते हैं। कल का कार्यक्रम देख कर छोटे बच्चे भी कहने लगे कि लगता है अब तो केवल दाल-रोटी पर ही टिक के रहना चाहिये।
मिठाईयां किसे अच्छी नहीं लगतीं----मुझे भी बेसन के लड्डू, पतीसा और बर्फी बहुत अच्छी लगती है लेकिन महंगी से महंगी दुकान की भी खरीदी इन मिठाईयों पर मेरा तो भई बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहा। इसलिये मैं कभी गलती से एक आधा टुकड़ा खा लूं तो भी मैं अपराधबोध का शिकार ही हुआ रहता हूं कि सब कुछ पता होते हुये भी .....।
हां तो बताया यह भी जा रहा है कि अगर हम इस तरह की मिलावटों से बचना चाहते हैं तो किसी मशहूर दुकान से ही खरीदी मिठाई खाएं अथवा स्वयं मिलावट की जांच कर लें। लेकिन मैं इस से इत्तफाक नहीं रखता ----किसी दुकान में बढ़़िया कांच लगवा लेने से ,एक-दो स्पलिट एसी फिट करवा लेने से क्या क्वालिटी की भी गारंटी हो जाती है। और जहां तक मिलावट को खुद जांचने की बात है अभी तक तो चांद को मांगने जैसी बात लगती है। लेकिन भवि्ष्य में इस के बारे में कुछ हो तो बहुत बढ़िया रहेगा।
मैं कईं बार सोचता हूं लोग ठीक ही कहते हैं ---हमारे यहां शायद जानें बहुत सस्ती हैं। मिलावट के बारे में टीवी चैनल इतनी जागरूकता फैला रहे हैं लेकिन फिर भी यह गोरख-धंधा फल-फूल ही रहा है। दो दिन पहले कहीं पढ़ रहा था कि अमेरिका में एशियाई मुल्कों से आयात किये हुी सूखे आलूबुखारे बिक रहे थे ----जब वहां की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने उन की जांच की तो उन में ---- Lead (शीशा) की मात्रा बहुत अधिक पाई गई । तुरंत वहां पर उस एजेंसी ने लोगों को हिदायत दे दी कि इन सूखे आलुबुखारों से बच के रहो और यहां तक कि वहां की सरकार ने इस तरह के प्रोडक्ट्स की फोटो कंपनियों के नाम के साथ वेबसाईट पर भी डाल दी।
और एक हम हैं कि दीवाली आ रही है और शुद्ध मिठाई के लिये तरसे जा रहे हैं। मैं आज सुबह ही किसी के साथ हंसी मज़ाक कर रहा था कि देखना, खन्ना साहब, वही दिन वापिस आ जायेंगे जब हम लोगों को चीनी के खिलौनों एवं कुरमुरे से ही दीवीली मनानी पड़ा करेगी।
जावेद अख्तर ने लिखा है कि पंछी नदियां पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके, सोचा तूमने और मैंने क्या पाया इंसा होके -------उसी तरह हम लोगों ने इतनी ज़्यादा तरक्की कर ली कि हम लोग मिठाई के लिये ही तरस गये ---- बचपन में अमृतसर में खाई बर्फी का स्वाद अभी में मुंह में वैसे का वैसा ही है-------तब हमारे जैसे ही सिरफिरे हलवाई हुआ करते थे जो घंटों एक कड़ाई में पक रही दूध की रबड़ी में घंटों कड़छे मार मार के थकते नहीं थे -------लेकिन अब कहीं भी न तो ऐसे सिरफिरे हलवाई ही दिखते है और न ही वैसी छोटी छोटी हलवाईयों की दुकानें जिन की खुशबू दूर से ही आ जाया करती थी और हम बच्चों का नाटक शूरू हो जाया करता था।
PS....Please let me know some good on-line tutorials for knowing the proper placement of pictures in a blog post. And also for putting some text-boxes, full-quotes etc. Thanks.
जी न्यूज़ ने यह खबर इस शीर्षक से कि " इस बार की मिलावटी दिवाली है" पिछले रविवार को ही दे दी थी दोपहर को !
जवाब देंहटाएंअरे भाई, तुमने हमें संकट में डाल दिया,दीपावली के बाद ले आते ऐसी खबर ब्लागिंग में अभी क्यूं लाये, अब यह बताओ, हमारा दोस्त प्रवीण जाखड सिनियर एडिटर, 'राजस्थान पत्रीका' समाचार पत्र, डायरेक्ट लिंक हमें दीपावली की मिठाई भेजेगा तो मैं उसे स्वीकार करूं कि नहीं?
जवाब देंहटाएंलोग डेयरी प्रोडक्ट्स छोड़ क्यों नहीं देते? पश्चिमी देशों से जब हम शराब, स्मोकिंग, अश्लीलता, बीमारियाँ, कैंसर, फास्ट फ़ूड, सेक्स क्रान्ति, नौकरशाही वगैरह उधार ले सकते हैं तो वीगन आहार अपनाने में क्या कष्ट है?
जवाब देंहटाएंविदेश में जबकि वीगन होना कठिन है, वहां चीज़, मिल्क सोलिड्स, मांस, लार्ड, जिलेटिन के बिना शायद की कोई खाद्य पदार्थ बनता हो. न वहां सिंथेटिक मिल्क और ओक्सिटोसिन इंजेक्शन जैसी कोई समस्या है. पर फिर भी इन कठिनाइयों के बावजूद वहां लोग शुद्ध शाकाहार अपना रहे हैं. हमारे यहाँ तो शुद्ध शाकाहार की प्राचीन परंपरा रही है, भारतीय पाकशास्त्र इसके अनुकूल भी हैं, फिर हम ही क्यों उलटी गंगा बहा रहे हैं?
मैं खुद दस वर्ष की उम्र से लेक्टो वेजिटेरियन और पिछले साल भर से स्ट्रिक्ट वेजिटेरियन हूँ. इस एक साल में मेरा मोटापा, डिप्रेशन, ब्रोंकाइटिस, ओताइतिस-राइनाइतिस, पेप्टिक एसिड डिसीस, आँखों की कमजोरी अपने आप ठीक हो गए. बस मिठाइयों का लालच छोड़ना पड़ा, पर कई फल हैं और मीठे व्यंजन हैं जिनमे दूध प्रयोग नहीं होता सो कोई खास परेशानी नहीं हुई. अब पहले की अपेक्षा एनर्जी लेवल काफी है, और आलस भी नहीं आता. डेली कैलोरी सरप्लस भी समाप्त हो गया.
जैसे की लोग अगर शक्कर और प्रोसेस्ड फ़ूड छोड़ दें तो दांत के मरीजों में नब्बे प्रतिशत से ज्यादा की कमी आ जायेगी, बिलकुल वैसे ही लोग अगर मांस व डेयरी प्रोडक्ट्स त्याग दें तो दुनिया के आधे से ज्यादा मेडिकल इंडस्ट्री को आउट ऑफ़ बिजनेस किया जा सकता है.
Vivek Mahajan (eric)
onslaught.viv@gmail.com
अरे, इसे पढने को बारे मिठाई खाने से ही चिढ हो रही है। इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं----------
बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
मजे की बात यह है कि कुछ उत्पादों को लेकर पश्चीम को तो कोसते है, मगर नकली दवाईयाँ, नकली दूध, नकली मिठाईयाँ, इंजेक्शन लगी सब्जियाँ.....इस महान सभ्यता के लोग किस हद तक अमानवीय काम कर रहे हैं...
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के बहाने वो सिरफिरे हलवाईयों की दुकानें और हम बच्चों का नाटक मन को भिगो सा गया।
जवाब देंहटाएंਚੋਪਡਾ ਸਾਬ, ਵੇਖਿਓ ਸ਼ਾਇਦ ਇਹ ਟ੍ਯੂਟੋਰਿਅਲ ਤੁਹਾਡੇ ਕਮ ਆ ਜਾਵੇ
बी एस पाबला
मिठाई खाना खिलाना बन्द करना ही चाहिये। यह भारत के लिये अभिशाप बन गया है।
जवाब देंहटाएंडाक्टर साब! पहिले के जमाने में होली-दिवाली घर पर मैदा, बैसन, सूजी से मिठाइयाँ बनाई जाती थीं। उन में मिलावट का कोई मामला ही नहीं था। मेरे यहाँ तो अब भी यह सब वैसे ही बनता है। मेरे यहाँ पधारिए दीवाली पर बिना किसी भय के। जो खाने को मिलेगा वह शुद्ध और सही होगा।
जवाब देंहटाएंचोपडा साहब, पहले हम भारत से खुब सारी मिठाईयां लाते थे, लेकिन पिछले चार साल से एक लड्डू भी नही लात ओर ना ही भारत मै खाते है, क्योकि हमारे यहां हर चीज नकली मिलती है......पता नही लोग मोत को बेच कर अमीर क्यो बनाना चाहते है. अब हम भारत मि कुछ भी खाते डरते है आप की इस पोस्ट ने आंखे खोल दी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंI don't know about any online tutorial but i successfully uploaded pics on my blog .... you have to upload pics instead of giving links ( like here you have given of flicker.) there is option to upload image when one writes a post.
जवाब देंहटाएं--with my limited knowledge of blogs
Best regards
Web Hosting in Hindi
जवाब देंहटाएंCache Memory in Hindi
Compile Meaning In Hindi
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Animation in Hindi
Google Drive in Hindi
GSM in Hindi