हां, तो मैं दो दिन पहले अपने एक मरीज़ की बात कर रहा था जिसे जुबान (जिह्वा) का कैंसर डायग्नोज़ हुआ है। सारे टैस्ट पूरे हो चुके हैं लेकिन वह अब वह किसी चमत्कारी नीम हकीम के चक्कर में पड़ चुका है।
मैंने उसे बहुत समझाया कि आप सर्जरी करवा लो, जितना जल्दी सर्जरी करवायेंगे उतना ही बेहतर होगा। उस ने मेरे बार बार कहने के बावजूद भी मुझे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। मैं उस की मानसिकता समझ सकता हूं, आदमी सब कुछ ट्राई कर लेना चाहता है , क्या करे जब आदमी बेबस होता है तो यह सब कुछ होना स्वाभाविक ही है।
उस ने मुझे कहा कि मैं देसी दवा किसी सयाने से ला कर खा रहा हूं ---दिल्ली के पास यूपी की एक जगह का उस ने नाम लिया । कहने लगा कि जब मैं उस के पास गया तो उस ने मेरी कोई रिपोर्ट नहीं देखी, मेरा कोई टैस्ट नहीं करवाया, मुझे कहने लगा कि तेरे को जुबान का कैंसर है। यह सब मेरे मरीज़ ने मुझे बताया।
फिर आगे बताने लगा कि वह इंसान इतना नेक दिल है कि किसी से मशविरा देने के कोई पैसे नहीं लेता ---बस दवा के पैसे ही देने होते हैं ---बीस दिन की दवाई के एक हज़ार रूपये ---मैं उस की बातें के ज़रिये उस सयाने की कार्यप्रणाली समझने की कोशिश कर रहा था। फिर मेरा मरीज़ मुझे कहने लगा कि उस ने एक तो कुल्ला करने की दवाई दी है और कुल्ला करने के बाद एक दवाई जुबान पर लगाने को दी है। मरीज़ ने आगे बताया कि दवाई लगाने के बाद ही जुबान से मांस के टुकड़े से निकलने लगते हैं।
आगे मरीज़ ने बताया कि उसे लग रहा है कि उस की जुबान पर जो ज़ख्म है उस का साइज़ भी कम हो गया है। अब मैं उस की हर बात का जवाब हां या ना देने में अपने आप को बहुत असहज अनुभव कर रहा था। क्योंकि मेरी तो केवल एक ही कामना थी और है कि वह जल्दी से जल्दी सर्जरी के लिये राज़ी हो जाये ताकि वह अपनी बाकी की ज़िंदगी को जितना चैन से काट सकता है काट सके।
वह फिर मेरे से पूछने लगा कि डाक्टर साहब यह भी तो हो सकता है कि अगर एक-दो महीने के बाद मैं अपने सारे टैस्ट दोबारा से करवाऊं तो मेरे सारे टैस्ट ही ठीक हो जायेंगे ----अब मैं उस के इस सवाल का क्या जवाब देता ?
वह बंदा मेरे से बातचीत कर रहा था तो फिर अपने आप ही कहने लगा कि डाक्टर साहब, मेरी बेटी ने इंटरनेट पर सारी जानकारी हासिल कर ली है ---- यह तो बिटिया भी कह रही थी कि पापा, आप्रेशन के बिना कोई इलाज इस का नहीं है। मैं यही सोच रहा था कि जब मां-बाप को कोई तकलीफ़ होती है तो आजकल के पढ़े-लिखे बच्चे भी बेचारे जितना उन से हो पाता है सब कुछ करते हैं लेकिन ये कमबख्त कुछ रोग ही इस तरह के होते हैं कि .........!!
वह बंदा बता रहा था कि डाक्टर साहब , जितनी बातें मैंने आज आप से की हैं मैंने पिछले दो महीने में कभी नहीं की हैं। मेरा भी उस के साथ गहराई से बात करने का केवल एक ही मकसद था कि किसी तरह से यह आप्रेशन के लिये राज़ी हो जाये। रूपये-पैसे की तो कोई बात ही नहीं है ---- क्योंकि हमारा विभाग अपना कर्मचारियों की सभी प्रकार की चिकित्सा का प्रबंध करता है।
मैंने उसे इतना ज़रूर कहा कि आप मुझे दो-तीन में एक बार हास्पीटल की तरफ़ आते जाते ज़रूर मिल लिया करें ---- क्योंकि मैं उस बंदे का हौंसला बुलंद ही रखना चाहता ही हूं। मैं उस से बात कर ही रहा था कि मुझे मेरे एक 70-75 वर्षीय मरीज़ का ध्यान आ गया जिस ने कुछ साल पहले जुबान के कैंसर के इलाज के लिये सर्जरी करवाई थी --और वह नियमित रूप से चैक-अप करवाने जाता रहता है और ठीक ठाक है। मैं उसे उस का नाम लिखवा दिया और उस के घर के पते का अंदाज़ा सा दे दिया ---- वह कहने लगा कि बस इतना ही काफ़ी है, वह ढूंढ लेगा। यह मैंने इसलिये किया क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह उस से जब बातें करेगा तो उस का ढाढस बंधेगा।
रही बात उस सयाने द्वारा दी जाने वाली दवाई की ------ जहां तक मेरा ज्ञान है इस तरह के देसी-वेसी इलाज से कुछ होने वाला नहीं है। यही सोच रहा हूं कि किसी को इतनी ज़्यादा उम्मीद की रोशनी दिखा देना भी क्या ठीक है ? यह तकलीफ़ भी ऐसी है कि इस के लिये किसी प्रशिक्षित, स्पैशलिस्ट से ही इलाज करवाने से काम बन सकता है। चमत्कारी दवाईयों से कहां इन केसों में कुछ हो पाता है।
जाते जाते मरीज़ मुझे बता रहा था कि अब वह गुटखा एवं तंबाकू कभी नहीं चबायेगा ---उस ने यह सब छोड़ दिया है --- मैंने उसे तो कहा कि बहुत अच्छा किया है लेकिन मैं दुःखी इस बात पर था कि अब ये सब कुछ छोड़ तो दिया है .....ठीक है , लेकिन ....................!!!!!
मैंने उसे बहुत समझाया कि आप सर्जरी करवा लो, जितना जल्दी सर्जरी करवायेंगे उतना ही बेहतर होगा। उस ने मेरे बार बार कहने के बावजूद भी मुझे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। मैं उस की मानसिकता समझ सकता हूं, आदमी सब कुछ ट्राई कर लेना चाहता है , क्या करे जब आदमी बेबस होता है तो यह सब कुछ होना स्वाभाविक ही है।
उस ने मुझे कहा कि मैं देसी दवा किसी सयाने से ला कर खा रहा हूं ---दिल्ली के पास यूपी की एक जगह का उस ने नाम लिया । कहने लगा कि जब मैं उस के पास गया तो उस ने मेरी कोई रिपोर्ट नहीं देखी, मेरा कोई टैस्ट नहीं करवाया, मुझे कहने लगा कि तेरे को जुबान का कैंसर है। यह सब मेरे मरीज़ ने मुझे बताया।
फिर आगे बताने लगा कि वह इंसान इतना नेक दिल है कि किसी से मशविरा देने के कोई पैसे नहीं लेता ---बस दवा के पैसे ही देने होते हैं ---बीस दिन की दवाई के एक हज़ार रूपये ---मैं उस की बातें के ज़रिये उस सयाने की कार्यप्रणाली समझने की कोशिश कर रहा था। फिर मेरा मरीज़ मुझे कहने लगा कि उस ने एक तो कुल्ला करने की दवाई दी है और कुल्ला करने के बाद एक दवाई जुबान पर लगाने को दी है। मरीज़ ने आगे बताया कि दवाई लगाने के बाद ही जुबान से मांस के टुकड़े से निकलने लगते हैं।
आगे मरीज़ ने बताया कि उसे लग रहा है कि उस की जुबान पर जो ज़ख्म है उस का साइज़ भी कम हो गया है। अब मैं उस की हर बात का जवाब हां या ना देने में अपने आप को बहुत असहज अनुभव कर रहा था। क्योंकि मेरी तो केवल एक ही कामना थी और है कि वह जल्दी से जल्दी सर्जरी के लिये राज़ी हो जाये ताकि वह अपनी बाकी की ज़िंदगी को जितना चैन से काट सकता है काट सके।
वह फिर मेरे से पूछने लगा कि डाक्टर साहब यह भी तो हो सकता है कि अगर एक-दो महीने के बाद मैं अपने सारे टैस्ट दोबारा से करवाऊं तो मेरे सारे टैस्ट ही ठीक हो जायेंगे ----अब मैं उस के इस सवाल का क्या जवाब देता ?
वह बंदा मेरे से बातचीत कर रहा था तो फिर अपने आप ही कहने लगा कि डाक्टर साहब, मेरी बेटी ने इंटरनेट पर सारी जानकारी हासिल कर ली है ---- यह तो बिटिया भी कह रही थी कि पापा, आप्रेशन के बिना कोई इलाज इस का नहीं है। मैं यही सोच रहा था कि जब मां-बाप को कोई तकलीफ़ होती है तो आजकल के पढ़े-लिखे बच्चे भी बेचारे जितना उन से हो पाता है सब कुछ करते हैं लेकिन ये कमबख्त कुछ रोग ही इस तरह के होते हैं कि .........!!
वह बंदा बता रहा था कि डाक्टर साहब , जितनी बातें मैंने आज आप से की हैं मैंने पिछले दो महीने में कभी नहीं की हैं। मेरा भी उस के साथ गहराई से बात करने का केवल एक ही मकसद था कि किसी तरह से यह आप्रेशन के लिये राज़ी हो जाये। रूपये-पैसे की तो कोई बात ही नहीं है ---- क्योंकि हमारा विभाग अपना कर्मचारियों की सभी प्रकार की चिकित्सा का प्रबंध करता है।
मैंने उसे इतना ज़रूर कहा कि आप मुझे दो-तीन में एक बार हास्पीटल की तरफ़ आते जाते ज़रूर मिल लिया करें ---- क्योंकि मैं उस बंदे का हौंसला बुलंद ही रखना चाहता ही हूं। मैं उस से बात कर ही रहा था कि मुझे मेरे एक 70-75 वर्षीय मरीज़ का ध्यान आ गया जिस ने कुछ साल पहले जुबान के कैंसर के इलाज के लिये सर्जरी करवाई थी --और वह नियमित रूप से चैक-अप करवाने जाता रहता है और ठीक ठाक है। मैं उसे उस का नाम लिखवा दिया और उस के घर के पते का अंदाज़ा सा दे दिया ---- वह कहने लगा कि बस इतना ही काफ़ी है, वह ढूंढ लेगा। यह मैंने इसलिये किया क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह उस से जब बातें करेगा तो उस का ढाढस बंधेगा।
रही बात उस सयाने द्वारा दी जाने वाली दवाई की ------ जहां तक मेरा ज्ञान है इस तरह के देसी-वेसी इलाज से कुछ होने वाला नहीं है। यही सोच रहा हूं कि किसी को इतनी ज़्यादा उम्मीद की रोशनी दिखा देना भी क्या ठीक है ? यह तकलीफ़ भी ऐसी है कि इस के लिये किसी प्रशिक्षित, स्पैशलिस्ट से ही इलाज करवाने से काम बन सकता है। चमत्कारी दवाईयों से कहां इन केसों में कुछ हो पाता है।
जाते जाते मरीज़ मुझे बता रहा था कि अब वह गुटखा एवं तंबाकू कभी नहीं चबायेगा ---उस ने यह सब छोड़ दिया है --- मैंने उसे तो कहा कि बहुत अच्छा किया है लेकिन मैं दुःखी इस बात पर था कि अब ये सब कुछ छोड़ तो दिया है .....ठीक है , लेकिन ....................!!!!!
चमत्कार का आसरा लगाये कितनो को दुनिया छोड़ते देखा है मगर विज्ञान पर भरोसा करने से पहले वो चमत्कारों पर भरोसा करते हैं. अजब है..लेकिन है तो है..अपनी अपनी आस्था..आपके हमारे कहने से क्या होगा.
जवाब देंहटाएंआयुर्वेद के विषय पर आधारित भारत की सर्वाधिक पुरानी मैगजीन "धन्वंतरि" का नया विशेषांक कैंसर पर आधारित है,आयुर्वेद के आधारभूत घटक कफ़-पित्त-वात एवं रस,गुण,वीर्य,विपाक,प्रभाव आदि का उत्तर वैज्ञानिक अंधविश्वास से ग्रस्त लोग कभी नहीं समझ सकते क्योंकि यदि दुनिया के सारे उल्लू और चमगादड़ एकत्र होकर एक सुर में बोलें जिनमें कि कुछ वैज्ञानिक व चिकित्सक भी हों कि सूर्य का अस्तित्व नहीं है क्योंकि हम उसके बारे में कुछ जान ही न सके और न ही हमारा विज्ञान उसके वजूद की किसी तरह की पुष्टि करता है मानव बेकार ही अंधविश्वास में उलझ कर सूर्य नामक अस्तित्वहीन कल्पना की उपासना आदि करके महिमामंडन करते हैं तो मेरा उत्तर इतना ही होगा कि आप सब उल्लू हैं बस....। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का प्रभाव चमत्कार या बकवास ही लगेगा क्योंकि आपके पैमाने भिन्न हैं आपके लिए कैंसर,एड्स आदि तो लाइलाज हैं ही जुकाम आदि भी उपचार की सीमा से बाहर ही हैं। जरा इस तरफ आकर देखें आश्चर्य होना समाप्त हो जाएगा। अप्रेल माह के योग संदेश(बाबा रामदेव वाली मासिक पत्रिका) ने ई.टी.जी. के विषय में लिखने का साहस जुटा लिया है।
जवाब देंहटाएंजिन नीम हकीम और चमत्कारी बाबाओं की बात हो रही है....वे तो जगह जगह फैले ही हुये हैं और हर रेलवे फाटक पर बैठे मिल जाते है।
जवाब देंहटाएंध्यान रहे कि आयुर्वेद जो कि हमारे यहां सदियों से चल रहा है उस के बारे में तो हम लोग क्या टिप्पणी करेंगे, वह तो निःसंदेह परफैक्ट प्रणाली है ही । इसलिये आग्राह है कि मुंह के कैंसर के लिये किसी प्रशिक्षित एवं अनुभवी डाक्टर के बारे में लिखें ताकि मरीज़ों को फायदा हो सके। कई वेब लिंक भी हों तो ई-मेल करियेगा.
धन्यवाद, आप के द्वारा दी जानकारी रोचक लगी।
आदरणीय बाबा रामदेव जी की पत्रिका जिस का आपने उल्लेख किया है उसे आज कही से ढूंढता हूं।
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