लेकिन यही कि हमने इन्हें संजो कर रखना बंद कर दिया है, शायद तस्वीरें खींचना इतना सस्ता सा हो गया है कि हमें लगता ही नहीं कि ये भी कोई संभाल कर रखने की चीज़ है, शायद मसरूफ़ ही इतने हो गये हैं कि इस की सुध किसे है, बस वह जो एक इंस्टैंट थ्रिल है, वही काफी है, है ना यही बात!
कहने को तो हम बहुत सी जगहों पर इन तस्वीरों को हिफ़ाज़त से रखने की बात करते हैं, पड़ी भी होती हैं किसी न किसी लैपटाप, डेस्कटाप, पेनड्राइव, पोर्टेबल हार्ड डिस्क या सी डी में .......बहुत सी होंगी पड़ी हुई...अगर इन उपकरणों को फार्मेट करते समय धुल न गईं हों तो ....वाशिंग मशीन के सुपुर्द होने वाली पैंट में रखे नोट की तरह!
एक बात तो तय है कि हम अब शायद ज़रूरत से ज़्यादा प्रेक्टीकल होने लगे ..इतनी तो ज़रूरत भी न थी, इसी चक्कर में हमें पुरानी तसवीरों को वेलापंथी और दकियानूसा सा काम लगता है.....शायद।
जब हम लोग छोटे थे तो हमें तस्वीरें खिंचवाने का मौका बस केवल शादी ब्याह में ही मिलता था....पता नहीं वह भी फ्लेश मार कर ही हमें खुश कर देता होगा!
वही बात है जितनी जिस चीज की कमी रहेगी उतना ही हम उस की कद्र करना जान जाते हैं...यह हर चीज़ पर लागू होता है....अभी दो तीन महीने पहले मुझे एक बात लगा था कि मेरी जेब में कुछ पैसे कम हो गये हैं...पांच मिनट इधर उधर देखे ...नहीं मिले, मैंने भी सोचा खर्च हो गये होंगे...भूल गया....दो दिन पहले मैं एक डॉयरी ढूंढ रहा था .. तो एक नोटबुक में छः हज़ार रूपये मिले.....ध्यान आया कि उस दिन मैंने ही रखे थे सोते समय।
हम लोग आज हर चीज़ की वेल्यू इस तरह से ही करते हैं, मैं ऐसा सोचता हूं।
मैं क्यों इस बात की खाल खींचने सुबह सुबह बैठ गया हूं इस के पीछे की बात सुनाता हूं.......एक सप्ताह पहले मुझे लगा कि पुरानी तस्वीरों को पिन्ट्रस्ट पर बोर्ड बनाने के लिए यूज़ करते हैं......पुरानी तस्वीरों को ढूंढा...बड़ी मशक्कत के बाद यह पॉलीथीन में लिपटीं हमें हमारी यादें मिल गईं......एक बार लगा कि यह कुछ कम लग रही हूं. ..फिर लगा कि सारी जगह देख तो लिया है, इतनी ही होंगी। मिसिज़ ने भी कहा कि जितनी हैं बस इसी पॉलीथीन में ही हैं। यही लगा कि शायद एल्बम में से निकाल कर बच्चों ने पॉलीथीन में डाल दी होंगी।
कल रात की बात है कि बेटा अपने सिलेबस का एक नावल ढूंढ रहा था...उसे ढूंढने की बड़ी जल्दी थी क्योंकि आज उस का इंगलिश का पेपर है...वह तेज़ी तेज़ी से बुक शेल्फ देख रहा था, नावल तो उसे नहीं मिला...वह तो बाद में उसने ऑनलाइन पढ़ने की रस्म पूरी कर ली ......लेकिन अचानक उसने आवाज़ दी.....पापा, कुछ एल्बम तो यहां भी पड़ी हैं, किताबों की शेल्फ़ों में किताबों के पीछे छुपी हुई ये २०-२२ एल्बम दिख गईं।
हम लोग यही देख कर हैरान हो गये कि हम अपनी पुरानी यादों को इस तरह से संजो कर रखते हैं ! पता ही नहीं था कि ये २२ एल्बम हैं भी या नहीं!
आज कल जितना फोटो खींचना या खिंचवाना एज़ी है, आज से तीस चालीस साल पहले यह सब इतना आसान नहीं था।
चलिए आप से एक बात शेयर करता हूं कि मेरी छठी कक्षा से पहले कोई तस्वीर ही नहीं है...शायद किसी शादी ब्याह की एल्बम में होगी....लेिकन एक तस्वीर जो मेरे पास है वह यही है ....१९७० के दशक में पांचवी कक्षा की स्कालरशिप परीक्षा हुआ करती थी....हर स्कूल से कुछ छात्रों को उस में भेजा जाता था....उस में मेरा स्कालरशिप आया.......स्कूल के मेगजीन में छपनी थी.....हमें बताया गया कि आप अमृतसर के हाल बाज़ार के बांबे फोटो स्टूडियो पर पहुंच कर फोटो खिंचवाओ......सच में यार जो रोमांच उस िदन था, वह फिर कभी न तो आया और शायद ही कभी आयेगा.....अपनी सब से बढ़िया कमीज (जो पहन रखी है...हा हा हा हा) पहने मैं जब उस स्टूडियो को ढूंढ रहा था तो ऐसी फिलिंग आ रही थी कि जैसे दुनिया को ही मुट्ठी में कर लिया हो। नतीजा यह है कि आज चालीस वर्ष बाद भी यह मैगजीन मेरे पास सुरक्षित है।
उस के बाद लगभग दो साल बाद हमारे यहां बंबई से एक मेहमान आए...मेरे अकंल के दोस्त थे, उन्हें अमृतसर में कुछ काम था, कुछ दिन रहे, उन के पास कैमरा था, उन्होंने हमारे परिवार की कुछ तस्वीरें खींची और बंबई पहुंच कर हमें वे चार कलर्ड फोटो भेजीं..जो खुशी हमें उन्हें देख कर हुई ब्यां नहीं की सकती.....वे चारों फोटो भी आज तक संभाल कर रखी हुई हैं।
मुझे ऐसा लगने लगा है कि आज कल हम इंस्टेंट थ्रिल के आदि हो चुके हैं... जर्नलिज़्म के दो नियम याद रखने योग्य हैं......A picture is worth one thousand words! और The best camera is the camera in your hand! (वह कोई भी दो चार पांच दस पिक्सिल का ..कुछ भी हो, लेकिन मजा तो सारा एक लम्हे को कैद करने का है..)...याद नहीं हम लोग भी कभी कभी अर्जेंट फोटो के लिए सड़क किनारे बैठे किसी फोटोग्राफर के बेंच पर बैठ कर भी फोटो खिंचवा लिया करते थे....वह दो मिनट में हमें पानी की बाल्टी में धोकर हमें तस्वीरें थमा दिया करता था......जैसे वह शटर में घुस कर काले से कपड़े से सिर को ढांप कर हमें सावधान किया करता था, वह कोई कम रोमांचक लम्हा हुआ करता था....हा हा हा ...
दो दिन पहले अखबार में खबर थी कि यू पी सरकार लखनऊ में दो चार ऐतिहासिक जगहों पर शेल्फी स्पॉट बनाने जा रही है ताकि आज की शेल्फी-सेवी युवा पीढ़ी के जरिए लखनऊ की भव्यता के चर्चे दूर दूर तक पहुंचे और पर्यटन को बढ़ावा मिले......उस खबर में यह भी लिखा था ..बिल्कुल ताज महल के आगे बनाए गये उस बेंच की तरह..जहां पर बैठ कर फोटो खिंचवाने के लिए लोग कतार बना कर खड़े रहते हैं...उसी तरह से लखनऊ के भी पुरातन एवं आधुनिक जगहों पर ऐसी सर्वश्रेष्ठ जगहों का चयन मंजे हुए फोटोग्राफर करेंगे ....फिर उन जगहों को शेल्फी स्पॉट के तौर पर इस्तेमाल किया जायेगा। अच्छा लगा था यह पढ़ कर।
पुरानी तस्वीरें केवल तस्वीरें नहीं हैं यकीनन, अतीत में झांकने के और बीते ज़माने से कुछ न कुछ सबक सीखने के कुछ झरोखे हैं........एक तीस साल पुरानी तस्वीर देख कर अचानक एक दास्तां फिल्मों की फ्लेशबेक की तरह घूम जाती हैं...हंसा जाती हैं, सारियस भी कर जाती हैं, सोचने पर मजबूर भी करती हैं और गुदगुदाती भी तो हैं।
एक छोटी सी दास्तां ब्यां कर के बंद करता हूं इस पोस्ट को......यह मेरी छठी कक्षा की तस्वीर आप देख रहे हैं ना, जब मैं इसे खिंचवाने गया मैं तो एक तरह से अपनी बेस्ट कमीज़ डाल कर पहुंच गया...शायद दो एक साल पहले मौसी की शादी में पहनने के लिए सिलवाई थी.....लेकिन फोटोग्राफर लोगों की नज़रें अपने हिसाब से देखती हैं... उसने मुझे कहा कि तुम्हारी कमीज़ तो टाइट है, उस ने एक सुझाव दिया कि बाहर किसी दूसरे लड़के की पहन लो।
न चाहते हुए भी, मजबूरन मुझे एक लड़का को, जिस की तस्वीर तो मेगजीन मे छपनी न थी, लेकिन वह किसी दूसरे लड़के के साथ आया हुआ था...मुझे उस को कहना पड़ा... मैं दो मिनट के लिए तुम्हारी शर्ट पहन लूं.........उस लड़के ने तपाक से मुझे मना कर दिया.....दोस्तो, मैंने जितना अपमानित उस दिन फील किया, कभी नहीं किया.......शायद फोटोग्राफर भी समझ गया, उस ने इत्मीनान से उसी तंग सी बुशर्ट में ही मेरा फोटोसेशन कर लिया.........शायद वह दिन था जब मेरी खुद्दारी ने मुझे इतना झकझोर दिया कि मैंने उस दिन पहली और अंतिम बार (कल का मुझे पता नहीं, किस्मत में क्या लिखा है) किसी कोई चीज़ या इस तरह की फेवर मांगी थी। यह जो तस्वीर मैंने ऊपर टिकाई है, मुझे यह देखते ही अपनी शैक्षिक उपलब्धि पर तो गर्व होता ही है, लेिकन उस दिन वाला वह कठोर सबक भी याद आ जाता है......मैं अपने बच्चों को भी यह किस्सा ज़रूर सुनाता हूं...it is very important to remember such hard and cold lessons of life to stay grounded!
एक बात तो कहनी भूल ही गया.....अभी भी शादी की एल्बमें बरामद नहीं हो पाई हैं.....क्या करूं, अभी उन के बारे में नहीं सोचता .......ये गीत सुन लेते हैं.......बातें भूल जाती हैं....यादें.....याद आती हैं.....
कहने को तो हम बहुत सी जगहों पर इन तस्वीरों को हिफ़ाज़त से रखने की बात करते हैं, पड़ी भी होती हैं किसी न किसी लैपटाप, डेस्कटाप, पेनड्राइव, पोर्टेबल हार्ड डिस्क या सी डी में .......बहुत सी होंगी पड़ी हुई...अगर इन उपकरणों को फार्मेट करते समय धुल न गईं हों तो ....वाशिंग मशीन के सुपुर्द होने वाली पैंट में रखे नोट की तरह!
एक बात तो तय है कि हम अब शायद ज़रूरत से ज़्यादा प्रेक्टीकल होने लगे ..इतनी तो ज़रूरत भी न थी, इसी चक्कर में हमें पुरानी तसवीरों को वेलापंथी और दकियानूसा सा काम लगता है.....शायद।
जब हम लोग छोटे थे तो हमें तस्वीरें खिंचवाने का मौका बस केवल शादी ब्याह में ही मिलता था....पता नहीं वह भी फ्लेश मार कर ही हमें खुश कर देता होगा!
वही बात है जितनी जिस चीज की कमी रहेगी उतना ही हम उस की कद्र करना जान जाते हैं...यह हर चीज़ पर लागू होता है....अभी दो तीन महीने पहले मुझे एक बात लगा था कि मेरी जेब में कुछ पैसे कम हो गये हैं...पांच मिनट इधर उधर देखे ...नहीं मिले, मैंने भी सोचा खर्च हो गये होंगे...भूल गया....दो दिन पहले मैं एक डॉयरी ढूंढ रहा था .. तो एक नोटबुक में छः हज़ार रूपये मिले.....ध्यान आया कि उस दिन मैंने ही रखे थे सोते समय।
हम लोग आज हर चीज़ की वेल्यू इस तरह से ही करते हैं, मैं ऐसा सोचता हूं।
मैं क्यों इस बात की खाल खींचने सुबह सुबह बैठ गया हूं इस के पीछे की बात सुनाता हूं.......एक सप्ताह पहले मुझे लगा कि पुरानी तस्वीरों को पिन्ट्रस्ट पर बोर्ड बनाने के लिए यूज़ करते हैं......पुरानी तस्वीरों को ढूंढा...बड़ी मशक्कत के बाद यह पॉलीथीन में लिपटीं हमें हमारी यादें मिल गईं......एक बार लगा कि यह कुछ कम लग रही हूं. ..फिर लगा कि सारी जगह देख तो लिया है, इतनी ही होंगी। मिसिज़ ने भी कहा कि जितनी हैं बस इसी पॉलीथीन में ही हैं। यही लगा कि शायद एल्बम में से निकाल कर बच्चों ने पॉलीथीन में डाल दी होंगी।
कल रात की बात है कि बेटा अपने सिलेबस का एक नावल ढूंढ रहा था...उसे ढूंढने की बड़ी जल्दी थी क्योंकि आज उस का इंगलिश का पेपर है...वह तेज़ी तेज़ी से बुक शेल्फ देख रहा था, नावल तो उसे नहीं मिला...वह तो बाद में उसने ऑनलाइन पढ़ने की रस्म पूरी कर ली ......लेकिन अचानक उसने आवाज़ दी.....पापा, कुछ एल्बम तो यहां भी पड़ी हैं, किताबों की शेल्फ़ों में किताबों के पीछे छुपी हुई ये २०-२२ एल्बम दिख गईं।
बीस बाईस एल्बम का बरामद हुआ ज़खीरा |
आज कल जितना फोटो खींचना या खिंचवाना एज़ी है, आज से तीस चालीस साल पहले यह सब इतना आसान नहीं था।
छठी कक्षा ... डी ए वी स्कूल अमृतसर |
आठवीं कक्षा की एक शादी की फोटो (स्वेटर में) |
मुझे ऐसा लगने लगा है कि आज कल हम इंस्टेंट थ्रिल के आदि हो चुके हैं... जर्नलिज़्म के दो नियम याद रखने योग्य हैं......A picture is worth one thousand words! और The best camera is the camera in your hand! (वह कोई भी दो चार पांच दस पिक्सिल का ..कुछ भी हो, लेकिन मजा तो सारा एक लम्हे को कैद करने का है..)...याद नहीं हम लोग भी कभी कभी अर्जेंट फोटो के लिए सड़क किनारे बैठे किसी फोटोग्राफर के बेंच पर बैठ कर भी फोटो खिंचवा लिया करते थे....वह दो मिनट में हमें पानी की बाल्टी में धोकर हमें तस्वीरें थमा दिया करता था......जैसे वह शटर में घुस कर काले से कपड़े से सिर को ढांप कर हमें सावधान किया करता था, वह कोई कम रोमांचक लम्हा हुआ करता था....हा हा हा ...
दो दिन पहले अखबार में खबर थी कि यू पी सरकार लखनऊ में दो चार ऐतिहासिक जगहों पर शेल्फी स्पॉट बनाने जा रही है ताकि आज की शेल्फी-सेवी युवा पीढ़ी के जरिए लखनऊ की भव्यता के चर्चे दूर दूर तक पहुंचे और पर्यटन को बढ़ावा मिले......उस खबर में यह भी लिखा था ..बिल्कुल ताज महल के आगे बनाए गये उस बेंच की तरह..जहां पर बैठ कर फोटो खिंचवाने के लिए लोग कतार बना कर खड़े रहते हैं...उसी तरह से लखनऊ के भी पुरातन एवं आधुनिक जगहों पर ऐसी सर्वश्रेष्ठ जगहों का चयन मंजे हुए फोटोग्राफर करेंगे ....फिर उन जगहों को शेल्फी स्पॉट के तौर पर इस्तेमाल किया जायेगा। अच्छा लगा था यह पढ़ कर।
पुरानी तस्वीरें केवल तस्वीरें नहीं हैं यकीनन, अतीत में झांकने के और बीते ज़माने से कुछ न कुछ सबक सीखने के कुछ झरोखे हैं........एक तीस साल पुरानी तस्वीर देख कर अचानक एक दास्तां फिल्मों की फ्लेशबेक की तरह घूम जाती हैं...हंसा जाती हैं, सारियस भी कर जाती हैं, सोचने पर मजबूर भी करती हैं और गुदगुदाती भी तो हैं।
एक छोटी सी दास्तां ब्यां कर के बंद करता हूं इस पोस्ट को......यह मेरी छठी कक्षा की तस्वीर आप देख रहे हैं ना, जब मैं इसे खिंचवाने गया मैं तो एक तरह से अपनी बेस्ट कमीज़ डाल कर पहुंच गया...शायद दो एक साल पहले मौसी की शादी में पहनने के लिए सिलवाई थी.....लेकिन फोटोग्राफर लोगों की नज़रें अपने हिसाब से देखती हैं... उसने मुझे कहा कि तुम्हारी कमीज़ तो टाइट है, उस ने एक सुझाव दिया कि बाहर किसी दूसरे लड़के की पहन लो।
न चाहते हुए भी, मजबूरन मुझे एक लड़का को, जिस की तस्वीर तो मेगजीन मे छपनी न थी, लेकिन वह किसी दूसरे लड़के के साथ आया हुआ था...मुझे उस को कहना पड़ा... मैं दो मिनट के लिए तुम्हारी शर्ट पहन लूं.........उस लड़के ने तपाक से मुझे मना कर दिया.....दोस्तो, मैंने जितना अपमानित उस दिन फील किया, कभी नहीं किया.......शायद फोटोग्राफर भी समझ गया, उस ने इत्मीनान से उसी तंग सी बुशर्ट में ही मेरा फोटोसेशन कर लिया.........शायद वह दिन था जब मेरी खुद्दारी ने मुझे इतना झकझोर दिया कि मैंने उस दिन पहली और अंतिम बार (कल का मुझे पता नहीं, किस्मत में क्या लिखा है) किसी कोई चीज़ या इस तरह की फेवर मांगी थी। यह जो तस्वीर मैंने ऊपर टिकाई है, मुझे यह देखते ही अपनी शैक्षिक उपलब्धि पर तो गर्व होता ही है, लेिकन उस दिन वाला वह कठोर सबक भी याद आ जाता है......मैं अपने बच्चों को भी यह किस्सा ज़रूर सुनाता हूं...it is very important to remember such hard and cold lessons of life to stay grounded!
एक बात तो कहनी भूल ही गया.....अभी भी शादी की एल्बमें बरामद नहीं हो पाई हैं.....क्या करूं, अभी उन के बारे में नहीं सोचता .......ये गीत सुन लेते हैं.......बातें भूल जाती हैं....यादें.....याद आती हैं.....