मुझे बड़ी हैरानी हुई थी कल ओपीडी में जब उस २५-३० उम्र की महिला ने यह कहा कि उसने अपनी टुथपेस्ट इसलिए बदल दी क्योंकि नेट पर उसने एक बार देखा था कि उस में मौजूद घटकों से कैंसर हो जाता है।
समस्या यह थी कि उस पेस्ट को छोड़ कर जिस मंजन को उस ने थाम लिया था उसी मंजन की वजह से ही उसे दांतों में तकलीफ़ हो रही थी। हैरानी मुझे यह सुन कर हुई जब मैंने उसे नेट पर इन मंजनों आदि के बारे में भी कुछ पढ़ने को कहा तो वह तुरंत कहने लगी....कि इंटरनेट कहां है हमारे यहां, बस तब एक बार देखा था।
यह छोटी सी बात इसलिए आपके समक्ष रखी कि किस तरह से नेट पर उपलब्ध जानकारी आज लोगों को अपने फ़ैसले स्वयं करने के लिए एक आज़ादी सी दे रही है, देखते हैं कि यह आज़ादी ठीक भी है कि नहीं।
मेरा व्यक्तिगत विचार है कि नेट पर किसी भी शारीरिक समस्या के बारे में छोटी-मोटी जानकारी पा लेना तो एक बात है, लेकिन उसी के आधार पर जाकर अपने आप दवाई खरीद लेना या कोई ब्लड-टैस्ट करवाने या अल्ट्रासाउंड या सी टी स्कैन करवाने पहुंच जाना बिल्कुल गलत बात है। इससे कोई भी फायदा होने वाला नहीं है।
सब से पहले तो यह जान लें कि इंगलिश में भी सेहत संबंधी मामलों में अच्छी और सही जानकारी के साथ साथ इतनी गलत और भ्रामक जानकारी नेट पर पड़ी है कि सर्च करने वाले के लिए यही तय करना कईं बार मुश्किल हो जाता है कि कौन सही कह रहा होगा, कौन गलत।
इतनी इतनी कठोर और निर्दयी मार्कीट शक्तियां हैं कि आप को पता लगे बिना ही आप कहीं न कहीं बुरे फंस सकते हैं, किसी ने कोई टैस्ट बेचना है, किसी ने कोई सप्लीमैंट, कोई सेहत ही बेचने का ठेका लिए हुए है........सब कुछ बहुत ही ज़्यादा कंफ्यूज़िंग सा कर रखा है इन सब ने मिल कर --- यह जानने के लिए कि बेटा होगा या बेटी जैसे टैस्टों की किटें तो नेट पर बिकने लगी हैं।
लेकिन अंग्रेजी में फिर भी हाल इतना बुरा नहीं है, भ्रामक सामग्री की भरमार के साथ साथ विश्वसनीय सामग्री भी भरी पड़ी है, बस हमें छांटना आना चाहिए। इसी विषय पर मैंने एक पोस्ट कुछ दिन पहले लिखी थी...(बिल्कुल विश्वसनीय हैल्थ जानकारी हिंदी में मैडलाइन प्लस पर) और एक कुछ वर्ष पहले लिखी थी (इंटरनेट पर स्वास्थ्य संबंधित जानकारी के लिए वेबसाइटें), और मैं आज भी उन में लिखी सभी बातों पर कायम हूं।
जितनी दुर्दशा हिंदी में उपलब्ध सेहत संबंधी जानकारी की है, उतनी तो शायद..।
कल सुनील दीपक के ब्लॉग पर एक अच्छी पोस्ट देखने को मिली.......आप भी पढ़िए.. भाषा, स्वास्थ्य अनुसंधान और वैज्ञानिक पत्रिकाएं । हिंदी में सेहत संबधी विषयों पर जानकारी का टोटा है।
नेट पर सेहत से संबंधित विषयों पर बहुत ही खराब किस्म की जानकारी --भ्रामक तरह की-- भरी पड़ी है। ऊपर मैंने मैडलाइन प्लस का लिंक बताया है जहां पर सब कुछ विश्वसनीय ही मिलेगा और काफ़ी कुछ हिंदी में भी।
मुझे लगता है कि नेट पर सेहत की बारे में जुड़ी बातें केवल एक आधार के तौर पर पढ़ ली जाएं ....और आज की पीड़ी जैसे अभ्यस्त हो चुकी है कि फोन करने पर पिज़ा, अगले ही दिन फ्लिप-कार्ट से मंगवाई किताब की डिलिवरी.........ऐसा सेहत के साथ नहीं होना चाहिए......आज कर घर पर ही रक्त की जांच के लिए ब्लड-सैंपल लेने आ जाते हैं, ठीक है, अगर किसी चिकित्सक ने कहा है तो बिल्कुल ठीक है, आप घर पर ही सैंपल दें, लेकिन अपने आप कुछ पढ़ कर नहीं... और न ही अनाप-शनाप दवाईयां नेट से खरीदें।
सी टी स्कैन सैंटरों पर किस तरह से धड़ाधड़ सी टी स्कैन हो रहे हैं, आपको क्या लगता है कि अगर आप किसी सी टी स्कैन सैंटर या एमआरआई सैंटर पर जा कर कहेंगे कि कुछ समय से सिरदर्द जा नहीं रहा, तो क्या आप को लगता है कि वहां पर मौजूद स्टाफ आप को पहले अपने फैमिली फ़िज़िशियन से मिलने का सलाह देगा............बस, आप तो वहां से सी टी या एमआरआई करवा के ही लौटेंगे। करोड़ों रूपयों की मशीनें हैं, सफ़ेद हाथी तो हैं नहीं वे सब। काम करेंगी तो ही बैंकों की भारी किश्तें निकल पाएंगी।
इसलिए मेरी तो यही सलाह है कि नेट पर किसी भी सेहत से जुड़ी जानकारी को ध्यान से पढ़ें, इतना भी ध्यान से नहीं कि उस में लिखी सभी अशुभ एवं अप्रिय बातों को अपने ही शरीर में देखने लगें...... बस, पढ़ना तो ठीक है, लेकिन उस के आधार पर न तो मन में कोई उलझन या भ्रांति ही पैदा होने दें और न ही कोई निर्णय केवल उस पढ़ाई के आधार पर लें।
आप के पास अभी भी कुछ कुछ शहरों में आपका अपना फैमली डाक्टर उपलब्ध है......जो आपके शरीर के बारे में ही नहीं आप के मन के बारे में भी लगभग सब कुछ जानता है, उस पर भरोसा रखें, वह आगे किसी विशेषज्ञ के पास भेजे या कोई टैस्ट-वैस्ट करवाने को कहे तो ही अपना मन बनाएं, वरना सैकेंड ओपिनियन लेने में भी आखिर दिक्कत क्या है। बस, नेट पर दुकानें सजा कर बैठे जालसाज़ों से बच कर रहें, वे बैठे ही बस आप की व्लनेरेबिल्टी का फायदा उठाने के लिए।
एक उदाहरण क्या ध्यान आ गया...... आप ने किसी शारीरिक तकलीफ़ के किसी लक्षण को सर्च किया........आप को उस के पच्चीस कारण पता चल गये, पहली तो बात यह है कि आप कल्पना करेंगे कि जो सब से भयानक कारण है वही आप के केस में होगा, आप बेकार मन ही मन चिंता पाले रहेंगे लेकिन किसी फैमली डाक्टर के जब बात करने पहुंचेंगे तो उस के पके बालों के आधार पर, बीस तीस वर्ष प्रोफैशन में घिसने के आधार पर, और आप की चाल-ढाल देख कर वह दो मिनट में ही शायद आप की चिंता शांत कर दे और कुछ ज़रूरी किस्म के टेस्ट करवा के आप को भरोसा भी दिला दे।
I am reminded of a funny saying ......... Hypochondriacs...beware while reading medical literature. You may die of a misspelling! (हाईपोकांडर्रिक्स उन्हें कहते हैं जो हर समय अपने शरीर में विभिन्न रोगों की कल्पना करते रहते हैं).......
समस्या यह थी कि उस पेस्ट को छोड़ कर जिस मंजन को उस ने थाम लिया था उसी मंजन की वजह से ही उसे दांतों में तकलीफ़ हो रही थी। हैरानी मुझे यह सुन कर हुई जब मैंने उसे नेट पर इन मंजनों आदि के बारे में भी कुछ पढ़ने को कहा तो वह तुरंत कहने लगी....कि इंटरनेट कहां है हमारे यहां, बस तब एक बार देखा था।
यह छोटी सी बात इसलिए आपके समक्ष रखी कि किस तरह से नेट पर उपलब्ध जानकारी आज लोगों को अपने फ़ैसले स्वयं करने के लिए एक आज़ादी सी दे रही है, देखते हैं कि यह आज़ादी ठीक भी है कि नहीं।
मेरा व्यक्तिगत विचार है कि नेट पर किसी भी शारीरिक समस्या के बारे में छोटी-मोटी जानकारी पा लेना तो एक बात है, लेकिन उसी के आधार पर जाकर अपने आप दवाई खरीद लेना या कोई ब्लड-टैस्ट करवाने या अल्ट्रासाउंड या सी टी स्कैन करवाने पहुंच जाना बिल्कुल गलत बात है। इससे कोई भी फायदा होने वाला नहीं है।
सब से पहले तो यह जान लें कि इंगलिश में भी सेहत संबंधी मामलों में अच्छी और सही जानकारी के साथ साथ इतनी गलत और भ्रामक जानकारी नेट पर पड़ी है कि सर्च करने वाले के लिए यही तय करना कईं बार मुश्किल हो जाता है कि कौन सही कह रहा होगा, कौन गलत।
इतनी इतनी कठोर और निर्दयी मार्कीट शक्तियां हैं कि आप को पता लगे बिना ही आप कहीं न कहीं बुरे फंस सकते हैं, किसी ने कोई टैस्ट बेचना है, किसी ने कोई सप्लीमैंट, कोई सेहत ही बेचने का ठेका लिए हुए है........सब कुछ बहुत ही ज़्यादा कंफ्यूज़िंग सा कर रखा है इन सब ने मिल कर --- यह जानने के लिए कि बेटा होगा या बेटी जैसे टैस्टों की किटें तो नेट पर बिकने लगी हैं।
लेकिन अंग्रेजी में फिर भी हाल इतना बुरा नहीं है, भ्रामक सामग्री की भरमार के साथ साथ विश्वसनीय सामग्री भी भरी पड़ी है, बस हमें छांटना आना चाहिए। इसी विषय पर मैंने एक पोस्ट कुछ दिन पहले लिखी थी...(बिल्कुल विश्वसनीय हैल्थ जानकारी हिंदी में मैडलाइन प्लस पर) और एक कुछ वर्ष पहले लिखी थी (इंटरनेट पर स्वास्थ्य संबंधित जानकारी के लिए वेबसाइटें), और मैं आज भी उन में लिखी सभी बातों पर कायम हूं।
जितनी दुर्दशा हिंदी में उपलब्ध सेहत संबंधी जानकारी की है, उतनी तो शायद..।
कल सुनील दीपक के ब्लॉग पर एक अच्छी पोस्ट देखने को मिली.......आप भी पढ़िए.. भाषा, स्वास्थ्य अनुसंधान और वैज्ञानिक पत्रिकाएं । हिंदी में सेहत संबधी विषयों पर जानकारी का टोटा है।
नेट पर सेहत से संबंधित विषयों पर बहुत ही खराब किस्म की जानकारी --भ्रामक तरह की-- भरी पड़ी है। ऊपर मैंने मैडलाइन प्लस का लिंक बताया है जहां पर सब कुछ विश्वसनीय ही मिलेगा और काफ़ी कुछ हिंदी में भी।
मुझे लगता है कि नेट पर सेहत की बारे में जुड़ी बातें केवल एक आधार के तौर पर पढ़ ली जाएं ....और आज की पीड़ी जैसे अभ्यस्त हो चुकी है कि फोन करने पर पिज़ा, अगले ही दिन फ्लिप-कार्ट से मंगवाई किताब की डिलिवरी.........ऐसा सेहत के साथ नहीं होना चाहिए......आज कर घर पर ही रक्त की जांच के लिए ब्लड-सैंपल लेने आ जाते हैं, ठीक है, अगर किसी चिकित्सक ने कहा है तो बिल्कुल ठीक है, आप घर पर ही सैंपल दें, लेकिन अपने आप कुछ पढ़ कर नहीं... और न ही अनाप-शनाप दवाईयां नेट से खरीदें।
सी टी स्कैन सैंटरों पर किस तरह से धड़ाधड़ सी टी स्कैन हो रहे हैं, आपको क्या लगता है कि अगर आप किसी सी टी स्कैन सैंटर या एमआरआई सैंटर पर जा कर कहेंगे कि कुछ समय से सिरदर्द जा नहीं रहा, तो क्या आप को लगता है कि वहां पर मौजूद स्टाफ आप को पहले अपने फैमिली फ़िज़िशियन से मिलने का सलाह देगा............बस, आप तो वहां से सी टी या एमआरआई करवा के ही लौटेंगे। करोड़ों रूपयों की मशीनें हैं, सफ़ेद हाथी तो हैं नहीं वे सब। काम करेंगी तो ही बैंकों की भारी किश्तें निकल पाएंगी।
इसलिए मेरी तो यही सलाह है कि नेट पर किसी भी सेहत से जुड़ी जानकारी को ध्यान से पढ़ें, इतना भी ध्यान से नहीं कि उस में लिखी सभी अशुभ एवं अप्रिय बातों को अपने ही शरीर में देखने लगें...... बस, पढ़ना तो ठीक है, लेकिन उस के आधार पर न तो मन में कोई उलझन या भ्रांति ही पैदा होने दें और न ही कोई निर्णय केवल उस पढ़ाई के आधार पर लें।
आप के पास अभी भी कुछ कुछ शहरों में आपका अपना फैमली डाक्टर उपलब्ध है......जो आपके शरीर के बारे में ही नहीं आप के मन के बारे में भी लगभग सब कुछ जानता है, उस पर भरोसा रखें, वह आगे किसी विशेषज्ञ के पास भेजे या कोई टैस्ट-वैस्ट करवाने को कहे तो ही अपना मन बनाएं, वरना सैकेंड ओपिनियन लेने में भी आखिर दिक्कत क्या है। बस, नेट पर दुकानें सजा कर बैठे जालसाज़ों से बच कर रहें, वे बैठे ही बस आप की व्लनेरेबिल्टी का फायदा उठाने के लिए।
एक उदाहरण क्या ध्यान आ गया...... आप ने किसी शारीरिक तकलीफ़ के किसी लक्षण को सर्च किया........आप को उस के पच्चीस कारण पता चल गये, पहली तो बात यह है कि आप कल्पना करेंगे कि जो सब से भयानक कारण है वही आप के केस में होगा, आप बेकार मन ही मन चिंता पाले रहेंगे लेकिन किसी फैमली डाक्टर के जब बात करने पहुंचेंगे तो उस के पके बालों के आधार पर, बीस तीस वर्ष प्रोफैशन में घिसने के आधार पर, और आप की चाल-ढाल देख कर वह दो मिनट में ही शायद आप की चिंता शांत कर दे और कुछ ज़रूरी किस्म के टेस्ट करवा के आप को भरोसा भी दिला दे।
I am reminded of a funny saying ......... Hypochondriacs...beware while reading medical literature. You may die of a misspelling! (हाईपोकांडर्रिक्स उन्हें कहते हैं जो हर समय अपने शरीर में विभिन्न रोगों की कल्पना करते रहते हैं).......
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