अकसर मीडिया के माध्यम से देखता सुनता रहता हूं कि फलां फलां एटीएम मशीन से नकली नोट निकले। मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही ज़्यादा गंभीर मुद्दा है जिस के बारे में कोई न कोई पालिसी ज़रूर होनी ही चाहिये।
वैसे तो शायद इस के बारे में पहले ही से कोई पालिसी मौजूद हो ---शायद मुझे इस का ज्ञान न हो, वैसे पब्लिक को भी लगता है कि इस का कुछ पता-वता है नहीं।
समस्या यही है कि जिस भी आम बंदे के साथ ऐसा हादसा होता है उस की हालत तो देखते बनती है। यह चपत तो उसे लगी सो लगी, साथ में उसे यह डर सताता है कि पता नहीं अब बैंक वाले कितने तरह के सवाल पूछेंगे। मैंने एक बार रोहतक में एक ऐसे ही किसी गुमनाम आम आदमी को एक बैंक आफीसर को अपनी व्यथा सुनाते हुये सुना था।
मैंने नोटिस किया कि वह बंदा उस आफीसर से इस अंदाज़ में बात कर रहा था जैसे कि वह उस की चापलूसी कर रहा है, बिना वजह इतने दास-भाव से बात कर रहा था जैसे कि एटीएम से अगर उस के रूपयों में एक नकली पांच सौ रूपये का नोट आ गया है तो उस से कोई जुर्म हो गया है। शायद अगर मेरे साथ भी अगर इस तरह की वारदात हो तो मैं भी शायद उतनी ही विनम्रता से या उस से भी शायद ज़्यादा नर्मी से बात करूंगा।
दरअसल ऐसे मौकों पर एक आम ग्राहक की यह मानसिकता होती है कि बस कैसे भी हो मेरे यह नकली नोट जो एटीएम से निकला है --बस किसी तरह से यह एक्सचेंज हो जाये। और दूसरी बात यह होती है कि उसे कहीं न कहीं यह डर भी सताता होगा कि पता नहीं कितने सवाल उस से पूछे जायें। यह तो हम सब जानते ही हैं कि कईं बार ऐसे मौकों पर लेने के देने भी पड़ सकते हैं ----अब ग्राहक कैसे यकीन दिलाये कि यह वाला नकली नोट बैंक की एटीएम मशीन से ही निकला है।
वैसे यह बहुत कंपलैक्स ईश्यू है ना ---- वैसे देखा जाये तो एक सीधे-सादे ग्राहक का इस में क्या कसूर। मेरा विचार है कि अगर कभी ऐसा हो भी जाता है तो भी यह बैंक के उस कर्मचारी या अधिकारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होनी चाहिये जो उस मशीन में नोट डालने के लिये जिम्मेदार होता है। जब तक इस तरह का कोई नियम नहीं होता, तब तक यह सब कुछ यूं ही ढीला-ढाला चलता रहेगा। लेकिन वही बात है ना कि अब ग्राहक कैसे यह विश्वास दिलाये कि यह नोट उस मशीन से ही निकला है। और दूसरी बात यह भी है ना बैंक के इंटरैस्ट का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिये ताकि कोई भी बंदा इस तरह के नियम का गलत इस्तेमाल करते हुये अपने किसी नकली नोट को बैंक में जा कर एटीएम का बहाना बना कर एक्सचेंज न करवा पाये। शायद इस संबंध में पहले ही से कोई कानून हो, अगर इस तरह का कोई नियम है तो उसे एटीएम कक्ष में हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषा में लोगों की सूचना के लिये लिखा होना चाहिेये --- एटीएम कक्ष में ही क्यों, उस एटीएम की पर्ची पर भी यह लिखा होना चाहिये।
क्या आप को लगता है कि एटीएम में जो नोट भरे जाते हैं उन के नंबर किसी कर्मचारी द्वारा नोट किये जाते होंगे। भई जो भी आम बंदे के साथ किसी किस्म का धक्का नहीं होना चाहिये ---पांच सौ रूपये कम तो नहीं होते।
वैसे मैं इस संबंध में सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत एक आवेदन भेज कर इस संबंध में सटीक जानकारी पाने का विचार कर रहा हूं।
वैसे तो शायद इस के बारे में पहले ही से कोई पालिसी मौजूद हो ---शायद मुझे इस का ज्ञान न हो, वैसे पब्लिक को भी लगता है कि इस का कुछ पता-वता है नहीं।
समस्या यही है कि जिस भी आम बंदे के साथ ऐसा हादसा होता है उस की हालत तो देखते बनती है। यह चपत तो उसे लगी सो लगी, साथ में उसे यह डर सताता है कि पता नहीं अब बैंक वाले कितने तरह के सवाल पूछेंगे। मैंने एक बार रोहतक में एक ऐसे ही किसी गुमनाम आम आदमी को एक बैंक आफीसर को अपनी व्यथा सुनाते हुये सुना था।
मैंने नोटिस किया कि वह बंदा उस आफीसर से इस अंदाज़ में बात कर रहा था जैसे कि वह उस की चापलूसी कर रहा है, बिना वजह इतने दास-भाव से बात कर रहा था जैसे कि एटीएम से अगर उस के रूपयों में एक नकली पांच सौ रूपये का नोट आ गया है तो उस से कोई जुर्म हो गया है। शायद अगर मेरे साथ भी अगर इस तरह की वारदात हो तो मैं भी शायद उतनी ही विनम्रता से या उस से भी शायद ज़्यादा नर्मी से बात करूंगा।
दरअसल ऐसे मौकों पर एक आम ग्राहक की यह मानसिकता होती है कि बस कैसे भी हो मेरे यह नकली नोट जो एटीएम से निकला है --बस किसी तरह से यह एक्सचेंज हो जाये। और दूसरी बात यह होती है कि उसे कहीं न कहीं यह डर भी सताता होगा कि पता नहीं कितने सवाल उस से पूछे जायें। यह तो हम सब जानते ही हैं कि कईं बार ऐसे मौकों पर लेने के देने भी पड़ सकते हैं ----अब ग्राहक कैसे यकीन दिलाये कि यह वाला नकली नोट बैंक की एटीएम मशीन से ही निकला है।
वैसे यह बहुत कंपलैक्स ईश्यू है ना ---- वैसे देखा जाये तो एक सीधे-सादे ग्राहक का इस में क्या कसूर। मेरा विचार है कि अगर कभी ऐसा हो भी जाता है तो भी यह बैंक के उस कर्मचारी या अधिकारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होनी चाहिये जो उस मशीन में नोट डालने के लिये जिम्मेदार होता है। जब तक इस तरह का कोई नियम नहीं होता, तब तक यह सब कुछ यूं ही ढीला-ढाला चलता रहेगा। लेकिन वही बात है ना कि अब ग्राहक कैसे यह विश्वास दिलाये कि यह नोट उस मशीन से ही निकला है। और दूसरी बात यह भी है ना बैंक के इंटरैस्ट का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिये ताकि कोई भी बंदा इस तरह के नियम का गलत इस्तेमाल करते हुये अपने किसी नकली नोट को बैंक में जा कर एटीएम का बहाना बना कर एक्सचेंज न करवा पाये। शायद इस संबंध में पहले ही से कोई कानून हो, अगर इस तरह का कोई नियम है तो उसे एटीएम कक्ष में हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषा में लोगों की सूचना के लिये लिखा होना चाहिेये --- एटीएम कक्ष में ही क्यों, उस एटीएम की पर्ची पर भी यह लिखा होना चाहिये।
क्या आप को लगता है कि एटीएम में जो नोट भरे जाते हैं उन के नंबर किसी कर्मचारी द्वारा नोट किये जाते होंगे। भई जो भी आम बंदे के साथ किसी किस्म का धक्का नहीं होना चाहिये ---पांच सौ रूपये कम तो नहीं होते।
वैसे मैं इस संबंध में सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत एक आवेदन भेज कर इस संबंध में सटीक जानकारी पाने का विचार कर रहा हूं।
बिलकुल सही है ए.टी.एम मे जो भी नोट रखे जायें उनके नम्बर बैंक मे नोट होना चाहिये वर्ना ग्रहक की क्या गलती?
जवाब देंहटाएंइसका मतलब हमारे यहाँ की मशीनों में नकली नोट पहचानने की क्षमता नहीं है!
जवाब देंहटाएंसीधा सा इलाज: पुलिस में एफ आई आर दर्ज कराईये
लेकिन इस इलाज में जितने का नोट होगा, उससे कई गुना तो दवा-दारू में लग जायेंगे :-)
पाबला जी ने सही बात कही है उससे कई गुना दवा...
जवाब देंहटाएंवैसे कोई भी बैंक अभी तक तो नोटों के नंबर नोट नहीं करती है और अधिकतर बैंकों ने ए.टी.एम. में नोट भरने का कार्य आउटसोर्स कर रखा है, उनसे क्या आशा की जा सकती है।
चोपडा साहब , इन मेनेजर या किसी भी बेंक आधिकारी के सामने गिडगिडाने की या दिल मै किसी भी प्रकार के डर को जगह कभी नही देनी चाहिये... बल्कि उस नोट को लेकर चढ जाओ उस बेंक के मेनेजर पर फ़िर देखे खेल... चोर की दाडी मे तिन्का.. मेने एक बार शायद १० हजार या ५० हजार की दो गड्डिया बेंक से ली, ओर आदतन मै कभी नोट गिनता नही, लेकिन मेरा भाई साथ मे था, उस ने नोट गिने तो एक नोट कम, मेने भी गिने तो भी एक नॊट कम अब दुसरी गड्डि मै भी एक नोट कम, भाई बोला यह अब नही मानेगे, यह सब यही करते है..
जवाब देंहटाएंमेने कहा ठहर इस का बाओ भी माने गा, मे फ़िर उसी काऊंटर पर गया ओर फ़िर से तीन नयी गड्डियां मगवाई, सब काम खत्म होने पर जब वो पेसे मुझे देने लगा तो मेने उसे बहुत उंची आवाज मे कहा इन मे तीनो मै एक एक नोट कम है, मेरी आवाज सुन कर काफ़ी लोग इकट्टॆ हो गये, ओर उस आदमी का रंग उड गया.. थोडी देर मै मेनेजर आ गया ओर बोला आप को केसे पता ? मेने दोनो पुरानी गड्डियां सामने फ़ेंकी ओर मेने कहा इस मे भी एक एक नोट कम है,फ़िर वहा बहुत कहा सुनी हुयी उस कलर्क से, मेने पुलिस की धमकी दी ओर सारा स्ताफ़ माफ़ी मांगे.
आप लोग भी जब एटीएम से रुपये निकलवाये तो जब रुपये हाथ मै आये तो केमरे की तरफ़ शकल कर के नोट गिने....यह एक सबुत है आप के पास, ओर जब नकली निकले तो चढ जाये बेंक मेनेजर पर, ओर पुरी मशीन चेक करवाने की धमकी दे... फ़िर देखे
मै भाटिया जी की बात से सहमत हू । लेकिन होता यह् है कि हमारे यहाँ की कानून व्यवस्था इतनी लचर है कि आप की कार्यवाही करने की मंसा पर पानी फिर जाता है । जब भी बैंक मे नकली नोट आता है तो कैशियर की जिम्मेदारी होती है कि उस नोट को खारिज़ करे व पुलिस के सुपुर्द करे लेकिन कैशियर नकली नोट धारक को पुलिस का डर दिखा कर भगा देता है और उसका नकली नोट बंडल मे बान्ध देता है । पुराने सम्य मे नोट के बंडल को स्टेपल पिन लगती थी लेकिन नये नियमों के अनुसार अब पिन नही लगायी जाती है केवल पलस्टिक बैण्ड ही बन्धा हुआ आता है । जिसे कैशियर के विरूध कोई पुखता सबूत तैयार नही होता है । पहले जब स्टेपल लगा हुआ होता था तो उसके बंडल पर एक स्लीप भी लगायी जाती थी जिस पर बैंक की मुहर तारीख और कैशियर का हस्ताक्षर रहता था । जितने भी नकली नोट चलन मे है उसके लिये बैंक के कैशियर जिम्मेदार है । हमारे यहा तो एक अलग ही मामला देखने मे आया है कि आज कल जो ए टी एम का सभी बैंको ने जो नेटवर्क बनाया है उसमे बहुत ही गडबड हो रही है । ग्राहक जब पैसे निकालने ए.टी.एम जाता है तो वहा उसे पैसे की बजाय केवल निकाले जाने की रसीद ही मिलती है । और जब अपने बंक मे जाता है तो बैंक के खाते से पैसे भी कम हुये मिलते है । जब वो मैनेजर से इस के बारे मे बात करता है तो उसे खाते का स्टेटमेंट पकडा दिया जाता है । ग्राहक बेचारा कभी बैंक और कभी थाने के बीच चक्कर लगाता रहता है ।
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