शनिवार, 26 जुलाई 2008

यह मैंने भी क्या लिख दिया !!

मेरे साथ कईं बार ऐसा होता है कि जब मैं अपनी किसी पुरानी पोस्ट को पढ़ता हूं तो लगता है कि यार, यह मैंने भीक्या लिख दिया। शायद कभी कभी थोड़ी एम्बैरेसमैंट भी होती है और लगता है कि चलो, यार, कौन देख रहा है, डिलीट कर देता हूं। लेकिन मैंने आज तक अपनी किसी भी पोस्ट को इस कारण की वजह से डिलीट नहीं किया कियार, उस दिन पता नहीं क्या मूड था, क्या परिस्थितियां थीं कि ऐसा कुछ लिखा गया।

मैं सोचता हूं कि जिस घड़ी में हम जो लिख रहे हैं...अगर मैं पूरी इमानदारी से लिख रहा हूं तो वह उस समय की मेरीअंतररात्मा की आवाज़ है। और जो भी उस समय मन लिखने को कह रहा है, मैं लिख रहा हूं...तो फिर इस मेंएम्बैरेसमैंट आखिर कहां से गई। खुल कर आने दो अपने विचार दुनिया के सामने.....काले हैं, गोरे हैं, रंग-बिरंगेहैं या मटमैले हैं...विचार तो मेरे ही हैं, तो फिर इस से क्या घबराना।

मुझे लगता है कि अपनी किसी भी पुरानी पोस्ट को इस तरह के छोटे मोटे कारणों की वजह से डिलीट कर के हमलोग अपना ही नुकसान कर रहे हैं.......मैं समझता हूं कि यह सच्चाई से भागने वाली बात है। जो भी है, जो भीलिखा है , हमें उस पर स्टैंड करना चाहिये।

एक विचार और भी रहा है कि अगर हम लोग अपनी किसी पोस्ट को एडिट भी करें तो हमें पोस्ट की बॉडी में हीडेट डाल कर यह बता देना चाहिये कि मैं इस तारीख को इस पोस्ट को इन कारणों से एडिट कर रहा हूं। मैं समझताहूं कि इस से हमारी बात की विश्वसनीयता बढ़ती है। वैसे पोस्ट के नीचे तो ही जाता है जब हम लोग अपनीकिसी पोस्ट का संपादन करते हैं , लेकिन अगर पोस्ट की बॉडी में ही इस तरह की बात हो जाये तो अच्छा रहेगा।

अपनी किसी पुरानी पोस्ट को डिलीट करने की बात से ध्यान रहा है कि जब ब्लाग का नाम ही है.....वेबलॉग.....अर्थात् हम लोग जब अपनी एक डायरी ही लिख रहे हैं तो उस में इतना हो-हल्ला क्यों !!..छूटने दें जो भीकलम रंग छोड़ना चाहती है। रह रह कर वही खुशवंत सिहं जी की बात याद आती रहती है कि ऊपर वाले का शुक्र हैकि किसी ने पेन के लिये कंडोम नहीं बनाया। क्या हम लोग अपनी किसी डायरी से पुराने पन्ने निकाल कर फाड़तेहैं....क्या उन्हें इरेज़ करने की कोशिश करते हैं तो फिर पुरानी किसी भी पोस्ट को डिलीट करने का विचार भी क्योंआता है ?

लेकिन यह मेरी सोच है......आप की सोच अनेकों कारणों की वजह से मेरे से भिन्न हो सकती है। यही तो अपनीडायरी लिखने का मज़ा है, यही तो स्लेट पर घसीटे मारने का मज़ा है, जो चाहो लिखो......जितनी चाहे मस्तीकरो.....और फिर मिटा दो...............नहीं, नहीं, इस नेट वाली स्लेट से कुछ भी मिटाओ....अगर ज़रूरत हो तोपोस्ट को एडिट कर लिया जाये............क्या फर्क पड़ता है।

मुझे याद है जिस दिन मैंने यह ब्लाग मेरी स्लेट शुरू की थी ....उस दिन शायद पहली पोस्ट मैंने यही लिखा था किमेरे मन में जो भी आयेगा , लिखूंगा, उस को फिर पोंछ डालूंगा, फिर कुछ नया लिखूंगा ......लेकिन आज मैं कुछअलग ही सोच रहा हूं। और एक राज़ की बात आप से शेयर करना चाह रहा हूं कि मैं अकसर अपनी पुराने पोस्टेंपढ़ता ही नहीं हूं.......अब कौन हलवाई अपनी मिठाई खाये और वह भी बासी !!

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेबाक लेखन। और मैं कुछ कुछ सहमत हो रहा हूं। लोगों के बताने पर जो परिवर्तन होता है उसे मैं अपना पुराना लिखा स्ट्राइकथ्रू कर परिवर्तित करता हूं। जिससे स्पष्ट हो कि बदला गया है।

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  2. सही लिखा आपने। यह ब्लाग भी एक डायरी ही है। जब जो मन करे लिख दो। बस एक बात का ध्यान रखना पड़ता है कि इसे कुछ लोग पढ़ते भी हैं।

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इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...