हर रोज़ मेरी मुलाकात ऐसे मरीज़ों से होती है जो पुरानी बीमारियों से जूझ रहे होते हैं और देसी दवाईयां ले रहे होते हैं.. और देसी दवाईयां कौन सी ? जो कोई भी नीम हकीम पुड़िया बना कर इन लोगों को थमा देता है और यह लेना भी शुरू कर देते हैं।
मैं किसी भी मरीज़ द्वारा इन पुडि़यों के इस्तेमाल किये जाने के विरूद्ध हूं। उस के कारण हैं ...मैं सोचता हूं कि नामी गिरामी कंपनियों की दवाईयां तो कईं बार क्वालिटी कंट्रोल टैस्ट पास कर नहीं पाती, ऐसे में इन देसी दवाईयों का क्या भरोसा? आज कल तो अमेरिका जैसे देशों में भी कुछ तरह की ये देसी दवाईयां खूब चर्चा में हैं .... यहां जैसा तो है नहीं वहां पर, टैस्टिंग होती है और फिर पोल खुल जाती है।
दूसरा कारण यह भी है कि अकसर सुनने में आता है कि नीम-हकीमों को यह पता लग चुका है कि ये जो स्टीरॉयड नाम की दवाईयां हैं, ये राम बाण का काम कर सकती हैं ....बस इन लालची किस्म के लोगों ने इन दवाईयों को पीस कर इन पुड़ियों में मिला कर आमजन की सेहत से खिलवाड़ करना शुरू किया हुआ है। यह आज की बात नहीं है, यह सब कईं दशकों से चल रहा है।
दो दिन पहले एक महिला आईं ... उस का पति बताने लगा कि यह गठिया से ग्रस्त है ..मैंने कहा कि कोई दवाई आदि ? ...उस ने बताया कि इसे तो केवल एक देसी दवाई से ही आराम आता है ...उस से यह झट खड़ी हो जाती है .. मेरे पूछने पर उस ने बताया कि यह दवाई पुड़िया में मिलती है। मैंने उसे समझाया तो बहुत कि इस तरह की दवाई खाने के नुकसान ही नुकसान है , इस तो कईं गुणा बेहतर यही है कि आप इस के लिये कोई इलाज न ही करवाएं ...कम से कम बाकी के अंग तो बचे रहेंगे (कृपया इसे अन्यथा न लें)..
उस महिला का पति बता रहा था कि इसे न ही तो ऐलीपैथिक और न ही होमोपैथिक, आयुर्वैदिक दवा ही काम करती है .. और यह पुड़िया पिछले कईं सालों से खा रही है। अब जिस पुड़िया में स्टीरॉयड मिले हों, उस के आगे दूसरी दवाईयां क्या काम करेंगी .... लेकिन ये देसी दवाईयां स्टीरॉयड युक्त सारे शरीर को तहस-नहस कर देती हैं ... जोड़ों का दर्द तो दूर इन से कुछ भी ठीक नहीं होता, ये तो केवल क्वालीफाइड डाक्टरों के द्वारा इस्तेमाल करने वाली दवाईयां हैं।
और प्रशिक्षित डाक्टर भी इन दवाईयों को मरीज़ों को देते समय बहुत सावधानी बरतते हैं। इन दवाईयों को लेने की एक विशेष विधि होती है ...जो केवल प्रशिक्षित एवं अनुभवी डाक्टर ही जानते हैं।
मैं अकसर मरीज़ों को कहता हूं कि अगर आप को देसी इलाज ही करवाना है तो करवाएं लेकिन उस के लिये प्रशिक्षित डाक्टर हैं --होम्योपैथी में , आयुर्वेद प्रणाली के चिकित्सक हैं , वे आप को ब्रांडेड दवाईयां लिखते हैं ...अच्छी कंपनियों की दवाई लें और अपनी सेहत को दुरूस्त करें।
नीम हकीमों द्वारा पुड़िया में स्टीरायड नामक दवाईयां मिलाने की बात के इलावा मैंने बहुत बार ऐसा देखा है कि कुछ कैमिस्ट मरीज़ को तीन-चार तरह की जो खुली दवाईयां थमाते हैं उन में भी एक छोटी सी टेबलेट स्टीरायड की ही होती है ...मरीज़ का बुखार जाते ही टूट गया और कैमिस्ट हो गया सुपरहिट ....चाहे वह उसे स्टीरायड खिला खिला कर बिल्कुल खोखला ही क्यों न कर दे।
कुछ चिकित्सक अपने मरीज़ों को खुली टेबलेट्स, खुले कैप्सूल देते हैं, मुझे इस में भी आपत्ति है, जब स्ट्रिप में, बोतल में बिकने वाली दवाईयां नकली आ रही हैं, रोज़ाना मीडिया में देखते पढ़ते हैं न, तो फिर इस तरह से खुले में बिकने वाली दवाईयों की गुणवत्ता पर सवालिया निशान क्यों नहीं लगता ?
बस ध्यान केवल इतना रहे कि पुड़िया थमाने वालों से और इस तरह की पुड़िया से दूर ही रहने में समझदारी है ... वरना तो बस गोलमाल ही है। लेकिन क्या मेरे लिखने से आज से पुड़िया खानी बंद कर देंगे .. देश की अपनी समस्याएं हैं ..गरीबी, अनपढ़ता, जनसंख्या का सुनामी.....अनगिनत समस्याएं हैं, मैंने भी यह लिखते समय एक ऐसे कमरे में जहां घुप अंधेरा है, वहां पर एक सीली हुई दियासिलाई सुलगाने का जुगाड़ कर रहा हूं.... कभी तो इस गीली तीली में भी आग लगेगी.. जागरूकता का अलख जग के रहेगा , कोई बात नहीं, मैं इंतज़ार करूंगा।
मैं किसी भी मरीज़ द्वारा इन पुडि़यों के इस्तेमाल किये जाने के विरूद्ध हूं। उस के कारण हैं ...मैं सोचता हूं कि नामी गिरामी कंपनियों की दवाईयां तो कईं बार क्वालिटी कंट्रोल टैस्ट पास कर नहीं पाती, ऐसे में इन देसी दवाईयों का क्या भरोसा? आज कल तो अमेरिका जैसे देशों में भी कुछ तरह की ये देसी दवाईयां खूब चर्चा में हैं .... यहां जैसा तो है नहीं वहां पर, टैस्टिंग होती है और फिर पोल खुल जाती है।
दूसरा कारण यह भी है कि अकसर सुनने में आता है कि नीम-हकीमों को यह पता लग चुका है कि ये जो स्टीरॉयड नाम की दवाईयां हैं, ये राम बाण का काम कर सकती हैं ....बस इन लालची किस्म के लोगों ने इन दवाईयों को पीस कर इन पुड़ियों में मिला कर आमजन की सेहत से खिलवाड़ करना शुरू किया हुआ है। यह आज की बात नहीं है, यह सब कईं दशकों से चल रहा है।
दो दिन पहले एक महिला आईं ... उस का पति बताने लगा कि यह गठिया से ग्रस्त है ..मैंने कहा कि कोई दवाई आदि ? ...उस ने बताया कि इसे तो केवल एक देसी दवाई से ही आराम आता है ...उस से यह झट खड़ी हो जाती है .. मेरे पूछने पर उस ने बताया कि यह दवाई पुड़िया में मिलती है। मैंने उसे समझाया तो बहुत कि इस तरह की दवाई खाने के नुकसान ही नुकसान है , इस तो कईं गुणा बेहतर यही है कि आप इस के लिये कोई इलाज न ही करवाएं ...कम से कम बाकी के अंग तो बचे रहेंगे (कृपया इसे अन्यथा न लें)..
उस महिला का पति बता रहा था कि इसे न ही तो ऐलीपैथिक और न ही होमोपैथिक, आयुर्वैदिक दवा ही काम करती है .. और यह पुड़िया पिछले कईं सालों से खा रही है। अब जिस पुड़िया में स्टीरॉयड मिले हों, उस के आगे दूसरी दवाईयां क्या काम करेंगी .... लेकिन ये देसी दवाईयां स्टीरॉयड युक्त सारे शरीर को तहस-नहस कर देती हैं ... जोड़ों का दर्द तो दूर इन से कुछ भी ठीक नहीं होता, ये तो केवल क्वालीफाइड डाक्टरों के द्वारा इस्तेमाल करने वाली दवाईयां हैं।
और प्रशिक्षित डाक्टर भी इन दवाईयों को मरीज़ों को देते समय बहुत सावधानी बरतते हैं। इन दवाईयों को लेने की एक विशेष विधि होती है ...जो केवल प्रशिक्षित एवं अनुभवी डाक्टर ही जानते हैं।
मैं अकसर मरीज़ों को कहता हूं कि अगर आप को देसी इलाज ही करवाना है तो करवाएं लेकिन उस के लिये प्रशिक्षित डाक्टर हैं --होम्योपैथी में , आयुर्वेद प्रणाली के चिकित्सक हैं , वे आप को ब्रांडेड दवाईयां लिखते हैं ...अच्छी कंपनियों की दवाई लें और अपनी सेहत को दुरूस्त करें।
नीम हकीमों द्वारा पुड़िया में स्टीरायड नामक दवाईयां मिलाने की बात के इलावा मैंने बहुत बार ऐसा देखा है कि कुछ कैमिस्ट मरीज़ को तीन-चार तरह की जो खुली दवाईयां थमाते हैं उन में भी एक छोटी सी टेबलेट स्टीरायड की ही होती है ...मरीज़ का बुखार जाते ही टूट गया और कैमिस्ट हो गया सुपरहिट ....चाहे वह उसे स्टीरायड खिला खिला कर बिल्कुल खोखला ही क्यों न कर दे।
कुछ चिकित्सक अपने मरीज़ों को खुली टेबलेट्स, खुले कैप्सूल देते हैं, मुझे इस में भी आपत्ति है, जब स्ट्रिप में, बोतल में बिकने वाली दवाईयां नकली आ रही हैं, रोज़ाना मीडिया में देखते पढ़ते हैं न, तो फिर इस तरह से खुले में बिकने वाली दवाईयों की गुणवत्ता पर सवालिया निशान क्यों नहीं लगता ?
बस ध्यान केवल इतना रहे कि पुड़िया थमाने वालों से और इस तरह की पुड़िया से दूर ही रहने में समझदारी है ... वरना तो बस गोलमाल ही है। लेकिन क्या मेरे लिखने से आज से पुड़िया खानी बंद कर देंगे .. देश की अपनी समस्याएं हैं ..गरीबी, अनपढ़ता, जनसंख्या का सुनामी.....अनगिनत समस्याएं हैं, मैंने भी यह लिखते समय एक ऐसे कमरे में जहां घुप अंधेरा है, वहां पर एक सीली हुई दियासिलाई सुलगाने का जुगाड़ कर रहा हूं.... कभी तो इस गीली तीली में भी आग लगेगी.. जागरूकता का अलख जग के रहेगा , कोई बात नहीं, मैं इंतज़ार करूंगा।