परसों मेरे पास एक युवक आया था..उम्र २४-२५ साल की थी..मैं उसे चेक कर रहा था तो मेरा ध्यान उस के कुछ ज़्यादा ही काले बालों की तरफ़ चला गया...मैं ऐसे ही पूछ लिया ..क्या बात है बाल इतने ज़्यादा काले कैसे हैं?...मुझे उस का जवाब सुन कर बहुत ही हैरानगी हुई कि मैं बालों को कलर करता हूं...
इतनी कम उम्र के किसी नवयुवक से बालों को कलर करने वाली बात मैं पहली बार सुन रहा था...उसने बताया कि क्या करता डाक्साब, बहुत ज़्यादा बाल सफ़ेद हो गये थे...
मैंने कईं बार इस ब्लॉग पर शेयर किया है कि विविध भारती पर हर सोमवार के दिन बाद दोपहर ४ से ५ बजे तक एक प्रोग्राम आता है ..पिटारा...उस पिटारे से हर सोमवार के दिन सेहतनामा प्रोग्राम निकलता है ...इस में किसी विशेषज्ञ से वार्ता सुनाई जाती है..
कल विविध भारती में एक चमडी रोग विशेषज्ञ से बालों की सेहत के बारे में ही चर्चा चल रही थी..बीच बीच में आमंत्रित विशेषज्ञ की पसंद के हिंदी फिल्मी गीतों का तड़का भी लग रहा था..
मैं चंद मिनट तक ही इस प्रोग्राम को सुन सका...उसके बाद मेरे मरीज़ आने शुरू हो गए...लेकिन कुछ बातें इन्हीं बालों के बारे में आपसे शेयर करने की इच्छा हो रही है..
बातें हो रही थीं छोटी उम्र में युवावस्था में ही बाल झड़ने की और बाल सफ़ेद होने की ...एक बात जिस पर बहुत ज़ोर दिया जा रहा था वह यही थी कि जिस तरह से अाधुनिकता की दौड़ में जंक फूड़, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड ने हमारे पारंपरिक सीधे सादे हिंदोस्तानी को पीछे धकेल दिया है ..विशेषकर युवाओं में...उसी का परिणाम है कि बहुत ही कम उम्र में बाल गिरने लगते हैं...और बाल सफेद होने लगते हैं...डाक्साब बता रहे थे १८-२० साल के युवा आने लगे हैं जिन के बाल गिरने की वजह से उन्हें baldness परेशान करने लगी है..
अभी टीवी देख रहा हूं एक विज्ञापन आ रहा है जिस में एक २५-३० साल का एक युवक बालों के पतलेपन को दुरूस्त करने के लिए किसी हेयर-टॉनिक लगाने की सलाह दे रहा है...बिना किसी चमडी रोग विशेषज्ञ की सलाह के सब कुछ बकवास है ..बिल्कुल उसी तरह से जिस तरह से डेंटिस्ट की सलाह के बिना लोग तरह तरह के मंजन-लोशन मुंह और मसूड़ों पर लगाना शुरू कर देते हैं जिन से होता कुछ नहीं...बस रोग को बढ़ावा ही मिलता है।
दूसरी बात विविध भारती के प्रोग्राम में डाक्साब बता रहे थे ..वह यह थी कि कुछ लोग हेयर कलर करने के लिए कलर नहीं मेंहदी का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं...डाक्साब ने साफ़ साफ़ कहा कि आजकल ऐसी मेंहदी मिलती ही नहीं जिस में कैमीकल न मिला हो...बिल्कुल सही फरमाया डाक्साब ने...
वे बता रहे थे कि किस तरह से आज कल मेंहदी कुछ ही मिनटों में किस तरह से हाथों और बालों को गहरे रंग में रंग देती है ....यह सब तरह तरह के कैमीकल का ही कमाल है...जो हमारी बालों की सेहत के लिए ही नहीं, सेहत के लिए भी बहुत खराब होता है...
आप-बीती भी ब्यां करनी होती है ब्लॉग में
इधर उधर की तो हांक ही लेते हैं हम कलम वाले लोग, लेकिन ब्लॉग में आपबीती बताना भी तो अहम् होता है...
मैंने भी आज से लगभग १५ वर्ष पहले अपनी मूंछों और कान के बिल्कुल पास पास काली मेंहदी लगानी शुरू की थी...बिल्कुल थोड़ी लगाता था...लेकिन अपने आप पर हंसी आती थी यह सब करते हुए...लगाता था मैं चार पांच मिनट के लिए ही ...लेकिन जलन शुरू हो जाती थी होंठों पर...फिर धो कर बर्फ लगा लेता था...
कुछ समय बाद समझ आ गई कि यह काली वाली मेंहदी प्योर नहीं है...कैमीकल तो है ही इसमें...किसी अच्छी कंपनी की मेंहदी लेंगे ..उन दिनों गोदरेज की नुपूर मेंहदी आने लगी थी..शायद दो तीन वर्ष तक लगाता रहा ...दस पंद्रह दिन में एक बार थोड़ी सी ..चंद मिनटों के लिए ...लेकिन इसी चक्कर में मूंछों और कानों के आस पास बहुत से बाल सफेद हो गये...और ऊपर वाले होंठ पर निरंतर एलर्जी जैसी लाली रहने लगी...बहुत बार खारिश भी हो जाती।
अब लगने लगा कि इस से आगे चलें....गार्नियर कंपनी का हेयर कलर लगाना शुरू कर दिया... मूंछों पर और कान के आस पास... कर तो लेता था यह सब कुछ लेकिन अजीब सा लगता था, बहुत बड़ा फेक होने की फीलिंग आती थी...अपने आप से झूठ बोलने जैसा लगता था...
शायद चार पांच साल हो गये हैं इस बात को ...एक दिन विचार आया कि अब सिर के बाल भी बीच बीच में सफ़ेद होने लगे हैं...अब यह गार्नियर कंपनी वाला कलर सिर के बालों पर भी लगाना शुरू किया जाए....उस दिन जब बड़े बेटे ने मेरे इस फितूर के बारे में सुना तो उसने आराम से इतना ही कहा .... "What is this, yaar? One must always grow old gracefully!"
बस, उस दिन मुझे ऐसा झटका लगा कि मैंने मूंछों, कान के पास के बालों पर भी सब तरह के कलर-वलर लगाने बंद कर दिये...अब मैं बहुत बार उस का शुक्रिया अदा करता हूं कि यार, अच्छा किया तुमने उस दिन मेरी खिंचाई की....After all, child is the father of man!
शैंपू के बारे में आपबीती
सब कलर वलर छोड़ने के बाद धीरे धीरे शैंपू भी ना अच्छा लगता...यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव था... इस में मैंने किसी चमडी रोग विशेषज्ञ से कुछ नहीं पूछा...मुझे यही लगने लगा कि पता नहीं इन शैंपू आदि में भी क्या क्या डाल रखा होगा... मुझे लगता है कि शायद यह सब सोचना कुछ ज्यादा ही था....लेकिन सच्चाई जो है सो है...मुझे पतंजलि का शैंपू भी अजीब सा लगता...यही लगता कि यह भी दूसरे अन्य शैंपुओं की तरह ही होगा.....और एक बात मैंने नोटिस की हमेशा कि बालों को शैंपू करने के बाद वे बड़े शुष्क से हो जाते थे...
रीठा, आंवला, शिकाकाई
इतने में पता चला कि बाज़ार में रीठा, आंवला, शिकाकाई का पावडर मिलता है....बस दो तीन साल से केवल इसे ही इस्तेमाल करता हूं ..कलर करने के लिए नहीं...बस, बालों की सफाई के लिए ...दो तीन दिन बाद एक चम्मच पानी में घोल कर नहाते समय सिर पर लगाता हूं ...पांच मिनट में धो लेता हूं...अच्छे से सफ़ाई हो जाती है ...इस मिश्रण के बारे में कहा जाता है कि इसे कुछ घंटे बालों पर लगा कर छोड़ देना चाहिए.........अब, इतने झंझट में नहीं पड़ा जाता....मुझे इसी बात की खुशी है कि हेयर कलर पीछे छूट गये हैं और बालों की सफ़ाई भी प्राकृतिक ढंग से रीठा-आंवले के मिश्रण से अच्छे से हो जाती है ...
अपने ब्लॉग पर हम लोग भी क्या क्या शेयर कर देते हैं....अपने साबुन-शैंपू तक की बातें...बस इसलिए कि अगर हम एक दूसरे के अनुभव से कुछ सीख सकें...वैसे इतना लिखते लिखते सिर की चंपी करवाने की इच्छा तो हो ही गई होगी...उस का भी जुगाड है यहां..
इतनी कम उम्र के किसी नवयुवक से बालों को कलर करने वाली बात मैं पहली बार सुन रहा था...उसने बताया कि क्या करता डाक्साब, बहुत ज़्यादा बाल सफ़ेद हो गये थे...
मैंने कईं बार इस ब्लॉग पर शेयर किया है कि विविध भारती पर हर सोमवार के दिन बाद दोपहर ४ से ५ बजे तक एक प्रोग्राम आता है ..पिटारा...उस पिटारे से हर सोमवार के दिन सेहतनामा प्रोग्राम निकलता है ...इस में किसी विशेषज्ञ से वार्ता सुनाई जाती है..
कल विविध भारती में एक चमडी रोग विशेषज्ञ से बालों की सेहत के बारे में ही चर्चा चल रही थी..बीच बीच में आमंत्रित विशेषज्ञ की पसंद के हिंदी फिल्मी गीतों का तड़का भी लग रहा था..
मैं चंद मिनट तक ही इस प्रोग्राम को सुन सका...उसके बाद मेरे मरीज़ आने शुरू हो गए...लेकिन कुछ बातें इन्हीं बालों के बारे में आपसे शेयर करने की इच्छा हो रही है..
बातें हो रही थीं छोटी उम्र में युवावस्था में ही बाल झड़ने की और बाल सफ़ेद होने की ...एक बात जिस पर बहुत ज़ोर दिया जा रहा था वह यही थी कि जिस तरह से अाधुनिकता की दौड़ में जंक फूड़, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड ने हमारे पारंपरिक सीधे सादे हिंदोस्तानी को पीछे धकेल दिया है ..विशेषकर युवाओं में...उसी का परिणाम है कि बहुत ही कम उम्र में बाल गिरने लगते हैं...और बाल सफेद होने लगते हैं...डाक्साब बता रहे थे १८-२० साल के युवा आने लगे हैं जिन के बाल गिरने की वजह से उन्हें baldness परेशान करने लगी है..
अभी टीवी देख रहा हूं एक विज्ञापन आ रहा है जिस में एक २५-३० साल का एक युवक बालों के पतलेपन को दुरूस्त करने के लिए किसी हेयर-टॉनिक लगाने की सलाह दे रहा है...बिना किसी चमडी रोग विशेषज्ञ की सलाह के सब कुछ बकवास है ..बिल्कुल उसी तरह से जिस तरह से डेंटिस्ट की सलाह के बिना लोग तरह तरह के मंजन-लोशन मुंह और मसूड़ों पर लगाना शुरू कर देते हैं जिन से होता कुछ नहीं...बस रोग को बढ़ावा ही मिलता है।
दूसरी बात विविध भारती के प्रोग्राम में डाक्साब बता रहे थे ..वह यह थी कि कुछ लोग हेयर कलर करने के लिए कलर नहीं मेंहदी का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं...डाक्साब ने साफ़ साफ़ कहा कि आजकल ऐसी मेंहदी मिलती ही नहीं जिस में कैमीकल न मिला हो...बिल्कुल सही फरमाया डाक्साब ने...
वे बता रहे थे कि किस तरह से आज कल मेंहदी कुछ ही मिनटों में किस तरह से हाथों और बालों को गहरे रंग में रंग देती है ....यह सब तरह तरह के कैमीकल का ही कमाल है...जो हमारी बालों की सेहत के लिए ही नहीं, सेहत के लिए भी बहुत खराब होता है...
आप-बीती भी ब्यां करनी होती है ब्लॉग में
इधर उधर की तो हांक ही लेते हैं हम कलम वाले लोग, लेकिन ब्लॉग में आपबीती बताना भी तो अहम् होता है...
मैंने भी आज से लगभग १५ वर्ष पहले अपनी मूंछों और कान के बिल्कुल पास पास काली मेंहदी लगानी शुरू की थी...बिल्कुल थोड़ी लगाता था...लेकिन अपने आप पर हंसी आती थी यह सब करते हुए...लगाता था मैं चार पांच मिनट के लिए ही ...लेकिन जलन शुरू हो जाती थी होंठों पर...फिर धो कर बर्फ लगा लेता था...
कुछ समय बाद समझ आ गई कि यह काली वाली मेंहदी प्योर नहीं है...कैमीकल तो है ही इसमें...किसी अच्छी कंपनी की मेंहदी लेंगे ..उन दिनों गोदरेज की नुपूर मेंहदी आने लगी थी..शायद दो तीन वर्ष तक लगाता रहा ...दस पंद्रह दिन में एक बार थोड़ी सी ..चंद मिनटों के लिए ...लेकिन इसी चक्कर में मूंछों और कानों के आस पास बहुत से बाल सफेद हो गये...और ऊपर वाले होंठ पर निरंतर एलर्जी जैसी लाली रहने लगी...बहुत बार खारिश भी हो जाती।
अब लगने लगा कि इस से आगे चलें....गार्नियर कंपनी का हेयर कलर लगाना शुरू कर दिया... मूंछों पर और कान के आस पास... कर तो लेता था यह सब कुछ लेकिन अजीब सा लगता था, बहुत बड़ा फेक होने की फीलिंग आती थी...अपने आप से झूठ बोलने जैसा लगता था...
शायद चार पांच साल हो गये हैं इस बात को ...एक दिन विचार आया कि अब सिर के बाल भी बीच बीच में सफ़ेद होने लगे हैं...अब यह गार्नियर कंपनी वाला कलर सिर के बालों पर भी लगाना शुरू किया जाए....उस दिन जब बड़े बेटे ने मेरे इस फितूर के बारे में सुना तो उसने आराम से इतना ही कहा .... "What is this, yaar? One must always grow old gracefully!"
बस, उस दिन मुझे ऐसा झटका लगा कि मैंने मूंछों, कान के पास के बालों पर भी सब तरह के कलर-वलर लगाने बंद कर दिये...अब मैं बहुत बार उस का शुक्रिया अदा करता हूं कि यार, अच्छा किया तुमने उस दिन मेरी खिंचाई की....After all, child is the father of man!
शैंपू के बारे में आपबीती
सब कलर वलर छोड़ने के बाद धीरे धीरे शैंपू भी ना अच्छा लगता...यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव था... इस में मैंने किसी चमडी रोग विशेषज्ञ से कुछ नहीं पूछा...मुझे यही लगने लगा कि पता नहीं इन शैंपू आदि में भी क्या क्या डाल रखा होगा... मुझे लगता है कि शायद यह सब सोचना कुछ ज्यादा ही था....लेकिन सच्चाई जो है सो है...मुझे पतंजलि का शैंपू भी अजीब सा लगता...यही लगता कि यह भी दूसरे अन्य शैंपुओं की तरह ही होगा.....और एक बात मैंने नोटिस की हमेशा कि बालों को शैंपू करने के बाद वे बड़े शुष्क से हो जाते थे...
रीठा, आंवला, शिकाकाई
इतने में पता चला कि बाज़ार में रीठा, आंवला, शिकाकाई का पावडर मिलता है....बस दो तीन साल से केवल इसे ही इस्तेमाल करता हूं ..कलर करने के लिए नहीं...बस, बालों की सफाई के लिए ...दो तीन दिन बाद एक चम्मच पानी में घोल कर नहाते समय सिर पर लगाता हूं ...पांच मिनट में धो लेता हूं...अच्छे से सफ़ाई हो जाती है ...इस मिश्रण के बारे में कहा जाता है कि इसे कुछ घंटे बालों पर लगा कर छोड़ देना चाहिए.........अब, इतने झंझट में नहीं पड़ा जाता....मुझे इसी बात की खुशी है कि हेयर कलर पीछे छूट गये हैं और बालों की सफ़ाई भी प्राकृतिक ढंग से रीठा-आंवले के मिश्रण से अच्छे से हो जाती है ...
अपने ब्लॉग पर हम लोग भी क्या क्या शेयर कर देते हैं....अपने साबुन-शैंपू तक की बातें...बस इसलिए कि अगर हम एक दूसरे के अनुभव से कुछ सीख सकें...वैसे इतना लिखते लिखते सिर की चंपी करवाने की इच्छा तो हो ही गई होगी...उस का भी जुगाड है यहां..
पिछले कुछ वर्षों में भी इस विषय पर मैं कुछ कुछ लिखता रहा हूं...अभी ध्यान आया तो ब्लॉग खंगालने पर ये कढ़ियां मिल गईं...