बुधवार, 5 जनवरी 2022

कोविड टेस्ट पॉज़िटिव - तब और अब..(व्यंग्य लेख)

२३ मार्च २०२० को पहली बार लॉक-डाउन लगा था ...उस से पांच दिन पहले लखनऊ के कुछ चौराहों पर लाल बत्ती शुरू हुई थी ...मैं इस तारीख को भला कैसे भूल सकता हूं ...क्योकि उन्हीं नई नईं लाइटों के चक्कर में चौराहों पर असमंजस की स्थिति थी ...मैं २०-३० की स्पीड से स्कूटर चलाने वाला ...मेरे आगे चल रहे थ्री-व्हीलर ने मारी ब्रेक ...और मैं धड़म से नीचे ....पांव की हड्डी टूट गई...पलस्टर लगा कईं हफ्तों के लिए...मैं सारा दिन अपने फ्लैट की बॉलकनी में एक खटिया पर लेटा लेटा रेडियो सुनता रहता और बीच बीच में वाट्सएप पर वॉयरल हो रही वीडियो देख कर सहम जाता ..यही लग रहा था उन दिनों की अब तो दुनिया खत्म होने की कगार पर है ....

कुछ दिन पहले हमारा एक कर्मचारी मुझे कहने लगा....मेरा टेस्ट पॉज़िटिव आया है, मैं अब निकल रहा हूं...मैंने इतना ही कहा कि अच्छा, भई, अपना ख्याल रखना...

इस बंदे ने तो मुझे ख़ुद सूचना दी ....लेकिन इस बीमारी के पहले चरण में कोई यह सूचना खुद देने के काबिल ही न होता था...आपने टीवी वीवी पर देखा होगा कि उन दिनों हमारा मीडिया सच में ओव्हर-टाइम कर रहा था ...

पता चला कि अमृतसर (यह देश का कोई भी शहर हो सकता था...)  की करमो-ड्योढी की फलां फलां गली में किसी कोविड पॉज़िटिव मरीज़ को उठाने सेहत महकमे की टीम पहुंची हुई है ...कैमरे लगे हुए हैं...इतनी चाक-चौबंद व्यवस्था तो धर्मा फिल्म में चंदन डाकू को पकड़ने के लिए न होती होगी जितनी मुस्तैदी उन दिनों सेहत विभाग की टीम किसी कोविड़ मरीज़ को "काबू" करने के दिखाती थी .... पूरी लाइव टैलीकॉस्ट चल रही होती....कि टीम अभी अभी पहुंची है, अब ये गली में जा रहे हैं, इन्होंने ने क्या पहना है, माजरा है क्या, बस अब ये मरीज़ को ऐम्बुलेंस में ठूंस ही देने वाले हैं...सुनसान सड़के, सुनसान रास्ते ....न कोई बंदा न बंदे की जात...तब ऐम्बुलेंस के वहां से वापिस चलने से शुरु कर के आंखों से ओझिल होने तक कमैंट्री चलती रहती। 

बेशक, यह तो वह दौर था २०२० में कि जिस किसी को कोरोना हो गया उसे यह अहसास हो जाता कि उससे कोई संगीन जुर्म हो गया...सरकारी ऐम्बुलेंस पकड़ने आ जाती, और आसपास के गली-मोहल्लों की खिड़कियों से देखने वाले सब कुछ लाइव देख रहे होते और पूरा मुल्क टीवी पर सब कुछ लाइव देख रहा होता ... और जो मरीज़ दुनिया से कूच कर जाते, उन की अन्तयेष्ठि बहुत दूर से टीवी पर ऐसे दिखाई जाती जैसे नॉरकोटिक्स वाले  कंट्राबैंड मिलने पर उसे नष्ट करते हुए बालीवुड फिल्मों में दिखाते हैं ....मुझे तो अपनी मां की अंत्येष्ठि की वह फोटो याद आ जाती जो श्मशान घाट से बाहर आकर हमने दूर से जलती हुई चिता की खींची थी ...

उस दिन इस हालत में हम मां को अलविदा कह कर अपनी रज़ाईयों में वापिस लौट आए थे...११ दिसंबर २०१७

कुछ महीने का दौर तो ऐसा था कि लोग खांसने से डरने लगे ...क्या पता कमबख्‍त पड़ोसी ही रिपोर्ट कर दे, टैस्टिंग के लिए विभाग की टीम आ जाए और उठा कर ले जाए...

कोरोना वार्ड में जेल से भी ज़्यादा सिक्यूरिटी दिखती थी उन दिनों ...बस, मोबाइल की सुविधा कोरोना कैदियों को दे दी गई...और हां, बीड़ी और बार-बार चाय पे चर्चा करने के लिए दो चार बंदे बाहर चाय के स्टॉल तक पहुंचने का जुगाड़ कर ही लेते ...उन्हें ऐसी हालत में बीड़ी फूंकने की बात जब अस्पताल के हैड तक पहुंचती तो कोरोना वार्ड में तैनात स्टॉफ की क्लास लग जाती कि ये लोग बाहर आए तो आए कैसे और सामान्य लोगों से बीच पहुंचे कैसे! शुरू के दिनों में तो कोविड अस्पतालों के बाहर मरीज़ों के रिश्तेदारों का तांता लगा देख कर परीक्षा केन्द्रों के बाहर खड़े अभिभावकों की भीड़ की यादें ताज़ा हो जातीं...सच यह बड़ा कठिन दौर था ...लोग नरक भुगत रहे थे, कोरोना योद्धा अपनी जानें गंवा रहे थे ...हर तरफ़ मौजूद डर के माहौल को और ज़्यादा खौफ़नाक बना रहे थे फेसबुक और वाट्सएप के गुमराह करने वाले फेक वीडियो कि किसी गरीब मुस्लमान ने अपने फलों पर अपना थूक चिपका कर कोरोना फैला दिया ....सच में यह फेक वीडियो जो लोग शेयर करते हैं यह भी एक लाइलाज बीमारी है ...उन को भी किसी वार्ड में ठूंसा जाना चाहिए....वरना यह बाज़ नहीं आते ...

हां, तो मैंने बात शुरू की थी कि अब लोग पॉज़िटिव होने पर भी इतने हट्टे-कट्टे दिखते हैं कि वे आसपास सूचित कर देते हैं कि हां, भई हम पॉज़िटिव हो गए हैं, और यहां से कट रहे हैं, बाकी, वाट्सएप पर हम बने रहेंगे ....उस की कोई टेंशन है नहीं। जैसे ही उस बंदे के साथियों को उस की पॉज़िटिव रिपोर्ट का पता चलता है तो वह इतने ज़्यादा नाटकीय अंदाज़ में 'ओह शिट् ' कहते हैं ....(यह थोड़ा ओल्ड वर्शन वाले कहते हैं...लेटेस्ट वर्शन वाले अपना दुःख और हैरानी ब्यां करने के लिए जिस चार एल्फाबेट के लफ्‍ज़ का इस्तेमाल करते हैं, वह टी-शर्ट पर तो लिखा दिखने लगा है ....लेकिन ब्लॉग में कहां लिख कर उसे मुसीबत मोल लूं!!) .... हां, जिस अंदाज़ में हैरानी, शॉक, दुःख, रोमांच, थ्रिल....कुछ भी ब्यां किया जाता है किसी परिचित, किसी साथी के पाज़िटिव आने पर ...उससे कईं बार दूसरों को ऐसे लगने लगता है कि यार, यह कुछ ज़्यादा ही ओव्हर रिएक्ट कर रहा है ...कहीं इस के मन में उसे मिलने वाली क्वारेंटाइन के बारे में जलन तो नहीं ....इधर इतना काम धरा पड़ा है और अब यह महाशय घर बैठ जाएंगे क्वारेंटाइन भोगने के लिए...अच्छा भला तो था, सुबह साथ में काफी पी थी....दूसरों को यही लगने लगता है कि कहीं इस के मन में यह क्वारेंटाइन लीव न मिल पाने की तो कसक नहीं है..

क्योंकि और तो किसी भी तरह की छुट्टी (आध्यात्मिक तक भी) भोगने और निचोड़ने में कोई कोर-कसर छोड़ता नहीं बंदा, अब यह जो क्वारेंटाइन तो तभी मिले अगर कोई पॉज़िटिव आए ...अब अगर किसी ने हिम्मत कर के टैस्ट करवाया है, पाज़िटिव पाये जाने पर उसे यह सुविधा मिल ही गई है तो यह तो भई उस का हक है ...किसी का कोई अहसान नहीं  ..लेकिन देखा भी यह गया इस बीमारी के विभिन्न चरणों में कि घर में क्वारेंटाइन हुए बंदे की और उस के रिश्तेदारों की जान निकली रहती है कि सब कुछ ठीक ठाक निकल जाए, बिना किसी जटिलता के ...लेकिन दफ्तर में उस के साथ काम कर रहे कुछ बाबूओं को तो जैसे ही बंदे के क्वारेंटाइन पर जाने का पता चलता है उन्हें तो सांप ही सूंघ जाता है जैसे वह बेचारा महाबलेश्वर छुट्टी मनाने निकल गया हो...और किसी बाबू को तो इस खबर से ही ऐसे हल्के जुलाब लग जाते हैं कि वह अपने साथी को पर्मिसिबल लीव के दिनों की केलकुलेशन के लिए दफ्तर में बैठ कर पुराने सर्कुलर छानने लगते हैं .....अरे भाई, इतनी कसक क्यों, इतना मलाल क्यों, हिम्मत कर के टैस्ट करवाओ, यह रोज़ रोज़ बदन दर्द के लिए अदरक वाली चाय के साथ कॉम्बीफ्लैम लेना कोई समाधान नहीं ....टैस्ट तो करवाना ही होगा...निगेटिव आए तो मौज मनाओ, पॉज़िटिव आए तो अपने हक से क्वारेंटीन लीव पर भई तुम भी निकल जाओ....और अगर कुछ नहीं भी करवा रहे तो भी ५० प्रतिशत हाज़री की सुविधा के घेरे में  तो अब आ ही चुके हो....

हज़ार बातों की एक बात यह है जो आप नीचे लिखे पोस्टर में पढ़ेंगे ...यह कल वाट्सएप पर हमें दिखा ...इसलिए इसे यहां चस्पा दिए रहे हैं...इस में कही बातों पर गौर करिए..डा साहिबा ने शत-प्रतिशत बातें सही कही हैं ...एक काम और किया जाए...सारी अखबार, सारा मीडिया कोविड से भरा पड़ा होता है तो ऐसे में अपने आप पर हंसने की आदत भी डाल लीजिए...खूब हंसिए....अपने आप पर हंसने से कोई आप को नहीं रोक सकता....


यह टापिक है ऐसा कि लिखते ही जाएं....लेकिन अब उठना पड़ेगा....बस, जाते जाते आप को अपना पसंदीदा गीत सुनाते हैं....पता नहीं यह गाना आज मेरे से यहां एम्बेड नहीं हो रहा ....इस गीत का लिंक मैं यहां शेयर कर रहा हूं ...आप को इसे सुनने के लिए लिंक पर क्लिक करना होगा..यह गीत मुझे बहुत अच्छा लगता है ....यह पौधे, ये पत्ते, ये फूल, ये हवाएं........वाह!

2 टिप्‍पणियां:

  1. आखिरी बात से सहमत कि ऐतिहात जरूरी है लेकिन यह भी सच है कि लोग यही चीज नहीं रख रहे हैं। व्यंग्य शानदार था।

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