सोमवार, 26 अप्रैल 2010

बीमारी एक ----बीसियों इलाज, बीसियों सुझाव

वैसे जब किसी को कोई शारीरिक तकलीफ़ हो जाती है तो बीमारी से हालत पतली होने के साथ साथ उस की एवं उस के परिवार की यह सोच कर हालत और भी दयानीय हो जाती है कि अब इस का इलाज किस पद्धति से करवाएं, या थोड़ा इंतज़ार ही कर लें।

चलिये, एक उदाहरण लेते हैं कि किसी बंदे को पेट में दर्द हुई और दर्द कुछ ज़्यादा ही थी, इसलिये अल्ट्रासाउंड निरीक्षण के बाद यह पता चला कि उस के गुर्दे में पत्थरी है। अब पेट की दर्द तो अपनी जगह कायम है और शुरू हो जाते हैं तरह तरह के सुझाव --

- तू छोड़ किसी भी दवाई को, पानी ज़्यादा पी अपने आप घुल जायेगी
-फलां फलां को भी ऐसी ही तकलीफ़ थी उस की तो देसी दवाई खाने से पत्थरी अपने आप घुल गई थी
- तुम्हें लित्थोट्रिप्सी (lithotripsy) के द्वारा इस निकलवा लेना चाहिये जिस में किरणों के प्रभाव से पत्थरी को बिल्कुल छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ कर खत्म कर देते हैं
-- तुम दूरबीन से अपना आप्रेशन करवाना
---तुम तो प्राइवेट ही किसी को दिखाना, सरकारी अस्पतालों के चककर में न पड़ना, चक्कर काट काट के परेशान हो जायेगा, लेकिन आप्रेशन तेरे को फिर भी बाहर ही से करवाना पड़ेगा
---एक हितैषी कहता है कि तू इधर जा, दूसरा कहता है कि नहीं, नहीं, उस से वो वाला ठीक है
--- तू सुन, किसी चक्कर में मत पड़ कर, न देसी न अंग्रेज़ी, चुपचाप तू होम्योपैथी की दवाई शुरू कर दे ---मेरे पड़ोस में जो रिटायर्ड बाबू रहता है उसे होम्योपैथी का अच्छा ज्ञान है, उस के पास एक बड़ी किताब भी है ---वह तेरी तकलीफ़ देख कर दवाई दे देगा, आगे तू देख ले, जैसा तेरे को ठीक लगे।
यह तो बस एक उदाहरण है, बात वही है कि इतने ज़्यादा सुझाव आ जाते हैं कि मरीज़ का एवं उस के सगे-संबंधियों का परेशान हो जाना स्वाभाविक है। जाएं तो कहां जाएं।
लेकिन यह स्थिति केवल हमारे देश में ही नहीं है, सारे विश्व में यह समस्या है कि शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने पर असमंजस की स्थिति तो हो ही जाती है।

यह सब बात करने का एक उद्देश्य है कि एक बात आप तक पहुंचाई जा सके ---- Evidence-based medicine. इस से अभिप्रायः है कि किसी बीमारी का ऐसा उपचार जो पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हो, प्रामाणिक हो, जिस के परिणामों का वैज्ञानिक ढंगों से आंकलन हो चुका हो, जिस में किसी भी तरह के व्यक्तिगत बॉयस (personal bias) की कोई जगह न हो----सब कुछ वैज्ञानिक एवं तथ्यों पर आधारित ---अर्थात् अगर Evidence based medicine के द्वारा किसी बीमारी के लिये किसी तरह की चिकित्सा को उचित बताया गया है तो वह एक तरह से उस समय तक के प्रमाणों पर आधारित होते हुये पूर्ण रूप से प्रामाणिक होती है।
मैंने एक ऐसी ही साइट को जानता हूं --- www.cochrane.org जिस में विभिन्न तरह की शारीरिक व्याधियों के उपचार हेतु cochrane reviews तैयार हैं, बस किसी मरीज़ को सर्च करने की ज़रूरत है। आप भी इस साइट को देखिये और इस के बारे में सोचिये।

वैसे मेरे विचार में इस तरह की संस्थायें बहुत बड़ी सेवा कर रही हैं। मैं आज ही इन का एक रिव्यू देख रहा था जिसमें इन्होंने एक परिणाम यह निकाला है कि इलैक्ट्रोनिक-मॉसक्यूटो रिपैलेंट (electronic mosquito repellent) मशीनों का उपयोग बिल्कुल बेकार है --इन को तो बनाना और बेचना ही बंद हो जाना चाहिये क्योंकि ये ना तो मच्छर को भगाने में ही कारगर है और न ही ये किसी को मच्छर के द्वारा काटने से ही बचा पाती हैं । अब ऐसे ऐसे रिव्यू जो कि अनेकों समर्पित वैज्ञानिकों की कईं कईं साल की तपस्या का परिणाम होते हैं --इन्हें देखने के बाद भी कोई अगर अपनी बुद्धि को तरज़ीह दे तो उसे क्या कोई क्या कहे ?

अधिकतर बीमारियों के लिेय cochrane reviews उपलब्ध हैं ----और कुछ न सही, आप इन्हें सैकेंड ओपिनियन के रूप में देख सकते हैं। इतना तो मान ही लें कि उपचार के विभिन्न विकल्पों की इफैक्टिवनैस के बारे में इस से ज़्यादा प्रामाणिक एवं विश्वसनीय जानकारी शायद ही कहीं मिलती हो।

वैसे याहू-आंसर्ज़ नामक फोरम भी एक अच्छा प्लेटफार्म है जहां पर आप अपनी सेहत संबंधी प्रश्न बेबाक तरीके से लिख सकते हैं और फिर आप को विश्व के प्रसिद्ध विशेषज्ञ सलाह देंगे। सैकेंड ओपिनियन लेने में भी हर्ज़ क्या है ?

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उपयोगी जानकारी देने के लिए आभार।

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  2. परवीन जी
    बड़ा चमचमाता शब्द लगता है EBM लेकिन लोगों ने इसमे भी वाट लगा दी है .अंतराष्ट्रीय दवा कंपनियों ने यहाँ भी घुसपैठ कर ली है . बड़ा मुश्किल है यथार्थ का पता लगाना .
    दूसरी बात यह केवल allopathy के लिए उपलब्ध है .
    आवश्यकता है एक समग्र पद्धति की जो सरल हो सहज हो आसानी से उपलब्ध हो और विकार रहित हो

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  3. नमस्कार डॉक्टर साहब, आज चिट्ठाचर्चा के द्वारा आपकी पोस्ट पर पहुँचा। स्कूल में मोबाइल से पोस्ट पढ़ी पर पता नहीं क्यों मोबाइल पर टिप्पणी हेतु बॉक्स नहीं आ रहा था, शायद टैम्पलेट का कुछ चक्कर हो। खैर पता नोट करके घर से अब टिप्पणी कर रहा हूँ। आपकी टिप्पणी एक-दो बार मेरे ब्लॉग पर आई थी। एक-दो मित्रों ने आपके बारे में बताया कि यमुनानगर से एक डॉक्टर साहब हिन्दी चिट्ठाकार हैं। इसी दौरान यमुनानगर से एक अन्य हिन्दी चिट्ठाकार श्री दर्शन बवेजा जी का भी पता चला है। हार्दिक खुशी की बात है कि कभी मैं यहाँ से अकेला था अब कम से कम तीन हैं। यदि कोई अन्य भी हिन्दी चिट्ठाकार यमुनानगर से हैं तो कृपया मुझे बतायें। चलिये अब यमुनानगर में भी ब्लॉगर मीट का स्कोप बनता है। :-)

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  4. वैसे आपका लेख पढ़कर बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आ गई - चिकित्सा का चक्कर, याद नहीं किस लेखक की थी, पर उसमें बिलकुल इसी तरह की सिचुएशन थी जो आपने इस लेख में बताई थी। मरीज बेचारा लोगों के कहने पर दुनिया जहान के तरीके आजमाता है अंत में थकहार कर सारा इलाज छोड़ देता है।

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इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...