शुक्रवार, 26 जून 2015

नशा शराब में होता तो झूमती बोतल...


आज वैसे भी नशाबंदी दिवस है...इसलिए इस विषय पर लिखने से पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि इस पोस्ट में जितने भी हिंदी फिल्मी गीत हैं, वे सभी बस मन बहलाने के लिए हैं..वैसे मेरे यह लिखने की कोई ज़रूरत नहीं, सुधि पाठक हैं।
शीर्षक भी जो मेरे मन को अच्छा लगा, टिका दिया है।


कुछ अरसा पहले से एक फोटो व्हाट्सएप पर खूब दिख रही थी ...एक तरफ खुशवंत सिंह और दूसरी तरफ़ एक वयोवृद्ध योगाचार्य की फोटो..नीचे लिखे था खुशवंत सिंह उस योगाचार्य से ज़्यादा उम्र भोग कर परलोक सिधारे, इस का निष्कर्ष यही निकाला गया था कि शराब पीने वाले ज़्यादा जीते हैं.

मैं इस बेतुके तर्क से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं.

कुछ दिन पहले एक व्हाट्सएप ग्रुप पर एक तस्वीर भी दिखी ...उन का नाम लिखा था.. ध्यान नहीं दिया..बस यही लिखा था कि इन की उम्र १११ साल की है..और इन्हें तस्वीर में एक व्हिस्की की बोतल के साथ दिखाया गया था। फोटो में बड़े खुशमिजाज लगे...चलिए आप को भी इन के दर्शन करवाए देते हैं...



कल मैं लखनऊ से बाहर था ...मैं सुबह टहलने निकला तो मुझे इंडियन एक्सप्रेस अखबार ही मिली...मैंने उसे पढ़ा तो एक बुज़ुर्ग जिन की उम्र १११ साल की थी उन के दाह-संस्कार के बारे में कुछ अलग सी बात पता चली जिसे मैंने रेस्ट-हाउस में ही एक कागज़ पर लिख कर शेयर कर दिया...


चलिए, जिस गीत का मैंने इस पर्ची में उल्लेख किया है, उसे ही लगाते हैं...


स्कूल जाने की उम्र में जब यह फिल्म देखी तो यह गीत मुझे बहुत पसंद आया था....तब म्यूज़िक की वजह से और अब लिरिक्स के लिए भी यह गीत बढ़िया लगता है।

अच्छा, मैं कल यही सोचता रहा कि इस तरह की खबर जो अखबार में छप गई...इससे तो गलत मैसेज भी लोगों में पहुंच सकता है...पीने वालों को तो वैसे भी पीने का बहाना चाहिए..



आज सुबह वापिस लखनऊ पहुंचा तो ध्यान कल वाली खबर पर ही जा रहा था..बुज़ुर्ग सरदार नाज़र सिहं की तरफ़ ही ...मैंने ऐसे ही व्हाट्सएप पर अपने दोस्तों से शेयर किया कि उन पर कुछ लिखने का मन हो रहा है .....चंद ही मिनट के बाद एक मित्र ने जब उन की फोटो शेयर की तो मुझे ध्यान आया कि यह तो वही फोटो है, जिसे कुछ दिन पहले देखा था..लेिकन फिर जब दोस्तों के साथ गुफ्तगू चली तो सरदार नाज़र सिंह जी के बारे में कुछ पहलू और उजागर हुए।

एक मित्र ने बताया कि यह शराब तो इन की शख्शियत का एक बिल्कुल छोटा सा पहलू है...ये १०७ की उम्र तक बागबानी करते रहे हैं, जिस दिन इन्होंने शरीर त्यागा उस दिन भी यह गुरूद्वारे में मत्था टेक कर आए थे.... और एक बात मित्र ने लिखी कि इतनी लंबी उम्र तक जीना एक बहुत ही सुंदर और संयमित जीवनशैली का ही परिणाम हो सकता है। मैं उस की बात से बिल्कुल सहमत हूं।

मैं भी मानता हूं कि इन्होने जीवन को बहुत खुशी खुशी जिया होगा....

आज मुझे यह लगा कि इस तरह की तस्वीर इन की और इन के बारे में इस तरह की खबर अखबार में छपना भी कुछ लोगों को गलत संदेश दे जायेगा। मैं जानता हूं उत्तर भारत के लोगों को ...मुझे लगता है कि अब अगर कोई उन्हें दारू वारू पीने से रोकेगा तो वह इन्हीं बुज़ुर्ग की उदाहरण दिया करेंगे........लेकिन यह उदाहरण दिया जाना बिल्कुल गलत होगा....कारण, हम उन के बारे में उतना ही जानते हैं जितना हमें मीडिया ने या सोशल मीडिया ने परोस दिया.....क्या पता उन की जीवनशैली कितनी बढ़िया रही होगी, कितना सच्चा-सुच्चा जीवन जिया होगा.....रही बात फोटो की, तो दोस्तो, आज बाज़ारवाद है, इस तरह की फोटो किसी की भी खींचनी-खिंचवानी या फिर इस तरह की खबर को अखबारों में छाप देना कौन सी बड़ी बात है.... आखिर कंपनियों ने अपनी शराब भी बेचनी है।

जाते जाते वही बात की शराब खराब चीज तो है......मैं बिल्कुल भी प्रवचन की मूड में नहीं हूं.....न ही मैं इस के लिए क्वालीफाईड हूं.....हां, सात साल पहले एक लेख ज़रूर लिखा था....यह रहा उस का लिंक....थोडी थोडी पिया करो...

बात वही हलवाई की मिठाई वाली, मुझे बिल्कुल याद नहीं,मैंने उस में क्या लिखा था, क्या नहीं, बस अपनी एक प्रोफैसर के बारे में िलखा था कि किस तरह से उन का एक लेक्चर सुन कर मैंने मन बना लिया कि इस दारू को कभी नहीं छूना।

लेिकन दारू वाले गाने सुनने में तो कोई बुराई नहीं.....चलिए, फिर से सुनते हैं..



शनिवार, 20 जून 2015

हमारी बीमार शिक्षा व्यवस्था....

मैं अकसर लोगों से ईमानदारी से यह शेयर करता हूं ..कि मैंने भी इंटर तक फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ी है ... लेकिन अगर आज के दौर में पढ़ाई जाने वाली फिजिक्स-कैमिस्ट्री का पेपर मेरे को दे दिया जाए तो मुझे या तो शून्य मिलेगा या फिर दो तीन नंबर मैं शायद कैमिस्ट्री में ले पाऊं...पूरी सच्चाई से यह बात कर रहा हूं...अकसर मैं बेटे के बोर्ड के पेपर देख कर सारी केलकुलेशन करने के बाद ही इस तरह का ब्यान दिया करता था.

जो है सो है, सच्चाई मानने में कभी हिचकिचाहट हुई नहीं, जब से लिखने लगा हूं उस के बाद तो बिल्कुल भी नहीं...

आज बाद दोपहर बेटे के स्कूल में एक फंक्शन था...उसे भी सम्मानित किया जाना था....उस ने बहुत अच्छा किया है बोर्ड एग्ज़ाम में...४ बजे का टाइम था.. आज सुबह से थोड़ा सा सिर और गर्दन में दर्द हो रहा था...टेबलेट भी ली, लेकिन कुछ खास फर्क पड़ा नहीं...मुझे वहां जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं हो रही थी, मैंने बेटे को कहा कि मम्मी के साथ हो आए....लेिकन उस के चेहरे की तरफ़ देखा तो जाने का मन बनाया....फिर भी हिम्मत नहीं हुई...बेटे ने कहा, पापा, पर्ची डालते हैं......दोस्तो, यकीन मानिए हम ज़िंदगी के बहुत से फैसले पर्ची डाल कर करते हैं....यहां तक कि उसने इंजीनियरिंग करनी है या बॉयोलॉजी, यह निर्णय भी पर्ची डाल कर किया गया था।

पर्ची डाली, यैस या नो....पर्ची का फैसला था नो......लेकिन मैंने नो के बावजूद भी तुरंत कपड़े डाले और हम लोग रवाना हो गये।

वहां का वातावरण ऐसा था कि चंद मिनटों में ही मैं एकदम फिट हो गया...सिर दर्द गायब, गर्दन की ऐंठन भी पता ही नहीं चला कब ठीक हो गई।

मुझे वहां बैठे बैठे यही विचार आ रहा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था भी कितनी बीमार है.....ऊपर मैंने अपनी उदाहरण तो दर्ज कर ही दी है....अब इन बच्चों के जगह जगह एन्ट्रेंस एग्ज़ाम होंगे......सीबीएसई ने एक बार ले िलया न तो उस पर भरोसा कर लो, नहीं तो उस के बाद होने वाले किसी एक राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा पर भरोसा कर लो.......उस के अनुसार सारे देश की संस्थाएं अपनी सीटें भर लें।

सभी छात्रों के लिए भी यह कितना आरामदायक होगा.......अब दर्जनों टेस्ट हैं, हर जगह इन की फीसें, तरह तरह की औपचारिकताएँ, फिर परीक्षाएं...फिर इंतज़ार, फिर काउंसलिंग......बच्चों के साथ साथ मां बाप की भी अच्छी खासी रेल बन जाती है।

इतने सारे टेस्ट देख कर यही लगने लगता है कि शायद इन को एक दूसरे के टेस्ट पर भरोसा ही नहीं है...इतना अविश्वास का वातावरण तो है ही .....वैसे हरेक ने अपनी दुकान भी तो चलानी है।

प्लस टू और कोचिंग ......ये तो जैसे एक दूसरे के पूरक बन गये हैं.....अगर आपने प्लस टू की बोर्ड की परीक्षा में ९९ प्रतिशत भी ले लिए अपने बलबूते पर.....लेिकन अगर आपने कोचिंग नहीं की.......तो आप लगभग यह मान ही लें कि आप किसी प्रवेश परीक्षा में अच्छा कर ही नहीं पाएंगे।

यह बड़ी बदकिस्मती है ......कोई ऐसा नियम बन जाए कि प्लस-टू की परीक्षा खत्म ही कर दो.......दसवीं के बाद कह दो बच्चों को कहीं से भी पढ़ो. .दो साल बाद तुम लोगों की परीक्षा होगी.....तब तक कोचिंग करो...जहां चाहो, पढ़ो....कुछ भी करो.....बस, पेपर आप लोगों का दो साल बाद होगा।

जितना मजाक आज की तारीख में प्लस-टू का बन रहा है, उतना तो कभी न था....लोग कोटा, दिल्ली, चंडीगढ़ जा कर कोचिंग करते हैं, छोटे शहरों में डम्मी एडमिशन ले लेते हैं.....ताकि प्लस टू के पेपर दे सकें, लेिकन कोचिंग अागे की प्रवेश परीक्षाओं के लिए होती है......मेरे घर के सामने एक छठी कक्षा का लड़का पड़ता है....एक दिन फिट्जी की वेन में बैठ रहा था....मुझे पता चला कि उसने छठी से ही फिट्जी की कोचिंग शुरू कर दी है...यह कोचिंग आठवीं और नवीं कक्षा से तो बहुत से लोग करने लगे हैं।

मुझे शिकायत है इस तरह के परीक्षा के पेटर्न से जो इस तरह की कोचिंग को बढ़ावा देते हैं....इस से आर्थिक तौर पर मेधावी छात्र-छात्राओं के भविष्य पर आंच आती है.....बहुत से लोग जो इस तरह की एक एक लाख की कोचिंग ज्वाइन नहीं कर पाते...वे इंटेलीजेंट होते हुए भी इन परीक्षाओं में पीछे रह जाते हैं......

कौन बदलेगा यार इस व्यवस्था को.....किसी को को आवाज़ उठानी होगी.......इस सड़न को कौन खत्म करेगा.....मुझे भी नहीं पता......लेकिन इस का इलाज होना ज़रूरी है!

 बस हम यही मान कर चुप हो जाते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बीमार है, बहुत बीमार है...अब इस का इलाज हो जाना चाहिए......इंत्हा हो चुकी है। मुझे तो यही लगने लगा है कि अगर कुछ सजग बच्चे, उन के मां-बाप कोर्ट कचहरी नहीं जाएं तो घोर अनर्थ हो जाए.....पेपरों में जालसाजी, धोखाधड़ी करने वाले दिनप्रतिदिन तेज़-तर्रार होते जा रहे हैं...कंपीटिशन बढ़ता जा रहा है...

पता नहीं कुछ और होगा कि नहीं होगा, मैं अपने दिल की बातें िलख कर हल्का महसूस कर रहा हूं...जो भी हो, दोस्तो, बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी!



देश को कहीं ले ही न डूबे चाटुकारिता

एक रोज़ मैं लखनऊ से कानपुर ऐसे ही घूमने के मूड में जा रहा था...एसी डिब्बे में मैं ऊपर वाली सीट पर था और नीचे दो दोस्त आपस में जो बातें कर रहे थे, मेरे कानों में पड़ रही थीं...मुझे नींद आते आते रह गई..मुझे लगा आज उन बातों को अपने पाठकों से शेयर करूं।

एक दोस्त ने कहा कि यार, यह चाटुकारिता बड़ी कुत्ती चीज़ है...शायद ये दोनों एक ही दफ्तर में काम करते होंगे..उन की बातों से ऐसा ही लग रहा था।

मैं अब लेख में आगे यह नहीं लिखूंगा िक उस ने कहा, दूसरे ने यह जवाब दिया...बस, उन की बातें लिखूंगा।

उन का एक साथी मिस्टर ....एक नंबर का चापलूस है....जो उस का काम है, वह बिल्कुल नहीं करता, बस सारा दिन बॉस की चापलूसी के चक्कर में उस के पास ही जा कर बैठा रहता है....वही नहीं, दो तीन और भी इसी तरह के बंदे हैं जो भी चाटुकारिता स्पेशलिस्ट हैं...बस, अपनी सीट का काम कुछ नहीं, पब्लिक जाए भाड़ में, एक सूत्री कार्यक्रम कि अपने बॉस को खुश रखो, उस की गलत-सही बात में हां में हां मिलाओ....न भी हंसी आए तो भी ऐसे नाटक करो कि उस की सेन्स ऑफ ह्यूमर से बढ़िया किसी की है ही नहीं, उस जैसा प्रशासक है ही नहीं।

कोफ्त होती है यार ऐसे लोगों से उन दोनों में से एक ने कहा.....तो दूसरे ने कहा कि तू करता रह कोफ्त, इसी चक्कर में लखनऊ और कानपुर के चक्कर काटता रहता है, हर दो साल बाद तेरा तबादला हो जाता है, सारी पब्लिक तेरे काम की इतनी प्रशंसा करती है, तेरी साफ-सुथरी इमेज है लेकिन बस तू बॉस की चापलूसी का गुर नहीं सीख पाया, इसलिए जो तीन चार चाटुकार साथी हैं वे कुछ भी उस कान के कच्चे बॉस को तेरे बारे में कहते रहते हैं कि यह तो अकडू है, वैसा है ....और बस।

वैसे दोनों हैरान थे कि किस तरह से लोग अपने काम धंधे को छोड़ कर बस चाटुकारिता के बलबूते अपना टाइम पास करते रहते हैं। एक कहने लगा कि यार हमें तो किसी की इस तरह की चापलूसी करने के नाम ही से उल्टी सी होने लगती है। अपने काम में ध्यान दो, और क्या....

फिर बात करने लगे कि जो जो लोग बॉस के परले दर्जे के चाटुकार हैं, उन के तबादले ही नहीं होते......वहीं टिके रहते हैं, और मजे की बात एक कह रहा था कि किस तरह से फलां फलां का तबादला बार बार इसलिए रूक जाता है कि बॉस सरेआम कहता फिरता है कि उस के दफ्तर को तो उस ने ही संभाल रखा है...और जो बॉस के ऊपर वाले हैं, वे यही सोच कर डर जाते हैं कि अगर यह बंदा इतना ही सक्षम है, कहीं इसे यहां से हिलाने-डुलाने में काठमांडू जैसे झटके यहां भी न आ जाएं।

मुझे उन दोस्तों की बातों में यथार्थवाद की महक आ रही थी....पाठको, आप लोग अपने अपने दफ्तर में भी झांक कर देखिए...कहीं आप को भी इस तरह के चापलूस दिखते हैं..

यह देश की बहुत बड़ी समस्या है। हमें बिना वजह वा-वाही लूटने की एक लत सी लग गई है.....जो चाटुकार का आर्ट सीख गया, वे अपनी बॉडी-लेंग्वेज से इस तरह के झुड्डू दिखने लगते हैं ...और इसी झुड्डूपने की आड़ में वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे जाते हैं....लेिकन उन की तरफ़ उंगली कौन उठाए, अगर कभी उंगली उठती भी है तो उसे मरोड़ कर नीचे कर दिया जाता है.

मैं लेटा लेटा यही सोच रहा था कि नौकरी में चापलूसी करना एक फुलटाइम काम है......ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप थोड़ी थोड़ी चापलूसी कर लें, थोड़ा थोड़ा काम कर लें, यही बात तो उस में से एक कह रहा था कि हमें तो अपना काम करते हुए पानी पीने तक की फुर्सत नहीं मिलती, और इन चाटुकारों के चाय के दो-तीन दौर लंच से पहले हो जाते हैं..

बस करता हूं ...मैं किन चक्करों में पड़ गया.... उन दोस्तों की बातें ही शेयर करने लग गया......जब वे लोग कानपुर पर उतरे तो मैं अपने आप से यही पूछ रहा था कि उन की बातों में दम था कुछ!...मुझे लगा जैसे वे किसी भी दफ्तर की बातें शेयर कर रहे थे..वैसे नीचे से लेकर ऊपर तक यही समस्या है....मंत्रियों की बात कर लें तो जिस के समीकरण ऊपर तक ठीक हैं, वह कुछ भी कर लें, आंच न आएगी..

वैसे पंजाबी भाषा में हम लोग चापलूसी और चाटुकारिता को बड़ी आसानी से ब्यां कर लेते हैं....  XXXगुलामी...सॉरी मैं पूरी नहीं लिख सकता...यह अब एक सामान्य शब्द बन गया है जब हम कहते हैं कि यार, उस को छोड़. वह तो XXXगुलामी के चक्कर में पड़ा रहता है। एक दूसरा छोटा शब्द भी है...TC..... यह भी पंजाबी का ही है.

सीरियस सी बात लिखने के बाद मुझे हिंदी फिल्म के गीत की डोज़ चाहिए ही होती है.....सोचता हूं आज क्या सुनूं....चलिए, वही गीत चलाते हैं जिसने खूब धूम मचाई है...हम लोगों ने भी कुछ दिन पहले थियेटर में इसे देखा...ठीक ठीक लगी .....लेकिन इस गीत का संगीत बढ़िया है...मुझे अच्छा लगता है...



शुक्रवार, 19 जून 2015

एक शाम लखनऊ के दिलकुशा गार्डन के नाम...

आज शाम लखनऊ के दिलकुशां गार्डन जाने का अवसर मिला...यह गार्डन लखनऊ छावनी क्षेत्र में है...अकसर यह नाम बहुत बार सुना करते थे...दिलकुशा कोठी, दिलकुशा बाग, दिलकुशा कॉलोनी....यह छावनी का एक बहुत पॉश एरिया है।

यह बाग भारत सरकार का एक protected monument है...Archaeological Survey of India (ASI) इस की देखभाल करता है..बड़े अच्छे से इसे मेन्टेन किया हुआ है।

चौकीदार बता रहा था कि अंग्रेज़ लोग यहां ज़्यादा आते हैं यह सब देखने।

वैसे तो मैं इस पोस्ट में यहां जो तस्वीरें अपलोड कर रहा हूं उस से आप को सारी जानकारी मिल ही जाएगी...मेरे कहने के लिए कुछ खास है नहीं...ये सभी तस्वीरें वहां पर ही ली गई हैं।

हम लोग जब वहां गये तो हमें इस के बारे में कुछ भी अंदाज़ा नहीं था कि यह है क्या!..केयरटेकर ने बताया कि नवाब वाजिद अली शाह ने इस को बनाया था और इस जगह को नवाब की सेना के लिए शिकारगाह के लिए इस्तेमाल किया जाता था...शायद उसने यही शब्द ही बोला था...आस पास जंगल हुआ करता था ...सिपाही शिकार करने जब आते थे तो यहां दिलखुश करने के लिए ठहरा करते थे....इसलिए इस का नाम दिलकुशा पड़ गया।

उसने सामने इशारा करते बताया कि यहां पर घोड़ों के रखने की भी जगह है और पीछे एक महल है।

यह पूछने पर कि इन कमरों में छत क्यों नहीं है ...उसने बताया कि नवाब को यहां से निकाल देने के बाद ..१९ वीं सदी में ब्रिटिश यहां रहने लगे ... जब उन को यहां से खदेड़ा गया तो ये छते तोड़नी पड़ीं....बताने लगा कि इन्हें बिल्कुल उसी हालत में ही सहेज कर रखा गया है.

जितना उसे पता था, उसने बता दिया...वैसे जो इन शिलाओं पर लिखा गया है, उसे हम लोग ज़्यादा विश्वसनीय मान सकते हैं.....आप इन्हें भी ज़रूर पढ़िए...और तो क्या लिखूं अब इस टॉपिक के बारे में....












दिलकुशा कोठी ..

यह लखनऊ की सरज़मीं...





गुरुवार, 18 जून 2015

"हे भगवान! हमारे अरविंद को सलामत रखना"..

अभी एक महीना ही तो हुआ है ...जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया और राजनीतिकों की तस्वीरें सरकारी विज्ञापनों पर दिखाने पर रोक लगा दी...अब सरकारी विज्ञापनों में नहीं दिखा करेंगे राजनीतिक..

अब तो इन विज्ञापनों में अकसर प्रधानमंत्री मोदी की सुंदर सुंदर नये नये कपड़ों में तस्वीरें दिखती हैं अकसर...ठीक है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन हो रहा है।

ये पत्रकार लोगों की भी निगाहें बड़ी पैनी होती हैं....कल रात मैं किसी चेनल पर देख रहा था कि दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन के बाहर यूपी के मुख्यमंत्री की तस्वीर यूपी सरकार के किसी विज्ञापन पर चस्पा थी...बस, पत्रकार क्लास ले रहे थे कि दिल्ली क्षेत्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तो विज्ञापनों से अपनी सारी तस्वीरें हटा ली हैं, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश की तस्वीर.....ऐसे और वैसे ...and all that!

कल दोपहर मैं टीवी पर ऐसे ही चैनल बदल बदल कर अपने मतलब का कुछ ढूंढ रहा था..अचानक एक जगह पर बिल्कुल घर घर की कहानी जैसा कुछ स्टफ सा दिखा.....यकीन मानिए, मुझे लगा कि यह कोई नया ड्रामा शुरू होने वाला होगा उस चैनल पर ..उस की झलक दिखा रहे होंगे...लेिकन कुछ समय बाद पता चला कि यह तो दिल्ली सरकार का विज्ञापन है..

आज भी दोपहर में वही विज्ञापन फिर दिख गया...बड़ा अनयुजुएल सा विज्ञापन है...emotional cords को कहानीनुमा अंदाज़ में टच करने वाला...जर्नलिस्टिक भाषा में हम इसे Slice of life! का नाम देते हैं..

मुद्दा यहां यह नहीं है कि विज्ञापन कितना बढ़िया था या नहीं था, बात केवल इतनी सी है कि इस तरह के विज्ञापनों को भी इन चैनलों पर चलाने में भी तो सरकारी खजाने से पैसा जाता ही होगा....इस विज्ञापन को देख कर यही लगता है जैसे यह अरविंद का ही विज्ञापन है... एक गृहिणी का यह कहना ...हे भगवान, हमारे अरविंद को सलामत रखना... हास्यास्पद सा ही लगा मुझे तो कम से कम।

लखनऊ में भी रेडियो सुनते सुनते अचानक विज्ञापन बजने लगते हैं... जिस में कईं बार उद्घोषिका कहती हैं...धन्यवाद है मुख्यमंत्री जी। अखिलेश जी ने यह किया, वह किया.....सरकारी विज्ञापनों में उन की तारीफ़ें.....बहुत अच्छा है, अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन में इस्तेमाल होने वाले भाषा बिल्कुल भी जर्नलिस्टिक नहीं होती, न ही हो सकती है, क्योंकि ये विज्ञापन होते हैं....पत्रकार कभी भी किसी की साइड नहीं लेता।






 हमारे अरविंद सलामत रहें वाला विज्ञापन तो मैंने अभी यू-ट्यूब पर देखा ....अभी अभी किसी ने अपलोड किया था..आप भी देखिए और अपनी राय से अवगत करवाईएगा मुझे...संवाद तो तभी ठीक रहता है जब मैं कोई बात करूं तो उस पर आप की टिप्पणी भी तो मुझ तक पहुंचे......ऐसे ही मैं अपने ही राग कितने समय तक अलापता रहूंगा...



और बच्चे को भी पता चल जाता है कि कौन कितना खरा है ...एक पत्रकार है ...विनोद शर्मा....अकसर टीवी पर होने वाली चर्चाओं में दिखते हैं......दो दिन पहले ललित मोदी पर हो रहे रवीश के प्रोग्राम में एक चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस और बीजेपी वाले दोनों चाहते हैं कि ललित मोदी वहीं रहे जहां वह अभी है क्योंकि ........। वह मुझे याद नहीं कि क्या कहा...शायद यही कहा कि इन दोनों ने अपने अपने पाले को बचाना है!!
विनोद शर्मा की बात में हमेशा दम रहता है..

सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिकों की तस्वीरों पर तो रोक लग गई...अब देखते हैं अगली जनहित याचिका क्या इस बात पर भी कभी होगी कि सरकारों को इतने महंगे महंगे विज्ञापन देने से परहेज करना चाहिए...after all it is tax payer's money!

इतनी भारी भरकम बातें जब मैं करने लगता हूं न तो मैं पाठकों की क्या कहूं, मैं खुद ही उकता जाता हूं.....इसलिए जाते जाते सुबह रेडियो पर सुना एक गीत ...शायद मैंने बहुत बरसों बाद सुना था...आप के लिए बजा रहा हूं...सुनिए..सुबह तो रेडियो पर सुना था, अभी अभी वीडियो देखा है....आप भी देखिए.... कैसे करूं प्रेम की मैं बात, ना बाबा ना बाबा....पिछवाड़े बुड्ढा खांसता....(फिल्म अनिता).....lovely music!!






मंगलवार, 16 जून 2015

'मिस टनकपुर हाज़िर हो' की कुछ खबर तो होगी?

मुझे भी इस की कोई खबर नहीं थी...परसों की टाइम्स ऑफ इंडिया पर आज नज़र पड़ गई तो यह खबर दिख गई....

खबर यही कि मुजफ्फरनगर की एक खाप ने मिस टनकपुर हाजिर हो फिल्म के निर्माता को जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को ५१ भैंसों का इनाम देने का निर्णय किया है।


मुझे तो यह खबर ही बड़ी बेवकूफी से भरी लगी...शायद पब्लिसिटी स्टंट ही हो यह सब....खाप ने इस तरह से भैंस के बलात्कार के विषय पर बनी फिल्म पर इस तरह का फरमान भी जारी कर दिया और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसी अखबार ने इसे छाप भी दिया...आप को क्या लगता है?

मुझे तो इस का ट्रेलर देने की अभी उत्सुकता हुई ...आखिर इस में है क्या? ...देखा है अभी अभी, आप भी देखिए...यहां एम्बेड किए दे रहा हूं...


एक बात तो हो, जब कोई फिल्म सेंसर बोर्ड के द्वारा पास कर दी जाती है तो फिर उस के बाद इस तरह के फरमान बड़े हल्के से लगते हैं.....बिल्कुल वैसे ही जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कोई कहे कि मैं तो इस फैसले को नहीं मानता। बहरहाल, सैंसर बोर्ड के आगे भी कानूनी रास्ते उपलब्ध हैं...अगर कोई इस्तेमाल करना चाहे....लेिकन सोचने वाली बात यह है कि अगर यह सब हो ही पब्लिसिटी गिमिक....

कल दोपहर में बैठे बैठे एक ट्रेलर और दिखा....कल रात माता का मुझे ई-मेल आया है.....मैंने अभी उसे भी फिर से यू-ट्यूब पर देखा है ...आप भी देखिए......मैं हैरान हूं कि अभी तक इस तरह के गीत बनाने वालों को कुछ धमकियां क्यों नहीं मिलीं कि तुमने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, मजाक उड़ाया है! शायद मिली भी हों, पेपर में न छपी हों! लेकिन इस की पब्लिसिटी का कमाल देखिए...इस का ट्रैक सुन कर बेटे ने कहा है पापा, पहले ही दिन यह फिल्म तो देखनी है.. मैंने कहा मेरी भी टिकट ले लेना.. अभी तो आप देखिए कि गुड्‍डू रंगीला जी फरमा क्या रहे हैं!!


एक्सप्रेशन की स्वतंत्रता...हमारा संवैधानिक हक.....भी गजब की चीज़ है...काश, हम इसे संभाल कर रख सकें...और दूसरे की इसी स्वतंत्रता का आदर करते हुए सहनशीलता का परिचय देते रहें......काश!! 

मैंने तो यही नोटिस किया है कि कोई जितना भी आजकल इस तरह की बातों से चिढ़ता है, लोग उसे उतना ही चिढ़ाते हैं...क्या यह चिढ़ाना पहले नहीं होता था, जो बच्चे स्कूल में चिढ़ जाया करते थे छोटी छोटी बातों पे, हम उन के साथ ही बार बार पंगे लिया करते थे....है कि नहीं?....लेकिन अब सोशल मीडिया की वजह से इस का चिढ़ने-चिढ़ाने का     दायरा हमारी कल्पना से भी आगे निकल गया है.....Come on, guys, just chill !!   .....ठंड रखया करो यारो, ठंड !!

सोमवार, 15 जून 2015

माननीय सुप्रीम कोर्ट की जय हो....

फर्ज़ी डिग्रीयां, प्रवेश परीक्षाओं में धांधलियां...क्या डर नाम की कोई चीज बची है?....पिछले हफ्ते उस दिल्ली के मंत्री ने क्या किया...इतना घूम लिया...दिल्ली से लखनऊ ...फैजाबाद, पटना...लेकिन बंदे के चेहरे पर शिकन नहीं दिखी। हमारे हाथ में डिग्री असली भी होती तो भी चेहरे से फर्जी वाले दिखते.....सच कह रहा हूं...शायद राजनीति इन लोगों को इतना मजबूत तो बना देती है।

इन डिग्रीयों के बारे में तो मेरा विचार है कि सभी राजनीतिकों, सभी सरकारी कर्मचारियों की डिग्रीयां और जाति प्रमाण-पत्र आदि चेक किये जाने चाहिए....इतने सारे लोगों पर उंगली उठती रहती है, एक ही बार में बात खत्म करो। उस दिन स्मृति इरानी और एक दूसरे मंत्री की भी बात चल रही थी, बस अगले दिन से सब चुप....दरअसल मीडिया किंग है, जो चाहे उजागर कर दे, जो चाहे ठंडे बस्ते में डाल दे।

इन डिग्रीयों की बात चल रही है तो मुझे अपने अस्पताल का एक वाक्या याद आ गया.....शायद २००८ या २००९ की बात है, मैं हरियाणा में पोस्टेड था..हमारे अस्पताल में एक डाक्टर पांच छः साल से काम कर रहा था...एक दिन जब हम लोग घर आए तो चैनल पर खबर चल रही थी कि कुछ डाक्टरों की डिग्रीयों का लफड़ा है, उसने रूस से डिग्री विग्री की थी.....चैनल वाले उस डाक्टर का स्टिंग आप्रेशन भी दिखा रहे थे....बस, उस दिन से वह डाक्टर दिखा ही नहीं....आप सोचिए कि वह चिकित्सक इतने वर्षों तक केन्द्र सरकार के एक अस्पताल में मरीज़ों का इलाज करता रहा....बात में कुछ बातें चलीं कि नियुक्ति के वक्त किसी ने डिग्री नहीं देखी, मेडीकल काउंसिल की रजिस्ट्रेशन नहीं देखी.....लेिकन अल्टीमेटली कुछ हुआ नही......लेकिन उस दिन के बाद वह डाक्टर साहब हमें कभी दिखे नहीं।

आज भी जब बाद दोपहर पता चला कि सुप्रीम कोर्ट ने पीएमटी प्रवेश परीक्षा को ही रद्द कर दिया है, तो बड़ा इत्मीनान हुआ.....सोचने वाली बात है कि किसी एक छात्र के साथ भी धक्का क्यों हो, ये जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश होते हैं ये सब के सब बहुत कुशाग्र-बुद्धि के मालिक होते हैं..

आज दोपहर में मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इतना खुश हुआ कि सोने की बजाए पास रखे चार पन्ने ही मैंने काले कर दिये...







कुछ अरसा पहले भी मुझे पीएमटी में धांधली करने वालों पर जब गुस्सा आया था तो मैंने उसे इस तरह से उगल कर राहत पा ली थी....

आज से ४० साल पहले कितने मुन्ना भाई तैयार होते होंगे!
ईंजन-बोगी स्कीम जो मेडीकल सीट भी दिलाती है

गुस्सा बहुत हो गया....अब शांत हो जाते हैं......कैसे?...मेरे विचार में बर्फी फिल्म का यह गीत यह काम कर देगा....आज मैंने दोपहर में इसे रेडियो पर सुना था.....मुझे यह गीत बहुत पसंद है..फिल्म भी बहुत बढिया है वैसे तो ....चलिए, आप भी सुनिए...अगर आपने यह फिल्म अभी तक नहीं देखी, तो मेरे कहने पर इसे ज़रूर देखिएगा...यू-ट्यूब पर भी पड़ी हुई है...

मरीज़ों की समस्याएं बड़ी जटिल हैं यहां

दवाईयों को लेकर मरीज़ों की समस्याएं यहां सच में बड़ी जटिल है। इस के बहुत से कारण हैं, एक कारण डाक्टर लोगों की बुरी लिखावट (handwriting) भी है...दो दिन पहले मैंने जब अखबार में पीएमटी रिजल्ट में मेरिट हासिल करने वाले  एक छात्र की लिखावट देखी तो मुझे बहुत निराशा हुई...कारण यही था कि अब इस तरह की लिखावट की वजह से मरीज़ परेशान भी हुआ करेंगे...ठीक है, डाक्टर तुम बहुत अच्छे बन सकते हो, लेकिन अगर लिखावट पर भी थोड़ा ध्यान दिया होता तो...

मैं जानता हूं बुरी लिखावट के पीछे कुछ दूसरी तकलीफ़ें भी हो सकती हैं. ..तारे ज़मीं पर फिल्म ने अच्छे से हमें बता दिया था। आप को भी तो याद होगा उस के माध्यम से पढ़ाया गया पाठ!

लेकिन मुझे शिकायत यही है कि लिखावट के ऊपर इतना ध्यान दिया नहीं जाता...इसी वजह से लिखावट की सुंदरता दिन प्रतिदिन गिरती ही जा रही है। बच्चे लिखना पसंद ही नहीं करते, सब कुछ ऑनलाइन...सब कुछ स्क्रीन पर ही लिख-पढ़ लिया जाता है अधिकतर। बस, अगर बचपन में हैंडराइटिंग की तरफ़ ध्यान न दिया जाए तो फिर बाद में शायद ही आप इसे सुधार पाते हैं। 

मैं यह पोस्ट अपनी प्रशंसा करने के लिए नहीं लिख रहा हूं.....न ही अब इस की मुझे कोई ज़रूरत महसूस होती है, लेिकन फिर भी अपने अनुभव बांटने तो होते ही हैं। मेरे बहुत से मरीज़ मेरी हैंडराइटिंग की तारीफ़ कर के देते हैं...बहुत से...मैं बस यही कहना चाहता हूं यह अपने आप ही नहीं हो गया, हमें पता है हम लोगों ने आठवीं-दसवीं कक्षा तक इस के लिए कितनी तपस्या की है......इतना लिखा है जिस की शायद आज के युवा कल्पना भी नहीं कर सकते। 

मेरा कहने का यही आशय है कि हमें बच्चों की हैंडराइटिंग की तरफ़ भी शुरू से ही ध्यान देना चाहिए....यह भी हमारी शख्शियत का एक हिस्सा है बेशक...खुशखत लिखने से हम दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट ले आते हैं, वरना सिरदर्दी। 

डाक्टरों का लिखा कैमिस्ट तो पढ़ ही लेता है....और बहुत बार बुरी लिखावट की वजह से गल्तियां भी हो जाती हैं....ऐसा भी हमने बहुत बार सुना है। 

आप देखिए ...एक तो हैंडराइटिंग खराब, ऊपर से डाक्टर अकसर लिखता है इंगलिश में, दवाई की स्ट्रिप्स पर भी नाम अधिकतर इंगलिश में ही गढ़े होते हैं...नियम कुछ भी हों...दबंग कंपनियां परवाह करती नहीं, सरकारी फार्मासिस्टों को भीड़-भड्क्के की वजह से शायद इतना टाइम नहीं कि विभिन्न दवाईयों के बारे में बता सकें...दावे जो भी होते हों, डाक्टर के पास वापिस जाने की अधिकतर मरीज़ हिम्मत नहीं जुटा पाते कि दवाई कैसे खाएं, बाहर से खरीदी जाने वाली दवाई और डाक्टर की लिखी दवाई का मरीज़ मिलान नहीं कर सकते क्योंकि इंगलिश आती नहीं.....ये तो चंद मिसालें हैं, मरीज़ की परेशानियों की लिस्ट बहुत लंबी है, बस आप कल्पना कर सकते हैं! 

इस लिस्ट में मरीज़ या अभिभावकों की अनपढ़ता या कम पढ़ा लिखा होना भी जोड़ दीजिएगा। 

अच्छा एक बात और भी है, डाक्टरों को सरकारी निर्देश भी आते हैं कि आप जैनरिक दवाईयों के नाम ही लिखा करिए...लेकिन जब सरकारी डाक्टर ही इन निर्देशों की परवाह नहीं करते तो निजी चिकित्सालयों को कोई क्या कहे! 
मुझे ऐसा लगने लगा है कि अगर किसी चिकित्सक को अपनी हैंडराइटिंग के बारे में अहसास है कि वह इतनी खराब है कि कोई उसे पढ़ नहीं सकता, तो कम से कम उसे मरीज़ की सुविधा के लिए बड़े अक्षरों में तो लिख ही देना चाहिए...in capital letters. 

मेरी ओपीडी में दूसरी ओपीडी के कईं बार मरीज़ आकर मरीज़ पर सारी दवाईयां पलट कर पूछते हैं कि ये कैसे खानी हैं!...इतनी सारी दवाईयां, रंग बिरंगी, तरह तरह की पैकिंग...मुझे हमेशा यही बात अचंभित करती है कि ये लोग कैसे इस बात का ध्यान रख पाते होंगे कि कौन सी दवा कितनी बार, खाने से पहले या बाद में या दूध-पानी के साथ कैसे लेनी है.....बहुत ही मुश्किल काम है। हर बार दवाईयों का ब्रेैंड बदला होता है, इसलिए पैकिंग भी बदली होती है, मरीज़ों की तकलीफ़ें जैसे पहले से कम हों !

आज सुबह सुबह पता नहीं इस तरह का ज्ञान झाड़ने का कहां से ध्यान आ गया....परेशानियां तो मैंने गिना दीं...लेकिन ईमानदारी से कहूं तो इस समस्याओं का समाधान मुझे भी कहीं आस पास दिख नहीं रहा। यही दुआ करते हैं कि लोग इतने सेहतमंद हो जाएं कि दवाईयां उन की पीछा ही छोड़ दें.......आमीन।।


मैं तो फ्री ज्ञान बांटता रहता हूं....यहां तक की गूगल ने एड्सेंस भी अभी तक एप्रूव नहीं किया......कारण वे जानें, लेकिन यहां कोई चीज़ फ्री बिकती नहीं.....हमारे यहां टाटा स्काई लगा हुआ है...एक चैनल है ..एक्टिव जावेद अख्तर ...उस पर वह रहीम कबीर के दोहों की व्याख्या करते हैं...अच्छा लगता है.....लेकिन दुःखद बात यह है कि जैसे ही दो तीन मिनट के बाद आप को कुछ समझ आने लगता है कि KLPD हो जाता है....झटके से जावेद अख्तर की आवाज़ और तस्वीर बंद हो जाती है ...और स्क्रीन पर मैसेज आ जाता है कि अगर तन्ने यह ज्ञान चाहिए तो निकाल रोज़ के पांच रूपये....मुझे बहुत दुःख होता है इस तरह की बातों से.......कबीर, रहीम ...और जिन भी संतों, पीरों, पैगंबरों की बातें आप साझी कर रहे हैं, अगर उन्हें पता चला कि आज उन के बोलों का भी व्यापार हो रहा है तो यकीनन वे भी फफक फफक कर रो पड़ें........मुझे नहीं पता कि जावेद इस कार्यक्रम में आने का कुछ पैसा लेता होगा कि नहीं, लेकिन मुझे ऐसे लगता है कि इस तरह के कार्यक्रम उन्हें बिल्कुल फ्री करने चाहिएं....और अगर वे टाटास्काई से इस के लिए कुछ नहीं लेते ...और सब्सक्राईबर्ज़ को रोज़ाना पांच रूपये भेंट करने को कहा जा रहा है तो उन्हें ऐसे प्रोग्रामों से नाता तोड़ लेना चाहिए.....किसी बात की कमी थोड़े ही ना है उन्हें। बिना वजह.....!!


लेिकन कोई बात नहीं, अगर आप को कबीर, रहीम जैसे संतों, पीर, पैगंबरों के नाम पर दैनिक पांच रूपये खर्च करने में आपत्ति है तो मेरे पास ज्ञान हासिल का एक और जुगाड़ भी है......ले आइए एक रेडियो, ट्रांजिस्टर ....इस में दिन भर विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और देश के प्रधानमंत्री की दिल की बातें सुनिए....बिल्कुल फोकट में! 

मैं रेडियो सुनने का आदि हूं.....और इसलिए गारंटी लेता हूं कि दिन भर आप के हर खुशी, गमी, रूमािनयत, रूहानियत मूड के लिए यहां कुछ न कुछ बजता रहता है......और वह भी अथाह ज्ञान का भंडार लिए....और साथ साथ आपको गुदगुदाये भी..... परसों की बात है सुबह एफ एम रेनबो पर एक गीत बज रहा था.....मुझे ऐसे लगा मैंने उसे पहले नहीं सुना .....सुन कर बहुत अच्छा लगा......क्या थे बोल?...जीने वाले झूम के मस्ताना हो के जी..

आज यू-टयूब का यह तो फायदा है कि कुछ भी ढूंढा जा सकता है......मैं भी उस गीत तक अभी पहुंच ही गया......तो मेरी तरह आज के दिन की शुरूआत इस भजन जैसे गीत से कर लें?........मैं तो इन गीतों के बोल सुन कर अचंभित होता हूं .....बार बार कवि की कल्पना की उड़ान की दाद देता हूं......कैसे उन के चंद बोल रेडियो पर बजते हैं तो सैंकड़ों-हज़ारों लोगों में जीने की उमंग भर देते हैं..........जो कोई मल्टीविटामिन की गोली, या महंगे से महंगा टॉनिक भी नहीं कर सकता........आप के लिए यह गीत यहीं एम्बेड कर रहा हूं, सुनिएगा..

रविवार, 14 जून 2015

योग और हमारी सेहत....डी डी न्यूज़ पर टोटल हेल्थ में

मैंने बहुत बार डीडी न्यूज़ पर हर रविवार सुबह साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे तक दिखाए जाने वाले टोटल हेल्थ कार्यक्रम की प्रशंसा की है। सेहत से संबंधित यह एक बेहतरीन कार्यक्रम है..बेशक।

जब भी मुझे याद रहता है या मैं जिस किसी रविवार को इस समय घर में रहता हूं तो इस कार्यक्रम को अवश्य देखता हूं।

आज सुबह भी बैठे बैठे ध्यान आया कि साढ़े आठ बजने वाले हैं...झट से डीडी न्यूज़ चैनल लगाया तो यह प्रोग्राम शुरु हो चुका था।

प्रोग्राम का विषय पढ़ कर लगा कि इस की कम से कम आडियो रिकार्डिंग ही कर लूं ...जिसे अपने किसी लेख में शेयर करूंगा....वही किया है...यू-ट्यूब पर अपलोड किया है....बस, ऐसे ही वीडियो बनाने की सूझी नहीं, ट्राईपॉड तो था ...इसलिए कोई दिक्कत नहीं होती।

ऐसा नहीं है कि ये चैनल वाले इस तरह के वीडियो अपने यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड नहीं करते....कुछ अरसा पहले मैंने चैक किया था तो पता चला था कि ये लोग किसी नियमितता से इन रिकार्ड किये हुए प्रोग्रामों को अपलोड नहीं करते....बाद में कभी भी ...कुछ काट देते हैं......यह सब इन की मरजी या सुविधा अनुसार होता है।

वैसे अगर आप इस चैनल का यू-ट्यूब चैनल चैक करेंगे तो पाएंगे कि बहुत से रिकार्ड किए हुए ऐसे प्रोग्राम सेहत संबंधित विभिन्न विषयों पर वहां धरे-पड़े हैं।

हां, तो आज के योग प्रोग्राम की तरफ़ आते हैं....मुझे एक ज़रूरी काम के लिए उस समय आज बाहर भी जाना था लेकिन मैंने उसे टाल दिया....और इस कार्यक्रम को देखता रहा।

संगत का असर देखिए कि आधा प्रोग्राम देखने के बाद मैंने स्टोर रूम में जाकर अपनी वह चटाई ढूंढी जिस पर बैठ कर मैं बहुत वर्षों तक प्राणायाम् किया करता था....मिल गई और पांच दस मिनट मैंने प्राणायाम् भी किया।

आज वाले इस टीवी प्रोग्राम को रिकार्ड कर के जो वीडियो मैंने बनाया है, उस को यहां नीचे एम्बेड कर रहा हूं...सुनिएगा...अच्छा लगेगा क्योंकि आप के लिए कुछ न कुछ तो ऐसा इस में है जो आप पहले से नहीं जानते और वह आपके लिए जानना ज़रूरी है।



इस तरह के प्रोग्राम जो सरकारी मीडिया पर दिखाए सुनाए जाते हैं...उन में मेरी बहुत अास्था इसलिए है कि इन का एक टके का भी कमर्शियल इंस्ट्रेस्ट नहीं होता और न ही हो सकता है। जिन लोगों को ये बुलाते हैं, वे देश के चुनिंदा विशेषज्ञ होते हैं।

अब आज के ही प्रोग्राम की उदाहरण लीजिए....अगर यह चैनल किसी रस्म-अदायगी की तरह ही एक कार्यक्रम कर रहा होता ...२१ जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस से पहले ..तो ये किसी भी योग सिखाने वाले को ढूंढ कर भी यह कार्यक्रम करवा सकते थे....लेिकन नहीं, इस कार्यक्रम में जिन लोगों ने शिरकत करी ...उन में से एक तो थे पतंजलि योग विद्यालय के योग विद्या विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर, दूसरे थे दिल्ली के एक प्रसिद्ध योग संस्थान के मुखिया और तीसरे डाक्टर साहब थे जो डी आर डी ओ संस्था से बुलाए गये थे...Defence Research and Development Organisation ....ये साहब योग के वैज्ञानिक पहलुओं की चर्चा कर रहे थे ....पहाड़ों एवं ग्लेशियरों पर तैनात फौजियों को योग कैसे मदद करता है...योग क्या वही लोग कर सकते हैं जो मांस मछली नहीं खाते हों, इन सब मुद्दों पर भी इन्होंने चर्चा करी। और हां, योग आसन कर के दिखाने के लिए एक योगाभ्यास करने वाले को भी बुलाया गया था जो योगाचार्य के कहने पर विभिन्न आसन कर के दिखाने लगता था। बहुत अच्छा लगा यह प्रोग्राम।

और प्रोग्राम को जिन लोगों ने पेश किया वे तो अपने काम में पारंगत हैं ही .......बस, उन से यही शिकायत है कि वे लोग किसी भी ई-मेल का जवाब नहीं देते....मुझे कभी यह बात समझ नहीं आई... लेकिन इन्हें दर्शकों की फीडबैक को भी ग्रेसफुली एक्नॉलेज चाहिए.....जिस भी माध्यम से यह मिल रही हो। वरना, दर्शक निरंतरता से जुड़ नहीं पाते, कटने लगते हैं.

और जाते जाते एक बात....प्रोग्राम बेहतरीन है, पेश करने वालों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी इसे इतने अच्छे ढंग से प्रस्तुत करने में, आने वाले विशेषज्ञ अपने काम में बिल्कुल एक्सपर्ट.......इस सब के बावजूद हो सकता है कि आप इस प्रोग्राम में बताई गई कुछ बातें ही समझ पाएं......फिक्र नॉट.....बहुत सी बातें आप के सिर के ऊपर से ही निकल जाएंगी....अगर दो चार बातें भी मन में बस गईं...तो समझिए आप का कल्याण हो गया।

योगाचार्य ने भी तो इस कार्यक्रम के दौरान यही कहा कि आप कोई भी भाषा सीखते हैं तो शुरूआत तो वर्णमाला सीखने से ही करते हैं... है कि नहीं?....ऐसी भी क्या जल्दी है, इत्मीनान से धीरे धीरे सहजता से सीखते चलिए जाईए....पहले साधारण सी बातें, पहले साधारण से आसन....धीरे धीरे आगे बढ़ते जाईए......लेकिन एक बात जो मैं अकसर कहता हूं ..योगाचार्य महोदय ने भी कही कि कोई भी विद्या सीखने के लिए गुरू तो चाहिए ही होता है.....आप भी ये आसन वासन किसी योग गुरू से ही सीखिए.......टीवी पर उन्होंने हमें प्रेरित कर दिया, क्या यह कम है, मेरे जैसे आलसी ने बरसों बाद अपनी प्राणायाम् की चटाई ढूंढ ली! सोच रहा हूं कल से नियमित प्राणायाम् तो शुरू कर ही दूंगा और किसी योगाचार्य को भी ढूंढता हूं।

सरकारी मीडिया पर सेहत संबंधी जानकारी 
विविध भारती के पिटारे से निकलने वाला सेहतनामा

शनिवार, 13 जून 2015

अमूल दूध के बारे में जान कर चिंता हुई...

हिन्दुस्तान अखबार में छपी यह खबर ...
(इस खबर को पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए) 
आज सुबह हिंदी अखबार हिन्दुस्तान देखी तो अमूल दूध की यह खबर देख कर चिंता हुई...

अमूल के नाम की ही धाक है..पूरी साख है....हम लोग भी पिछले दो तीन सालों से अमूल दूध ही ले रहे हैं...यहां पर तीन चार ब्रांड बिकते हैं....अमूल के पीछे हमारा दीवानापन देखिए जब अमूल नहीं मिलता तो भी किसी दूसरे ब्रांड का दूध नहीं लेते।

अमूल ने यह नाम जल्दी ही तो नहीं कमा लिया...इन की बड़ी अच्छी परंपराएं हैं, गुणवत्ता नियंत्रण भी अच्छा है, ऐसा बताया जाता है।

कुछ महीने पहले मैंने बाज़ार में कुछ बच्चों को पांच या सात रूपये में एक बिल्कुल छोटा दूध का पाउच खरीदते देखा तो मुझे पता चला कि अमूल आज कल इस तरह के छोटे छोटे पाउच भी बेचने लगा है। अच्छा यह लगा कि कम से कम कोई चाय तो ढंग का दूध इस्तेमाल कर के पी सकता है।

आज यह जो खबर आई कि अमूल के दूध में न्यूट्रिलाइज़र का इस्तेमाल पाया गया ताकि इसे फटने से बचाया जा सके..आप ऊपर लगाई हुई खबर देख सकते हैं...वैसे अभी मैं गूगल सर्च कर रहा था तो मुझे यह भी दिख गई...आप आसानी से इस लिंक पर भी इसे देख सकते हैं...यू पी में मैगी के बाद अमूल में मिला घातक न्यूट्रिलाइज़र

कुछ सर्च और की तो पाया कि न्यूट्रिलाइज़र के तौर पर बेकिंग सोड़ा का इस्तेमाल अकसर किया जाता है...मैं अमूल की बात नहीं ...जर्नल बात कर रहा हूं ..देखने में लगता है कि बेकिंग सोडा ही तो है..मुझे याद है अकसर बचपन में कभी जब ज़्यादा खा लिया करते थे तो थोड़ा सा मीठा सोडा पानी के साथ ले लेते थे...मेरी नानी तो यह बहुत बार करती थीं।

लेिकन इस का नुकसान तो है ही, अब हम जानते हैं.....इस में मौजूद सोडियम की वजह से यह ब्लड-प्रेशर के लिए तो खराब ही है...आप सोच रहे होंगे कि कितनी जगहों पर यह इस्तेमाल होता है, होता है...लेकिन इस का नुकसान तो है ही...न्यूट्रिलाइज़र के तौर पर कुछ और भी केमीकल्स के इस्तेमाल होने की बात कही गई है।

अमूल के दूध की बात तो यहीं छोड़ते हैं...अब इस के आगे भी परीक्षण होंगे तो दूध का दूध, पानी का पानी हो ही जाएगा..

लेिकन आज जब मैं गूगल सर्च कर रहा था तो एक लेख दिख गया...जानकारी से भरा लगा, पूरा पढ़ा तो आंखें खुलीं...आखिरी लाइन में पढ़ा कि लेखक ने दूध को घर से बाहर ही कर दिया है... उत्सुकता हुई कि लेखक कौन है, पता चला कि इसे मेनका गांधी ने लिखा है..क्या यह बात इतनी व्यवहारिक है कि हम लोग दूध ही इस्तेमाल करना बंद कर दें, शायद मेनका गांधी जैसे परिवारों के लिए यह संभव हो पाता होगा क्योंकि उन के पास खाने-पीने के कईं बेहतर और महंगे विकल्प रहते होंगे.....लेकिन एक औसत भारतीय को यह सुझाव देना कुछ जमा नहीं......औरों की क्या बात है, हमारे यहां भी कल अमूल का ही दूध आएगा.......क्या करें, और कौन सा विकल्प है?.....अमूल का नाम लेते ही उस कुरियन नाम के मसीहे की याद जो आ जाती है...जिसने यह पौधा लगाया था।

लेकिन सोचने वाली बात है कि अगर हम इस तरह के कैमीकल नित्य प्रतिदिन खाये जा रहे हैं ....हमें पता ही नहीं है कि क्या क्या खाए जा रहे हैं, और कितनी मात्रा में यह सब खाए जा रहे हैं...डाक्टर लोग अपना फ़र्ज बखूबी निभा रहे हैं....हमें समय समय पर चेता कर के इस तरह के दूध से गुर्दे और लिवर फेल हो सकता है, दिल की बीमारियों को न्यौता है इस तरह का दूध..

वैसे जो भी मैंने मेनका गांधी के जिस लेख की बात लिखी है, वह पढ़ कर आप दूध के इस लफड़े के बारे में अपने ज्ञान में इज़ाफ़ा तो कर ही सकते हैं.... इस का लिंक यह रहा ....The Milky Way  चूंकि यह लेख The Hindu की साइट पर है, इस के तथ्यों के बारे में आप पूरी तरह से आश्वस्त रहिए।

दोस्तो, मुझे पता है ...इस तरह के विषय पर लिखना कितना मुश्किल है....लिखते लिखते ही सिर भारी होने लगा है...और इस तरह का दूध रोज़ाना शरीर में पहुंच कर क्या गुल खिलाता होगा, यह एक दो चार दिन में पता नहीं चल सकता..लंबे समय तक इस्तेमाल करने के बाद तो शरीर में इस के बुरे प्रभाव दिखने तो तय ही होते हैं..

एक बात और भी है कि जिस तरह से आज कल दूध की मिलावट हो रही है, जिस तरह से सिंथेटिक दूध भी पब्लिक को पेला जा रहा है, इस काम के लिए इस्तेमाल की जाने वाले कैमिक्लस की लिस्ट देख कर ही किसी का भी सिर चकरा जाए.......इन कैमीकल्स की टेस्टिंग की तो बात ही क्या करें...टेस्टिंग के बारे में ऊपर वाले लेख में पढ़ कर ऐसे लगा कि जैसे मैं बीएससी के सिलेबस की कोई किताब पढ़ रहा था.....क्या यह सब टेस्ट अपने स्तर पर कर पाने संभव भी हैं....मुझे तो कभी नहीं लगा, मेैंने इस विषय़ पर इस ब्लॉग में दर्जनों बार लिखा है...

कल परसों अखबार में एक खबर दिखी की अब यूपी सरकार नागरिकों को किसी भी खाद्य पदार्थ की टेस्टिंग की सुविधा प्रदान करेगी जिस का खर्च एक हज़ार होगा.....चौंकिए मत, जी, एक हज़ार ही लिखा था, मैंने ठीक लिखा है और आपने सही पढ़ा है। अब, कौन करवाएगा यह टेस्ट.......अगर करवा भी ले, कुछ आ भी जाए टेस्ट में तो आगे क्या! हां, एक बात तो है कि कम से कम टेस्ट करवाने वाला तो उस मिलावटी या घटिया किस्म की चीज़ को त्याग देगा....लेकिन तब तक यह जो अखबारों में रोज़ आ रहा है......इन पर ही नज़र रखी जाए और इन खबरों पर भरोसा कर के अपने खाने पीने की आदतों में ज़रूरी बदलाव करते जाईए।

फ़र्क तो पड़ता है दोस्तो, अगर कोई जानकारी हम तक पहुंचती है...फायदा तो होता ही है, पिछले सालों में कोल्ड-ड्रिंक्स के बारे में कितना आता रहा है....शायद इसी का ही असर होगा कि अब कोल्ड-ड्रिंक्स की तरफ़  देखने तक की इच्छा नहीं होती, कईं बार मजबूरी में पीनी पड़ती है, इस सारे गर्मी के मौसम में शायद कुछ तीन या चार बार कोल्ड-ड्रिंक्स ली होगी।

छाछ वाछ ले लेते हैं....हां, छाछ के बारे में मैं एक प्रश्न आप के लिए छोड़ कर यहीं विराम लेता हूं....अमूल की छाछ अब मिलने लगी है....पीने में ठीक ठाक लगी तो मंगवाने लगे.....मिसिज़ इस से परहेज़ करती हैं....आप भी मानते होंगे कि गृहिणियों की आब्ज़र्वेशन पुरूषों से कहीं ज्यादा होती है.....उन्होंने मुझे दो िदन पहले कहा कि ऐसा क्यों होता है कि हम लोग जो छाछ घर में बनाते हैं ...उसे चंद मिनटों के लिए भी छोड़ें तो पानी ऊपर आ जाता है और दूसरा कंटेंट नीचे बैठ जाता है.....होता है ना ऐसा ही होता है, लेकिन यह जो अमूल की छाछ हम लाते हैं...इसे कितने समय भी पड़ा रहने दें, यह हमेशा इसी तरह की ही दिखती है.....मिसिज़ को यह संदेह है कि कुछ न कुछ तो इस में डाला ही जाता होगा जो यह ऐसी ही दिखती है .......मैंने अभी अभी अमूल की छाछ की यह तस्वीर ली है.....यह प्रश्न मैं आप के लिए छोड़ रहा हूं........इसे हल्के में मत लीजिएगा और अगली बार अमूल की या कोई भी बाजार में मिलनी वाली छाछ पीते समय इस प्रश्न को याद रखिएगा....
अमूल छाछ से भरा गिलास 
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शुक्रवार, 12 जून 2015

फर्जी डिग्री क्या सच में इतना बड़ा अपराध है!

यह प्रश्न मेरे दिमाग में पिछले दो तीन दिनों से लगातार कौंध रहा है..कानून की नालेज तो नगण्य है, लेकिन इतना तो लगता है कि ज़रूर कोई भारी-भरकम दफा तो लगाई ही जाती होगी इस तरह के दस्तावेज़ के लिए।

लेकिन तुरंत फिर से लगने लगता है कि क्या कोई भी दफा इतनी भारी भरकम हो सकती है कि बंदे का वह हाल कर दे जो दिल्ली के कानून मंत्री सिंह का हो रहा है....गिरफ्तारी, रिमांड, दिल्ली से लखनऊ लाया जाना, वहां से फैज़ाबाद, वापिस दिल्ली, फिर अगले ही दिन आनन-फानन में वापिस लखनऊ, वहां से फैज़ाबाद, फिर वहां से पटना.....ज़मानत मिली नहीं! 

मानते हैं कि फर्जीवाड़ा ज़ुर्म होता है और देर सवेर सच निकल के आ ही जाएगा.....समुचित कार्यवाही भी हो जाएगी...और एक बात कि उस बंदे ने अपना त्याग-पत्र तो दे ही दिया है, अब इतनी जल्दीबाजी, अफरातफरी मेरी समझ में नहीं आ रही। 

हम लोग आए दिन अखबारों में फर्जीवाड़े के किस्से पढ़ते देखते रहते हैं....लोग अपनी जाति के गलत प्रमाण पत्र पेश कर के डिग्रीयां ले लेते हैं, नौकरीयां पा लेते हैं......ठीक है, जब कहीं पता चलता है तो सख्त कार्यवाही होती ही है। लेकिन सोचने की बात यह भी है कि कितने केस ऐसे ही हमेशा दफन ही रहते होंगे। 

मुझे अकसर याद आ रही है बात......अकसर अब लोग समझने लगे हैं उस बात का मतलब......"तुम मुझे आदमी बताओ, मैं तुम्हें नियम बताऊंगा"...

वैसे तो सरकार ने विभिन्न सर्टिफिकेटों को किसी आवेदन के साथ जमा करने का काम आसान कर दिया है....अब किसी राजपत्रित अधिकारी के द्वारा इसे सत्यापित करवाने की ज़रूरत नहीं है, लेिकन फिर भी लोग यदा-कदा आ ही जाते हैं अटेसटेशन के लिए। लेकिन अब उसे भी ध्यान से सोचना होगा.....इतना फर्जीवाड़ा जब चल रहा हो तो किसी ऐसे वैसे दस्तावेज की अटेसटेशन भी किसी को परेशान कर सकती है...क्या पता कोई ऐसे ही फुलझड़ी छोड़ दे कि यह साला भी इस फर्जीवाड़े में संलिप्त होगा। 

ऐसा भी नहीं है कि हम कह सकें कि इस तरह के फर्जी सर्टिफिकेटों के लिए जो कार्यवाही हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए....कानून ने अपना काम तो करना ही है, लेकिन बार बार मन यही सोचने पर मजबूर हो रहा है कि क्या हर फर्जीवाड़े में ऐसा ही एक्शन होता है! .......जवाब इस का आप मेरे से बेहतर जानते हैं!!

इस केस का घटनाक्रम देखते हुए मुझे लगता है कहीं इस की जांच के लिए सीबीआई जांच ही न बैठा दी जाए!!

एक बात और भी है कि अगर एक मंत्री इस तरह की डिग्रीयां रख रहा है, अगर वे फर्जी हैं , तो पता नहीं ऐसी ही कितनी लाखों-हज़ारों लोगों की डिग्रीयां फ़र्ज़ी हों........मेरा सरकार को सुझाव है कि सभी सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों की डिग्रीयों की भी वेरीफिकेशन होनी चाहिए....और यह एक रूटीन होना चाहिए कि नौकरी पर लगने से पहले डाक्यूमेंट्स की वेरीफिकेशन ..मूल दस्तावेज से ही नहीं, बल्कि जिस यूनिवर्सिटी द्वारा उसे जारी किया गया है, उस से भी उस का वेरीफिकेशन करवाया जाना चाहिए....जाति प्रमाण पत्रों की भी वेरीफिकेशन इसी तरह से होनी चाहिए...

बस, बाकी हाल चाल तो ठीक ठाक ही है ......


गुरुवार, 11 जून 2015

मैंने आठ साल बाद अपनी ब्लड-शूगर जांच कैसे करवाई...

जी हां, पिछली बार मेरी ब्लड-शूगर जांच २००७ में हुई थी...उस समय पहले २००५ में मेरा एक आप्रेशन होना था...फिश्चूला का...आप्रेशन से पहले सभी जांचें हुई थीं।

इन आठ सालों में मिसिज़ ने बहुत बार कहा कि जांच करवा लिया करें....लेकिन मैं टालता ही रहा। सच बताऊं तो दोस्तो जिस तरह से मैं मीठे का शौकीन हूं ..या यूं कहूं कि था...डर ही लगता था कि चलो, ठीक ही चल रहा है, अगर शूगर बड़ी आई तो तुरंत दवाईयां खानी पड़ेंगी...बीसियों तरह के परहेज़ करने पड़ेंगे.

मैंने आप को बताया ना कि आखिरी ब्लड-शूगर की जांच मेरी २००७ में हुई थी...उसी साल मैं हिंदी ब्लॉगिंग के चक्कर में पड़ गया...और इन आठ सालों के दौरान शूगर की नियमित जांच के महत्व के बारे में बीसियों लेख इस ब्लॉग पर भी लिखे लेकिन अपनी शूगर जांच की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ऐसे होते हैं हम डाक्टर लोग भी....दोस्तो, आप से कुछ भी छुपाने में मज़ा नहीं आता।

हम लोग कालेज में पढ़ा करते थे ...KAP Studies के बारे में ...कहने का मतलब Knowledge, Attitude, and Practice....मेरी उदाहरण से आप यह समझ सकते हैं कि केवल किसी बात की नालेज से ही बात नहीं बन सकती, उस के बारे में आप का क्या एट्ीट्यूड है, आप उस को कैसे प्रैक्टिस करते हैं, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। इस की और भी उदाहरणें हैं...डाक्टर लोग जब गुटखा चबाते हैं...आदि ..

इस का मतलब सीधा सीधा है कि नालेज तो वही काम की है जिसे प्रेक्टिस में लाया जा सके।

मीठे की बातें करूं....मुझे बचपन से ही मीठा बहुत पसंद है...याद है बिल्कुल छोटे थे तो इतने बिस्कुट विस्कुट तो मिला नहीं करते थे...अकसर उस की जगह एक मुठ्ठी में कच्चे चावल और दूसरी में चीनी दबा लिया करते और उसे चबा कर ही खुश हो जाया करते थे...फिर पके हुए चावल में चीनी डाल कर खाने की लत लग गई जो अाज तक कायम है, गुड़ वाले चावल, आधी रात में मां को जगा कर चीनी के परांठे खाने की फरमाईश रख देना...गेहूं और मक्के की रोटी पर शक्कर, चीनी और गुड़ रख कर खाना.....चाय भी ऐसी पसंद है जिसमें मीठा अच्छा खासा हो, लड्‍डू वड्डू भी बहुत अच्छे लगते हैं...लेकिन अब इतने लाते-खाते नहीं हैं...शुक्र हो मिलावटखोरों का ...कम से कम इन्होंने हमें डराया तो!

वैसे अब बिस्कुट और मिठाईयां, भुजिया आदि तो बहुत कम दिया है......मीठा पर भी बहुत कंट्रोल किया हुआ है।

2009 में मैं Kidney Foundation के आमंत्रण पर चेन्नई गया था -- वहां पर हमें एक ऐसे प्रोग्राम को देखने का अवसर मिला जो NGOs चलाती हैं, हाई-ब्लड-प्रेशर, डॉयबीटीज़ की रोकथाम के लिए ताकि गुर्दों को भी बीमारियों से बचाया जा सके...बिल्कुल सस्ते टेस्ट से ..पेशाब की जांच के लिए कुछ लोगों को ट्रेन्ड कर दिया गया था ...जो नियमित इस जनसंख्या की जांच किया करते थे...बहुत अच्छा अनुभव रहा उस प्रोग्राम में शिरकत करने का ..कहने का मतलब यह कि पहले तो उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों की रोकथाम ही हो जाए कैसे भी (primary prevention)  ..लेकिन अगर इस तरह की कोई तकलीफ हो भी तो उसे शुरूआती दौर में ही पता कर के ...उस के शरीर के विभिन्न हिस्सो में होने वाले बुरे प्रभावों से तो बचा ही जा सकता है।

इस पोस्ट का परिचय कुछ लंबा हो गया दिखता है...मैं तो अपनी ब्लड-शूगर की जांच की बात कर रहा था ..पिछले सात आठ वर्षों से पेन्डिंग थी...मैं बस टालता जा रहा था...बहुत बार इच्छा भी होती थी कि आज करवा लूं लेकिन फिर टाल देता।

हां, तो कल हमारे अस्पताल की टीम जौनपुर गई हुई थी..वहां पर हेल्थ-चैकअप कैंप था....स्ट्रिप से ब्लड-शूगर की जांच भी हो रही थी.....लगभग १०० के करीब लोगों की ब्लड-शूगर की जांच हुई ...हैरानगी की बात यह थी कि इन में से २० केस ऐसे पाये गये जिन का रेन्डम ब्लड-शूगर का स्तर काफ़ी बड़ा हुआ था ...और लगभग इतने ही मरीज़ ऐसे थे जिन्हें पहले से मालूम था कि उन्हें शूगर है, उन का स्तर भी बड़ा हुआ था।

मुझे यह देख कर बहुत हैरानगी हुई कि उन बीस नये शूगर के केसों में से चार मरीज़ उस कैंप में ऐसे थे जिन के ब्लड-शूगर का स्तर चार पांच सौ के करीब था...जिसे mg% में दिखाया जाता है।

एक आदमी था...यही कोई ३५-४० का होगा...उसे कोई तकलीफ नहीं थीं, बता रहा था कि उसने पिछले ८-१० वर्षों में कभी कोई टेबलेट तक नहीं ली, बुखार तक नहीं हुआ...एकदम सेहतमंद है, कह रहा था ....उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की ब्लड-शूगर का स्तर  507mg% आया है। 

उसे लग रहा था कि उसने जांच से पहले लड्डू खाया था, कहीं लड्‍डू हाथ में तो नहीं लगा रह गया हो......उस का हाथ धुला कर वापिस जांच की गई तो भी उतनी ही रीडिंग आई।

जब वह मरीज़ कह रहा था कि मैं तो सेहतमंद हूं ...तो मेरे सामने बैठा फिज़िशियन उसे यही बताने की कोशिश कर रहा था कि इस तरह के कैंप आप जैसे लोगों के लिए ही होते हैं .....जिन्हें कोई तकलीफ़ नहीं है, लेकिन अंदर ही अंदर बीमारी शरीर के महत्वपूर्ण अँगों पर असर करती रहती है। ऐसे ही कुछ अन्य तीन चार मरीज़ थे ...जिन का स्तर भी ३००-४०० के करीब था।

उस समय मुझे लगा कि यह बात तो बड़ी बेवकूफी वाली है कि मैं अपने ब्लड-शूगर की जांच ही नहीं करवा रहा..पिछले सात आठ सालों से....मेरा कद है ५ फुट १० ईंच ...वजन है 97 किलो......जितना होना चाहिए उस से २० किलो ज़्यादा.....इसलिए मैं हिम्मत कर के उस काउंटर पर चला गया...मुझे लगा कि अच्छा भला तो हूं, पता नहीं क्या रिपोर्ट आ जाए...दोस्तो, बिल्कुल अपने मरीज़ों की तरह ही डर तो लग ही रहा था....सूईं चुभने का नहीं, रिजल्ट का ......चंद सैकिंडों में रिजल्ट आ जाता है .....यह रेंडम ब्लड-शूगर की जांच थी ....मेरी रीडिंग थी 121mg %..

ईश्वर का शुक्रिया अदा किया मन ही मन ....और आगे से मीठे को ध्यान से और लिमिट में खाने का प्रण किया.....हर जगह मीठे को इतना बड़ा विलेन बताया जाता है, फिर भी हम लोग पता नहीं क्यों कंट्रोल नहीं कर पाते..

हां, एक बात और ..एक बार इस तरह से जांच करवाने के बाद मेरी उम्र में (पचास के ऊपर) हर साल इस तरह की जांच होनी चाहिए...यह बहुत ज़रूरी होता है।

अच्छा ...आप को पता है मैंने यह इतनी लंबी राम कहानी क्यों लिख दी ..........केवल इसलिए कि अगर आप भी मेरी तरह से ब्लड-शूगर जैसी आसान सी शरीर की नियमित जांच से भागते रहते हैं....तो अब आप भी भागना बंद करिए और कल ही जा कर यह जांच करवा लीजिए...मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा िक यह जांच कितनी आसान है ...सैकेंडों में आप को रिपोर्ट मिल जाती है।

बाहर से आम बिल्कुल दुरूस्त 
आदत से मजबूर हैं, इतनी बातें ब्लड-शूगर की करने के बाद भी इच्छा हो रही है कि इस बात को विराम भी कुछ मीठी सी बात से ही किया जाए...दोस्तो, बात यह है कि आम हानिकारक मसाले से पकाए जाते हैं, इसलिए कुछ साल पहले से हम ने इसे चूस कर खाना बंद कर दिया क्योंकि नुकसानदायक कैमीकल छिलके पर लगे रहते हैं.....लेिकन एक चौंकाने वाली बात यह है कि बाहर से अच्छे भले दिखने वाले आम भी अकसर इस तरह से खराब होते हैं.......मैं तो यह बहुत बार नोटिस करने लगा हूं ..यह कल की तस्वीर है, आज की तस्वीर नहीं खींचीं, वह भी बिल्कुल इस के साथ मिलती जुलती ही थी...
और अंदर यह मंज़र था...

तो इस से यही शिक्षा मिलती है कि आम को बिना काटे कभी भी मत खाईए....

यादों के झरोखों से ...हमारे डा कपिला सर..

हमारे कालेज के सभी साथियों का एक व्हाट्सएप ग्रुप है...आज सुबह डा मंडियाल ने एक मैसेज भेजा...आज की इंगलिश अखबार ट्रि्ब्यून में छपी एक तस्वीर थी...अपने प्रोफैसर साहब डा कपिला सर की...ज़रा इन से तारूफ़ करवा दें आप का...यह महान् शख्शियत १९८० के दशक में अमृतसर के सरकारी डैंटल कालेज एवं अस्पताल में ओरल सर्जरी विभाग के  प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष थे...


हम लोगों ने बीडीएस १९८०-८४ के दरमियान की ...डा कपिला सर की छत्रछाया में बहुत कुछ सीखने का मौका मिला...
These three msgs by this humble self...working as Chief Dental Officer in Govt of India 
मैंने आज सोचा कि उन से जुड़ी यादें तो बहुत सी हैं, लेकिन कुछ तो आज शेयर कर ही लेते हैं। वैसे याद तो उसे किया जाता है जिसे हम लोग भूल गये हों, यह महान शख्स कभी भी हमारी यादों से कहीं गया ही नहीं।

दोस्तो, आज सुबह जब से हमें पता चला कि आज डा कपिला सर की १४ वीं पुण्यतिथि है तो हम सब अपने अपने भाव  प्रकट करने लगे....मैंने सोचा कि अपने साथियों के सभी भावों को सहेज कर लेख में डालूंगा ...बस, यही किया है।

ये जो मैसेज आप देख रहे हैं इन से कुछ अब अमेरिका में जा कर अपने कालेज का नाम रोशन कर रहे हैं....कुछ स्वयं अब प्रिंसीपल बन चुके हैं, कुछ प्रोफैसर ....लेकिन आप देखिए इन के भावों को किस शिद्दत से अपने गुरू को याद कर रहे हैं।


मुझे याद है जब हमारी क्लास सुबह आठ से नौ बजे हुया करती थी तो डा कपिला सर...हमेशा ही आठ बजे से पहले क्लास में पहुंचे होते थे...हमेशा का मतलब बिल्कुल हमेशा...और कभी भी याद नहीं कि इन की क्लास शेड्यूल्ड हो और ये ना आए हों...और एक बात कि इन को हम जब पढ़ाते देखते थे तो उससे भी इन का पेशन झलकता था.....दोस्तो, कभी भी नहीं लगा उन दो सालों के दौरान कि कभी भी जैसे यह थोड़ा ऊबे से हुए हों...हमेशा प्रसन्नचित, मुस्कुराते हुए और सहज बने रहते थे।

इन्हें सिखाने का बहुत शौक था.....आपने मेरे साथियों के मैसेज पढ़ ही लिए होंगे...ये सब इन्हें कितना प्यार करते होंगे, ये इन के शब्दों से झलकता है...मैं तो क्वालीफाइड एंड ट्रेन्ड राइटर हूं....शब्दों से थोड़ी शरारतें भी कर लेता हूं लेिकन इन साथियों के शब्दों की ईमानदारी नोटिस करिए।
This is message of Dr (Prof) Namita 
हमारे कपिला सर ने साठ के दशक में एमडीएस की थी मुंबई से....कभी भी वहां की बातें सुनाते थे...एक बार मुझे याद है क्लास में कोई बात चली तो बता रहे थे कि जब हम लोग लोकल गाडियों में वहां चला करते थे तो बिना अच्छा सा परफ्यूम लगाए आप वहां घर से बाहर निकलने की सोच ही नहीं सकते थे।
First msg is by Dr Mandial who is one of the seniormost Dental Surgeons with Punjab Govt.. Dr Manoj is a renowned Oral Surgeon and Principal
वह हमेशा वेल-ड्रेसड रहते थे....हमनें हमेशा उन्हें ऐसे ही देखा ..हर समय मुस्कुराते रहना उन की फितरत थी।

डा कपिला उत्तर भारत के सब से मशहूर ओरल-सर्जन थे...हमें याद है उन के पास वी वी आई पी अकसर आते रहते थे...अस्सी के दशक में पंजाब में गोलियां बहुत चला करती थीं..गोली आदि लगने से क्षत-विक्षित चेहरे आदि सभी जगहों से हैरान परेशान हो कर आखिर इन्हीं के पास ही इलाज के लिए आया करते थे।
Dr Kapila had a great sense of humour.
Dr Jeewan runs a big hospital and Dr Anoop Jain, Renowned Dental Surgeon and well-known figure of Karnal with two post-graduates (MDS) in his family..

एक केन्द्रीय मंत्री थी....बहुत साल तक अमृतसर से लोकसभा सदस्य भी रहे ..रघुनंदन भाटिया...इन्हें भी जब उन्हीं दिनों जबड़े में गोलियां लगीं तो इन का इलाज भी कपिला सर ने ही किया था।

एक बात और...सुबह जब आठ बजे की क्लास अमृतसर की जनवरी माह की ठंडी में हुआ करती थी तो अगर दो तीन छात्र पांच दस मिनट लेट हो जाया करते थे तो डा कपिला जी को बहुत बुरा लगता था...पूछा करते थे डे-स्कालरों से...नाश्ता नहीं बना?....कोई बात नहीं, एक दिन बिना खाए आ जाओ, तो अगले दिन से समय पर मिला करेगा।
Dr Rajiv Bhagat is world-renowned Endodontist in USA 

उस दौर में भी हमारे क्लास की कुछ लड़कियों को नाश्ता न करने की आदत थी....ऐसे में ओपीडी में तीन चार घंटे खड़े खड़े अगर उन्हें चक्कर आने लगता तो डा कपिला क्लास में खूब डांट लगाया करते थे कि तुम लोग अपने खाने पीने का ध्यान नहीं रखती हो।। कभी कभी इन की क्लास दोपहर दो से तीन बजे हुआ करती थी तो जैसे ही स्टूडेंट्स ऊंघने लगते तो यह हंस पड़ते और कहते....राजमाह चावल चीज ही ऐसी है....(उन दिनों होस्टल में दोपहर में अधिकतर राजमाह चावल, छोले चावल, कड़ी चावल आदि ही मिला करते थे)
Dr Bedi is an Outstanding Dental Surgeon and runs a training institute for fresh dental graduates

मुझे अच्छे से याद है कि वे अकसर हमें ऊपर व नीचे वाले जबाड़े को बहुत ही अच्छे से पढ़ने-समझने के लिए कहा करते थे....और कईं बार कहा करते थे इन दोनों हड्डियों को तो अपने तकिये के नीचे रख के सोया करें....सुबह उठते ही इन का अध्ययन शुरू कर दिया करें। दोस्तो, आप को बताना चाहूंगा कि मेडीकल की पढ़ाई करते समय हमें विभिन्न हड्डियां मोल पर मिल जाती हैं...ये हड्डियां मुर्दा लोगों की निकाल कर सुखा ली जाती हैं और मेडीकल स्टूडेंटस को बेच दिया जाता है।

एक बात और याद आ गई...मुझे याद है ओरल सर्जरी को पढ़ाने का अंदाज़ उन का निराला ही था...हर टॉपिक का पढ़ाने-समझाने के साथ साथ नोट्स भी लिखवा दिया करते थे.....हम तो बस उन के नोट्स ही रोज़ाना पढ़ते थे ...और विशेष किसी किताब पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी...आज मैंने ढूंढा...मेरे पास १९८३-८४ के समय का उनके लिखवाए गये नोट्स का एक रजिस्टर है, आज ढूंढना चाहा लेकिन मिला नहीं....मेरे साथ ऐसे ही होता है....मैंने सोचा था उस के एक पन्ने की तस्वीर यहां पर लगाऊंगा।

हां, तो मैडम कपिला जी भी मैडीकल कालेज के एनाटमी विभाग की प्रोफैसर थी ..वे भी बेहतरीन पढ़ाती थीं लेकिन मेरे जैसे डफर को एनाटमी का विषय काला अक्षर भैंस बराबर कहावत जैसे लगता था....इसलिए मैं पहली बार प्रथम वर्ष में एनॉटमी विषय में फेल हो गया ...भला हो मैडम कपिला जी का जिन्होंने छः महीनों के बाद पास कर दिया....वरना मुझे पता है कि मेरे पास होने जैसे हालात तो बिल्कुल नहीं थे। सच कह रहा हूं।

मुझे लगता है अब यादों के झरोखे को बंद करने का वक्त आ गया है...जाते जाते बस इतना ही कहना चाहता हूं कि डा कपिला सर ने बहुत ही रिस्पेक्ट कमांड की। और उन्होंने हमें इतना कुछ इतने प्यार से सिखाया...और आज हर दिन कोई न कोई मरीज़ यह कह देता है कि आप का हाथ बहुत साफ़ है, आपने में मुंह में टीका लगाया पता ही नहीं चला, सर्जरी का भी पता नहीं चला, तुरंत ध्यान अपने गुरू डा कपिला जी की तरफ़ जाता है....to pay our gratitude!....ये हमें अकसर कहा सकते थे कि अपने काम में रूचि रखो...अच्छे से थ्यूरी भी पढ़ा करो... इन का एक वाक्य जो मुझे अभी बहुत बार याद आता है...."In a patient's mouth, you see what you know, you don't see what you don't know!"

मरीज़ की बात ध्यान से सुनने के लिए कहते थे तो साथ में यह भी अकसर कहा करते थे......"Listen to the patient carefully. He is giving you the diagnosis."

जैसे आज अपने साथी डा मंडियाल ने उन की बरसी की खबर वाट्सएप पर शेयर की ...२००१ का दिन भी वह मुझे याद है जब इस महीने में उन के क्रिया-कर्म की खबर इसी अखबार में पढ़ी थी....बहुत दुःख हुआ था....उन दिनों मैं फिरोज़पुर में पोस्टेड था.

इस पोस्ट के माध्यम से मैं समस्त कपिला परिवार को अपनी शुभकामनाएं भेज रहा हूं.......ईश्वर सारे परिवार को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखे ...और कपिला सर की आत्मा तो इस प्रभुसत्ता में ब्रह्मलीन हो ही चुकी है। Rest in peace, sir! We remember you a lot!