आज वैसे भी नशाबंदी दिवस है...इसलिए इस विषय पर लिखने से पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि इस पोस्ट में जितने भी हिंदी फिल्मी गीत हैं, वे सभी बस मन बहलाने के लिए हैं..वैसे मेरे यह लिखने की कोई ज़रूरत नहीं, सुधि पाठक हैं।
शीर्षक भी जो मेरे मन को अच्छा लगा, टिका दिया है।
मैं इस बेतुके तर्क से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं.
कुछ दिन पहले एक व्हाट्सएप ग्रुप पर एक तस्वीर भी दिखी ...उन का नाम लिखा था.. ध्यान नहीं दिया..बस यही लिखा था कि इन की उम्र १११ साल की है..और इन्हें तस्वीर में एक व्हिस्की की बोतल के साथ दिखाया गया था। फोटो में बड़े खुशमिजाज लगे...चलिए आप को भी इन के दर्शन करवाए देते हैं...
कल मैं लखनऊ से बाहर था ...मैं सुबह टहलने निकला तो मुझे इंडियन एक्सप्रेस अखबार ही मिली...मैंने उसे पढ़ा तो एक बुज़ुर्ग जिन की उम्र १११ साल की थी उन के दाह-संस्कार के बारे में कुछ अलग सी बात पता चली जिसे मैंने रेस्ट-हाउस में ही एक कागज़ पर लिख कर शेयर कर दिया...
चलिए, जिस गीत का मैंने इस पर्ची में उल्लेख किया है, उसे ही लगाते हैं...
स्कूल जाने की उम्र में जब यह फिल्म देखी तो यह गीत मुझे बहुत पसंद आया था....तब म्यूज़िक की वजह से और अब लिरिक्स के लिए भी यह गीत बढ़िया लगता है।
अच्छा, मैं कल यही सोचता रहा कि इस तरह की खबर जो अखबार में छप गई...इससे तो गलत मैसेज भी लोगों में पहुंच सकता है...पीने वालों को तो वैसे भी पीने का बहाना चाहिए..
आज सुबह वापिस लखनऊ पहुंचा तो ध्यान कल वाली खबर पर ही जा रहा था..बुज़ुर्ग सरदार नाज़र सिहं की तरफ़ ही ...मैंने ऐसे ही व्हाट्सएप पर अपने दोस्तों से शेयर किया कि उन पर कुछ लिखने का मन हो रहा है .....चंद ही मिनट के बाद एक मित्र ने जब उन की फोटो शेयर की तो मुझे ध्यान आया कि यह तो वही फोटो है, जिसे कुछ दिन पहले देखा था..लेिकन फिर जब दोस्तों के साथ गुफ्तगू चली तो सरदार नाज़र सिंह जी के बारे में कुछ पहलू और उजागर हुए।
एक मित्र ने बताया कि यह शराब तो इन की शख्शियत का एक बिल्कुल छोटा सा पहलू है...ये १०७ की उम्र तक बागबानी करते रहे हैं, जिस दिन इन्होंने शरीर त्यागा उस दिन भी यह गुरूद्वारे में मत्था टेक कर आए थे.... और एक बात मित्र ने लिखी कि इतनी लंबी उम्र तक जीना एक बहुत ही सुंदर और संयमित जीवनशैली का ही परिणाम हो सकता है। मैं उस की बात से बिल्कुल सहमत हूं।
मैं भी मानता हूं कि इन्होने जीवन को बहुत खुशी खुशी जिया होगा....
आज मुझे यह लगा कि इस तरह की तस्वीर इन की और इन के बारे में इस तरह की खबर अखबार में छपना भी कुछ लोगों को गलत संदेश दे जायेगा। मैं जानता हूं उत्तर भारत के लोगों को ...मुझे लगता है कि अब अगर कोई उन्हें दारू वारू पीने से रोकेगा तो वह इन्हीं बुज़ुर्ग की उदाहरण दिया करेंगे........लेकिन यह उदाहरण दिया जाना बिल्कुल गलत होगा....कारण, हम उन के बारे में उतना ही जानते हैं जितना हमें मीडिया ने या सोशल मीडिया ने परोस दिया.....क्या पता उन की जीवनशैली कितनी बढ़िया रही होगी, कितना सच्चा-सुच्चा जीवन जिया होगा.....रही बात फोटो की, तो दोस्तो, आज बाज़ारवाद है, इस तरह की फोटो किसी की भी खींचनी-खिंचवानी या फिर इस तरह की खबर को अखबारों में छाप देना कौन सी बड़ी बात है.... आखिर कंपनियों ने अपनी शराब भी बेचनी है।
जाते जाते वही बात की शराब खराब चीज तो है......मैं बिल्कुल भी प्रवचन की मूड में नहीं हूं.....न ही मैं इस के लिए क्वालीफाईड हूं.....हां, सात साल पहले एक लेख ज़रूर लिखा था....यह रहा उस का लिंक....थोडी थोडी पिया करो...
बात वही हलवाई की मिठाई वाली, मुझे बिल्कुल याद नहीं,मैंने उस में क्या लिखा था, क्या नहीं, बस अपनी एक प्रोफैसर के बारे में िलखा था कि किस तरह से उन का एक लेक्चर सुन कर मैंने मन बना लिया कि इस दारू को कभी नहीं छूना।
लेिकन दारू वाले गाने सुनने में तो कोई बुराई नहीं.....चलिए, फिर से सुनते हैं..