अकसर हम लोग बड़े हल्के फुल्के अंदाज़ में कह देते हैं ना कि नियम कानून तो कमज़ोर तबके के लिए होते हैं...दबंगों के आगे कहां नियम-कायदे टिक पाते हैं।.....लेकिन कहीं हम सड़क नियमों के बारे में भी ऐसा नहीं सोच लेते। वैसे तो आज कर देश में हर जगह ट्रैफिक को देख कर यही लगता है।
दो तीन दिन पहले की बात है कि मैंने स्कूटर के पीछे एक महिला को देखा जिसने एक बड़ा सा लकड़ी का रैक थामा हुआ था......लेिकन यह क्या, हम नितप्रतिदिन रोड़ सेफ्टी को चिढ़ाने वाले इस तरह के दृश्य देखते ही रहते हैं।
अभी कल परसों की बात है कि मैंने एक रिक्शे को इतनी तेज़ी से जाते देखा कि एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे रिक्शे में किसी ने मोटर लगवाई हो......(आज से तीस वर्ष पहले पंजाब में एक ट्रेंड चला था, साइकिल रिक्शा को मोटर लगवाने का....फिर पता नहीं वह क्रेज जल्द ही पिट गया था)... लेिकन फिर ध्यान गया कि यह तो इस मोटरसाइकिल सवार बांके की कारगुजारी थी.......इसने अपने पांव उस रिक्शे पर रखा हुआ था...एक तरह से यह उसे धकेलता जा रहा था... आगे चौक पर पहुंचने से पहले इसने कुछ क्षणों के लिए पैर हटा लिया.......लेकिन फिर से रख लिया......मैं यही सोच कर कांप रहा था कि अगर इस का पैर उस रिक्शे में कहीं अटक जाए.......कितना जोखिम भरा काम है यह.....
लेकिन अभी लिखते लिखते ध्यान आ गया कि हम भी स्कूल के दिनों में एक जोखिम उठाया करते थे...साइकिल पर आते जाते थे.....रास्ते में कोई ट्रैक्टर-ट्राली दिख जाती तो उस के संगल पकड़ कर दो मिनट मेहनत से सुकून पा लिया करते थे......एक खतरनाक खेल होता था वह भी।
हां, एक बात यह कि मैं इस बांके की जब ये फोटू खींच रहा था, तो इन की इतनी स्पीड थी कि मुझे मेरे दुपहिया वाहन की स्पीड उतनी रखने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि मैं तो हमेशा २५-३० की स्पीड में चलाने वाला बंदा हूं। सोचने की बात है कि आखिर मेरे को भी ऐसी क्या एमरजैंसी दिखी कि मुझे ये तस्वीरें खींचनी ही थीं, ज़ािहर है यह कोई एमरजैंसी नहीं थी, यह भी तो एक जोखिम है कि आप ऐसी सड़क पर अपने फोन से फोटो खींचने की कोशिश कर रहे हैं, एक हाथ से अपने स्कूटर के हैंडल को थामे हुए। काश, मुझे भी सद्बुद्धि प्राप्त हो कि मैं भी इस तरह से रोड़-सेफ्टी को नज़र अंदाज़ न किया करूं।
लेकिन एक बात है कि रोड़ पर सब गड़बड़ थोड़े ही ना होता है, कभी कभी बहुत अच्छा भी दिख जाता है जैसे इस नन्ही सी बच्ची और उस के बापू का प्यार.....जिस अंदाज़ में उसने बापू को थाम रखा था, देखने लायक था, मैंने अपना स्कूटर धीमा कर के कहा कि तुम्हारी बेटी बड़ी समझदार है, हंसने लगा था वह बंदा मेरी बात सुन कर।
हां, एक बात और.....आज सुबह जब गूगल इंडिया का ब्लॉग देखा तो वहां पता चला कि २०१४ में एक वीडियो जो सातवें नंबर पर रहा ..जो इतना वॉयरल हो गया कि इसे लगभग पचास लाख लोग देख चुके हैं और यह भी रोड़ सेफ्टी के ऊपर एक सोशल मैसेज है... आप देखेंगे कि किस तरह से ट्रांसजेंडर्स की मदद इस अभियान में इतनी क्रिएटिविटी के साथ ली गई है.....लीजिए आप भी देखिए यह वीडियो ....
कॉलेज के दिनों में एक गीत बार बार बजा करता था ......लखनऊ के दो नवाबों की गाड़ी पहले आप पहले आप के चक्कर में छूट जाती है.....मुझे तो यहां ऐसा माहौल नहीं दिखा....हर कोई जल्दी में है। वैसे यह लखनऊ की ही बात तो है नहीं, हर तरफ़ लगभग यही मंजर दिखेगा।
मेरे पास सड़क दुर्घटना में चोटिल हुए बहुत से मरीज़ आते हैं..... आगे के दांत टूटे हुए, होंठ कटे-फटे हुए, जबड़े की हड्डी टूटी हुई....और लगभग हर केस में यही देखता हूं कि दुर्घटना के समय उस ने हेल्मेट नहीं पहना हुआ था....क्या करें, फिर भी हम ने तो हौंसला तो देना ही होता है....मैं अकसर इन्हें कहता हूं कि आप गनीमत समझें कि आंखें बच गईं, सिर फटने से बच गया....दांतों और चेहरे पर लगने वाली चोटें अकसर बहुत गंभीर होती हैं। टूटी हड्डियां-वड्डियां जुड़ तो जाती हैं लेिकन इस दौरान एक-दो महीने तक उन्हें खाने-पीने की कितनी दिक्कत होती है, इस की शायद ही आप कल्पना कर पाएंगे। और बहुत से केसों में दाग वाग तो रह ही जाते हैं सदा के लिए.....कहां लोग प्लास्टिक सर्जरी करवाते हैं!
पिछले हफ्ते मेरे पास एक ३० वर्ष के लगभग उम्र का एक युवक आया था.....उस का मुंह बहुत ही बुरी तरह से चोटिल हुआ था....पहले ही बहुत से टांके लगे हुए थे.....बात करने पर पता चला कि रात के समय बिना हेल्मेट के मोटरसाइकिल चला रहा था, मोबाईल पर बात भी करता जा रहा था कि पीछे से एक बड़े ट्रक ने टच कर दिया.....दूर जा कर गिरा खेतों में। आधे घंटे के बाद किसी पुलिस वाले ने उठा कर अस्पताल पहुंचा दिया। उस के ऊपर नीचे वाले दांत आपस में मिल नहीं रहे थे, खाया कुछ भी नहीं जा रहा था, मैंने चेक किया तो ऊपर वाले जबड़े का फ्रैक्चर पाया......ठीक तो हो ही जाएगा, वह बात नहीं है। उस के चेहरे को फोटो मैं यहां नहीं लगा रहा क्योंकि इससे आप विचलित हो जाएंगे।
लखनऊ में मैंने एक ट्रेंड और नोटिस किया है कि डिवाइडर वाली रोड पर लोग उल्ट डायरेक्शन पर अपने दोपहिया वाहन लेकर चले आते हैं..एक बार तो मैंने एक कार चालक को यह डेयरिंग काम करते देखा।
दो तीन दिन पहले की बात है कि मैंने स्कूटर के पीछे एक महिला को देखा जिसने एक बड़ा सा लकड़ी का रैक थामा हुआ था......लेिकन यह क्या, हम नितप्रतिदिन रोड़ सेफ्टी को चिढ़ाने वाले इस तरह के दृश्य देखते ही रहते हैं।
अभी कल परसों की बात है कि मैंने एक रिक्शे को इतनी तेज़ी से जाते देखा कि एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे रिक्शे में किसी ने मोटर लगवाई हो......(आज से तीस वर्ष पहले पंजाब में एक ट्रेंड चला था, साइकिल रिक्शा को मोटर लगवाने का....फिर पता नहीं वह क्रेज जल्द ही पिट गया था)... लेिकन फिर ध्यान गया कि यह तो इस मोटरसाइकिल सवार बांके की कारगुजारी थी.......इसने अपने पांव उस रिक्शे पर रखा हुआ था...एक तरह से यह उसे धकेलता जा रहा था... आगे चौक पर पहुंचने से पहले इसने कुछ क्षणों के लिए पैर हटा लिया.......लेकिन फिर से रख लिया......मैं यही सोच कर कांप रहा था कि अगर इस का पैर उस रिक्शे में कहीं अटक जाए.......कितना जोखिम भरा काम है यह.....
लेकिन अभी लिखते लिखते ध्यान आ गया कि हम भी स्कूल के दिनों में एक जोखिम उठाया करते थे...साइकिल पर आते जाते थे.....रास्ते में कोई ट्रैक्टर-ट्राली दिख जाती तो उस के संगल पकड़ कर दो मिनट मेहनत से सुकून पा लिया करते थे......एक खतरनाक खेल होता था वह भी।
हां, एक बात यह कि मैं इस बांके की जब ये फोटू खींच रहा था, तो इन की इतनी स्पीड थी कि मुझे मेरे दुपहिया वाहन की स्पीड उतनी रखने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि मैं तो हमेशा २५-३० की स्पीड में चलाने वाला बंदा हूं। सोचने की बात है कि आखिर मेरे को भी ऐसी क्या एमरजैंसी दिखी कि मुझे ये तस्वीरें खींचनी ही थीं, ज़ािहर है यह कोई एमरजैंसी नहीं थी, यह भी तो एक जोखिम है कि आप ऐसी सड़क पर अपने फोन से फोटो खींचने की कोशिश कर रहे हैं, एक हाथ से अपने स्कूटर के हैंडल को थामे हुए। काश, मुझे भी सद्बुद्धि प्राप्त हो कि मैं भी इस तरह से रोड़-सेफ्टी को नज़र अंदाज़ न किया करूं।
लेकिन एक बात है कि रोड़ पर सब गड़बड़ थोड़े ही ना होता है, कभी कभी बहुत अच्छा भी दिख जाता है जैसे इस नन्ही सी बच्ची और उस के बापू का प्यार.....जिस अंदाज़ में उसने बापू को थाम रखा था, देखने लायक था, मैंने अपना स्कूटर धीमा कर के कहा कि तुम्हारी बेटी बड़ी समझदार है, हंसने लगा था वह बंदा मेरी बात सुन कर।
इतनी छोटी बच्ची की इतनी मजबूत पकड़ |