कुछ महीने पहले एक महिला मरीज़ आई थीं..उसे जब बुलाया था..उस के भी बहुत दिनों बाद आईं...कारण बता रही थीं कि घर में तुलसी जी हैं, उन से संबंधित कुछ कार्यक्रम था...इसीलिए उस में व्यस्त रही...बताने वाली बात यहां यह है कि वह बात बात पर तुलसी को तुलसी जी के नाम से संबोधित कर रही थीं...मुझे अच्छा लगा, इतना आदर सत्कार...बहरहाल, तुलसी के ब्याह के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे...यह भी बड़ी धूमधाम से किया जाता है ...वही बात है, अपनी अपनी आस्था है, मुबारक है।
आज भी एक महिला को मुंह की किसी सर्जरी के लिए बुलाया था..सुबह आईं अपने पति के साथ...गोंडा के किसी गांव की रहने वाली हैं..लखनऊ में बेटा नौकरी करता है ..यहां रहने आए हुए हैं लेकिन कुछ दिन के लिए वापिस जा रहे हैं...मुझे यह कहने आईं थी कि सावित्री वट पूजा के बाद ही कुछ करवा पाऊंगी...तब तक तो मैं कुछ सोच भी नहीं सकती...मुझे उत्सुकता हुई कि यह वट-पूजा आखिर है क्या!
इस वर्ष वट पूजा ५ जून को है...
उस के पति ने बताया कि उन के गांव में सदियों पुराना (उन्होंने ऐसा ही कहा!..उस के दादा के दादा के जमाने का) वट वृक्ष है...उस का पूजन होता है ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन...सभी महिलाएँ अपने पति की सलामती के लिए व्रत भी रखती हैं...वट का पूजन करने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं..
महिला ने बताया कि गांव में वट-पूजन के दिन मेले जैसा माहौल हो जाता है ...खूब व्यंजन बनते हैं..लेिकन पूजा के बारे में कुछ ज़्यादा वह बता नहीं पाईं...
मेरी इस उत्सुकता का समाधान गूगल मामू ने कर दिया....सब कुछ अच्छे से देख लिया और आप के साथ शेयर भी कर रहा हूं..
देश में इतने आस्थावान लोग हैं ...कि बहुत बार मनोज कुमार की फिल्म का वह गीत याद आ जाता है ...यहां नदियों को भी मैया कह के पुकारा जाता है ..सच में धर्म-कर्म तो बहुत है ही ...और किसी भी आस्था के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथ्य तो रहते ही हैं..लेकिन जैसे जैसे स्वरूप बदलता गया, शायद उस वैज्ञानिक प्रतिपादन की तरफ़ ध्यान देना गौन होता गया...मुझे ऐसा लगता है ..
लेिकन कुछ भी हो, जनमानस में व्याप्त इस तरह की आस्थाएं मुझे बहुत सुख देती हैं...इतने पुरातन पेढ़ों की पूजा-अर्चना होगी तो ज़ाहिर सी बात है कि ये कुल्हाड़ी से बचे रहेंगे...
मेरी मरीज़ के पति ने बताया कि अगर कोई टहनी अपने आप गिर जाये तो अलग बात है ...लेकिन उसे हम लोग वैसे नहीं काटते.....उसने बताया कि उस के दादा के दादा को उसी जगह पर बाघ खा गया था...उसी समय से निरंतर वहां वट की पूजा होती है ..
मैंने देखा यू-ट्यूब पर तो पता चला कि यह वट-पूजा समझ में आ गई...वट को बरगद भी कहते हैं और इंगिलश में banyan tree...देश में जगह जगह पर इस के बहुत पुराने-पुरातन पेड़ हैं...आप भी गूगल करिए और देखिए...
हिंदी के अखबार में हर सप्ताह एक सूचना दिखती है ..इस सप्ताह में पड़ने वाले व्रत-त्योहार ...और अकसर जब मैं सूची देखता हूं तो समझ में आता है कि हर दिन कोई न कोई व्रत है, कोई न कोई त्योहार है...वैसे तो इस देश में हर दिन एक जश्न है...
एक चुटकुला याद आ गया ...सुबह एक साथी मधुर बंसल ने भेजा था...
पिंजड़े में बंद एक मिट्ठू मियां को पंजाबी मालिक कहता है ..हां भई मिट्ठू, जलेबियां खाएंगा?कभी भी पूजा-अर्चना के बाद ...प्रसाद तो मिलता ही है ..यहां पर दिखा देते हैं...पिछले दिनों खूब साईकिल चला लिया, टहल लिया..अब उसे काउंटर करने के लिए घर में कुछ डिब्बे आज दिख रहे है...सोन पापड़ी, ड्राई पेठा...मुझे ड्राई पेठा देख कर अच्छा लगा... खाने में भी बहुत अच्छा है...आज पहली बार देखा कि ह्लदीराम कंपनी इस पेठे को भी तैयार करती है...😄😄 ...बाज़ार में लोकल कंपनियों का मिलता तो है ..लेकिन हर बार अलग अलग ...कभी भी क्वालिटी ठीक नहीं लगी... चलिए, अब इस पूजा के सामान को समेट लिया जाए....गीतकार नीरज की कुछ बातें आप से करनी हैं अभी.. ..
मिट्ठू मियां ने दिया करारा सा जवाब....जलेबियां अपनी मां नूं खवा...सालेया,पहलां मिर्चां खवा खवा के बवासीर करवा दित्ती, हुन जलेबियां खवा के शुगर करवाएंगा की?😄😄😄😄😄