गुरुवार, 26 मई 2016

आप का आज गुज़रे हुए कल से बेहतर हो! सुप्रभात!!

सुबह उठा..सिर थोड़ा भारी ...ए सी की वजह से अकसर होता है, क्या करें, मजबूरी है, वरना नींद ही नहीं आती..भयंकर उमस की वजह से ...लेकिन ए सी में सोने से मुझे बहुत नफरत है...वैसे तो मैं सिर पर परना (यहां इसे अंगोछा कहते हैं) बांध कर सोता हूं ..लेकिन जब भी यह भूल जाता हूं तो सुबह तो बस सिर की वॉट लग जाती है..

लेकिन उस का एक बढ़िया समाधान है ...तुरंत अगर टहलने निकल जाऊं तो चंद मिनटों में तबीयत टनाटन हो जाती है ..जैसे आज हुआ..

आज भी ऐसा ही हुआ...पुराने साथियों को वाट्सएप पर सुबह सुबह दुआ-सलाम हुई तो बताया कि सिर भारी है ...एक साथी ने कहा तो फिर जा, जा के पसीना निकाल के आ...

तुरंत निकला...आज इच्छा हुई लखनऊ के बॉटेनिकल गार्डन के तरफ़ जाने की ...घर से लगभग १० किलोमीटर है...बीच रास्ते में ही मन बदल गया...सोचा क्या करूंगा इतनी दूर जाकर ...स्कूटर पर था...पास ही के एक बाग का रूख कर लिया....राजकीय उद्यान के नाम से जाना जाता है इसे।

रास्ते में एक बहुत सुंदर घर दिख गया...यह पेड़ इस घर की सुंदरता को चार चांद लगा रहा है ...मुझे ऐसे घर बहुत अच्छे लगते हैं...

अंदर जाते ही एक पोस्टर थमा दिया गया...किसी सैलून मैट्रिक-यूनीसेक्स का....मैंने उस बंदे को हंसते हुए कहा कि यार, हम तो हजामत वाले ज़माने से हैं...हमें तो बार बार घर वाले यही याद दिलाया करते थे कि जा, हजामत करवा के आ....और बहुत बार तो हजामत के ह को हम लोग खा जाते थे...और मेरी नानी तो दाढ़ी बनाने को भी जामत बनाना ही कहती थीं... Good old days!

थोड़ा आगे गया तो अपने कुछ कर्मचारी और कुछ मरीज़ दिख गये....देख कर हंसने लगे कि डाक्टर साहब, इतनी दूर से यहां आ गये....एक मरीज़ ने कहा ..हां, ये कभी कभी इधर आते हैं!  उन्हें सुबह सुबह अपनी सेहत का ध्यान करते हुए देख कर अच्छा लगा...तब तक मेरी तबीयत भी बिल्कुल ठीक हो चुकी थी...




टहलते हुए बाग में एक विशेष जगह दिखी जिस का गेट बंद था...वहां मूडे पड़े हुए थे...साहिब लोग यहां आराम फरमाते होंगे...

इस बाग के बारे में मैंने पहले भी एक बार एक पोस्ट लिखी थी जिसमें मैंने कटहल के बारे में एक प्रश्न किया था... यहां यह बंदा सुबह सुबह कटहल सेवा करता दिखा....अच्छा लगा...खूब लोग उस से खरीददारी कर रहे थे...इस बाग में कटहल भी लगे हुए हैं....मैं एक पेड़ के पास गया ..वहां दो चार बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे...उस के नीचे, मैंने पूछा कि यार, अगर यह कटहल नीचे गिर जाए तो....उसने मेरा प्रश्न ठीक से समझा नहीं ..कहा, उस में क्या है, आप भी जो चाहें उतार लीजिए, और बोल दीजिए, नीचे गिरा हुआ मिला.....

कटहल पेड़ों पर उगता है ...मैंने कुछ दिन पहले ही यह जाना 

लेकिन मेरी ऐसा करने की कोई मंशा नहीं थी...

ध्यान दीजिए इस बाग में टहलने के लिए पक्का रास्ता नहीं है...इस तरह के रास्ते पर सुबह टहलने से बहुत मज़ा आता है...


यह पेड़ दिख गया फिर से....मैंने फिर से फोटो खींच ली....अपनी आदत से मजबूर मैं....मुझे पेड़ों की तस्वीरें खींचना बहुत भाता है ....थोड़ा सा हट के देखा तो इस की महानता समझ में आ गई...सब मजबूत जड़ों का ही खेल है...



इस पेड़ की तरफ़ ध्यान गया तो यहां भी जड़ों का ही खेल समझ में आया....


बाग से बाहर िनकलते हुए ध्यान इन की तरफ़ गया तो ऐसा लगा कि ये तंदूर यहां कैसे पड़े हैं...कटहल बेचने वाले के साथ बैठे एक बंदे ने बताया कि ये गमले हैं ...एक साल से आए हुए हैं...इन में बड़े पेड़ लगेंगे... चलिए, बहुत अच्छी बात है ...लेकिन तब तक मुझे तंदूर के दिनों की बातें याद आने लगीं...सांझे चुल्हे की बातें...एक बार मैंने इस पर एक लेख भी लिखा था..आज ढूंढूंगा ....



मैंने भी पिछले दस सालों में इस ब्लॉग पर बहुत ही वेलापंती की है ..क्या करूं, और कुछ करना आता ही नहीं! जब सांझे चूल्हे की बात होती है तो मुझे सुरों की देवी रेशमा का वह गीत याद आ जाता है ...कितनी गहराई, कितनी कशिश थी, कितनी जादुई आवाज़ थी इस देवी की.... सुनिएगा इस देवी को कभी ... I am a big fan of Reshma ji..

 लौटते हुए एक सुनसान सड़क पर तेज़ी तेज़ी से एक पंडित जी जा रहे थे....मुझे लगा कि जल्दी में हैं...मैंने पूछा कि चलेंगे?...कहने लगे कि पास ही की एक कालोनी के मंदिर में मैं पंडित हूं....सात बजे ड्यूटी शुरू हो जाती है ..मैंने कहा कि उसमें क्या है, आप को मंदिर तक छोड़ के आते हैं....पंडित जी बहुत खुश हुए...

उधर से मैंने गन्ना संस्थान के रास्ते से वापिस आने का मन बना लिया..दोस्तो, आप को यहा यह बताना चाहूंगा कि यहां लखनऊ में एक राष्ट्रीय स्तर का गन्ना रिसर्च सेंटर है ....कितना विशाल कैंपस होगा?...शायद देश की किसी भी बड़ी यूनिवर्सिटी के बराबर का तो होगा....कम से कम!..मुझे कभी कभी इधर से गुज़रना अच्छा लगता है ...हर तरफ़ गन्ने के पेड़....यहां पर गन्ने का रस भी बिकता है ...और गुड़ भी .... एक दम खालिस....गन्ने का रस तो मैंने एक बार पिया था...गुड़ का पता नहीं, कभी मौका नहीं मिला ....देखते हैं फिर कभी!


घर लौट कर जब मैं यह पोस्ट लिखने लगा तो मेरे कमरे में सूर्य देवता ने अपना आशीर्वाद इस तरह से भेजा...मैंने एक बार तो पर्दा आगे किया ..फिर से पीछे हटा दिया....यह सोच कर कि These are Nature's blessings....we should relish them and be thankful to this omnipotent and omniscient God! ....और हम लोग बरसात आने पर भीगने की बजाए सब से पहले छातों का जुगाड़ करते हैं और सुबह की गुलाबी धूप से बचने के िलए परदे तान देते हैं....हम भी कितने नाशुक्रे हैं ना.... है कि नहीं!


And I started feeling on the top of the world again!
आज कल हम लोगों की स्कूल कालेज के दिनों के ग्रुप पर खूब बातें होती हैं...हम वहां १२-१५ साले के ही बन जाते हैं...कभी कभी कोई किसी को "जी" लिखता है तो बड़ा कष्ट होता है...कोई न कोई मास्टरों के हाथों नियमित कुटापे के दिनों की याद दिला ही देता है ...बाकायदा मास्टर के नाम के साथ....ऐसे में उसी दौर के फिल्मी गीत  याद कर के हम लोग अपने मूड को दुरूस्त कर लेते हैं ....आप भी सुनेंगे ?



बुधवार, 25 मई 2016

कल रात एक सर्जन ने क्या किया? जानिए...

हमारे स्कूल कालेज के दौर के एक वाट्सएप ग्रुप में अपने दोस्त डा अमरजीत ने एक पोस्ट शेयर की...पढ़ते ही मन को छू गई...यही लगा कि यह तो इंगलिश में है ...ज़ाहिर है डाक्टर लोग इंगलिश में ही अपनी बात कहने में सहज महसूस करते हैं...

लेकिन उसे पढ़ते ही मन में ध्यान आया कि यार ऐसी बात तो हिंदी में भी लिख कर शेयर करनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग इस को पढ़ सकें... और एक सर्जन की ज़िंदगी के एक दिन से रू-ब-रू हो सकें...

एक सर्जन ने अपनी आप बीती लिखी है ...

उसने लिखा है ...आज सुबह राउंड के बाद जब हम लोग काफी पी रहे थे तो बॉस ने पूछा कि तुम लोगों ने कल क्या किया?
हम लोगों की कल रात बड़ी बिज़ी थी..हम लोगों सो भी नहीं पाए थे, ब्लड-ग्लूकोज़ का स्तर गिर रहा था..हम बहुत थके हुए थे.. हम लोगों में से कोई भी हंसी मज़ाक के लिए उस समय तैयार नहीं था..
कल रात १० बजे के करीब हम लोगों ने एक २० साल के इंजीनियरिंग छात्र का पेट खोल कर (लेपोरेटमी) उस की आंतों के अवरोध (small bowel obstruction) को ठीक किया... और इस आप्रेशन से फारिग हो कर, उस छात्र के चिंतित मां-बाप को तसल्ली देकर, हम लोग डिनर के लिए जा रहे थे कि हमें ट्रामा केयर सेंटर तुंरत आने के लिए कहा गया...
एक ३५ साल को बिजली विभाग का लाईनमेन था जो ड्यूटी के दौरान बिजली के खंभे से गिर गया था...उस के सी.टी स्कैन से पता चला कि उस के पेट के इर्द-गिर्द झिल्ली में रक्त भर गया था...(Hemoperitoneum)...और उस की तिल्ली (स्पलिन- spleen) कट गई थी... और वह शॉक की स्थिति में जाने लगा था...
उस की पत्नी लगभग ३० साल की, साथ में पांच साल के बच्चे के साथ बदहवास हालत में वहां पहुंच चुकी थी... और जब उसे आप्रेशन के लिए फार्म पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा तो वह तो बिल्कुल गुमसुम सी ही हो गई... उस लाइनमैन के साथियों ने उसे संभाला ...और मरीज को आप्रेशन थियेटर में ले जाया गया जहां पर उस की  तिल्ली को निकाल दिया गया...
The usual ritual of profuse thanking by the family followed when we went out and our chief resident donned the role of a smiling Krishna reassuring a frightened Arjuna. 
फिर उस के बाद हमने दो और मरीज़ों को दाखिल किया... एक की बाईं टांग भयंकर पक चुकी थी.. (cellulitis) और दूसरे मरीज़ में पित्ताशय़ की पथरियों की वजह से पैनक्रिया में सूजन आ गई थी...(pancreatitis)....और इन के इलाज उपचार में लगे रहे ...इतने में देखा तो हमारा सुबह का वार्ड राउंड लेने का समय हो चुका था..

जब हम लोग अपने बॉस को यह सब सुना चुके तो उसने फिर से प्रश्न दोहरा दिया...इस के अलावा आप लोगों ने क्या किया?

खीझे हुए हमारे चीफ रेज़ीडेंट ने तपाक से कह दिया.... हम लोगों ने एक और दिन की नींद, डिनर और परिवार के साथ अच्छा समय बिताना खो दिया...

अब हमारे बॉस ने कृष्ण भगवान की तरह कहना शुरू किया....

तुम चिकित्सकों के लिए वह १० सैंटीमीटर का सड़ी आंत का टुकड़ा था और एक कटी हुई तिल्ली थी जिसे तुम लोगों ने निकाल बाहर किया... लेिकन कल रात तुम लोगों ने एक दंपति के उस सपने को जीवित रखा जो वे पिछले बीस साल से देख रहे हैं... तुम लोगों ने एक कम उम्र की महिला को विधवा होने से भी बचा लिया... और एक छोटे बच्चे को हमेशा के लिए उस के बाप के साये से महरूम होने से बचा लिया... तुम लोगों ने एक ऐसे इंसान की मुसीबतें भी खत्म कीं जिस का कोई कसूर नहीं था ...हां, तुम लोगों ने एक रिक्शा वाले की टांग कटने से बचा ली क्योंकि तुम ने उस के तकलीफ़ का तुरंत समाधान कर दिया...
एक रात की नींद और डिनर तो कुछ भी नहीं ....इस की तुलना में जो वे लोग खो देते अगर तुम लोग समय पर अपना काम न करते।  अकसर हम लोग इस बात से बेपरवाह होते हैं कि हम दूसरों की ज़िंदगी को कितना प्रभावित कर सकते हैं.. जब हम में यह समझ आ जाती है तो हम लोगों का नज़रिया और दूसरों के प्रति व्यवहार बिल्कुल बदल जाता है ..
We often don't understand the influence we exert on the lives of others. When we do, we all will be much more careful in our attitudes an actions.

आप्रेशन के दौरान इस्तेमाल किए गये चाकू के एक कट से हम लोग एक परिवार को सड़क पर ले आ सकते हैं या उस खुदा के बंदे की उम्र को दसियों साल तक एक्सटेंड कर सकते हैं... हमारे फैसले मरीज़ की हालत तय करते हैं.. हमें ईश्वर ने इस नायाब प्रोफैशन के लिए चुना है ...हम खुशकिस्मत हैं........यह कहते ही बॉस ने अपनी कॉफी की आखिरी सिप लिया।

हम सब भी अपने अपने वार्डों की तरफ़ रवाना हो गये ....इस बात का अहसास करते हुए कि हम लोग कितने नोबल प्रोफैशन में हैं... और हमारे दिल फख्र और खाकसारी (pride and humility) महसूस कर रहे थे..

हम लोगों ने ता-उम्र के लिए एक सबक सीख लिया ....जब तक इस ब्रह्मांड में जीवन रहेगा..सभी तरह की कमियों के बावजूद हम लोग सब से उत्तम प्रोफैशन में हैं... और हम सच्चे हीरो हैं.....

बहुत अच्छा लगा किसी सर्जन की आपबीती पढ़ कर .. भावुक हो गया मैं भी ...कुछ और मैं इस में एड नहीं करना चाहता...बस यह कि यह सब काम करते हुए सर्जन और अन्य डाक्टरों को तरह तरह की भयंकर और जानलेवा बीमारियों का संक्रमण होने का खतरा लगातार बना रहता है ...


आज कल टीवी में फिल्मों के दौरान ब्रेक के समय एक्स्ट्रा-शॉट नाम से कुछ आता है जिस दौरान फिल्म के निर्माण के दौरान की कुछ बातें दिखाते बताते हैं...मैं भी शेयर करना चाहता हूं कि मैंने कैसे डा अमरजीत की इस पोस्ट को हिंदी में लिखा ..मोबाईल से देख देख कर इंगलिश को हिंदी में करना पड़ता तो मैं ऊब जाता....मैंने सोचा कि लैपटाप पर वाट्सएप खोल कर पोस्ट को कापी कर के व्लर्ड-डाक्यूमेंट में खोल लेता हूं .. लेिकन लैपटाप पर वाट्सएप ही न खुला ..फिर एक जुगाड़ किया ... पोस्ट को कापी किया...ब्लूटुथ से लैपटाप में ट्रांसफर किया... और वहां से प्रिंट-आउट लेकर सामने रखा ...फिर इंगलिश को हिंदी में लिखते लिखते यह पोस्ट लिख डाली.. पोस्ट को देखते यही लगा था कि इसे हिंदी में भी होना चाहिए... प्रूफ के लिए प्रिंट-आउट साथ लगा रहा हूं.. 😄😄😄


इतनी भारी भरकम बातों के बाद अब कुछ इबादत भी कर ली जाए... इस काफ़ी को हम अकसर सत्संग में सुना करते थे...सारी बातें मन को छूने वाली...

मंगलवार, 24 मई 2016

ब्रेड छोड़ने या कम करने के लिए क्या हमें इस खबर का इंतज़ार था!

पंजाबी की एक मशहूर कहावत है ..वारिस शाह न आदतां जाँदीयां ने, चाहे कट्टीये पोरीयां पोरीयां जी...सच, में अपनी आदतों को बदलना बहुत मुश्किल है ..कल शाम मेरी मां ने भी जब मुझे लेट कर लैपटाप पर काम करते देखा तो उन्होंने शायद पहली बार मुझे यह कहा ...तेरी भी जो आदतें पड़ चुकी हैं, बस वे तो पक्की ही हैं। उन्हें पता है जब मैं इस तरह से लेट कर कुछ लिखता पढ़ता हूं तो अकसर मेरी गर्दन में दर्द शुरू हो जाता है...इसलिए उन्होंने कहा ...और जब मैं लैपटाप को लैप में रख कर कुछ काम करता हूं तो अपने आप ही डर लगता है ..रेडिएशन की वजह से...ज़रूरी तो नहीं ना यार कि कुछ पंगा होने पर ही आदमी सुधरे...

इसलिए आज मैं महीनों बाद अपनी स्टडी टेबल कर बैठ कर यह पोस्ट लिख रहा हूं...लैपटाप गर्म होने की समस्या के लिए पहले दो स्टैंड भी लिए थे..जिन के नीचे मिनी फैन भी लगे रहते हैं...लेिकन वह ज़्यादा प्रैक्टीकल नहीं लगा...कल कहीं पर यह कूलेंट वाला लैपटाप पैठ देखा तो खरीद लिया...अच्छा है, लैपटाप गर्म नहीं होता...

हां, तो मैं आदतों की बात कर रहा था ...तो मुझे आज ध्यान आ गया ब्रेड खाने की आदत का ...मैं मन ही मन अपनी मां और श्रीमति का शुक्रिया करता हूं जिन्होंने कभी भी ब्रेड खाने के लिए विवश नहीं किया...कईं कईं हफ्तों तक घर में ब्रेड आती ही नहीं है...

ब्रेड पर क्यों आज मेरी सूई अटक गई...दरअसल कल रात किसी वाट्सएप ग्रुप पर कोई पोस्ट देखी कि देश में ब्रेड में कुछ तरह के हानिकारक कैमीकल्स मिलाये जाने की सूचना मिली है ...जैसा अकसर होता है..इस पोस्ट को इतना सीरियस्ली लिया नहीं ...लेकिन सुबह उठते ही जैसे ही हिन्दुस्तान अखबार देखा तो पहले पन्ने पर यह खबर, फिर टाइम्स आफ इंडिया के पहले पन्ने और अमर उजाले के भी पहले पन्ने पर इसे देख कर माथा ठनका....कुछ तो गड़बड़ है ही ..जिस संस्था ने यह खुलासा किया है, उस एनजीओ की विश्वसनीयता अच्छी है ...पहले भी कोल्ड-ड्रिंक्स में कीटनाशकों की मौजूदगी के बारे में जो भी कहा ...सच निकला...लोगों सचेत हुए....यही काम ये संस्थायें कर सकती हैं, बाकी तो अपनी अपनी मनमर्जियां हैं...हम कहां किसी की सुनते हैं!....सही कि नहीं?
 अमर उजाला २४.५.१६

हिन्दुस्तान २४.५.१६
Times of India 24.5.16
यह तो कैमीकल वाली बात तो अभी कही जा रही है, लेकिन वैसे भी ब्रेड खानी कितनी ठीक है, कितनी नहीं, यह हम सब जानते हैं....लेकिन फिर भी ....

आज सुबह ध्यान आ रहा था कि कुछ साल पहले एक लेख लिखा था...इस के बारे में...

यह रहा इस का लिंक ... पाव या पांव रोटी! (इसे पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए).. 

दोस्तो, ऐसा नहीं है कि हम लोगों की डबलरोटी से जुड़ी कुछ भी यादें हैं ही नहीं....बिल्कुल हैं...इन्हें भी एक संस्मरणात्मक लेख में डाला था...अगर आप इसे देखना चाहें तो यह रहा इस का लिंक... डबल रोटी से जुड़ी खट्टी मीठी यादें..(इसे पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए)..

बस, एक बात को हमेशा ध्यान में रखिए....सिर्फ ब्रेड को ही दोषी नहीं बताया गया है, पिज्जा, बर्गर और बन आदि को भी हानिकारक कहा गया है ... और देखिए किस तरह से नामचीन स्टोरों के ये उत्पाद भी हानिकारक पाये गये हैं...


मुझे पता नहीं हम कब किसी की बात मानना शुरू करेंगे....पहले भी ..एक नूडल कंपनी के बारे में कितना ज़्यादा सुनने को मिला ...हम लोग नहीं माने..मार्कीट शक्तियां बेपनाह ताकत की मालिक हैं..हर तरह से ...रिजल्ट क्या आया, कुछ अरसा पहले...सब कुछ ठीक है ...सब कुछ दुरूस्त है ...बेधड़क खाओ....

लेिकन फैसला हमें अपने आप करना होता है ....हमारी सेहत का मुद्दा है ... जांचों वांचों का तो क्या है, सब कुछ इधर उधर हो सकता है ...लेकिन सीएसई जैसे एनजीओ....और सुनीता नारायण जैसे लोग जो कहते हैं उसे सुने और मानेंगे तो बेहतर होगा...

अब निर्णय आप स्वयं करिए कि आप इस तरह की रिपोर्ट के बावजूद भी ब्रेड-व्रेड, पिज्ज़ा, बर्गर खाते रहेंगे या कुछ सेहतमंद पारंपरिक विकल्प ढूंढेंगे...पिछले रविवार के दिन मैं शहर के अंदर घूमने निकला..एक दुकान से कुछ खरीद रहा था तो एक बुज़ुर्ग आया...बिल्कुल पतला, बंदे के कपड़े भी खस्ता हाल थे, पांच रूपये का दूध का पैकेट मांगा, दुकानदार का लड़की ने सात रूपये वाला आगे कर दिया..कहने लगे...ऩहीं पांच रूपये वाला चाहिए, उस के बाद छोटी ब्रेड मांगी..लड़की ने दस रूपये वाली दी ...तो इन्होंने छोटी ब्रेड पांच रूपये वाली मांगी ... पांच रूपये वाली ब्रेड वाली ले कर इन्होंने दो दो रूपये वाले दो बन भी खरीदे....ठीक से गिनती कर इन्होंने उसे पैसे दिए......फिर धीरे धीरे चले गये......मुझे वह दृश्य हमेशा याद रहेगा...अभी फिर उस बुज़ुर्ग का ध्यान आ गया कि यार, अब इस तरह की गाढ़ी कमाई से ब्रेड-बन खरीदने वाले की सेहत से भी हमारा लालच खिलवाड़ करने से अगर नहीं चूक रहा ..तो शायद हमारा फैसला प्रभु ही करेगा...आप ने ठीक से पढ़ा ना, मैंने लिखा है...पांच रूपये का दूध का पैकेट और पांच रूपये की छोटी ब्रेड...ऊपर से कमज़ोर शरीर....और क्या लिखें! क्या यही अच्छे दिन हैं....या अभी इस से भी और अच्छे िदन आयेंगे, पता नहीं!

सब से पहले तो इस पोस्ट का लिंक अपने बेटों को भी भेजूं...वैसे तो वे अपने बापू को कम ही पढ़ते हैं...लेिकन इसे पढ़ने के लिए तो ज़रूर कहूंगा....बड़ा बेटा तो बेचारा ब्राउन-ब्रेड को बड़ा स्वास्थ्यवर्धक मानता है ... मैंने उसे अकसर बताता हूं यार, यह सब कलरिंग का चक्कर है !

इसे यहीं बंद करता हूं...पुरानी हिंदी फिल्मी गीत भी हमें कितनी बढ़िया सीख दिया करते थे...स्कूल के दिनों से इसे सुन रहे हैं ...और रिमांइडर के तौर पर कभी कभी सुन लेता हूं.... just to stay grounded! 😉

सोमवार, 23 मई 2016

स्कूल के साथियों का वाट्सएप ग्रुप..

१९७३ में जो लोग पांचवी कक्षा में पढ़ रहे थे ...उन्हें क्या पता था कि चालीस-ब्यालीस साल के बाद कुछ ऐसी सुविधा मिल जायेगी कि हम लोग फिर से मिलेंगे...मोबाइल के माध्यम से ...हमें तो हमारे मास्टरों ने बिजली की घंटी की कार्य-प्रणाली में, मिरर-फार्मूले में ...सूर्य और चंद्र ग्रहण में उलझाए रखा....हम ने तो कभी मोबाइल-वाइल की कल्पना भी नहीं की थी..

दो दिन पहले दो चार स्कूल के साथियों ने वाट्सएप ग्रुप बनाया...हम लोग जो अमृतसर के डीएवी स्कूल और कालेज में एक साथ रहे ...

बहुत अच्छा लग रहा है...बहुत ही अच्छा...सब के चेहरे याद आ रहे हैं ..पुरानी बातें ताज़ा हो रही हैं ..अपनी बेवकूफियों पर हंसी आ रही है ...it is all fun!

जैसे दूसरे ग्रुप में होता है सोच सोच के बात कहनी ...पहले तोलो फिर बोलो ...यहां ऐसा कुछ भी नियम नहीं है. ...सब अपने दिल की बातें करते हैं...मैं अकसर दूसरे ग्रुप्स में ऑडियो नहीं भेजता लेकिन यहां मैं रूक ही नहीं रहा हूं..

मजा इस बात का आ रहा था कि हम लोगों को एक दूसरे के नाम तो याद आ रहे थे ...लेकिन कमबख्त हम एक दूसरे के चेहरे भूल चुके थे..हम लोग दो दिन से एक दूसरे को कह रहे हैं कि लगाओ यार पुरानी बीस तीस साल पुरानी फोटो दिखाओ....ढूंढ रहे हैं लोग ...हम लोगों ने पंद्रह बीस तो ढूंढ लिए हैं साथी..हर बंदे इस मिशन में लगा है कि गुमशुदा साथियों को ढूंढ निकालना है ...

मैंने भी अपनी पुरानी पड़ी स्कूल की मैगजीन में से पांचवी, दसवीं और बारहवीं की क्लास की फोटो निकालीं...हम लोग एक Reunion की planning कर रहे हैं...मुझे भी ये फोटो ग्रुप में भेज कर अपनी पहचान का प्रूफ देना पड़ा....😀😀😀... वरना एंट्री मुश्किल हो जाती!
(पांचवी कक्षा)


मुझे इन दो तीन दिनों में यह अहसास हो रहा है कि मैं अमृतसर से दूर रहते हुए भी उन सब से उतना ही जुड़ा हुआ हूं जितना वे लोग आपस में जुड़े हुए हैं...क्या है ना, हर बंदे की लाइफ में आज संघर्ष है ..बढ़ती उम्र के साथ कईं दूसरी तरह की पारिवारिक जिम्मेवारियां निभानी होती हैं ...

आप मेरे स्कूल की फोटो देखना चाहेंगे... देखिए....
डी ए वी स्कूल अमृतसर ..एक एक कोने से हम लोगों की यादें जुड़ी हैं..
मैं आप सब से यह गुज़ारिश ज़रूर करूंगा कि आप लोग भी अपने स्कूल-कालेज के दिनों के साथियों का एक वाट्सएप ग्रुप ज़रूर बनाईए.... it is so special!

दरअसल मैं २००२ या २००३ में दस-पंद्रह दिन के लिए एक लेखक शिविर के लिए अमृतसर गया था...उन दिनों मैं जितने पुराने साथियों को ढूंढ सकता था ...ढूंढ के छोड़ा...कोई फेक्टरी मालिक था, कोई बिजनेस में था, कोई बैंक में, कोई स्कूल प्रिंसीपल, बहुत से डाक्टर....सब मजे में हैं...मुझे इन को ढूंढने में कईं घंटे लग जाते थे ..लेकिन मैं व्यस्तता के कारण मैं आधा घंटे से ज़्यादा कहीं भी रूक नहीं पाया......लेकिन मुझे बहुत अच्छा लगा था....लेखक शिविर तो बहाना था, वहां मैंने क्या सीखना था, पुराने साथियों  और मास्टर साहिबान का हाल चाल लेना असल मकसद था...

उन दिनों मैं अपने स्कूल गया... वहां पर हमारे इंगलिश के टीचर अब प्रिंसीपल बन चुके थे...उन्हें मैं बीस सालों बाद मिल रहा था...उन्होंने मुझे दूर से ही कहा ...हां, प्रवीण आओ...आओ.....मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात थी...he taught us English in 8th Standard and he used to show my answer sheet to the whole class! Sorry for bragging! ..Just innocent nostalgic memories!

अच्छा, दोस्तो, मुझे पिछले दो दिनों में कुछ वाट्सएप मैसेज बहुत अच्छे अच्छे मिले हैं...मन कर रहा है उन्हें आप के साथ शेयर करने का ....



वाह जी वाह ...कितना सुंदर नुस्खा 
हमारे स्कूल के ग्रुप में यही कुछ हो रहा है ...



Another Great Message!
अब इस िचट्ठी को बंद करने का समय आ गया है.....गाना तो बजाना ही होगा...उन्हीं स्कूल के दिनों में गुड़्डी फिल्म के इस गीत ने खूब धूम मचा रखी थी...हम भी दूरदर्शन पर अकसर इसे देख लिया करते थे... Wonderful song....Jayaji, the great!-  in one of her the best and memorable roles! वैसे हमारे स्कूल में रोज़ाना हवन भी हुआ करता था...हम लोग बारी बारी से वहां जाते थे...और सब से पहले गायत्री मंत्र का उच्चारण तो सुबह रोज़ क्लास में बैठे बैठे होता ही था..हर कक्षा में लाउड-स्पीकर लगे हुए थे...

शनिवार, 21 मई 2016

पैदल घूमने की प्रेरणा ऐसे भी मिलती है!

प्रेरणा भी गजब की चीज़ है ...किसी को कहीं से भी मिल जाती है ...अभी ऐसे ही रेडियो सुन कर समय को धक्का दे रहा था कि जर्नलिज़्म के एक विद्यार्थी ने पिछली पोस्ट पर एक टिप्पणी भेज दी पुणे से कि आप के ब्लॉग से प्रेरणा मिली...ठीक है भाई, बहुत अच्छी बात है ...आप ने प्रेरणा शब्द लिख कर मुझे भी इस पर िलखने के लिए एक विषय दे दिया...धन्यवाद...

हां, तो बात प्रेरणा की हो रही थी ...अकसर मैं पैदल टहलते हुए या साईकिल पर लखनऊ शहर का भ्रमण करते हुए कभी कभी ऐसे लोगों को सड़क पर देखता हूं कि मैं उन के स्वास्थ्य लाभ की कामना तो करता ही हूं ..साथ में यही सोचता हूं कि अगर सुबह सात-आठ बजे तक ए सी कमरों में ठिठुर रहे लोग इन लोगों का जज्बा देख लें तो यकीनन, भाग के बाहर आ जाएं वे भी सड़कों पर, बाग बगीचों पर...



यह जो शख्स है इन की पीठ पूरी तरह से झुकी हुई है ...छड़ी लेकर धीरे धीरे चलते हैं..पूरी तैयारी कर के घर से निकलते हैं..स्पोर्ट्स-शूज़ पहन कर ...जब भी मैं इस रोड़ की तरफ़ से निकलता हूं, इन्हें अवश्य देखता हूं टहलते हुए...मुझे बहुत खुशी होती है ... 



इस शख्स को मैंने पिछले हफ्ते देखा था ...इस तरह से वॉकर का सहारा लेकर आप देख सकते हैं आराम से सुबह सुबह टहल रहे हैं...ऐसे और भी लोग अकसर टहलते दिख जाते हैं...कभी कभी महिलाएं भी इसी तरह वॉकर का सहारा लेकर टहलती दिख जाती हैं...


और ये शख्स भी सुबह सुबह टहलते दिखे ....मुझे लगा था कि ये टहल रहे हैं  वह भी पलस्टर चढ़े हुए ....इस तरह से इन का टहलना मुझे मुनासिब नहीं लगा था..लेकिन इन की समस्या दूसरी थी... इनको कोई मारूति वाला कुछ दिन पहले ठोक गया था, टांग टूट गई थी, पलस्टर चढ़ा है लेिकन कह रहे थे कि उस दिन से वह मारूति वाला भी घर से बाहर नहीं निकला... यह किसी रिक्शा का इंतज़ार कर रहे थे...कहीं जाने के लिए...रिक्शा आई और चले गये। 

उस दिन जब मैंने इस वॉकर वाले शख्स को देखा तो मुझे यही ध्यान आया कि इस तरह के लोग टहलते हुए जैसे हृष्ट-पुष्ट लोगों को प्रेरणा दे रहे हों कि तुम तो सक्षम हो अभी टहलने के, घर से बाहर निकल आओ...

मैं भी अपने सभी मरीज़ों को रोज़ाना टहलने की नसीहत ज़रूर पिला देता हूं...जो कहता है नहीं हो पाता, उसे कहता हूं कोई बात नहीं, घर से बाहर निकल कर किसी खाली जगह में बैठ जाइए, रौनक मेला देखिए, सुबह की प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ उठाईए, चढ़ते सूर्य को निहारिए, उसे सलाम कीजिए, पंक्षियों के गीत सुनिए....कोई आता जाता दो बात करेगा...शरीर को सुबह की गुलाबी धूप मिलेगी....आप को अच्छा लगेगा...कुछ दिन कर के देखिए, अगर अच्छा नहीं लगे तो मत करिए...बहुत से लोगों में मेरी बातों से जोश आ जाता है ...Thank God.. 🌺🌳🌴🌲🌼🍀🌻🌻🌹🍀..

मैंने नसीहत का शरतब पिलाने की बात कही ...सच में दोपहर होते होते थक जाते हैं इस छबील पर काम करते करते...लेकिन काम तो काम है!



हमें हमारे स्वाद ही बिगाड़ते हैं...

मेरी नानी अकसर कहती थीं कि स्वाद का क्या है, जुबान तक ही तो है, उस के आगे तो सब बराबर है ...हम लोग खूब ठहाके लगाते थे उन की इस बात पर...लेकिन सच्चाई यह थी कि वह लाजवाब खाना बनाती थीं...best cook i have even known!

आज हमारे स्कूल-कॉलेज के साथियों का एक वॉटसएप ग्रुप बना है ...अच्छा लगा...बहुत से लोगों से बात भी हुई...बहुत अच्छा लगा...एक साथी ने पूछा कि कहां हो आजकल, उसे बताया उन विभिन्न जगहों के बारे में जहां जहां रह चुका हूं...हंसने लगा कि सारा हिंदोस्तान ही घूम लिया...

घूम तो लिया ...ठीक है, मैं उसे यह कहना चाहता था कि हिंदोस्तान चाहे घूम लिया ...लेिकन खाने के मामले में अभी भी दिमाग अमृतसर के कूचों-बाज़ारों में ही अटका हुआ है...

My most fav. food on this planet.. केसर दा ढाबा
१९८८ में अमृतसर छोड़ने के बाद समोसे कभी अच्छे नहीं लगे...अकसर लोहगढ के हलवाई के समोसे बहुत याद आते हैं...बेसन के लड्डू कहीं और जगह के पसंद नहीं आए...कुलचे-छोले तो बस अमृतसर के साथ ही छूट गये..वहां पर अलग तरह के कुलचे मिलते हैं...खमीर वाले ..वे और कहीं नहीं दिखते...इसी तरह से भटूरे-छोले, फलूदा कुल्फी भी हाल बाज़ार की याद आती है...ढेरों यादों के साथ...सारी की सारी मीठी यादें...और तो और इतनी जगहों खाना खाया, घाट घाट का पानी पिया लेकिन केसर के ढाबे का खाना भूल नहीं पाया....अगर मैं आलसी प्रवृत्ति का न होता तो केसर के ढाबे पर खाना खाने के लिए अमृतसर चला जाया करता... 😄😄😄😄

स्वाद की बात से आज मुझे ध्यान आया कि हम लोग स्वाद के गुलाम हो चले हैं शायद ...पहले तो हम लोग सब्जी के बारे में चूज़ी थे...यह खाएंगे, वह नहीं खाएंगे..लेकिन अब हम इस स्वाद के इतने गुलाम हो चुके हैं कि हमारी पसंद की सब्जी भी अगर हमारे स्वाद के अनुसार नहीं बनी है तो हम उसे खा ही नहीं पाते...

आज सुबह भी एक भंडारे में पूड़ी-हलवा और यह कटहल की सब्जी मिली तो इस का स्वाद कुछ अलग तरह का होने के कारण मैं खा ही नहीं पाया... कितना अजीब सा लगता है ना, लेकिन है सो है!
कटहल की सब्जी 
स्वाद का एक सुखद पहलू भी है कि जो स्वाद हम लोगों के बचपन में डिवेल्प हो जाते हैं...वे फिर ताउम्र साथ चलते हैं...मुझे आज के दौर के बच्चों का बिना कुछ खाए ..बस एक गिलास, साथ में दो बिस्कुट खा कर जाना बड़ा अजीब लगता है...वहां पर रिसेस के समय तक पढ़ाई में क्या मन लगता होगा...और फिर अकसर आजकल ज्यादा कुछ टिफिन विफिन वाला ट्रेंड भी कम होता जा रहा है...इसलिए वहीं पर जो जंक-फूड और अनहेल्दी स्नेक्स मिलते हैं, वही खाते रहते हैं बच्चे ....परिणाम हम सब के सामने हैं...

मुझे अपने स्कूल के दिनों का ध्यान आता है ...पहली कक्षा से चौथी श्रेणी तक का भी ...तो जहां तक मेरी यादाश्त मेरा साथ दे रही है वह यही है कि हम लोग घर से बिना एक दो परांठा और दही के साथ खाए बिना निकलते ही नहीं थे, और साथ में एक दो परांठे भी लेकर जाना और वहां रिसेस में पांच दस पैसे में हमें इस तरह के snacks मिलते थे ...एक पत्ते में हमें यह सब कुछ दिया जाता ..पांच दस पैसे में ..नींबू निचोड़ कर ...यह सिलसिला शुरूआती चार पांच सालों तक चलता रहा ..फिर स्कूल बदल गया....लेिकन चार पांच साल किसी अच्छी आदत को अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए बहुत होते हैं...

इसलिए अब भी अकसर वही कुछ हम लोग खाते हैं...और स्कूल के दिनों की यादें ताज़ा हो जाती हैं... उबले हुए चने, उबला हुई सफेद रोंगी, लोबिया...सब अच्छा लगता है ...अकसर हम लोगों ने बचपन में सोयाबीन की दाल नहीं खाई...कभी हमारे यहां दिखती ही नहीं थी, स्वाद का ही चक्कर होगा....लेकिन बड़े होने पर जब यह बनने लगी तो हम थोड़ा खाने लगे....कुछ दिन पहले सोयाबीन भी उबली हुई खाने को मिली तो स्वाद अच्छा लगा....

पहली बार उबली हुई सोयाबीन खाई ...स्वाद बढ़िया था..
मैं भी यह क्या खाया-पीया का बही-खाता लेकर बैठ गया.....लेकिन एक बात तो है कि स्वाद की गुलामी छोड़नी पड़ेगी... Earlier it is done, better it is!

वैसे भी धर्म भा जी तो बरसों से दाल रोटी खाने का बढ़िया मशविरा दिये जा रहे हैं....इन की ही मान लें...