आज से पच्चीस-तीस पहले लोगों ने दबी-सी मंद आवाज़ में यह चर्चा शुरू करनी कर दी थी कि आज कल इतने ज़्यादा बच्चे बड़े आप्रेशन से ही क्यों पैदा होने लगे हैं। जब यह सिलसिला आने वाले समय में थमा नहीं, तो लोगों ने इस के बारे में खुल कर कहना शुरू कर दिया। मीडिया में इस विषय को कवर किया जाने लगा कि पहले तो इतने कम केसों में इस बड़े आप्रेशन की ज़रूरत पड़ा करती थी लेकिन अब क्यों यह सब इतना आम हो गया है?
मैं न तो स्त्री रोग विशेषज्ञ ही हूं और न ही इस संबंध में किसी विशेषज्ञ का साक्षात्कार कर के ही आया हूं लेकिन यह तो है कि जब मीडिया में यह बात उछलने लगी तो कहीं न कहीं उंगलियां मैडीकल प्रोफैशन की तरफ़ भी उठने लगीं, यह सब जग-ज़ाहिर है। दौर वह भी देखा कि लोग डिलिवरी के नाम से डरने लगे कि इस पर इतना ज़्यादा खर्च हो जायेगा।
लेकिन आप को क्या लगता है कि मीडिया में इतना हो-हल्ला उठने के बाद कुछ फर्क पड़ा? ....उन दिनों यह भी बात सामने आई कि कुछ उच्च-वर्ग संभ्रांत श्रेणी से संबंध रखने वाले लोग डिलिवरी नार्मल करवाने की बजाए बड़ा आप्रेशन इसलिये करवा लिया करते थे या करवा लेते हैं ताकि सब कुछ “पहले जैसा” बना रहे......यह भी एक तरह की भ्रांति ही है क्योंकि साईंस यही कहती है कि सब कुछ पहले जैसा ही “मेनटेन” रहता है, सब कुछ पहले जैसे आकार एवं स्थिति में शीघ्र ही आ जाता है।
मैं अकसर सोचता हूं कि जिस तरह से जबरदस्त हो-हल्ला मचने के बाद दूध में मिलावट बंद नहीं हुई, रिश्वतखोरी बंद नहीं हुई, जबरदस्ती ट्यूशनों पर बुलाना बंद नहीं हुआ, एक कड़े कानून के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या बंद नहीं हुई, पब्लिक जगहों पर बीड़ी-सिगरेट पीने से लोग नहीं हटे, दहेज के कारण नवविवाहितें जलाई जानी कम नहीं हुई, कुछ प्राव्हेट स्कूलों का लालच नहीं थमा......और भी अनेकों उदाहरणें हैं जो नहीं हुआ.....ऐसे में यह बड़े आप्रेशन द्वारा (सिज़ेरियन सैक्शन) द्वारा बच्चे पैदा होने का सिलसिला कैसा थम सकता है, सुना है अब लोग इस के भी अभ्यस्त से हो गये हैं, क्या करें जब जान का सवाल हो तो चिकित्सा कर्मी की बात मानने के अलावा चारा भी क्या रह जाता है!
चलिए, इस बात को यहीं विराम देते हैं .... जिस बात का कोई हल ही नहीं, उस के बारे में जुबानी जमा-घटा करने से क्या हासिल। लेकिन एक नया मुद्दा कल की टाइम्स ऑफ इंडिया में दिख गया .... राजस्थान के दौसा जिले में पिछले छः महीने में 226 महिलाओं का गर्भाशय आप्रेशन के द्वारा निकाल दिया गया। न्यूज़-रिपोर्ट में तो यह कहा गया है कि यह सब कुछ पैसे के लिये किया गया है..... चलिए मान भी लें कि मीडिया वाले थोड़ा मिर्च-मसाला लगाने में एक्सपर्ट तो होते ही हैं लेकिन बात सोचने वाली यह भी तो है अगर धुआं निकला है तो कहीं न कहीं कुछ तो होगा !!
इस खबर में यह बताया गया है कि तीन प्राइवेट अस्पताल जो राज्य सरकार की जननी सुरक्षा योजना के लिये काम कर रहे हैं इन में ये आप्रेशन किये गये हैं। बांदीकुई में काम कर रहे एक गैर-सरकारी संगठन – अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने इन सब बातों का पता सूचना के अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल कर के लगाया। और यह संस्था यह आरोप लगा रही है कि चिकित्सकों ने बारह हज़ार से चौदह हज़ार रूपये कमाने के चक्कर में महिलाओं का यूट्रस (गर्भाशय, बच्चेदानी) आप्रेशन कर के निकाल दिया। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि महिलाओं को यहां तक डराया गया कि अगर वे बच्चेदानी नहीं निकलवाएंगी तो वे मर जाएंगी। 90 प्रतिशत महिलाएं ओबीसी, शैड्यूल्ड कॉस्ट, शैड्यूल्ड ट्राईब से संबंध रखती थीं जिन की उम्र 20 से 35 वर्ष थीं। जैसा कि अकसर ऐसे बातें बाहर आने पर होता है, मामले की जांच के लिये एक कमेटी का गठन हो चुका है जिस की रिपोर्ट 15 दिन में आ जायेगी।
चलिये, रिपोर्ट की इंतज़ार करते रहिए...........मैं यह न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ते यही सोच रहा था कि पता नहीं राजस्थान की महिलायें पर ही सारा कहर क्यों बरप रहा है, अभी हम लोग उदयपुर में गर्भवती महिलाओं को प्रदूषित ग्लूकोज़ चढ़ाए जाने से 14-15 महिलाओं की दुर्भाग्यपूर्ण को भूल ही नहीं पाये हैं कि यह बिना वजह आप्रेशन वाली बात सामने आ गई है।
तो क्या आपको लगता है कि इस तरह के आप्रेशन केवल राजस्थान के दौसा ज़िले में ही हो गये होंगे --- नहीं, ये इस देश के हर ज़िले में होते होंगे, देश ही क्यों विदेशों में भी यह समस्या तो है ही.... लेकिन इतनी ज़्यादा नहीं है ---यहां पर गरीबी, अनपढ़ता और शोषण हमारी मुश्किलों को और भी जटिल बना देती है।
मुझे अच्छी तरह से याद है कि कुछ अरसा पहले मैं अंबाला से दिल्ली शताब्दी में यात्रा कर रहा था... मेरी पिछली सीट पर दो महिला रोग विशेषज्ञ बैठे हुए थे ..चंडीगढ़ से आ रहे थे ....अपने किसी साथी की बात कर रहे थे कि वह कैसे बिना किसी इंडीकेशन के भी हिस्ट्रैक्टमी ( Hysterectomy, गर्भाशय को आप्रेशन द्वारा निकाल जाना) कर देता है, वे लंबे समय पर इस मुद्दे पर चर्चा करते रहे।
गर्भाशय या बच्चेदानी को आप्रेशन के द्वारा कुछ परिस्थितियों में निकाला जाना ज़रूरी हो जाता है.... अगर किसी महिला को फॉयबरायड है, रसौली है, और इन की वजह से बहुत रक्त बहता है अथवा विभिन्न टैस्टों के द्वारा जब विशेषज्ञों को लगता है कि गर्भाशय के शरीर में पड़े रहने से कैंसर होने का अंदेशा है तो भी इसे आप्रेशन द्वारा निकाल दिया जाता है।
और रही बात कमेटियां बना कर इस तरह के केसों की जांच करने की, इस के बारे में क्या कहें, क्या न कहें..........आप सब समझदार हैं, मुझे नहीं पता इन सब केसों में से कितने केस जैन्यून होंगे कितने ऐसे ही हो गये !! मुझे तो बस यही पता है कि इस का पता तो केवल और केवल आप्रेशन करने वाले चिकित्सक के दिल को ही है, वरना कोई कुछ भी कर ले, सच्चाई कैसे सामने आ सकती है, ऐसा मुझे लगता है, मैं गलत भी हो सकता हूं..........लेकिन मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि ऐसे केसों में कागज़ों का पेट भी अच्छी तरह से ठूस ठूस कर तो भरा ही जाता होगा.................................लेकिन कुछ भी हो, सब कुछ सर्जन के दिल में ही कैद होता है।
हां, तो मैं जिन दो महिला रोग विशेषज्ञों की बात कर रहा था जिनकी बातें मैं गाड़ी में बैठा सुन रहा था ..उन्होंने अपने साथी के बारे में यह भी कहा था .. वैसे सर्जरी उस की परफैक्ट है, सरकारी अस्पताल में टिका ही इसलिये हुआ है कि कहता है कि वहां इन आप्रेशनों पर हाथ अच्छा खुल जाता है............शायद उन की बात थी बिल्कुल सीधी लेकिन मैं इस के सभी अर्थ समझने के चक्कर में पता नहीं कहां खो गया कि मुझे दिल्ली स्टेशन आने का पता ही नहीं चला !
Source : Uterus of 226 women removed in Dausa Hospitals
मैं न तो स्त्री रोग विशेषज्ञ ही हूं और न ही इस संबंध में किसी विशेषज्ञ का साक्षात्कार कर के ही आया हूं लेकिन यह तो है कि जब मीडिया में यह बात उछलने लगी तो कहीं न कहीं उंगलियां मैडीकल प्रोफैशन की तरफ़ भी उठने लगीं, यह सब जग-ज़ाहिर है। दौर वह भी देखा कि लोग डिलिवरी के नाम से डरने लगे कि इस पर इतना ज़्यादा खर्च हो जायेगा।
लेकिन आप को क्या लगता है कि मीडिया में इतना हो-हल्ला उठने के बाद कुछ फर्क पड़ा? ....उन दिनों यह भी बात सामने आई कि कुछ उच्च-वर्ग संभ्रांत श्रेणी से संबंध रखने वाले लोग डिलिवरी नार्मल करवाने की बजाए बड़ा आप्रेशन इसलिये करवा लिया करते थे या करवा लेते हैं ताकि सब कुछ “पहले जैसा” बना रहे......यह भी एक तरह की भ्रांति ही है क्योंकि साईंस यही कहती है कि सब कुछ पहले जैसा ही “मेनटेन” रहता है, सब कुछ पहले जैसे आकार एवं स्थिति में शीघ्र ही आ जाता है।
मैं अकसर सोचता हूं कि जिस तरह से जबरदस्त हो-हल्ला मचने के बाद दूध में मिलावट बंद नहीं हुई, रिश्वतखोरी बंद नहीं हुई, जबरदस्ती ट्यूशनों पर बुलाना बंद नहीं हुआ, एक कड़े कानून के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या बंद नहीं हुई, पब्लिक जगहों पर बीड़ी-सिगरेट पीने से लोग नहीं हटे, दहेज के कारण नवविवाहितें जलाई जानी कम नहीं हुई, कुछ प्राव्हेट स्कूलों का लालच नहीं थमा......और भी अनेकों उदाहरणें हैं जो नहीं हुआ.....ऐसे में यह बड़े आप्रेशन द्वारा (सिज़ेरियन सैक्शन) द्वारा बच्चे पैदा होने का सिलसिला कैसा थम सकता है, सुना है अब लोग इस के भी अभ्यस्त से हो गये हैं, क्या करें जब जान का सवाल हो तो चिकित्सा कर्मी की बात मानने के अलावा चारा भी क्या रह जाता है!
चलिए, इस बात को यहीं विराम देते हैं .... जिस बात का कोई हल ही नहीं, उस के बारे में जुबानी जमा-घटा करने से क्या हासिल। लेकिन एक नया मुद्दा कल की टाइम्स ऑफ इंडिया में दिख गया .... राजस्थान के दौसा जिले में पिछले छः महीने में 226 महिलाओं का गर्भाशय आप्रेशन के द्वारा निकाल दिया गया। न्यूज़-रिपोर्ट में तो यह कहा गया है कि यह सब कुछ पैसे के लिये किया गया है..... चलिए मान भी लें कि मीडिया वाले थोड़ा मिर्च-मसाला लगाने में एक्सपर्ट तो होते ही हैं लेकिन बात सोचने वाली यह भी तो है अगर धुआं निकला है तो कहीं न कहीं कुछ तो होगा !!
इस खबर में यह बताया गया है कि तीन प्राइवेट अस्पताल जो राज्य सरकार की जननी सुरक्षा योजना के लिये काम कर रहे हैं इन में ये आप्रेशन किये गये हैं। बांदीकुई में काम कर रहे एक गैर-सरकारी संगठन – अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने इन सब बातों का पता सूचना के अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल कर के लगाया। और यह संस्था यह आरोप लगा रही है कि चिकित्सकों ने बारह हज़ार से चौदह हज़ार रूपये कमाने के चक्कर में महिलाओं का यूट्रस (गर्भाशय, बच्चेदानी) आप्रेशन कर के निकाल दिया। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि महिलाओं को यहां तक डराया गया कि अगर वे बच्चेदानी नहीं निकलवाएंगी तो वे मर जाएंगी। 90 प्रतिशत महिलाएं ओबीसी, शैड्यूल्ड कॉस्ट, शैड्यूल्ड ट्राईब से संबंध रखती थीं जिन की उम्र 20 से 35 वर्ष थीं। जैसा कि अकसर ऐसे बातें बाहर आने पर होता है, मामले की जांच के लिये एक कमेटी का गठन हो चुका है जिस की रिपोर्ट 15 दिन में आ जायेगी।
चलिये, रिपोर्ट की इंतज़ार करते रहिए...........मैं यह न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ते यही सोच रहा था कि पता नहीं राजस्थान की महिलायें पर ही सारा कहर क्यों बरप रहा है, अभी हम लोग उदयपुर में गर्भवती महिलाओं को प्रदूषित ग्लूकोज़ चढ़ाए जाने से 14-15 महिलाओं की दुर्भाग्यपूर्ण को भूल ही नहीं पाये हैं कि यह बिना वजह आप्रेशन वाली बात सामने आ गई है।
तो क्या आपको लगता है कि इस तरह के आप्रेशन केवल राजस्थान के दौसा ज़िले में ही हो गये होंगे --- नहीं, ये इस देश के हर ज़िले में होते होंगे, देश ही क्यों विदेशों में भी यह समस्या तो है ही.... लेकिन इतनी ज़्यादा नहीं है ---यहां पर गरीबी, अनपढ़ता और शोषण हमारी मुश्किलों को और भी जटिल बना देती है।
मुझे अच्छी तरह से याद है कि कुछ अरसा पहले मैं अंबाला से दिल्ली शताब्दी में यात्रा कर रहा था... मेरी पिछली सीट पर दो महिला रोग विशेषज्ञ बैठे हुए थे ..चंडीगढ़ से आ रहे थे ....अपने किसी साथी की बात कर रहे थे कि वह कैसे बिना किसी इंडीकेशन के भी हिस्ट्रैक्टमी ( Hysterectomy, गर्भाशय को आप्रेशन द्वारा निकाल जाना) कर देता है, वे लंबे समय पर इस मुद्दे पर चर्चा करते रहे।
गर्भाशय या बच्चेदानी को आप्रेशन के द्वारा कुछ परिस्थितियों में निकाला जाना ज़रूरी हो जाता है.... अगर किसी महिला को फॉयबरायड है, रसौली है, और इन की वजह से बहुत रक्त बहता है अथवा विभिन्न टैस्टों के द्वारा जब विशेषज्ञों को लगता है कि गर्भाशय के शरीर में पड़े रहने से कैंसर होने का अंदेशा है तो भी इसे आप्रेशन द्वारा निकाल दिया जाता है।
और रही बात कमेटियां बना कर इस तरह के केसों की जांच करने की, इस के बारे में क्या कहें, क्या न कहें..........आप सब समझदार हैं, मुझे नहीं पता इन सब केसों में से कितने केस जैन्यून होंगे कितने ऐसे ही हो गये !! मुझे तो बस यही पता है कि इस का पता तो केवल और केवल आप्रेशन करने वाले चिकित्सक के दिल को ही है, वरना कोई कुछ भी कर ले, सच्चाई कैसे सामने आ सकती है, ऐसा मुझे लगता है, मैं गलत भी हो सकता हूं..........लेकिन मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि ऐसे केसों में कागज़ों का पेट भी अच्छी तरह से ठूस ठूस कर तो भरा ही जाता होगा.................................लेकिन कुछ भी हो, सब कुछ सर्जन के दिल में ही कैद होता है।
हां, तो मैं जिन दो महिला रोग विशेषज्ञों की बात कर रहा था जिनकी बातें मैं गाड़ी में बैठा सुन रहा था ..उन्होंने अपने साथी के बारे में यह भी कहा था .. वैसे सर्जरी उस की परफैक्ट है, सरकारी अस्पताल में टिका ही इसलिये हुआ है कि कहता है कि वहां इन आप्रेशनों पर हाथ अच्छा खुल जाता है............शायद उन की बात थी बिल्कुल सीधी लेकिन मैं इस के सभी अर्थ समझने के चक्कर में पता नहीं कहां खो गया कि मुझे दिल्ली स्टेशन आने का पता ही नहीं चला !
Source : Uterus of 226 women removed in Dausa Hospitals