दो वर्ष पहले अफ्रीका में की किये गये तीन सर्वेक्षणों से यह निष्कर्ष निकाला गया कि जिन पुरूषों की सुन्नत हुई होती है उन में एड्स वॉयरस के प्रवेश का ख़तरा 60फीसदी कम होता है, इसलिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एड्स की रोकथाम के लिये ख़तना करवाने की सिफारिश कर दी।
थोड़ा इस बात की चर्चा करें कि यह सुन्नत करवाना है क्या ----जैसा कि आप जानते होंगे कि पिनिस ( शिश्न, लिंग) का अगला नर्म भाग ( शिश्न मुंह अथवा glans penis) ढीली चमड़ी से ढका रहता है जिसे मैडीकल भाषा में प्रिप्यूस ( prepuce) कहा जाता है ---- एक बिलकुल छोटे से आप्रेशन के द्वारा शिश्न मुंह के ऊपर वाली इस चमड़ी को उतार दिया जाता है।
जब से विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह सिफारिश आई है विभिन्न गरीब देशों ने अपनी अपनी सरकमसिज़न पॉलिसी बनाने की तरफ़ कदम उठाने शुरू किये तो हैं लेकिन फिर भी लोगों के बीच इस सुन्नत के बारे में बहुत सी गलत भ्रांतियां चल निकली हैं। एक बहुत ही चिंता की बात यह भी यह है कि नीम-हकीमों ने बिना साफ़-सुथरे औज़ारों के ही यह काम सस्ते ढंग से करना का जिम्मा उठा लिया। वैसे तो तरह तरह की भ्रांतियों को समाप्त करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस के बारे में यह वेबसाइट ही बना डाली है, लेकिन फिर भी अभी इस के बारे में बहुत जागरूकता की ज़रूरत है।
सब से पहले तो एक नज़र इस तरफ़ डाली जाये कि यह सरकमसिज़न आप्रेशन( सुन्नत, ख़तना) किया ही क्यों जाता है ---
- एक धार्मिक विश्वास के कारण ---- आप यह तो जानते हैं कि मुस्लिम धर्म में धार्मिक कारण की वजह से छोटे लड़कों की सुन्नत की जाती है।
- दूसरा कारण है जब कोई भी कंप्लीकेशन हो जाये तब ख़तना करना पड़ता है ---- होता क्या है कि कईं छोटे बच्चों की प्रिप्यूस इतनी टाइट होती है --- वह शिश्न-मुंड के ऊपर से बिल्कुल भी टस से मस नहीं होती ----इस अवस्था को फिमोसिस (phimosis) कहा जाता है। इस की वजह से कईं बार यह जटिलता हो जाती है कि छोटे लड़कों को पेशाब करने में ही दिक्तत हो जाती है जिस की वजह से उन के शिश्न-मुंड के ऊपर टाइट चमड़ी को इस छोटे से आप्रेशन के द्वारा उतार दिया जाता है।
- बिना किसी विशेष कारण के भी कईं बार सरकमसिज़न कर दी जाती है।
कुछ बातें इस प्रिप्यूस के बारे में करनी ज़रूरी लग रही हैं ---- अधिकांश नवजात शिशुओं में यह जो चमड़ी है ग्लैंस-पिनिस ( glans penis- शिश्न-मुंड) के साथ पूरी तरह चिपकी पड़ी होती है । और अगर बिल्कुल कुछ भी न किया जाये तो भी लगभग सभी लड़कों में यह चमड़ी लड़के के तीन साल की उम्र के होने तक शिश्न-मुंड से अलग हो जाती है -----------ध्यान दें कि केवल अलग हो जाती है –मतलब यह कि वह आसानी से शिश्न-मुंड से आगे-पीछे सरक सकती है।
यही कारण है कि लोगों को यह निर्देश दिया जाना बहुत ज़रूरी है कि तीन साल की उम्र तक तो शिशु के शिश्न के ऊपर जो foreskin है उस को ज़ोर लगा कर शिश्न-मुंड से पीछे सरकाने की कोशिश न करें। अगर तीन साल की उम्र तक भी ग्लैंस के ऊपर वाली यह चमड़ी ग्लैंस पर चिपकी ही रहती है तो बेहद एहतियात से बिल्कुल आहिस्ता से इस चमड़ी (foreskin) को पीछे सरकाने की कोशिश की जानी चाहिये --- और इस चमड़ी और शिश्न-मुंड के अंदर जो भी मैल सी चिपकी रहती है उसे साफ़ कर दिया जाये। लेकिन अगर शिशु के चार साल के होने तक भी यह चमड़ी शिश्न-मुंड के साथ चिपकी ही रहे तो किसी पैडिएट्रिक सर्जन से एक बार मिलना ठीक रहता है जो कि इस चमड़ी को बिना काटे ही पीछे सरका ( retract) कर सकता है।
अच्छा तो अब इस पोस्ट की दो बहुत ही अहम् बातें ---- पहली तो यह भ्रांति को तोड़ना होगा कि सरकमसिज़न ( सुन्नत, ख़तना) करवा ली और हो गई विभिन्न प्रकार की बीमारियों से शत-प्रतिशत रक्षा ---- इसीलिये बहुत से पुरूष विभिन्न यौन-जनित रोगों से बचाव के लिये कंडोम का इस्तेमाल करना ही बंद कर देते हैं।
इस से कहीं न कहीं हमें किसी रिस्क-बिहेवियर की भनक पड़ती है और लोग इस तरह के रिस्क-बिहेवियर में लिप्त होने के लिये इस सरकमसिज़न को एक क्लीन-चिट ही न समझ लें।
और अब बारी आती है वह बात कहने की जिस के लिये मैंने यह पोस्ट लिखी है ---- इस पोस्ट को पढ़ रहे कितने पुरूष पाठक ऐसे हैं जिन के बेटे सन-सरकमसाईज़ड (uncircumcised) हैं--- ( यह कोई खास बात नहीं कि ख़तना नहीं करवाया हुआ है ) ---- लेकिन उन्होंने कभी अपने बेटे के साथ इस बात की चर्चा ही नहीं की कि शिश्न-मुंड के ऊपर वाली चमड़ी (foreskin) को नियमित तौर पर पीछे सरका कर नहाते समय साफ़ करना निहायत ही ज़रूरी है --- ऐसा करना इसलिये ज़रूरी है कि जो इस ढीली चमड़ी और शिश्न-मुंड के अंदर मैल सी ( जिसे मैडीकल भाषा में smegma- स्मैगमा) इक्ट्ठा होती रहती है अगर उसे नियमित साफ़ न किया जाये तो उस से पेशाब में जलन होनी शुरू हो जाती है और कईं बार तो इस को साफ़ न करने की वजह से मूत्र-मार्ग मे सूजन भी आ सकती है - urinary tract infection (UTI).
इसलिये अनुरोध है कि अपने किशोर बेटे को अगर अब तक यह शिक्षा आपने नहीं दी है तो और देरी मत कीजिये ----यह यौन-स्वास्थ्य का एक अभिन्न अंग है , इसे नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते। और एक सुझाव है कि यह शिक्षा बेहतर तो यही होगा कि बेटे को चार-पांच साल से ही दे दी जाये कि नहाते समय आहिस्ता से शिश्न-मुंड के ऊपरी चमड़ी को थोड़ा पीछे सरका के ( जितना भी आसानी से बिना किसी दर्द के सरकाई जा सके) उस पर लगी मैल को साफ़ कर दिया जाये। और लड़कों को छोटी उम्र से ही इस साफ़-सफ़ाई की आदत लग जाये तो वह भी सारी उम्र अपने यौन-स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने के साथ साथ तरह तरह की भ्रांतियों एवं काल्पनिक तकलीफ़ों से बचे रहते हैं। लेकिन इन लड़कों को यह भी ज़रूर बतायें कि रोज़ रोज़ शिश्न-मुंड ( glans penis) पर साबुन लगाना ठीक नहीं है ----जो स्मैग्मा ( मैल) जमा होती है वह बिल्कुल आहिस्ता से उंगली से ही पूरी तरह उतर जाती है ।
और अगर अब तक आप ने अपने टीन-एज- किशोर बेटे से इस के बारे में बात ही नहीं की है तो क्या करें ------- या तो उसे किसी तरह से यह पोस्ट पढ़वा दें, वरना इस का एक प्रिंट-आउट ही थमा दें ---- और अगर यह काम कर ही रहे हैं तो उस के द्वारा इस स्वपन-दोष वाली पोस्ट का पढ़ा जाना भी सुनिश्चित करे -----------------काश, हम लोगों के ज़माने में भी हमें ये सब बातें बताता ---हम लोगों ने तो यूं ही काल्पनिक बीमारियों की सोच में पढ़ कर ही अपने जीवन के सुनहरे काल के बहुत से वर्ष गर्क कर दिये ------लेकिन अब हमारे बच्चे इस तरह की बातों पर ध्यान देने लगेंगे तो बहुत बढ़िया होगा। आप भी झिझक छोड़ कर यह सब बातें अपने बेटे के साथ सांझी करेंगे तो ठीक रहेगा ----मेरा तो यह लाइफ़ का अनुभव है, आगे आप की मरज़ी -----जैसा ठीक समझें, वैसा करें।
वैसे तो सैक्स-ऐजुकेशन के लेबल के अंतर्गत लिखी मेरी सभी पोस्टें एकदम दिल से लिखी गई हैं ---आप देखें कि अपने बेटे की मैच्यूरिटि के अनुसार कौन कौन सी पोस्टें वह पढ़ सकता है---- कल रात यूं ही मैं इन पोस्टों का लेबल बदलने की कोशिश कर रहा था तो मुझे अचानक एक मैसेज दिखा कि इस लेबल की सभी पोस्टें डिलीट कर दी गई हैं------ मेरा तो सांस ऊपर का ऊपर ही रह गया ----थैंक-गॉड, ऐसा कुछ नहीं था , मुझे समझने में ही कमी थी ---उस का मतलब था कि अब ये पोस्टें बिना लेबल के हैं, इसलिये फिर मैंने उन्हें बारी बारी से सैक्स-ऐजुकेशन लेबल के अंदर रख दिया। मैं घबरा इस लिये गया कि दोस्तो ये पोस्टें मुझे स्वयं पता नहीं मैंने किसी घड़ी में लिख दी डाली हैं ---जो मैं इन दस-ग्यारह पोस्टों में पहले लिख चुका हूं अब कोई कहे कि ऐसा फिर से लिखो, वह मेरे तो बस की बात ही नहीं है, दोस्तो।
शुभकामनायें।