बुधवार, 18 मार्च 2015

जीवन चलने का नाम...

मैं अभी अपनी कॉलोनी में ही थोड़ा टहल कर लौटा हूं...ऐसे ही १५-२० मिनट...धूप तेज लगी तौ लौट आया।

मैंने टहलते हुए एक बुज़ुर्ग को देखा...इन की उम्र ८० के थोड़ा इधर उधर होगी...मैं पिछले दो सालों से देख रहा हूं कि इन का नौकर इन को हाथ पकड़ कर सैर करवाता है।

ये बेहद नियमितता से टहलने आते हैं...मौसम कैसा भी हो, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अच्छा लगता है इन्हें सैर करते देखना...पहले तो अपने नौकर का हाथ थामे हुए भी बहुत ही लड़खड़ाते चला करते थे ..एक हाथ में इन के छड़ी हुया करती थी...आज मैंने देखा कि इन्होंने छड़ी बस ऐसे ही एक हाथ में थामी हुई थी...इस का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे।

बहुत अच्छा लगता है जब कोई इस तरह की दृढ़ इच्छा-शक्ति वाला शख्स मिलता है। बीमारी की ऐसी की तैसी....ये सब तो ८० प्रतिशत हमारे मन की ही उपज हैं....जब शऱीर चलता रहेगा तो मन भी ठीक ही रहेगा।

मैं अकसर इस ब्लॉग पर बहुत से ऐसे लोगों की कहानियां शेयर करता रहता हूं जिनसे कोई भी प्रेरणा ले सकता है। दरअसल इन में से कोई भी कहानी नहीं होती, हर बात सच होती है।

अभी दो तीन पहले ही एक ८४ साल के बुज़ुर्ग आए... पहले फौज में थे, फिर दूसरे विभाग में नौकरी कर ली..दो जगह से पेन्शन पा रहे हैं...बीवी चल बसी है..बच्चे हैं नहीं... घर में अकेले रहते हैं......तो उस दिन अपने आप ही बताने लगे कि डाक्टर साहब, I am completing 84....पच्चीस साल हो गये रिटायर हुए...सारा काम अपना खुद करता हूं...बिल्कुल अपने आप...और इस से मैं बहुत चुस्त दुरूस्त महसूस करता हूं...मुझे याद है वे दो तीन बार आये हैं....हर बार साफ़ स्वच्छ कपड़े पहने रहते हैं....सफेद सूती कमीज़....बिना इस्तरी की हुई...वे इस में भी इतने फिट एवं एक्टिव दिखते हैं...कहते हैं अपने कपड़े रोज़ के रोज़ धो लेता हूं....चाय ऐसी बनाता हूं कि मजा आ जाए...मुझे कहने लगे कि इस बार उन के संत आएंगे तो आप को ज़रूर ले कर जाना है......उसी दिन की बात है कि जब मैं अस्पताल से बाहर निकल रहा था तो मैंने उन्हें साईकिल का ताला खोलते देखा.....वे अभी भी एकदम फिट हैं तो साईकिल से ही अपना ज़्यादातर सफऱ तय करते हैं...मुझे बहुत खुशी हुई। मेरे ख्याल में आपने इन की उम्र ध्यान से पढ़ ही ली होगी....इन्हें अभी ८५ वां साल लगने वाला है। ईश्वर करे ये शतायु हों।

दोस्तो, कल शाम को मेरा सिर थोड़ा भारी था...अकसर हो जाता है, दोपहर खाने के बाद जितनी सुस्ती मुझ पर छा जाती है, मुझे ही पता है.....मैं पिछले लगभग २०-२५ सालों से इस तकलीफ़ से ग्रस्त हूं....लेकिन मेरी बीवी कहती है कि ऐसा सब के साथ ही होता है।

हां, तो कल शाम को मेरा सिर भारी था और हम लोग पास ही के एक बाग जिसे बिजली पासी किला कहते हैं....यह मायावती के कार्यकाल के दौरान बनाया हुआ एक सुदंर स्थल है...मैं वहां पर २०-२५ मिनट टहला, बढिया हवा चल रही थी और हो गई अपनी तबीयत बिल्कुल टनाटन।


मैं क्यों यह सब लिख रहा हूं .. ..आप सब को भी और अपने आप को भी याद दिलाने के लिए कि जहां पर भी मौका मिले अपने शरीर से काम ले लेना चाहिए...इस के बेशुमार फायदे ही हैं....टहलने का बहाना ढूंढे, साईकिल चलाने की वजह ढूंढे.....यह मुश्किल नहीं है बिल्कुल अगर हम ठान लें...

मैं हर शख्स को पैदल चलने के लिए प्रेरित करता रहता हूं... क्योंिक मैं यह भलीभांति जानता हूं कि पैदल चलने से आदमी पहली बात तो यह कि अनेकों मन और शरीर की बीमारियों से बचा रह सकता है और अगर कोई इन सब व्याधियों से ग्रस्त है तो ये भी अपने आप ठीक होने लगती हैं........क्या आप को पता है कि डिप्रेशन (अवसाद) जैसे रोग के लिए भी टहलना अचूक उपाय है!

दोस्तो, जब तक टांगों में दम है, दिल में टहलने की क्षमता है और जीने की उमंग है.......बस टहलते रहिए... पता नहीं कब घुटने की वजह से या अन्य किन्हीं कारणों से किसी से चाहते हुए भी टहला ही नहीं जाए या किसी को डाक्टर ही चलने के लिए मना कर दें।

बस आखिर में एक बात लिख कर नहाने के लिए उठने लगा हूं....यकीन मानिए अगर कोई व्यक्ति पैदल चल रहा है, टहल रहा है तो यह प्रकृति का एक वरदान है.....बिल्कुल वरदान है....आप को मेरी इस बात पर यकीन करना ही होगा कि हमारे पूरे शरीर में ..दिल और दिमाग में भी......अरबों खरबों कोशिकाओं में खरबों या अनगिनत क्रियाएं चल रही हैं... और इन सब शारीरिक प्रक्रियाओं का एक सुंदर परिणाम यह भी है कि आप और मैं चल लेते हैं....अगर कभी किसी में ये प्रक्रियाएं थोड़ी सी भी पटड़ी से नीचे उतरने लगती हैं तो आदमी चाह कर भी एक पैर जमीन पर खड़ा होना तो दूर सीधा खड़ा तक नहीं हो पाता। 

हां, कल एक आदमी की बात सुन कर मूड बड़ा खराब हुआ... वह रिटायर होने वाला है...उस का बेटा बेड पर है...१७ साल की उम्र थी तब जब किसी के स्कूटर के पीछे बैठा था.. स्कूटर किसी से भिड़ गया और उस के बेटे के सिर के पिछले हिस्से पर ऐसा झटका लगा कि वह कभी बेड से उठा नहीं....बड़े से बड़े विशेषज्ञ को दिखा लिया है...वैसे स्वस्थ है, खाता पीता है...२५ साल का हो गया है..लेकिन बिस्तर से उठ ही नहीं पाता......मल त्याग और पेशाब तक भी बिस्तर पर लेटे लेटे ही......गर्दन के दो मनकों को कुछ गड़बड़ हो गई है जिस का कोई इलाज नहीं है।

ईश्वर सब को सेहतमंद रखे। मुझे याद है मैंने लगभग १०-१५ साल पहले एक िकताब पढ़ी थी ..वाकिंग के ऊपर...बहुत ही बेहतरीन किताब थी ...अगर कहीं दिखी तो उस के कुछ अंश आप से शेयर करूंगा.......और आप भी आज ही से टहलने के बहाने ढूंढते रहिए...अच्छा लगता है....जैसे बचपन में रेडियो पर इस गीत को बार बार सुनता अच्छा लगता था.....