अकसर डाक्टरों के आसपास के लोग –परिचित, रिश्तेदार,मित्र-सगा उन से यह बात कहते रहते हैं कि भई हमें तो आम तकलीफ़ों के लिये कुछ दवाईयां लिखवा दो, जिसे हम ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर लिया करें। और अकसर लोग यह भी करते हैं कि घर में जमा हो चुकी दवाईयां किसी डाक्टर (जिस से उन्हें डांट-फटकार का डर न हो) के पास ले जाकर उन के नाम एवं उन के प्रभाव लिखने की कोशिश करते हैं।
जिस तरह से आज जीवनशैली से संबंधित तकलीफ़ें बढ़ गई हैं और जिस तरह से तरह तरह के रोगों के लिये नई नई दवाईयां आ गई हैं, ऐसे में एक आम आदमी की बड़ी आफ़त हो गई है। इतनी सारी दवाईयां –तीन चार इस तकलीफ़ के लिये, तीन चार उस के लिये ---अब कैसे कोई हिसाब रखे कि कौन सी कब खानी है, कितनी खानी है। मैं इस विषय के बारे में बहुत सोच विचार करने के बाद इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि यह सब हिसाब किताब रखना अगर नामुमकिन नहीं तो बेहद दुर्गम तो है ही। और ऊपर से अनपढ़ता, स्ट्रिपों के ऊपर नाम इंगलिश में लिखे रहते हैं, और कईं बार किसी दवाई का एक ब्रांड नहीं मिलता, अगली बार किसी और दवाई का पुराना ब्रांड नहीं मिलता ----बस, इस तरह की अनगिनत समस्यायें –देखने में छोटी दिखती हैं लेकिन जिसे उन्हें खाना होता है उन की हालत दयनीय होती है।
मैं डाक्टरों की उस श्रेणी से संबंधित रखता हूं कि जिन के साथ कोई भी किसी भी समय कितनी भी बेतकल्लुफी से बात करते हुये किसी तरह की डांट फटकार से नहीं डरता—क्योंकि मैं इतने वर्षों के बाद यही सीखा है कि मरीज से ऐसी डांट-डपट करने वाले बंदे से ज़्यादा ओछा कोई भी नहीं हो सकता। मेरे को कोई भी इन दवाईयों के बारे में कितने भी सवाल पूछे मैं कभी भी तंग नहीं आता ---- जिस का जो काम है, वही बात ही तो लोग पूछेंगे। वरना यह ज्ञान-विज्ञान किस काम का।
इस तरह के लोगों से जिन्हें इंगलिश नहीं आती, बेबस हैं, मुझे इन पर बहुत तरस आता है, तरस इसलिये नहीं कि इंगलिश नहीं आती , बल्कि यह सोच कर कि यह सब मेरे से पूछने के बाद भी ठीक दवाईयां ठीक समय पर कैसे लेंगे ? गलती होने का पूरा चांस रहता ही है।
आज भी एक अम्मा जी आईं --- चार-पांच पत्ते दिखा कर कहने लगीं कि बेटा, ज़रा बता दे कि किस तकलीफ़ के लिये कौन सी दवा लेनी है, दवाईयां वह कहीं और से लेकर आ रही थीं। बता तो मैंने अच्छे से दिया --- न ही मैंने जल्दबाजी ही की और न ही मैंने उस के ऊपर किसी तरह की नाराज़गी करने की हिमाकत ही की --- वह बीबी तो संतुष्ट हो गईं लेकिन मुझे बिल्कुल भी संतोष नहीं हुआ क्योंकि मैं इस बात से बिल्कुल भी कनविंस नहीं हूं कि उस ने सब कुछ अच्छे से समझ लिया होगा और सत्तर पार की उम्र में सब कुछ याद भी रखेगी। लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है कि इस के बारे में कितना भी सोच लें ----- अपने लोगों की अनपढ़ता का कसूर और ऊपर से दवाईयां बनाने वाले कंपनियों का इंगलिश-प्रेम। सुना तो भाई मैंने भी है कि इन दवाईयों के पत्तों पर हिंदी में भी नाम लिखे जाने ज़रूरी हो गये हैं, या खुदा जाने कब से ज़रूरी हो जाएंगे---पता नहीं, कुछ तो आ रहा था एक-दो साल पहले मीडिया में।
वैसे एक बात है घर में अगर आठ दस तरह की दवाईयां हों तो अकसर नान-मैडीकल लोगों में यह उत्सुकता सी रहती है कि यार, कहीं से यह पता लग जाए कि यह किस किस तकलीफ़ के लिये है तो बात बन जाए। ऐसे में मेरी मां जी तो पहले या कभी कभी अभी भी यह करती आई हैं कि वह दवाईयों के नाम एक काग़ज पर लिख कर मेरे से उन के इस्तेमाल के बारे में भी पूछ कर लिख लेती हैं।
और एक महाशय हैं जो मेरे पास अकसर कुछ महीनों बाद दस-बारह स्ट्रिप लेकर आते हैं साथ में स्टैप्लर ---मेरे से हर स्ट्रिप के बारे में पूछ कर एक छोटी सी स्लिप पर वह सूचना पंजाबी में लिख लेते हैं और फिर उसे उस पत्ते के साथ स्टेपल कर देते हैं। मुझे उन का यह आईडिया अच्छा लगा --- आज भी वो सुबह मेरे पास इस काम के लिये आये थे –तो मैंने सोचा था कि यह आईडिया मैं नेट पर लिखूंगा, सो मैंने अपना काम कर दिया। वैसे जाते जाते एक बार और भी है कि जब भी आप किसी स्ट्रिप से कोई टैबलेट अथवा कैप्सूल निकालें तो कुछ इस तरह का ध्यान रहे कि आखिरी टैबलेट तक उस पत्ते के पीछे लिखी एक्सपायरी की तारीख दिखती रहे ---ऐसा करना बिल्कुल संभव है – वरना मैं बहुत बार देखा है कि अभी स्ट्रिप में छः गोली होती हैं लेकिन उस के पीछे एक्सपॉयरी की तारीख न होने की वजह से वह कुछ दिनों बाद कचरेदान में ही जाती है।
कहां ये सब दवाईयों-वाईयों की बातें --- परमात्मा से प्रार्थना है कि सब तंदरूस्त रहें --- और हमेशा मस्त रहें। आमीन !!
जिस तरह से आज जीवनशैली से संबंधित तकलीफ़ें बढ़ गई हैं और जिस तरह से तरह तरह के रोगों के लिये नई नई दवाईयां आ गई हैं, ऐसे में एक आम आदमी की बड़ी आफ़त हो गई है। इतनी सारी दवाईयां –तीन चार इस तकलीफ़ के लिये, तीन चार उस के लिये ---अब कैसे कोई हिसाब रखे कि कौन सी कब खानी है, कितनी खानी है। मैं इस विषय के बारे में बहुत सोच विचार करने के बाद इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि यह सब हिसाब किताब रखना अगर नामुमकिन नहीं तो बेहद दुर्गम तो है ही। और ऊपर से अनपढ़ता, स्ट्रिपों के ऊपर नाम इंगलिश में लिखे रहते हैं, और कईं बार किसी दवाई का एक ब्रांड नहीं मिलता, अगली बार किसी और दवाई का पुराना ब्रांड नहीं मिलता ----बस, इस तरह की अनगिनत समस्यायें –देखने में छोटी दिखती हैं लेकिन जिसे उन्हें खाना होता है उन की हालत दयनीय होती है।
मैं डाक्टरों की उस श्रेणी से संबंधित रखता हूं कि जिन के साथ कोई भी किसी भी समय कितनी भी बेतकल्लुफी से बात करते हुये किसी तरह की डांट फटकार से नहीं डरता—क्योंकि मैं इतने वर्षों के बाद यही सीखा है कि मरीज से ऐसी डांट-डपट करने वाले बंदे से ज़्यादा ओछा कोई भी नहीं हो सकता। मेरे को कोई भी इन दवाईयों के बारे में कितने भी सवाल पूछे मैं कभी भी तंग नहीं आता ---- जिस का जो काम है, वही बात ही तो लोग पूछेंगे। वरना यह ज्ञान-विज्ञान किस काम का।
इस तरह के लोगों से जिन्हें इंगलिश नहीं आती, बेबस हैं, मुझे इन पर बहुत तरस आता है, तरस इसलिये नहीं कि इंगलिश नहीं आती , बल्कि यह सोच कर कि यह सब मेरे से पूछने के बाद भी ठीक दवाईयां ठीक समय पर कैसे लेंगे ? गलती होने का पूरा चांस रहता ही है।
आज भी एक अम्मा जी आईं --- चार-पांच पत्ते दिखा कर कहने लगीं कि बेटा, ज़रा बता दे कि किस तकलीफ़ के लिये कौन सी दवा लेनी है, दवाईयां वह कहीं और से लेकर आ रही थीं। बता तो मैंने अच्छे से दिया --- न ही मैंने जल्दबाजी ही की और न ही मैंने उस के ऊपर किसी तरह की नाराज़गी करने की हिमाकत ही की --- वह बीबी तो संतुष्ट हो गईं लेकिन मुझे बिल्कुल भी संतोष नहीं हुआ क्योंकि मैं इस बात से बिल्कुल भी कनविंस नहीं हूं कि उस ने सब कुछ अच्छे से समझ लिया होगा और सत्तर पार की उम्र में सब कुछ याद भी रखेगी। लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है कि इस के बारे में कितना भी सोच लें ----- अपने लोगों की अनपढ़ता का कसूर और ऊपर से दवाईयां बनाने वाले कंपनियों का इंगलिश-प्रेम। सुना तो भाई मैंने भी है कि इन दवाईयों के पत्तों पर हिंदी में भी नाम लिखे जाने ज़रूरी हो गये हैं, या खुदा जाने कब से ज़रूरी हो जाएंगे---पता नहीं, कुछ तो आ रहा था एक-दो साल पहले मीडिया में।
वैसे एक बात है घर में अगर आठ दस तरह की दवाईयां हों तो अकसर नान-मैडीकल लोगों में यह उत्सुकता सी रहती है कि यार, कहीं से यह पता लग जाए कि यह किस किस तकलीफ़ के लिये है तो बात बन जाए। ऐसे में मेरी मां जी तो पहले या कभी कभी अभी भी यह करती आई हैं कि वह दवाईयों के नाम एक काग़ज पर लिख कर मेरे से उन के इस्तेमाल के बारे में भी पूछ कर लिख लेती हैं।
और एक महाशय हैं जो मेरे पास अकसर कुछ महीनों बाद दस-बारह स्ट्रिप लेकर आते हैं साथ में स्टैप्लर ---मेरे से हर स्ट्रिप के बारे में पूछ कर एक छोटी सी स्लिप पर वह सूचना पंजाबी में लिख लेते हैं और फिर उसे उस पत्ते के साथ स्टेपल कर देते हैं। मुझे उन का यह आईडिया अच्छा लगा --- आज भी वो सुबह मेरे पास इस काम के लिये आये थे –तो मैंने सोचा था कि यह आईडिया मैं नेट पर लिखूंगा, सो मैंने अपना काम कर दिया। वैसे जाते जाते एक बार और भी है कि जब भी आप किसी स्ट्रिप से कोई टैबलेट अथवा कैप्सूल निकालें तो कुछ इस तरह का ध्यान रहे कि आखिरी टैबलेट तक उस पत्ते के पीछे लिखी एक्सपायरी की तारीख दिखती रहे ---ऐसा करना बिल्कुल संभव है – वरना मैं बहुत बार देखा है कि अभी स्ट्रिप में छः गोली होती हैं लेकिन उस के पीछे एक्सपॉयरी की तारीख न होने की वजह से वह कुछ दिनों बाद कचरेदान में ही जाती है।
कहां ये सब दवाईयों-वाईयों की बातें --- परमात्मा से प्रार्थना है कि सब तंदरूस्त रहें --- और हमेशा मस्त रहें। आमीन !!