आज मैं सोच कर हंस रहा हूं कि जब मैंने शूरू शूरू में नेट पर लिखना शुरू किया तो मेरे हैल्थ-टिप्स वाले ब्लॉंग पर कुछ इस तरह के शीर्षक मैंने अपनी पोस्टों को दिये ----
पहले तो मैं इन शीर्षकों आदि के बारे में जागरूक न था लेकिन उस वेब-राइटिंग ट्रेनिंग के दौरान यह सीखने का मौका मिला कि ये शीर्षक नेट पर लिखते समय कितने महत्वपूर्ण हैं ---अब कोई मेरे को कहें कि भलेमानुस, यार, तुम बताओ हम लोग जूस पीने जाएं या ताड़ी पीने ---तुम से मतलब ? और उस गन्ने के रस वाली पोस्ट पढ़ कर कोई चाहे तो मुझे यह ही कह दे --क्यों भाई तुम नहीं पीते ? और राजू वाली पोस्ट का हैडिंग देख कर कोई कहे ---यार, राजू मुसीबत में है तो हुआ करे, हमें क्यों यह सब सुना के परेशान कर रहा है?
तो मेरे ब्लॉग से ही बुरे शीर्षकों के उदाहरण आपने देख लिये। अब एक बात का जवाब दीजिये कि अगर इस तरह के शीर्षक आप को नेट पर इधर उधर यहां वहां बिखरे दिख जाएं तो क्या आप उन्हें पढ़ना चाहेंगे......शायद नहीं। क्योंकि न तो शीर्षक का कोई सिर है, न पैर है ---न ही उस से पता चल रहा है कि लेखक आखिर कहना क्या चाहता है ----ऐसे में क्यों आयेगा हमारे लेख कर कोई बंदा ?
एक बात जो बहुत ही अहम उस ट्रेनिंग के दौरान मैंने सीखी और समझी वह यह कि हम अपने लेखों पर दिये जाने वाले शीर्षकों को कभी भी हल्केपन से न लें. और विशेषकर जब इंटरनेट पर लिखे लेखों की बात चलती है तो इन का महत्व तो कहीं ज़्यादा है ----क्योंकि हमारे लेखों के ये शीर्षक नेट पर अलग अलग जगहों पर बिखरे पड़े हैं ----कुछ ब्लॉग एग्रीगेटरों के अलावा बहुत ही अन्य साइटें भी हैं जहां ये शीर्षक हमारी सोच के नमूने के रूप में सजे हैं। और बहुत हद तक तो ये शीर्षक ही तय करते हैं कि नेटयूज़र उस पर क्लिक कर के हमारे लेख तक पहुंचता है कि नहीं ? मुझे तो यह बात झट से समझ आ गई थी ---और उस ट्रेनिंग के बाद इस के बारे में थोड़ा बहुत सजग रहता हूं।
अब आप के मन में यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि आखिर पता तो चले कि बढ़िया सा शीर्षक लगाने की रैसिपी है क्या ? दोस्तो, वेबराइटिंग के इस पहलू को हमारे सूस्त दिमाग में डालने के लिये ट्रेनिग के दौरान पूरा एक दिन इन शीर्षकों को ही समर्पित था--हमें तरह तरह के लेख दिये गये ----सभी प्रतिभागियों से अलग अलग किस्से सुनने के बाद हम से पूछा गया कि अगर आपने इस घटना को कोई शीर्षक देना हो तो आप क्या हैडिंग देंगे। और इस तरह से काफी कुछ सीखने को मिला।
बस, एक बात का ज़रा करने का ज़रूरत है कि जब हम नेट पर कोई लेख प्रकाशित करते समय अपने लेख को कोई शीर्षक दें तो इतना तो कर ही करते हैं कि अपने आप से इतना पूछ लें कि अगर इस तरह का शीर्षक नेट पर कहीं पड़ा मिल जायेगा तो क्या मैं उस लेख को पढ़ना चाहूंगा ?
चूंकि पोस्ट लंबी हो गई है, इसलिये एक बढ़िया शीर्षक तैयार करने की आखिर रैसिपी क्या है, इस के लिये अगली पोस्ट में बात करते हैं। ठीक लग रहा है ना, कहीं बोर तो नहीं हो रहे, बता देना, भाईयो. कहीं बाद में पता चले कि मैं इन दांव-पचों के भाषण के चक्कर में आप का बढ़िया सा रविवार बेकार करता रहा !!