हाइपोथायरायडिज़्म एक ऐसी अवस्था है जिम में थायरायड पर्याप्त मात्रा में हारमोन्ज़ पैदा नहीं कर पाता। अगर इस अवस्था का इलाज नहीं किया जाये तो यह खतरनाक हो सकती है।
थायरायड की इस बीमारी की वजह से शरीर की सारी क्रियाएं एक दम सुस्त सी पड़ जाती हैं, इस बीमारी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –
लेकिन जो ढीठ किस्म की थायरायड की बीमारी होती है उसे ठीक होने में लंबा समय भी लग सकता है। कुछ अलग से केसो में कभी कभी मरीज़ को टी-3 हारमोन भी दिया जा सकता है और कईं बार तो टी-3 और टी-4 हारमोन का मिश्रण भी दिया जाता है।
हाइपोथायरायडिज्म के अधिकतर केसों में तो यह टी-4 टेबलेट की टेबलेट उम्र भर के लिये देनी पड़ सकती है। और अपने चिकित्सक से नियमित परामर्श करते रहना होता है ताकि दवाई की डोज़ को बढ़ाया-घटाया जा सके।
थायरायड की इस बीमारी की वजह से शरीर की सारी क्रियाएं एक दम सुस्त सी पड़ जाती हैं, इस बीमारी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –
थकावट
मानसिक अवसाद
सुस्ती छाई रहना
ठंड महसूस होना
शुष्क चमड़ी एवं बाल
कब्ज
मासिक-धर्म में अनियमितता
हाइपोथायरायडिज़्म निम्नलिखित अवस्थाओं की वजह से हो सकता है ---मानसिक अवसाद
सुस्ती छाई रहना
ठंड महसूस होना
शुष्क चमड़ी एवं बाल
कब्ज
मासिक-धर्म में अनियमितता
---थायरायड ग्लैंड की तकलीफ़ की वजह से
----कुछ ऐसी दवाईयां अथवा बीमारियां जिन में थायरायड की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है
----शरीर की पिचुटरी ग्रंथि अगर पर्याप्त मात्रा में थायरायड-स्टिमूलेटिंग हारमोन( Thyroid stimulating hormone) ही न बना पाये।
---कई हाईपरथायरायडिज़्म ( जिस अवस्था में थायरायड हारमोन अधिक मात्रा में पैदा होने लगते हैं) के इलाज के लिये जब रेडियोएक्टिव आयोडीन दी जाती है या सर्जरी की जाती है।
----कुछ ऐसी दवाईयां अथवा बीमारियां जिन में थायरायड की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है
----शरीर की पिचुटरी ग्रंथि अगर पर्याप्त मात्रा में थायरायड-स्टिमूलेटिंग हारमोन( Thyroid stimulating hormone) ही न बना पाये।
---कई हाईपरथायरायडिज़्म ( जिस अवस्था में थायरायड हारमोन अधिक मात्रा में पैदा होने लगते हैं) के इलाज के लिये जब रेडियोएक्टिव आयोडीन दी जाती है या सर्जरी की जाती है।
इलाज –
हारपोथायरायडिज़्म का इलाज शरीर में उपर्युक्त मात्रा में थायरायड हारमोन पहुंचा कर किया जाता है। इस के लिये मरीज़ को थायरायड हारमोन थाईरोक्सिन ( टी- 4 अथवा लिवोथायरोक्सिन) की एक टेबलेट दी जाती है। इस टेबलेट को शूरू करने के दो हफ्तों के भीतर ही मरीज़ को आराम महसूस होने लगता है। लेकिन जो ढीठ किस्म की थायरायड की बीमारी होती है उसे ठीक होने में लंबा समय भी लग सकता है। कुछ अलग से केसो में कभी कभी मरीज़ को टी-3 हारमोन भी दिया जा सकता है और कईं बार तो टी-3 और टी-4 हारमोन का मिश्रण भी दिया जाता है।
हाइपोथायरायडिज्म के अधिकतर केसों में तो यह टी-4 टेबलेट की टेबलेट उम्र भर के लिये देनी पड़ सकती है। और अपने चिकित्सक से नियमित परामर्श करते रहना होता है ताकि दवाई की डोज़ को बढ़ाया-घटाया जा सके।