डायबिटिज़ की पूर्व-अवस्था है.....प्री-डायबिटिज़ -----
अकसर देखा गया है कि लोग अपने आप कभी-कभार शूगर की जांच करवा लेते हैं और इस की रिपोर्ट ठीक होने पर आश्वस्त से हो कर अपने पुराने खाने-पीने में मशगूल हो जाते हैं। जब हम लोग छोटे छोटे थे तो सुनते थे कि यह शूगर की जांच यूरिन से ही होती है। लेकिन बहुत सालों के बाद पता चला कि इस की जांच ब्लड-टैस्ट से भी होती है।
मैं अकसर देखता हूं कि लोग कुछ वर्षों बाद अपनी ब्लड-शूगर की जांच करवा लेते हैं और रिपोर्ट ठीक होने पर इत्मीनान कर लेते हैं कि सब कुछ ठीक ठाक है।
मैं अकसर सोचा करता था कि यह बार-बार ब्लड-शूगर टैस्ट करवाई तो जाती है और अगर रिपोर्ट ठीक आती है तो बंदा खाने-पीने में आगे से भी एहतियात एवं कुछ परहेज़ करने की बजाये और भी बेफिक्र सा हो जाता है कि चलो, मैं तो अब सब कुछ खा-पी सकता हूं क्योंकि मेरी ब्लड-शूगर रिपोर्ट तो ठीक ही है। ऐसा देख कर यही लगता है कि इन लोगों के द्वारा तो बस ब्लड-शूगर का टैस्ट गड़बड़ आने की इंतज़ार ही हो रही है।
लेकिन अब यह सोच बदलने का टाइम आ गया है । विश्व भर के सभी मैडीकल एक्सपर्टज़ के अनुसार डायबिटिज़ से पहले एक अवस्था प्री-डायबिटिज़ भी होती है। प्री-डायबिटिज़ का मतलब है कि किसी व्यक्ति में ब्लड-शूगर का स्तर सामान्य से अधिक तो है लेकिन इतना भी बढ़ा हुया नहीं है कि उसे डायबिटिज़ का श्रेणी में शामिल किया जाये लेकिन फिर भी ये प्री-डायबिटिज़ वाले लोगों में टाइप-2 डायबिटिज़, हार्ट-डिसीज़ और दिमाग की नस फटने का रिस्क बढ़ जाता है। लेकिन इत्मीनान की बात यही है कि जीवन-शैली में किये गये परिवर्तन जैसे कि खान-पान में सावधानी एवं शारीरिक परिश्रम करने से प्री-डायबिटिज़ वाले व्यक्तियों को भी या तो डायबिटीज़ होने से ही बचाया जा सकता है, अथवा डायबिटीज़ डिवेल्प होने को एवं उस से पैदा होने वाली जटिलताओं को काफी समय तक टाला जा सकता है।
Pre-diabetes is a condition in which blood glucose levels are higher than normal but not high enough to be classified as diabetes – but these individuals are at an increased risk for developing type2 diabetes, heart disease and stroke. However, life-style changes such as diet and exercise can prevent or delay development of diabetes and its complications.
तो अब अगला प्रश्न यह है कि इस प्री-डायबिटिज़ का पता कैसे चले ? – इस प्री-डायबिटिज़ का पता जिन टैस्टों के द्वारा चलता है उन्हें कहते हैं ----Fasting Plasma Glucose( Fasting blood sugar) ----फास्टिंग ब्लड-शूगर टैस्ट तथा Oral glucose tolerance test ---ओरल ग्लूकोज़ टालरैंस टैस्ट।
फास्टिंग ब्लड-शूगर चैक करने से पहले जैसा कि आप जानते ही हैं कि 12 से 14 घंटे तक कुछ भी नहीं खाया-पिया नहीं जाता, और इस की नार्मल रेंज है 100 मिलीलिटर में 100मिलीग्राम जिसे मैडीकल भाषा में 100mg% ( one hundred milligram percent ) बोल दिया जाता है और लिखने में 100mg/dl लिख दिया जाता है ---dl का मतलब है डैकालिटर यानि 100मिलीलिटर। अगर इस फास्टिंग ब्लड शूगर की रीडिंग 100 से 125 के बीच आती है तो यह प्री-डायबिटीज़ की अवस्था कहलाती है( इसे इंपेयरड फास्टिंग ग्लूकोज़ भी कह दिया जाता है यानि कि फास्टिंग ब्लड-शूगर टैस्ट में गड़बड़ी है) और 126mg% से ज़्यादा की रीडिंग का मतलब है डायबिटिज़।
अब आते हैं दूसरे टैस्ट की तरफ़ --- ओरल ग्लुकोज़ टालरैंस टैस्ट ----Oral glucose tolerance test - इस टैस्ट में व्यक्ति का ब्लड-शूगर रात भर से कुछ भी बिना कुछ खाये पिये तो किया ही जाता है ( overnight fast) और 75 ग्राम ग्लूकोज़ को पानी में घोल कर पिलाने के दो घंटे के बाद भी ब्लड-शूगर टैस्ट की जाती है। इस की रीडिंग अगर 140mg% तक आती है तो यह टैस्ट नार्मल माना जाता है , लेकिन 140 से 199 mg% की वैल्यू प्री-डायबिटिज़ की अवस्था की तरफ़ इशारा करती है, इसे इंपेयरड ग्लूकोज़ टालरैंस कहा जाता है --- और इस की वैल्यू अगर 200मिलीग्राम से ऊपर हो तो यह डायबिटिज़ ही होती है।
अब बहुत ही अहम् बात यह है कि अगर किसी को प्री-डायबिटिज़ का पता चला है तो यह एक तरह से एक चेतावनी है कि संभल जाइये-----क्योंकि इस अवस्था में तो परहेज़ करने से, लाइफ-स्टाइल में परिवर्तन करने से, और शारीरिक परिश्रम करने से बहुत ही परेशानियों से बचा जा सकता है, यह भी संभव है कि ये सब सावधानियां ले लेने से यह प्री-डायबिटीज़ अवस्था कभी भी डायबिटिज़ की तरफ़ बढ़े ही नहीं और शायद इन सब सावधानियों को वजह से डायबिटीज़ की डिवेलपमैंट लंबे अरसे के लिये टल ही जाये ---और इसी तरह डायबिटीज़ रोग की जटिलताओं ( complications) से भी लंबे समय के लिये बचा जा सकता है।
आशा है कि प्री-डायबिटिज़ का फंडा आप समझ गये होंगे और आगे से इसे कोई थ्यूरैटिकल कंसैप्ट ही नहीं समझेंगे।