आप को अकसर यह सोच कर हैरानगी नहीं होती कि जब कभी रोत को सोने से पहले हम यह निश्चय कर लेते हैं कि कल तो सुबह पांच बजे उठना ही है, नहीं तो छःबजे वाली अपनी गाड़ी तो भई छूट जायेगी। और अगले दिन सुबह अकसर आप क्या उठ पाते हैं.....अगर आप वैसे रोज़ाना सात बजे भी उठते हैं तो उस दिन आप यह देख कर बहुत ही हैरान हो जाते हैं कि बिना किसी अलार्म के ही आप पौने-पांच बजे उठ कर बैठ जाते हैं। यह सब कुछ बायोलाजिक क्लाक ही चमत्कार है जो हम सब के अंदर फिक्स है।
तो फिर हम सब के बच्चे सुबह सुबह इतना नाटक क्योंकरते हैं ,क्योंकि हमारे लाड-प्यार की वजह से उन की यह बायोलाजिक क्लाक ठीक से चल ही नहीं रही है। और इस के लिए हम ही दोषी हैं , और कोई नहीं।
आज कल के अधिकांश बच्चों को पता है कि उस की मम्मी या पापा ही उस को सुबह समय पर जगायेंगे। इसलिए वह बेपरवाह हो कर सोया रहता है। इस लिए ही लगभग सभी घरों में रोज सुबह सवेरे नाटक होते हैं क्योंकि बच्चा जागा हुया होते भी उठना नहीं चाहता। वह मस्ती से पड़ा रहता है और स्कूल की बस आने से 15-20 मिनट पहले उठता है ...वह भी लाडले का मां-बाप द्वारा तीन-चार बार झकझोरने के बाद ही....और उस के बाद का सीन देखने वाला होता है....भाग भाग के टॉयलेट....पेट साफ़ हो या नहीं , कोई फर्क नहीं पड़ता, बस 10सैकिंड में ब्रुश और अगले एक मिनट में नहाना -धोना निपट जाता है । कोई पता नहीं बूट पालिश हैं या नहीं.....क्या फर्क पड़ता है....उधर से बैग से कल वाला टिफिन निकालने की आवाज़े आनी शुरू हो जाती हैं. इतने में बच्चे का सिर घूम रहा है कि यार, अब टॉई किस से बंधवाये....ओहो, अभी तो स्कूल के कैलेंड़र पर साइन भी करवाने हैं. पता नहीं कल शाम को जो ड्राइंग -शीट्स मंगवाईं थीं, इस काम करने वाली ने कहां रख छोड़ी हैं......ओहो, रूमाल नहीं मिल रहा......यह क्या, केबल से किसी बढ़िया से गाने की आवाज़ आ रही है......बस ऐसे और भी कईं चीज़े उन 15 मिनटों में एक साथ हो रही होती हैं और यह सब इतनी तेज़ी से हो रहा होता है कि चार्ली चैप्लिन की फिल्म की याद ताज़ा हो आती है। अरे अभी तो उस दूध के गिलास को भी गटकना है....इस समय सारे जागे हुये हैं इसलिए सिंक में भी नहीं फैंक सकता । अरे यह क्या, कंघी ठीक से नहीं हो रही.....तुम अब इस कंघी का पीछा छोड़ो, आज तो तुम्हारी बस समझ ले कि छूट ही जायेगी। और होता भी अकसर ऐसा ही है .....जैसा कि आज मेरे छोटे बेटे के साथ हुया...बस छूटने के कारण सारा दिन घर में ही बैठा रहा।
लेकिन इस में दोष किस का है...मैं तो मानता हूं कि इस में सब से ज़्यादा दोष हम मां-बाप का ही है, एक तो हम अपने बच्चों की दिनचर्या ठीक तरह से डिवेल्प नहीं कर पाते और ऊपर से सुबह उन को यह उठाने की जि़म्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं। सारी समस्या की जड़ यही है।
तो क्या बच्चों की छुट्टी करवा दें.....हां, हां ,ज़रूर करवा दें....क्योंकि अगर उसे आपने प्रैक्टीकल पाठ पढ़ाना है तो उसे यह छुट्टी करवानी ही होगी। अच्छा आप यही डर रहे हैं ना कि ऐसे तो पता नहीं उस की कितनी छुट्टियां हो जायेंगी...तो होने दीजिए...यकीन मानिए एक-दो दिन के बाद वह रोज़ाना सुबह पांच बजे उठ कर बैठ जाया करेगा...चाहे उसे उस के लिए उसे रात को साढ़े नौ बजे ही सोना पड़े। बच्चे भी कहां घर में रहना चाहते हैं....।
लेकिन अगर आप द्वारा उस को प्रैक्टीकल लैसन देने के बावजूद भी वह सुबह आप के उठाने के बाद ही उठता है तो आप को आप को उस की स्कूल काऊंस्लर से बात करनी होगी...और अगर उस को कोई शारीरिक समस्या है तो आप को किसी पैडीट्रिशियन को दिखाना ही होगा।
इस को आप कभी भी इगनोर न करें...और बच्चों में अपने आप उठने की आदत डालें। आप अपना समय याद करें...क्या आप में से किसी को आप के बाबूजी या मां स्कूल जाने के लिए उठाते थे....नहीं ना, मुझे भी कभी किसी ने नहीं जगाया...स्कूल जाने का चाव ही इतना ज़्यादा हुया करता था कि सुबह सवेरे उठ कर बैठ जाया करते थे। इसलिए मैंने अपने बच्चों को भी कभी सुबह नहीं जगाया......लेकिन मेरी बीवी यह काम
बेहद निष्ठा से करती हैं।मुझे ऐसे सारे अभिभावकों से ( मेरी बीवी सहित) बेहद शिकायत है कि बच्चों को अपने पैरों पर खुद खड़ा होने का मौका तो दें।
अलार्म की मदद-----मैं तो भई इस का भी घोर-विरोधी हूं....क्या है कि उस से सब की नींद खराब हो जाती है। उस का प्रयोग भी कभी कभार या परीक्षाओं के दिनों में ही मुझे तो ठीक लगता है..............वैसे आप का क्या ख्याल है...और हां, अकसर देखा यह भी गया है कि बड़े उत्साह से अलार्म लगाने वाला तो लिहाफ में मज़े से खर्राटे भर रहा है( जिसे देख देख कर गुस्सा आता है) और निर्दोष बंदा रात को साढ़े तीन बजे उठ कर बैठ गया है और सुबह होने का इंतज़ार कर रहा है।