रविवार, 13 जनवरी 2008
हैल्थ-न्यूज़ अपडेट......1.
गुर्दे की बीमारी के बढ़ते केस लेकिन अधिकांश रोगी अनजान –
अमेरिका की नेशनल इंस्टीच्यूट आफ हैल्थ के एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि अमेरिका में गुर्दे कीलम्बे समय तक चलने वाली बीमारी (क्रानिक केस) के केस तेज़ी से बढ़ रहे हैं लेकिन इस से ग्रस्त अधिकांश लोगोंको इस का आभास तक नहीं है। यही वजह है कि गुर्दे को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होने अथवा गुर्दा फेल होने कीरोकथाम के उपाय समय रहते ठीक से नहीं हो पाते जिस से मरीज़ों को डायलासिस या गुर्दे के प्रत्यारोपण (किडनीट्रांस्प्लांट) करवाने को विवश होना पड़ता है।
इस अध्ययन के अनुसार अमेरिका में 260लाख लोग (अमेरिका की जनसंख्या का 13प्रतिशत हिस्सा) गुर्दे कीजटिल बीमारी से ग्रस्त हैं। मधुमेह, उच्च रक्तचाप , मोटापा इत्यादि इस के लिए ज़िम्मेदार हैं। गुर्दे की बीमारी कीमुख्य त्रासदी ही यही है कि यह बहुत उग्र रूप धारण करने तक भी शांत ही रहती है। लेकिन अगर हमें इस कासमय रहते पता चल जाए तो गुर्दे को फेल होने से बचाने के लिए काफी कुछ किया जा सकता है। इसलिए जिसे भीशुगर रोग (डायबिटिज़), उच्च रक्तचाप या परिवार में गुर्दे की बीमारी की हिस्ट्री है तो उसे नियमित रूप से गुर्दे कीकार्यप्रणाली को चैक करने हेतु रक्त की जांच (ब्लड यूरिया, क्रियट्नीन आदि) एवं मूत्र परीक्षण नियमित तौर परकरवाते रहना चाहिए।
बहुत से टी.बी रोगी एच.आई.व्ही से भी ग्रस्त---- एक रिपोर्ट
अमेरिका के लगभग एक तिहाई टीबी के मरीज यह नहीं जानते कि क्या वे एचआईव्ही संक्रमण से भी ग्रस्त हैं किनहीं ??- यह तथ्य इस बात को ही रेखांकित करता है कि इन मरीज़ों का एच.आई.व्ही टैस्ट करवाने हेतु ठोस कदमउठाने की जरूरत है। विश्व भर में एच.आई.व्ही से ग्रस्त रोगियों की मृत्यु का का एक अहम् कारण बेकाबू हुया टीबीरोग ही है।
अमेरिका के सैंटर फार डिसीज़ कंट्रोल के अनुसार 2005 में अमेरिका में सभी सक्रिय टीबी के मरीज़ों में से 9 प्रतिशत को एच.आई.व्ही संक्रमण से भी ग्रस्त पाया गया था। लेकिन 31प्रतिशत टी.बी मरीज़ों में तो इस का पतानहीं चल पाया कि उन्हें एच.आई.व्ही संक्रमण है या नहीं क्योंकि ये लोग वो लोग थे जिन्होंने या तो स्वयं यह टैस्टकरवाने से मना ही कर दिया अथवा इन को टैस्ट करवाने की सलाह ही नहीं दी गई। अब यह सिद्ध हो चुका है किएचआईव्ही संक्रमण टी बी रोग को बढ़ा देता है और टी.बी रोग एचआईव्ही संक्रमण को बेकाबू कर देता है। अमेरिका के सेंटर फार डिसीज़ कंट्रोल ने सभी टीबी मरीज़ों की रूटीन एचआईव्ही टैस्टिंग की सिफारिश की है।
यह पोस्ट लिखते लिखते यही ध्यान आ रहा है कि अगर अमेरिका में यह स्थिति है तो इस देश में क्या हालातहोंगे----हमारी तो भई वही बात लगती है कि जैसै कबूतर अपनी आंखें बंद कर के यही सोच पाल लेता है कि अबबिल्ली का कोई रिस्क नहीं है !!
मोटापा कम करने वाली दवा पर लगा प्रश्न-चिन्ह----
मोटापा कम करने वाली दवाई लेने की तैयारी करने वालों के लिए एक बुरी खबर यह है कि एक ऐसी ही दवाईरिमोनाबेंट को ले रहे रोगियों में डिप्रेशन (अवसाद) एवं अत्यधिक तनावग्रस्त रहने जैसे मानसिक विकार उत्पन्नहोने की आशंका दोगुनी बताई गई है। चिकित्सा वैज्ञानिक वैसे तो पहले से ही इस दवाई को आत्महत्या के विचारपैदा करने के साथ लिंक कर चुके हैं। ब्रिटिश मैडीकल जर्नल के एक अध्ययन के अनुसार इस दवाई के उपयोग सेमोटापे में कुछ खास कमी आती भी नहीं है और ज्यादातर लोगों का मोटापा बना ही रहता है।
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