नहीं साहब, आप ने लगता है गलत अंदाज़ा लगा लिया - मुझे लिफ्ट मांगने वालों से तो न कभी कोई शिकायत है और न ही कभी ज़िंदगी में होगी। दोस्तो, मेरे तो शिकायत के पात्र हैं मेरे वह बंधु लोग जो लिफ्ट वाले की विनम्रता को नज़र-अंदाज़ कर के बिना परवाह किए आगे बढ़ जाते हैं। शायद इस का अंदाज़ा वह बंदा कभी लगा ही नहीं सकता जिस ने कभी खुद लिफ्ट न मांगी हो। दोस्तो, यह ब्लाग भी गज़ब की चीज़ है यारो, पता नहीं अपने बारे में कोई भी अच्छी बात कहते हुए अच्छी खासी हिचकिचाहट होती है। यह बात होने नहीं चाहिए, जाते जाते जायेगी। लेकिन सच्चाई ब्यां करना भी अपना फर्ज़ ही समझता हूं ----तो, दोस्तो जब भी मैं स्कूटर, मोटर-साइकल पर जा रहा होता हूं तो मैंने आज तक कभी भी किसी खुदा के बंदे को लिफ्ट देने से इंकार न ही तो किया है और न ही कभी करूंगा। यार, हम केवल आम बंदे के ऊपर ही शक करते जाएंगे--पता नहीं बंदा कैसा होगा, क्या हो जाएगा। क्या हमें यह तो नहीं लगता कि यह बंदा शायद कोई आत्मघाती हमलावर ही हो....आप भी इत्मीनान रखिए, दोस्तो, कुछ न होगा----कुछ भी मांगना (फिर वह चाहे लिफ्ट ही क्यों न हो ) क्या आप को नहीं लगता अच्छा खासा मुश्किल काम है, तो फिर उस खड़े बंदे के स्वाभिमान को एक छोटी सी बात के लिए क्यों आहत करें। किसी स्कूल के बाहर खड़े बच्चे में अथवा किसी चौराहे पर लिफ्ट मांग रहे स्टूडैंट में हमें अपने बेटे एवं छोटे भाई की तसवीर क्यों नहीं दिखती। हर बात के पीछे कोई तो कारण होता है, तो वह कारण भी आप से बांटना जरूरी हो गया है। दोस्तो, जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था तो एक-दो बार शिखर-दोपहरी में हमारे ही स्कूल एक मास्टर जी ने बीच रास्ते में अपने आप ही अपने साइकिल पर मुझे बुला कर लिफ्ट दी थी---मुझे बहुत अच्छा लगा था। हमारे स्कूल के यह मास्टर जी हमारे मोहल्ले में ही रहते थे----बस, बचपन की इन छोटी छोटी बातों से ही पता नहीं कितनी मजबूत मंज़िलों की नींवे पड़ जाती हैं, दोस्तो।
ले दे कर फक्त एक नज़र ही तो हमारे पास,
क्यों देखे दुनिया को किसी और की नज़र से ..
ले दे कर फक्त एक नज़र ही तो हमारे पास,
क्यों देखे दुनिया को किसी और की नज़र से ..