आज सुबह जब नवभारत टाइम्स पेपर देखा तो उस में किंग जार्ज मैडीकल यूनिवर्सिटी के डाक्टरों द्वारा किया गया एक शोध पढ़ने को मिला. पढ़ कर अच्छा लगा कि किस तरह से ये चिकित्सा संस्थान जनमानस में व्याप्त विभिन्न भ्रांतियों का भंडा-फोड़ करने में लगे हैं......
ऐसा है ना जब बिना रिसर्च किए कोई इस तरह की दवाईयों के बारे में लिखेगा, तो उस पर ही उंगलियां उठनी शुरू हो जाती हैं लेकिन केजीएमयू जैसी संस्था में अगर इस तरह की रिसर्च हुई और उस का नतीजा यही निकाल की इस तरह की दवाईयां सब बकवास हैं, कुछ होता वोता नहीं इन से.......अगर इस तरह की स्टडीज़ को हम लोग जनमानस तक पहुंचा दें तो बात बनती दिखती है।
आशीष तिवारी की यह रिपोर्ट देख कर अच्छा इसलिए भी लगा क्योंकि बड़ी सरल सटीक भाषा में इन्होंने रिपोर्ट को लिखा है।
वैसे मुझे इस खबर को देखते ही ध्यान आया कि मैंने भी इस विषय पर एक लेख लगभग एक-डेढ़ वर्ष पहले लिखा तो था....सेहतनामा को खंगाला तो दिख ही गया, इसका लिंक यहां चसपा कर रहा हूं। देखिएगा, इस लिंक पर क्लिक करिए................. अच्छे ग्रेड पाने के लिए इस्तेमाल हो रही दवाईयां।
और अगर इतना सब कुछ पढ़ने पर भी बात बनती न दिखे तो हाथ कंगन को आरसी क्या, गूगल कर लें... लिखिए .. memory plus
मैं यह सोच रहा हूं कि इस तरह की खबरें, इस तरह के लेख हम लोगों को अपनी ओपीडी में डिस्पले कर देने चाहिए...अगर कुछ लोग भी इन्हें पढ़ कर इन बेकार के टोटकों से बच पाएं तो हो गई अपनी मेहनत सफल।
ध्यान तो यह भी आया कि यार अगर याददाश्त इस तरह से बढ़ती तो फिर ये भी देश के चुनिंदा लोगों की ही बढ़ पाती ---वही लोग इन चीज़ों का स्टॉक भी कर लेते और पानी की जगह शायद इन्हें ही पी लेते. लेकिन दोस्त, ऐसे नहीं होता......................थैंक गॉड सभी अत्यावश्यक वस्तुएं प्रकृति ने अपने सीधे कंट्रोल में ही रखी हुई हैं.............