गुड़ खाने से जुड़ी मेरी सब से पुरानी याद वह है जब मैं नया नया स्कूल जाने लगा….बिना किसी क्लास के …(आज कल तो बाज़ारवाद ने इसे कईं नाम दे दिए हैं…प्ले-स्कूल, प्री-नर्सरी, प्री-के.जी आदि) …जिसे कहा जाता था कि नियाना (बच्चा) स्कूल जा के बैठने का वल (ढंग) सीख रहा है ….और मुझे याद है उन दिनों मुझे एक पीतल की छोटी सी चिब्बी सी हो चुकी डिब्बी में एक परांठा दिया जाता था जिस के अंदर मां गुड़ की एक डली दबा दिया करती थी….और पिता जी जाते वक्त मेेरे नन्हे से हाथ में एक दस पैसे का पीतल वाला बड़ा सा सिक्का रख देते ....
पढ़ाई-वढ़ाई, बैठने बिठाने का सलीका तो क्या सीखना था….बस, एक काम होता था कि वहां जाते ही उस डिब्बे में से उस परांठे और गुड़ का लुत्फ़ उठा कर घर लौट आना है ….खुशग़वार दौर की प्यारी यादें…
जब हम छोटे थे तो यह स्नैक्स वैक्स का कोई चक्कर नहीं होता था …बीच बीच में कच्चे चावल चीनी के साथ खा लेने और गुड़ की एक डली खा लेना …..यह भी हमारा ऐश करने का ढंग था…
गुड़ के मीठे चावल खाना, मक्की की रोटी के ऊपर देसी घी-गुड़ रख के खाना, कईं बार आम रोटी को भी ऐसे ही खाना, गुड़ से बनी शक्कर को भी ऐसे ही खाना……रोटी के साथ देसी घी और गुड़ खाना तो लगभग रोज़ होता था …खास कर जाड़े के मौसम में।
वैसे अभी मुझे लिखते लिखते याद आ रहा है कि यह गुड़-वुड की ऐश करने के दिन जाड़े के मौसम के ही होते थे …क्योंकि जाडे़ के दिनों में ही बाज़ार में नया गुड़ बिकने लगता था ….मुझे अच्छे से याद गर्मी के मौसम में हमें वैसे भी गुड़ खाना अच्छा नहीं लगता था …क्योंकि उस मौसम में पुराना सा अजीब सा थोड़ा थोड़ा अजीब सा सख्त और थोड़ा काले से रंग का गुड़ बाज़ार में बिकता था …इसलिए उस गर्मी के मौसम में घरों में गुड़ बहुत कम लाया जाता था …..सर्दियों का इंतज़ार रहता था ….
गुड़ की शक्कर को चावल में डाल कर खाने का भी मैं बहुत शौकीन रहा हूं …देशी घी के साथ ….जौ का सत्तू पीना हो तो भी पहले गुड़ को पानी में घोला जाता था ….भुने हुए चने हों या हो मूंगफली …उस दौर के शुरू हुए अभी तक यह सब ऐसे ही चलता रहा है ….दरअसल उत्तर भारत में ऐसा ही चलन है ..वहां पर मूंगफली या तो रेवड़ी के साथ (रेवडी़ जो गुड़ और तिल से बनती है …कईं बार चीनी से भी बनती है, लेकिन उस में वो मज़ा कहां)....और सर्दी के मौसम में गुड़ से तैयार तरह तरह की गज्जक (जिसे कईं जगह पर चिक्की या पट्टी भी कहते हैं).....यह भी खूब खाई जाती है …
जाडे़ के मौसम में तो गुड़ लोग किसी न किसी रूप में खा ही लेते हैं ….और कुछ नहीं तो खाने के बाद थोड़ा सा खा लेना …क्योंकि यह बात लोगों के दिलोदिमाग में घर कर चुकी है कि इस से खाना अच्छा हज़्म हो जाता है …..
सर्दी के दिनों में गुड़ दुकानों में ही नहीं बिकता…बाहर गली-मोहल्लों में घोड़ा-गाड़ियों (पंजाबी में इन को को गड्डे कहते हैं) में भी गुड़ के ढेर रख कर गुड़ बिक रहा होता है ….तरह तरह का गुड़ ….सौंठ वाला गुड़….सौंफ वाला गुड़ भी बिकता है जिसमें नारियल के टुकड़े भी पड़े रहते हैं…..ये सब सर्दियों में ही दिखता है …और लोग घरों में भी तैयार करवाते थे …मुझे याद है मैंने कईं रिश्तेदारों के घर देखा कि वे इस तरह का गुड़ तैयार करवा कर बडे़ से डिब्बे में (पीपे) में स्टोर कर रखते थे …जाड़े के मौसम तक चलने के लिए ….हां, चलने से भी बात याद आ गई …गुज़रे दौर के लोगों को इस बात का भी पक्का भरोसा था कि इस तरह के गुड़ से सर्दी दूर भाग जाती है, और सभी जोड़ों (joints कहते हैं इनको इंगलिश में) में गर्मी का अहसास बना रहता है …
गुड़ का एक और इस्तेमाल बहुत होता था …जब कभी ज़्यादा जाड़ा होता था …गुड़ को देशी घी में पिघला कर उस में सौंठ और बादाम (अधिकतर तो वही मूंगफली ही हुआ करती थी…झूठ लिखने से मुझे कौन सा अवार्ड मिल जाना है, मेरा सिर ही भारी हो जाएगा) डाल कर खाया करते थे ….
मुझे लगता है मैं गुड़ के बारे में जितना लिखना था, लिख दिया कि कैसे यह हम लोगों की ज़िंदगी में मिठास घोल रहा है …..हां, हमारे यहां कभी कभी गुड़ की चाय भी बनती थी …सब दीवाने थे उस चाय के ….जब हम नानी के पास अंबाला जाते थे वह तो सब से ज़्यादा दीवानी थी….लेकिन फिर कुछ समय के बाद गुड़ वाली चाय को ऐसी नज़र लगी कि गुड़ वाली चाय का स्वाद अजीब सा हो गया….बिल्कुल बेकार…..और इस का कारण यही होगा कि उस में तरह तरह के मसालों (कैमीकल्स) की मिलावट शुरू हो गई होगी….
हां, गुड़ की मिलावट से एक बात का और ख्याल आ गया ….कि जब हम 20 बरस के करीब उम्र के हुए …आज से 40 साल पीछे देखता हूं तो यह बात होने लगी थी कि मसाले वाला गुड़ जो मिलता है वह सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, न ही खाने में स्वाद होता है….इसलिए गुड़ किसी विश्वसनीय दुकान से ही लेते थे ….ये वे दुकानदार से जो ग्राहक को मना कर देते थे कि अभी नया गुड़ नहीं आया, पिछला गुड़ पुराना है ….(नया गुड़ जाड़े के दिनों के आस पास ही आता था)...
मैं अकसर अपने ब्लॉग में लोगों को प्रेरित किया करता हूं कि जो भी मन में विचार आएं उन को लिखते रहा करें….मुझे नहीं लगता कि आज कोई किसी की बात सुनने को तैयार है …खैर, लिखने का फायदा यह तो है कि लिखते लिखते कुछ ऐसे विचार आ जाते हैं जिन के बारे में कोई चित्त-चेता भी नहीं होता …जैसे मुझे आज लिखते लिखते यह ख्याल आया कि पहले तो बढ़िया गुड़ हम लोगों को जाड़े के दिनों में ही मिलता था …गुड़ ही नहीं, गुड़ वाली शक्कर भी जाड़े के तीन-चार महीनों में ही बिकती थी …और उस के बाद लोग खरीदते भी नहीं थे।
लेकिन अब तो बंबई जैसे महानगरों में गुड़ तो सारा साल बिकता है। कभी भी कहीं से भी कितना भी खरीद लो।
मौसमी सब्ज़ियों का भी तो यही हाल है …जो सब्ज़ियां, या फल साल में दो तीन महीने दिखते थे, वे अब सारा साल बिकते हैं….कोल्ड-स्टोर वाली बात तो ठीक है, लेकिन मुझे नहीं पता कि कितना कोल्ड-स्टोर से आती हैंं और कितनी अप्राकृतिक ढंग से कीटनाशकों के बलबूते पर पैदा की जाती हैं ….तैयार की जाती है …प्रोड्यूस की जाती हैं…जो मौसमी सब्ज़ियों का स्वाद जब वे साल के कुछ महीनों तक मिलती थीं, वह स्वाद अब बिल्कुल नहीं है, फोकापन है ….नाम है बस। लेकिन यह बात तो वही लोग तसदीक कर सकते हैं जिन्होंने वह स्वर्णिम दौर देखा है, जीया है …..आज की पीढ़ी तो सब्जी खाती नहीं, उन्हें क्या पता कि कोल्ड-स्टोर की है, बेमौसमी हैं या अप्राकृतिक ढंग से तैयार की गई हैं….
मैं गुड़ का इतना दीवाना रहा हूं …लगभग रोज़ किसी न किसी बहाने गुड़ खाना अभी हाल तक भी चालू था…और नहीं तो भुनी हुई मूंगफली के साथ, और रोटी के ऊपर रख कर खुशी खुशी खाने का सिलसिला चल रहा था ……..
लेकिन आज तीन महीने और तीन दिन हो गए हैं, मैंने गुड़ को हाथ नहीं लगाया….उस तरफ़ देखा भी नहीं ….
ऐसा क्या हो गया, आप भी जानना चाहेंगे…..
हुआ यूं कि 17 मई 2025 के दिन सोशल मीडिया के पार्क में घूमते हुए मुझे एक वीडियो मिल गया …..उसने मेरी आंखें खोल दी। अब तक मैं समझता था कि गुड की मिलावट यहां तक होती होगी कि उस में कुछ कैमीकल्स (जैसे मीठा सोडा, बेकिंग सोड़ा आदि) डाल देते होंगे उस को गोरा करने के लिए (जिस की वजह से कईं बार गुड़ खाने के बाद एसिडिटी जैसी फीलिंग होने लगती थी)….लेकिन इस व्हीडियो ने जैसे मेरी आंखें पूरी खोल दीं….मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी ….कि इस तरह से बेकार, सड़े- हुए, फंगल से ग्रस्त गन्ने, कैमीकल और चीनी का इस्तेमाल किया जा सकता है ..गुड़ बनाने में …..इस व्हीडियो को मैंने नीचे एम्बेड कर रहा हूं, आप भी देखिए ….इसे देखने के बाद मेरी तो हिम्मत न हुई फिर से गुड़ की तरफ देखने की भी ….और मैं यह सोच कर और भी हैरान परेशान हूं कि अगर पंजाब जैसे खाते-पीते प्रांत में यह सब हो सकता है तो फिर दूसरी जगहों की तो बात ही क्या करें....
जो इस तरह की व्हीडियो हो उसे मैं खुद को ही व्हाटसएप पर भेज देता हूं …आज भी इस का याद यूं आया कि आज फिर मिलावटी गुड कहूं या नकली गुड़ की एक व्हीडियो दिख गई ….कोशिश करता हूं उस को भी नीचे लगा दूं…यहां तो बिना गन्ने के रस के ही कैमीकल्स और रंगों से चीनी के सहयोग से गुड़
तैयार हो रहा है ...