पता नहीं मुझे इस सफारी सूट से क्यों शुरु से इतनी चिढ़ सी रही है ….इस के बारे में सोच कर ही अजीब सा लगने लगता है, गर्मी लगने लगती है, जाडे़ में भी पसीने छूटने लगते हैं….मैंने अपनी ज़िंदगी में दो सफारी सूट सिलवाए थे कभी…
पहला था जब मैं अभी कॉलेज से बाहर ही निकला था …कोका कोला कलर का सफारी सूट किसी महंगे से दर्जी से सिलवा लिया था…अब 20-22 साल की उम्र में बढ़िया सिलवाया हुआ सफारी सूट तो बढ़िया ही लगेगा न ….पहन कर अच्छा लगता था, कपडा़ इतना मोटा था, सिंथेटिक टाइप लेकिन उस उम्र में तो बस टशन ज़रूरी होता है… ..उसी रंग के मैंने गॉगल्स ले लिए थे ..और साथ में येज़्दी मोटरसाईकिल थी ….ऊपर से हेल्मेट पहनने का पंजाब में कोई कानून न था उन दिनों…बस, एक ही फ़िक्र पेट्रोल की लगी रहती थी…ऐसे लगता था कि हो न हो, यह येज़्दी ज़रूर पेट्रोल पी जाती होगी…झट से खत्म हो जाता था।
फिर मैंने अपनी शादी के मौके पर एक रेमन्डस का बहुत बढ़िया सफारी सिलवा लिया….पूरी बाजू का ….स्टाईलिश टाइप …उसे भी पहनना अच्छा लगता था…
इन दोनों सफारी सूटों के अलावा मैंने कभी सफारी सूट नहीं पहना….बहुत बार सलाह भी दी गई यहां वहां कि आज कर रिवाज़ है, एक दो सिलवा लेने चाहिए….लेकिन मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई। हिम्मत तो क्या, कभी इच्छा ही नहीं हुई।
दरअसल जैसे हमारे अनुभव होते हैं किसी चीज़ के बारे में …उन से भी तो बहुत सी चीज़ें मुतासिर होती हैं….कोका कोला कलर वाले सफारी का कपड़ा इतना मोटा था कि क्या कहूं….पसीना बहुत आता था….येज़्दी मोटरसाईकिल पर सवारी करते वक्त तो ठीक था, लेकिन दिन भर उसे पहनना एक यातना से कम न था….
और शादी के वक्त सिलवाया ब्लू सफारी ने भी परेशान ही किया …हनीमून की फोटो तो बढ़िया आ गईं ….लेकिन फिर वही मैं उस की बाजू को फोल्ड कर के ऊपर करने लगा…
बस, ऐसे ही कभी कभी पहन लेता था ….लेकिन वह यातना ज़्यादा देर झेलनी न पड़ी क्योंकि अगले एक-दो साल ही में मैं पंजाबी भाषा की हेल्दी की परिभाषा के अनुरुप हेल्दी हो गया…पेट बाहर निकलते ही, सफारी को पहनने से दम घुटने लगता…गर्मी, पसीने वाली दिक्कत तो थी ही, लेकिन अब बटन भी मुश्किल से बंद होते थे ….बस, सफारी ज़िंदगी से बाहर हो गए…
सफारी सूट अब भी नये ही दिखते थे …जहां मैं जहामत करवाने जाता था, वहां पर जो लड़का दुबला पतला था, उसे पूछा कि सफारी पहनोगे, मुझे टाइट हो गए हैं। उसने कहा कि ज़रूर पहनेंगे….अगली बार उसे दे दिए।
यह सब मैं क्यों लिख रहा हूं…क्योंकि मैं सफारी सूट के नाम ही से बहुत चिढ़ता हूं ….सब से ज़्यादा परेशानी मुझे इन को देख कर यह लगती है कि ये इतने मोटे मोटे टैरीकॉट के कपड़ों से बने होते हैं कि गर्मी तो लगती ही है। आज से तीस-चालीस पहले भी एक दौर था कि अगर किसी की शादी में जा रहे हैं तो भी लोग एक नया सफारी सूट सिलवा लिया करते थे …और दुल्हा मियां भी अकसर सफारी सूट में ही फंसा दिखा करता था।
मुझे इन सफारी सूटों से एक शिकायत यह भी है कि ये 40-50 साल खराब नहीं होते ….पहनने वाला बंदा पूरा घिस जाता है …लेकिन सफारी सूट के घिसने का कोई लक्ष्ण दिखाई नहीं देता, वही चमक-दमक, वही बिना इस्तरी किए भी कोई सिलवट नहीं दिखती …जब के पहनने वाले का शरीर आधा घिस चुका होता है, घुटनों की ग्रीस खत्म हो चुकी होती है….और इतना ढीला ढाला, सुथरा, शाईनिंग सफारी अजीब सा लगने लगता है …इसलिए भी यह एक बोरिंग सी ड्रेस है। मेरे पिता जी के पास भी एक दो सफारी सूट थे …वे जब भी उसे पहनते तो गर्मी मुझे लगने लगती यह सोच कर कि यह इस को पहन कैसे लेते हैं…।
जो सफारी शादी से पहले सिलवाए जाते हैं ….उन की लाइफ कम होती है क्योंकि अकसर एक दो साल में ही जैसे ही बंदे का पेट बाहर का रुख करता है, उस के बटन बंद नहीं हो पाते ..न पतलून के, न ही कमीज़ के। फिर उसे रख दिया जाता था ….नेकी की दीवार पर टांगने के लिए या वॉचमैन, माली, ड्राईवर को देने के लिए।
सफारी सूट को हवाई चप्पलों के साथ पहने देखना, शादी में बारातियों को नए नए सफारी सूट पहन कर उपद्रव करते देखना…
जैसे हम लोग प्लास्टिक के बारे में कहते हैं न कि यह नष्ट नहीं होता और सदा के लिेए पर्यावरण को प्रदूषित करते हुए हमारी छाती पर मूंग दलने का काम करता है। सफारी सूट का भी जीवन-चक्र अद्भुत है….पहले तो 50-60 साल तक यह पहनने वाले को परेशान किए रहता है, फिर उस के बाद घर वाले कुछ सालों पर इन को एक इमोशनल धरोहर के तौर पर अलमारी या ट्रंक में धरे रहते हैं, फिर कभी किसी को ध्यान आता है कि इन को किसी को दे दो, किसी के काम तो आएंगे। फिर वह माली, धोबी, वॉचमैन उस को पहन कर परेशान हुआ रहता है….कम से कम अगले बीस बरसों तक ….। एक बात और नोटिस की होगी आपने कि जब ये सफारी सूट बहुत पुराने भी हो जाते हैं तो इन की पतलून घिस जाए या फट जाए तो भी इन की शर्ट का कुछ नहीं बिगड़ता….फिर लोग इस के ऊपर वाले हिस्से को अलग से पहनने लगते हैं, उस के ऊपर स्वैटर भी पहन लेते हैं। लेकिन अकसर यह तबका मजबूरी वश ऐसा करता है….इसलिए इन पर कोई टीका-टिप्पणी करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
जैसा कि मैंने पहले ही लिख दिया है, सफारी सूट मुझे बहुत बोरिंग लगते हैं….होटल के बाहर खड़े बाऊंसर, बडे़ बड़े लीडरों के आगे पीछे चलने वाले लोग…. ये सब भी सफारी सूट में नज़र आते हैं।
लेकिन मुझे कुछ सफारी सूट अच्छे भी लगते हैं….कौन से? -सूती कपड़े से, लीनिन कपड़े से तैयार हुए सफारी क्योंकि ये माहौल को ठंडा रखते हैं और इन को एक बार ही पहना जा सकता है और वैसे भी दो-तीन साल में पीछा छोड़ देते हैं…..बहुत बार ख्याल आया कि इस तरह के एक-दो सफारी सूट सिलवा लूं, लेकिन कभी सबब ही नहीं बना….और इस वक्त भी ऐसा कुछ सिलवाने-पहनने का विचार नहीं है।
पोस्ट लिखने के बाद एक और ख्याल आया कि पहले ब्याह-शादियों मेंं रिश्तेदारों को सफारी सूट के या गर्म सूट के कपड़े मिलते थे….मुझे नहीं याद कि मुझे या मेरे आस पास जिन लोगों को भी ऐसे तोहफ़े मिले, उन्होंने कभी उन को सिलवाया ….कभी नहीं। क्योंकि पहले तो तोहफे में मिली चीज़ का रंग पसंद नहीं आता, फिर कपड़ा …फिर कुछ ..फिर कुछ और ….और सब कुछ ठीक भी होता तो सिलाई के भारी भरकम दाम सुन कर वे सभी पीस अल्मारी में ही दुबके रहते ….और कईं बार उन को आगे किसी रिश्तेदार को चिपका दिया जाता …वैसे भी ब्याह-शादियों में मिले इस तरह के कपड़ों के बारे में किसी ने ठीक ही कहा है कि इन की किस्मत में सिलना लिखा ही नहीं होता….ये आगे से आगे सरकते सरकते ही अपना जीवन-चक्र भोग लेते हैं, दर्ज़ी की दुकान तक पहुंचना शायद इन के नसीब में होता ही नहीं …..।