१९९० का दशक आ गया ...बहुत से सुपरहिट गाने जनमानस के दिल के तारों को झंकृत करने लगे ....उदित नारायण, मो. अज़ीज, सुरेश वाडेकर, अभिजीत और कुमार शानू का दौर ....उदित नारायण के गीत भी फिल्मी दुनिया में क्या, लोगों की दुनिया में छाने लगे ...हम लोग कैसेटें खरीद कर इक्ट्ठा करने लगे...और बहुत बार अपने पसंदीदा गीत उस में भरवा कर तैयार करवाने लगे ....करते थे यह सब भी अकसर ..लेकिन काम यह थोड़ा भारी लगता था ...पैसे भी काफी लगते थे ...ऐसा लगता ही न था, सच में लगते थे ...३५-४० रूपये की टीडीके की कैसेट और उसमें अपने पसंद के गीत भरवाने के कुछ २०-२५ रूपये ....लेकिन मज़ा तो अपने पसंद की कैसेट सुनने में ही आता था...वरना एक कैसेट में एक दो गीत बार बार सुनने के लिए हम लोग अपने टू-इन-वन का हैड घिस मारते थे, उस खराब हैड को दुरुस्त करवाना भी एक पेचीदा काम था ....पैसों के साथ साथ रिपेयर की दुकान पर चक्कर भी खूब लगते थे ....और हां, एक बात तो बतानी भूल ही गया कि पहले यह कैसेट भरने या बेचने का काम अकसर धोबी की दुकान पर जहां थोड़ी बहुत ड्राई-क्लीनिंग भी हुआ करती थी, वहीं पर होता था ..फिर धीरे धीरे उन दुकानदारों के युवा बेटे आधी दुकान को कपड़े इस्त्री करने के लिए और आधी को इस कैसेट के बिजनेस के लिए इस्तेमाल करने लगे ...टी-सीरीज़ का बिजनेस शिखऱ पर था ...१९८० के दशक की बाते हैं ...फिर देखते ही देखते वे कपड़े इस्त्री करने वाले बंदे और उन का सामान गायब हो गया और दुकानें कैसेटों से ठुंसी दिखने लगीं...
एक दौर वह भी था जब इसे खरीदना भी किसी रईसी शौक से कम न था... 😂 |
किसी भी बात को मैं भी कितना खींचने लगा हूं....यह बात अच्छी नहीं है, मुझे लगता है कभी कभी ...यह पाठकों के सब्र का इम्तिहान लेने जैसी बात लगती है ...खैर, उदित नारायण की बात करते हैं जिन के लाइव -कंसर्ट में जाने का मौका मिला...मुझे याद है जब १९९० के दशक में जब यह केबल टीवी आया तो हमें ये सब गीत विभिन्न चैनलों पर भी दिखने लगे ...बार बार दिखते थे अच्छा तो लगता ही था .....लेकिन १९९४ में जब एफ.एम आ गया तो फिर उस पर भी फिल्मी गीत सुनने का अपना मज़ा है ..एक दम साफ, स्पष्ट साउंड ..बिना किसी खि्च खिच के ..बिना किसी किट किट के .. फिर भी मुझे याद है सुबह शाम सैर के वक्त एक वॉकमैन जब उठाते तो दो एक कैसेटें भी दिल तो पागल है, कुछ कुछ होता है ..राजा हिंदोस्तान, अकेले हम अकेले तुम .....उठा कर रख लेते ....बार बार साइड ए-बी को बदल बदल कर सुनते रहते ..साथ साथ सैल खत्म होने की फिक्र भी करते रहते ...
ऐसे ही किसी चैनल पर उदित नारायण की इंटरव्यू देखी पहली बार ....बंदा दिल की बातें कर रहा था ..इन इंटरव्यूज़ को देखना भी एक अच्छा एक्सपिरिएंस रहा ...बहुत अच्छा...अपनी बात रखने की सच्चाई ....
फिर धीरे धीरे तकनीक ने ऐसी तरक्की कर ली कि हम लोगों को बीस-तीस रूपये में एक एमपी थ्री मिलने लगी ..जिस में १००-१५० गीत ठूंसे होते थे ...बस उस के लिए हमें एक एमपी थ्री प्लेयर लेना होता था ...और अकसर उन को हम सफर में भी ले जाते ...बस, और कुछ नहीं, सैल का लफड़ा होता था, ये सैल से चलते नहीं थे, कमबख्त सैल को खा जाते थे ...खैर, एक सीडी में दर्जनों गाने और वह भी या तो एक ही गायक के या फिर अलग अलग फिल्मों के गाने - एक सीडी में पंद्रह बीस फिल्मों के गाने भरे होते थे ..फिर कुछ समय बाद ऐसी एम-पी थ्री भी आने लगीं...रोमांटिक गीत, sad songs, शादी के गीत, पंजाबी लोकगीत.....बस, फिर क्या था, सी.डीओं का घरों में अंबार लगने लगा ....लेकिन फिर भी एफ.एम का जादू हम लोगों के दिलो-दिमाग पर बरकरार ही था....
ऐसे तो मैं उदित नारायण के गीतों तक पहुंचते पहुंचते कईं दिन लगा दूंगा...चलिए, उदित नारायण के लाइव कंसर्ट में चलते हैं ...कल शाम मुंबई के षण्मुखानंद हाल में यह लाइव प्रोग्राम देखने का मौका मिला .......आइए कुछ झलकियां देखते हैं ...
पापा कहते हैं बड़ा काम करेगा....बेटा हमारा ऐसा काम करेगा ..
Medley by Udit Narayan
बहुत बढ़िया. यादें यहाँ भी ताज़ा हो गयीं.
जवाब देंहटाएंthanks for visiting blog. Yeah, old memories are golden and loaded with nostalgia.
हटाएंयादों के झरोखे से झांकने का मौका मिला, बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पोस्ट देखने के लिए ... यादों का झरोखा!!
हटाएंअकेले में पुरानी यादों को याद कर मन प्रफुल्लित हो जाता हैं
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